सुप्रीम कोर्ट ने पूछा-निजी व्यक्तियों के हितों की रक्षा के लिए राज्य को याचिकाकर्ता क्यों बनना चाहिए?

Estimated read time 1 min read

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ नेन सोमवार को सवाल किया कि पश्चिम बंगाल सरकार संदेशखली मामले में तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) नेता शाहजहां शेख की केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) जांच का विरोध क्यों कर रही है। पीठ ने आश्चर्य जताया कि पश्चिम बंगाल सरकार संदेशखाली मामले में कुछ निजी व्यक्तियों के “हितों की रक्षा” के लिए उसके समक्ष याचिकाकर्ता के रूप में क्यों आई है। सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी तब आई जब वह कलकत्ता उच्च न्यायालय के 10 अप्रैल के आदेश को चुनौती देने वाली राज्य सरकार की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें महिलाओं के खिलाफ अपराध और संदेशखाली में जमीन हड़पने के आरोपों की सीबीआई जांच का निर्देश दिया गया था।

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (29 अप्रैल) को कलकत्ता हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ पश्चिम बंगाल राज्य द्वारा दायर विशेष अनुमति याचिका को जुलाई 2024 तक के लिए स्थगित कर दी, जिसमें संदेशखाली में जमीन पर कब्जा करने और यौन उत्पीड़न के आरोपों की जांच करने के लिए CBI को निर्देश दिया गया।

राज्य की ओर से पेश हुए सीनियर वकील मनु सिंघवी ने अदालत से कुछ हफ़्ते के बाद मामले की सुनवाई करने का अनुरोध किया, जिसके बाद मामले को स्थगित कर दिया गया। उन्होंने कहा कि कुछ बहुत ही महत्वपूर्ण जानकारी है, जिसे वर्तमान एसएलपी के साथ दायर करने के लिए एकत्र नहीं किया जा सका।

हालांकि पीठ मामले को स्थगित करने पर आपत्ति जताई, लेकिन कोर्ट ने उनका बयान दर्ज करने के बाद उनका अनुरोध स्वीकार कर लिया कि “इस याचिका की लंबितता को किसी भी उद्देश्य के लिए आधार के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जाएगा।”

आदेश की घोषणा के बाद जस्टिस गवई ने कहा,”राज्य को कुछ निजी (व्यक्तिगत) के हितों की रक्षा के लिए याचिकाकर्ता के रूप में क्यों आना चाहिए?”

गौरतलब है कि तृणमूल कांग्रेस से अब निलंबित सदस्य शाजहान शेख इस मामले में मुख्य आरोपी हैं। इसके बाद सीनियर एडवोकेट जयदीप गुप्ता ने कहा कि राज्य सरकार के बारे में टिप्पणियां हैं। उन्होंने विस्तार से बताते हुए कहा कि यह अनुचित है, क्योंकि राज्य सरकार ने पूरी कार्रवाई की है।

न्यायालय द्वारा पारित आदेश इस प्रकार है:“याचिकाकर्ता के सीनियर वकील एक सप्ताह के बाद स्थगन चाहते हैं। मामला अवकाश के बाद स्थगित कर दिया गया। हालांकि, हम मिस्टर सिंघवी का बयान दर्ज करते हैं कि इस याचिका की लंबितता का उपयोग किसी भी उद्देश्य के लिए आधार के रूप में नहीं किया जाएगा।

उल्लेखनीय है कि कलकत्ता हाईकोर्ट ने पश्चिम बंगाल के संदेशखाली में रहने वाली महिलाओं के कथित यौन उत्पीड़न और जबरन कब्ज़ा की गई आदिवासी भूमि पर समाचार पत्रों की रिपोर्टों पर स्वत: संज्ञान लिया था। कथित तौर पर ये घटनाएं पूर्व प्रधान शाहजहां शेख और उनके कार्यकर्ताओं की निगरानी में हुईं।

इससे पहले कथित तौर पर शेख के अनुयायियों द्वारा ED अधिकारियों पर हमला किया गया था। कोर्ट ने ईडी अधिकारियों पर हुए इस हमले की जांच सीबीआई को ट्रांसफर कर दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने भी इसकी पुष्टि की थी।

अब इस फैसले के जरिए हाईकोर्ट ने संदेशकाली में हुए कथित अत्याचार की जांच CBI को करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने निष्पक्ष जांच की जरूरत पर जोर दिया।

कोर्ट ने कहा,“इसलिए इस अदालत की सुविचारित राय है कि न्याय और निष्पक्षता के हित में यह आवश्यक है और विभिन्न शिकायतों और आरोपों पर शीघ्र विचार करने के लिए निष्पक्ष जांच की जानी आवश्यक है। राज्य को मामले की जांच के लिए हमारे द्वारा नियुक्त की जाने वाली उक्त एजेंसी को आवश्यक सहायता प्रदान करनी होगी।”

हाईकोर्ट द्वारा दिए गए कारणों में से एक यह है कि हाल ही में संदेशकाहली में हुई घटना के संबंध में CBI पहले से ही जांच कर रही है। न्यायालय ने कहा कि पक्ष एक पखवाड़े की अवधि के भीतर CBI के समक्ष अपनी शिकायतें दर्ज करने के लिए स्वतंत्र होंगे।

न्यायालय ने इस तथ्य पर न्यायिक संज्ञान लिया कि राज्य ने उन लोगों की भूमि वापस करने के लिए आयोग का गठन किया था, जिनकी जमीनें हड़प ली गईं और कहा कि पीड़ितों को मुआवजा देना भी राज्य का कर्तव्य है, क्योंकि उसने इस रुख को स्वीकार कर लिया है। जमीन सचमुच हड़प ली गई।

कोर्ट ने कहा, “जिस असली भूमि मालिक से जमीन छीनी गई है, वह न केवल कब्जा वापस पाने का हकदार है, बल्कि जमीन की प्रकृति और चरित्र, जो जमीन हड़पने से पहले मौजूद थी, उसे भी बहाल करना होगा। जब इतने बड़े पैमाने पर जमीन हड़पने की सूचना मिलती है तो निस्संदेह कल्याणकारी राज्य होने के नाते राज्य को उसे आगे बढ़ाना चाहिए और सही भूमि मालिकों के लिए जरूरी कदम उठाने चाहिए, न कि आरोपी पर यह कहकर उंगली उठानी चाहिए कि आरोपी को ही उपचारात्मक उपाय करने हैं।’

न्यायालय ने यह भी आदेश दिया कि वह पूरी जांच की निगरानी करेगी और ऊपर दिए गए निर्देशों के अनुसार, सीबीआई द्वारा रिपोर्ट दाखिल किए जाने के बाद आगे के आदेश पारित करेगी। न्यायालय ने संदेशखाली क्षेत्र में संबंधित और संवेदनशील स्थानों पर सीसीटीवी लगाने जैसे अन्य निर्देश भी पारित किए।

न्यायालय ने स्पष्ट किया,”राज्य आवश्यक धनराशि मंजूर करेगा और निविदा प्रक्रिया आदि जैसी औपचारिकताओं को छोड़कर काम प्राथमिकता के आधार पर तारीख से 15 दिनों के भीतर पूरा किया जाएगा।”

उल्लेखनीय है कि शेख संदेशखाली से उत्पन्न लगभग 42 आपराधिक मामलों में मुख्य आरोपी है। लंबे समय तक फरार रहने के बाद आखिरकार राज्य पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया।

अदालत ने उन्हें महत्वपूर्ण राजनीतिक प्रभाव वाले ‘मजबूत व्यक्ति’ के रूप में वर्णित किया है, उन्हें जिला परिषद, उत्तर 24 परगना के कर्माध्यक्ष के रूप में चुना गया और सत्तारूढ़ दल से उनके संबंध हैं। सुनवाई के दौरान, हाईकोर्ट ने राज्य पुलिस की “लुका-छिपी” रणनीति और सार्वजनिक वितरण प्रणाली घोटाले की निष्पक्ष जांच की आवश्यकता पर चिंता व्यक्त की, जिसमें शेख प्रमुख व्यक्ति हैं।

बंगाल शिक्षक भर्ती: सीबीआई जांच के आदेश पर ‘सुप्रीम’ रोक

मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ सोमवार को पश्चिम बंगाल सरकार की याचिका पर सुनवाई की। पीठ में न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा भी शामिल थे।कलकत्ता उच्च न्यायालय के एक फैसले पर सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है। सर्वोच्च अदालत ने उस फैसले पर रोक लगाई है, जिसमें उच्च न्यायालय ने शिक्षक भर्ती घोटाले में पश्चिम बंगाल सरकार के अधिकारियों की भूमिका की जांच के लिए सीबीआई को निर्देश दिया था।

मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ सोमवार को पश्चिम बंगाल सरकार की याचिका पर सुनवाई की। पीठ में न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा भी शामिल थे। बंगाल सरकार ने कलकत्ता हाईकोर्ट के उस फैसले को सर्वोच्च अदालत में चुनौती दी, जिसमें उच्च न्यायालय ने राज्य संचालित और राज्य सहायता प्राप्त स्कूलों में स्कूल सेवा आयोग (एसएससी) द्वारा की गई 25,753 शिक्षकों और गैर-शिक्षण कर्मचारियों की नियुक्ति को अमान्य कर दिया था। पीठ अब इस मामले की सुनवाई छह मई को करेगी।

हालांकि, सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा कि हम कलकत्ता हाईकोर्ट के उस फैसले पर रोक लगाते हैं, जिसमें सीबीआई को राज्य सरकार के अधिकारियों के खिलाफ जांच करने के आदेश दिए गए थे।

हाईकोर्ट ने नियुक्तियां अमान्य करते हुए कहा था कि जिन लोगों को एसएससी पैनल की समाप्ति के बाद नौकरी मिली, उन्हें जनता के पैसे से भुगतान किया गया। सभी को चार सप्ताह के अंदर ब्याज सहित वेतन लौटाना होगा। सभी को 12 फीसदी सालाना ब्याज के साथ पैसा लौटाना होगा। नए लोगों को नौकरी मिलेगी। हाई कोर्ट ने 15 दिनों के अंदर अंदर प्रक्रिया शुरू करने का निर्देश दिया है।

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार एवं कानूनी मामलों के जानकार हैं)

You May Also Like

More From Author

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments