दिल्ली के पुराने किले की खुदाई में मिलीं 2500 साल पुरानी ईंटें बारिश में हुईं नष्ट

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पिछले कुछ महीनों से दिल्ली के पुराने किले में पुरातत्व विभाग द्वारा खुदाई चल रही थी। इस खुदाई से इतिहास और प्राक्इतिहास के साक्ष्यों से जुड़ी बहुत सारी जानकारियां और तथ्य मिल रहे थे। ज्यादातर साक्ष्य मौर्ययुगीन और उसके बाद के दौर के थे। लेकिन, उसके पूर्ववर्ती काल के अवशेष भी मिल रहे थे, जिनका एक सिरा उत्तर-हड़प्पा काल से जुड़ रहा था। ऐसे अवशेष दिल्ली के अन्य क्षेत्रों की हुई खुदाई में पहले भी मिले हैं। लेकिन, इस पुराना किला की खुदाई को अमूमन इंद्रप्रस्थ से जोड़कर देखने और उसे महाभारत से जोड़ देने से यह काफी विशिष्ट हो गया था।

इस किले और उसके आसपास के क्षेत्र को महाकाव्यों के वर्णन से जोड़कर, इससे जुड़ी कथाओं को ठोस इतिहास बनाने का सिलसिला प्रोफेसर बी.बी. लाल ने 1955 में शुरू किया। उन्होंने इसी संदर्भ में मेरठ के आसपास के इलाकों का सर्वे और खुदाई कराया था। प्रोफेसर बी.बी. लाल ने एक बार फिर पुराना किला पर ध्यान केंद्रित किया और 1969 से 1973 तक खुदाई का कार्यक्रम चलाया।

उस समय भी पूर्व-मौर्यकालीन, मौर्य, शुंग, कुषाण, गुप्त, राजपूत, सल्तनत और मुगलकाल तक के साक्ष्य वहां मिले। इसके बाद 2014 में भी ‘आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया’ ने 2014 में एक बार फिर यहां खुदाई कराया। इस टीम का नेतृत्व वसंत कुमार स्वर्णकार कर रहे थे। थोड़ी रूकावट के बाद 2017-18 में इसे फिर शुरू किया गया। और, अब 2023 में यह काम जारी है।

पुरातात्विक खुदाई के दौरान बेहद सावधानी बरती जाती है। इसके लिए कई विभागों का सहारा लिया जाता है जिससे मिट्टी के अंदर की विरासत की ठीक जानकारी मिल सके और खुदाई के दौरान जो मिल रहा है, उसे संरक्षित किया जा सके। इस बार की खुदाई के दौरान कुषाण कालीन बिना आग में पके कच्ची ईंटों की एक तह मिली। इसी दौरान, जून के अंत में दिल्ली में बारिश शुरू हो गई और बारिश का पानी खुदाई स्थल में भरने लगा। इसकी वजह से, लगभग 2500 साल पुरानी ईटें बारिश के पानी में घुलकर नष्ट हो गईं। निश्चय ही यह बेहद लापरवाही का नतीजा है।

भारतीय पुरातत्व विभाग का दिल्ली सर्किल ही दिल्ली में होने वाली खुदाई की जिम्मेवारी में होता है। और, यह विभाग केंद्रीय संस्कृति मंत्री की जिम्मेवारी में है। पुरातत्व विभाग के दिल्ली सर्किल के अधीक्षक प्रवीण सिंह हैं। टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के अनुसार उन्होंने बताया कि ‘खुदाई वाली जगह पर शेड लगाने के लिए प्रस्ताव आया था। लेकिन, यह नहीं कहा गया था कि इसे कब लगाना या शुरू करना है। यह अब भी बाकी है।’ यह एक निहायत ही गैरजिम्मेवाराना स्थिति है।

सरकारी कामकाज में नौकरशाही के किस्से कोई अनोखी बात नहीं है। लेकिन, यह अनोखापन पुरातत्व विभाग में दिखने लगे, तब इतिहास का पाठ मुश्किल हो जायेगा। खासकर, तब जब महाभारत खोजने का दावा किया जा रहा हो और इसमें खुद सरकार की रूचि खूब बनी हो, तब इस तरह की लापरवाही से पुरातत्व विभाग की असलियत से वाकिफ हो सकते हैं। खुद, केंद्रीय संस्कृति मंत्री, जिनके अंतर्गत यह विभाग आता है, ने पिछले महीने की 30 तारीख को बयान दिया था कि इस प्रयास में जो कुछ तथ्य मिल रहे हैं, उनका संरक्षण और रखरखाव किया जायेगा।

इस वर्ष की शुरूआत में जब खुदाई शुरू हुई थी, तब अखबार और टीवी न्यूज चैनल बड़े पैमाने में पर इस प्रचार में लग गये थे कि पुराना किला में महाभारत काल की खोज की जा रही है। महाकाव्य की लोकप्रियता और हिंदुत्व के नये उभार ने सीधे इतिहास को देखने की जिज्ञासा को काफी बढ़ा दिया। बड़े पैमाने पर लोग पुरातत्व विभाग द्वारा हो रही पुराना किला की खुदाई में रूचि लेने लगे थे।

लोगों की रूचि और इस खुदाई के प्रति जिज्ञासा को ध्यान में रखते हुए पुरातत्व विभाग ने खुदाई से प्राप्त तथ्यों की प्रदर्शनी लगाई। वहां पुरातत्व में रूचि रखने वाले लोगों के सवालों का जवाब भी दिया गया। इस दौरान खुद केंद्रीय संस्कृति और पर्यटन विभाग संभालने वाले मंत्री किशन रेड्डी ने बयान देकर बताया कि खुदाई में बैंकुंठ विष्णु, गज लक्ष्मी, भगवान गणेश की मूर्ती, राजमुद्रा, अलग-अलग समय के सिक्के और जानवरों की हड्डियां मिली हैं।

इस बार की खुदाई में मिल रहे तथ्य पिछले अन्य खुदाईयों में तथ्यों से बहुत अलग नहीं हैं और इतिहास का अंतिम सिरा या तो हड़प्पा काल तक जाता है या उसके पहले पाषाणकाल और उसके उत्तरवर्ती काल से जुड़े औजारों के मिलने तक जाता है। इस तरह महाभारत कालीन सभ्यता या शहर की खोज एक दुर्लभ अवस्थिति बनी हुई है, जिसमें कल्पना की उड़ान इसे समय-समय पर रंगीन बनाता रहता है। लेकिन, पुरातत्व की इस खुदाई में हासिल इतिहास के तथ्य ही महज बारिश के पानी में नष्ट हो जायें, उससे बहुत उम्मीद करना ठीक नहीं लगता।

कनिंघम के नेतृत्व में स्थापित पुरातत्व विभाग ने निश्चय ही एक ऐतिहासिक जिम्मेवारियों को निभाते हुए भारत के इतिहास निर्माण बेहद शानदार भूमिका का निर्वाह किया है। 1947 के बाद विभिन्न सोच व धारा के लोगों ने इस विभाग के साथ काम किया और उसका नेतृत्व भी किया। लेकिन, पिछले 20 सालों में यह निरन्तर गर्त में गिरता जा रहा है। नौकरशाही चरम पर पहुंच रही है। मूर्तियों की चोरी से लेकर ऐतिहासिक स्मारकों के नष्ट होने की घटनाएं सामने आ रही हैं। दिल्ली और उसके आसपास के पुरापाषाण काल के स्थल अवैध पत्थर और बालू के खनन और अतिक्रमण से नष्ट हो रहे हैं।

पुरातत्व विभाग इन स्थलों को बचाने की जगह खुद ऐसे कार्यों में लग गया है, जिसका इतिहास के संदर्भ में कोई मूल्यवत्ता नहीं है। अतिक्रमण के नाम पर लोगों के घर उजाड़ने के प्रयास में तो लग जाता है लेकिन अरावली की विविधता और उसे जुड़े इतिहास को बड़े बिल्डरों और खनन माफियाओं से बचाने में असफल दिखता है।

इतिहास पर दावेदारी का अर्थ कत्तई यह नहीं होता कि दावेदार इतिहास बचा रहा है। संभव है वह इसे जाने या अनजाने इसे नष्ट करने में लगा हो। पुराना किला की खुदाई में कुषाणकालीन ईटों का महज थोड़ी सी बारिश में नष्ट हो जाना, इतिहास के प्रति घोर उपेक्षा और उदासीनता का ही प्रमाण है।

(अंजनी कुमार पत्रकार हैं।)

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