Sunday, April 28, 2024

2019 में बीजेपी के साथ हुई बातचीत को शरद पवार ने बताया राजनीतिक “गुगली”

पिछले कुछ सालों में महाराष्ट्र की राजनीति में बहुत उठा-पटक देखने को मिला। भाजपा और शिवसेना गठबंधन में चुनाव लड़ती है और चुनाव के नतीजे निकलने के बाद शिवसेना अपने मित्र भाजपा से नाता तोड़कर एनसीपी और कांग्रेस के साथ गठबंधन करके सरकार बनाती है।

कुछ समय के बाद ही खबर आती है कि गठबंधन एक बार फिर से टूटने वाला है, इस बार एनसीपी नेता अजित पवार भाजपा के साथ मिलने के लिए तैयार थे लेकिन जैसे-तैसे वहां पर सरकार गिरने से बच जाती है। महाराष्ट्र राजनीति के उठा-पटक में कुछ पन्ने एनसीपी प्रमुख शरद पवार के भी है। शरद पवार ने कल गुरुवार को स्वीकार किया कि महाराष्ट्र में 2019 विधानसभा चुनाव के बाद राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) ने सत्ता में आने के लिए भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के साथ चर्चा की थी। हालांकि पवार ने इस चर्चा को राजनीति का हिस्सा बताया।

पवार ने कहा कि यह कदम भाजपा की सत्ता के प्रति भूख और राज्य में नियंत्रण हासिल करने के पागलपन को दिखाने के लिए था। किसी के भी साथ गठबंधन करने की उनकी इच्छा नहीं थी, और भाजपा से चर्चा करना एक रणनीतिक “गुगली” थी।

शरद पवार बताते हैं कि, “2014 में, एनसीपी ने सरकार बनाने के लिए भाजपा को खुले तौर पर बाहरी समर्थन की पेशकश की थी। जिसका उद्देश्य राज्य में एनडीए के गठबंधन के सहयोगियों के बीच दरार पैदा करना था। 2019 के विधानसभा चुनाव के बाद बीजेपी के साथ लगातार बैठकें हुईं। जबकि बीजेपी नेताओं ने दावा किया कि मैंने देवेन्द्र फड़णवीस और अजित पवार के शपथ ग्रहण समारोह से कुछ दिन पहले ही अपना मन बदल लिया था। लेकिन सरकार ज्यादा दिनों तक नहीं चल पाई। यह दिखाने के लिए कि भाजपा सत्ता पर काबिज होने के लिए किसी भी हद तक जा सकती है। यह मेरी सोची-समझी चाल थी, जबकि एनसीपी सत्ता के पीछे नहीं भागती”।

पवार ने उप मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के इस खुलासे पर प्रतिक्रिया दी कि एनसीपी 2019 में बीजेपी के साथ सरकार बनाने से पीछे हट गई थी। पवार ने महाराष्ट्र में महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराध को लेकर सवाल करते हुए फडणवीस को भी आड़े हाथों लिया। पवार ने कहा कि “राज्यभर से बड़ी संख्या में लड़कियां या महिलाएं गायब हैं। क्या सरकार के लिए ये चिंता का विषय नहीं है? या फिर सरकार महिला सुरक्षा के लिए क्या कर रही है? उन्हें राजनीतिक बयान देने के बजाय राज्य की महिलाओं को सुरक्षा प्रदान करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए जो राज्य और जनता के लिए बेहतर होगा।”

एनसीपी प्रमुख बताते हैं कि, “2014 में राज्य में सत्ता खोने के बावजूद, एनसीपी महाराष्ट्र की राजनीति में एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी बनी रही और आज तक बनी हुई है। पार्टी ने मुख्यमंत्री पद को लेकर एनडीए के भीतर संभावित असहमति की आशंका को देखते हुए सार्वजनिक रूप से भाजपा को बाहरी समर्थन की पेशकश की थी। क्योंकि विधानसभा चुनाव में भाजपा ने शिवसेना से अधिक सीटें जीती थीं। हालांकि, एनडीए के भीतर विभाजन पैदा करने की एनसीपी की कोशिश का मनचाहा परिणाम नहीं मिला, क्योंकि गठबंधन में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में शिवसेना ने मुख्यमंत्री पद के लिए भाजपा के दावे को स्वीकार कर लिया था”।

शरद पवार बताते हैं कि “पहले हमने जिस चीज कोशिश की वो हमे नहीं मिली। लेकिन साल 2019 में भी ऐसी ही स्थिति पैदा हुई लेकिन मुख्यमंत्री पद को लेकर विवाद के कारण भगवा गठबंधन में दरार आई। चूंकि शिवसेना ने मुख्यमंत्री के लिए पूरे पांच साल के कार्यकाल की मांग कि थी और भाजपा ने इस मांग को मानने से इनकार कर दिया। इसलिए भाजपा नई सरकार बनाने के लिए अजीत पवार का समर्थन हासिल करने में कामयाब रही। इस उम्मीद में कि एनसीपी उनके साथ आकर सरकार बनायेगी”।

हालांकि, शरद पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी का बीजेपी को समर्थन नहीं मिला। जिसका नतीजा यह हुआ कि बहुमत की कमी के कारण बीजेपी के लिए सरकार बनाना मुश्किल हो गया। इसके बजाय एनसीपी ने कांग्रेस के साथ मिलकर राज्य में महा विकास अघाड़ी (एमवीए) सरकार बनाने के लिए शिवसेना के साथ हाथ मिला लिया। जिसके मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे बने। शरद पवार कहते हैं कि, “प्रधानमंत्री ने हाल ही में यूसीसी का मुद्दा उठाया। मामला विधि आयोग के पास है और मैंने सुना है कि पूरे देश से उसे 900 लोगों की राय मिली है। मुझे यह भी पता चला है कि सिख समुदाय ने इस पर आपत्ति व्यक्त की है। सिख, ईसाई और जैन समुदायों के रुख को ध्यान में रखा जाना चाहिए।”

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