रोहित वेमुला की मौत का कारण ‘असल जाति’ के खुल जाने का डर थाः पुलिस रिपोर्ट

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रोहित वेमुला की मौत 17 जनवरी, 2016 में हुई थी। उन्होंने आत्महत्या किया था। यह घटना हैदराबाद विश्वविद्यालय की है। वह वहां शोध विद्यार्थी के बतौर नामांकित थे। उन्हें अनुसूचित जाति के छात्र होने के बतौर छात्रवृत्ति मिलती थी। वह हैदराबाद विश्वविद्यालय में अंबेडकर स्टूडेंट यूनियन के सदस्य के बतौर सक्रिय थे। जुलाई, 2015 में उनकी छात्रवृत्ति रोक दी गई। इसकी पृष्ठभूमि में अंबेडकर स्टूडेंट यूनियन ने दावा किया कि इसके पीछे मूल कारण उनकी सक्रियता है।

इस संदर्भ में भाजपा सांसद बंडारू दत्तात्रेय द्वारा मानव संसाधन मंत्रालय को लिखा गया पत्र, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के साथ भिड़ंत और उनके द्वारा प्रशासनिक कार्रवाई करने के लिए बनाये गये दबाव का उल्लेख किया गया था। इस दौरान विश्वविद्यालय प्रशासन ने रोहित वेमुला सहित पांच छात्रों के खिलाफ जांच बैठा दिया और 17 दिसम्बर, 2015 को उन्हें निलंबित कर दिया गया।

हैदराबाद विश्वविद्यालय के छात्रों ने इसके खिलाफ धरना और प्रदर्शन जारी रखा। जब उन्हें हॉस्टल से निकालने का आदेश जारी हुआ, तब भी वह इसे जारी रखने का निर्णय लिया। हाथ में कुछ सामान के साथ भीमराव आंबेडकर का एक विशाल फोटो हाथ में लिये जब वह कैंपस के मैदान में बाहर आये, तब वह एक ऐसे विचार को सामने रख रहे थे, जिसके सामने प्रतिरोध के सिवा और कोई रास्ता नहीं बचा था। उन्होंने एक खड़ी दीवार के भीतर खिड़कियां खोल रहे थे और साथ अपनी मौत का बयान भी लिख रहे थेः ‘‘मेरा जन्म ही जानलेवा घटना है।’’

आज जब अखबारों में खबर आई कि पुलिस ने अपने अंतरिम रिपोर्ट, जिसे वह न्यायिक कोर्ट में पेश किया, में बताया कि रोहित वेमुला की मौत के पीछे उसका अपना ‘असल जाति’ के उजागर हो जाने का डर था। अखबारों में इस रिपोर्ट के कुछ हवालों को पढ़ते हुए लगा यह एक ऐसी खिंची हुई विशाल रेखा के दो बिंदुओं के बारे में पढ़ रहा हूं, जिसका अंतिम निष्कर्ष यही है हर सीधी रेखा एक वृत्त होती है। एक बिंदु से चली रेखा उसी बिंदु से आकर उसी बात को दोहरा गई, जिसे रोहित वेमुला ने लगभग आठ साल पहले कहीं थी। रोहित वेमुला जिन हालातों को अपनी मौत का कारण बता रहे थे, रिपोर्ट इसके उलट इसका कारण रोहित वेमुला के भीतर बैठे ‘डर’ को बता रही है।

ऐसा नहीं है कि पुलिस ने अनुसूचित जाति और जनजाति, अत्याचार निरोधक, अधिनियम के तहत केस दर्ज नहीं किया था। आंदोलनों के दबाव में यह कार्य 2016 में ही हो गया था। इसमें उस समय के सिकंदराबाद के भाजपा सांसद बंडारू दत्तात्रेय, एमएलसी एन रामचंदर राव, केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी, हैदराबाद विश्वविद्यालय के उपकुलपति पी अप्पा राव का नाम भी था। इसके अलावा एबीवीपी के कुछ सदस्य भी इसमें शामिल थे। रिपोर्ट सभी लोगों को सभी आरोपों से मुक्त करती है।

इस रिपोर्ट के अनुसारः ‘‘अगर मृतक की पढ़ाई देखी जाये तो ऐसा प्रतीत होता है कि वह अपनी पढ़ाई के बजाय कैंपस में छात्र राजनीतिक मुद्दों में अधिक शामिल था। उन्होंने अपनी पहली पीएचडी को दो साल तक करने के बाद बंद कर दिया और वह दूसरी पीएचडी करने लगा, जिममें भी गैर शैक्षणिक गतिविधियों के कारण ज्यादा प्रगति नहीं हुई।’’ इस रिपोर्ट में कहा गया हैः ‘‘इसके अलावा मृतक को खुद पता था कि वह अनुसूचित जाति से नहीं है और उसकी मां ने उसे एससी प्रमाणपत्र दिलाया था।

वह निरंतर भय में हो सकता है क्योंकि इसके उजागर होने से उन्हें वर्षों से अर्जित शैक्षिक डिग्रियां खोनी पड़ेगी और मुकदमे का सामना करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा। इस प्रकार, मृतक को कई मुद्दे परेशान कर रहे थे जो उसे आत्महत्या करने के लिए प्रेरित कर सकते थे। सर्वोत्तम प्रयासों के बावजूद यह स्थापित करने के लिए कोई सबूत नहीं मिला कि आरोपियों के कार्यों ने मृतक को आत्महत्या के लिए प्रेरित किया है। (द हिंदुस्तान टाईम्स, हिंदी, 3 मई, 2024 से उल्लेखित)।’’

रिपोर्ट की बात मानें तो, रोहित वेमुला की मौत का कारण उसकी राजनीतिक गतिविधि और जाति थी। इस सच्चाई को रोहित वेमुला खुद एक और नजरिये से देख रहे थे और इस संदर्भ में वह विश्वविद्यालय प्रशासन को एक पत्र भी लिख चुके थे। वह और उनके साथी बता रहे थे उपरोक्त इन दो कारणों से ही उनको प्रताड़ित किया जा रहा है।

यहां यह स्पष्ट करना जरूरी है कि रोहित वेमुला की जाति को लेकर एक विवाद बनाया गया। पुलिस की रिपोर्ट से इतना पता चलता है कि वह भी इस बात को मानती है कि रोहित वेमुला अनुसूचित जाति न होकर अन्य पिछड़ी जाति से आते हैं। रोहित वेमुला की मां अनुसूचित जाति से थीं और पिता अन्य पिछड़े वर्ग से। रोहित का पालन पोषण मां के परिवार में हुआ। यह दावा भी किया गया कि रोहित वेमुला के मां के परिवार ने रोहित को गोद ले लिया था।

कानूनी तौर पर यदि रोहित वेमुला की जाति अनुसूचित जाति के तहत नहीं आती है, तब इस आधार पर बनाये गये आरोप बेहद कमजोर हो जाते हैं। ऐसे में यह न सिर्फ कमजोर हो जाता है, आरोप को रोहित वेमुला की ओर मोड़ देना भी आसान हो जाता है। ऐसा लगता है कि रिपोर्ट पर इसी दिशा में काम किया और मौत का मुख्य कारण खुद रोहित वेमुला के सिर पर ही डाल दिया।

इस रिपोर्ट की तीखी आलोचना आनी शुरू हो गई है। इस संदर्भ में एक फिर रोहित वेमुला की मां ने अपनी बात दुहराई हैः ‘‘मैंने हमेशा ही कहा है कि मैं और मेरा बच्चा अनुसूचित जाति माला समुदाय से हैं, मेरा पालन पोषण अन्य पिछड़ा समुदाय में हुआ है। इसमें मामले में कोई विवाद नहीं है कि हम अनुसूचित जाति से हैं।’’ आलोचना के दबाव में पुलिस ने यह भी कहा है कि वह मामले में और भी तहकीकात के लिए तैयार है।

रोहित वेमुला की आत्महत्या, इस पर आई पुलिस की केस बंद करने की रिपोर्ट एक ऐसे हालात को बयान कर रहे हैं, जिसमें न्याय शब्द एक ऐसे खोखल में बदल गया जिसके भीतर फूंक मारकर कोई भी राग, सुर, गीत, शोर, कुछ भी निकाला जा सकता है। लेकिन, यहां वही सुर निकाला जा रहा है जिसमें एक उत्पीड़ित जाति के ऊपर ही उसके उत्पीड़न का दोष मढ़ दिया गया है।

यह कोई नई बात नहीं है, यह एक सिलसिला है, यह भारतीय समाज की वह वर्चस्ववादी जाति की सरंचना से बनी वह गाड़ी है जो अपने से नीचे आने वाली जाति और समुदाय को रौंदते हुए बढ़ी चली जा रही है। पुलिस की यह रिपोर्ट इस चलती हुई गाड़ी को आगे जाने की हरी झंडी देती है। लेकिन, इसके ठीक पहले, कुछ ही साल पहले इसी गाड़ी पहिये के नीचे आकर रोहित वेमुला ने इसे उछाल दिया था, और तब बहस और आंदोलनों का सिलसिला चल पड़ा था। रोहित वेमुला की जिंदगी और मौत उस नकाब को उतारकर फेंकता है, जिसके भीतर से आज का फासीवाद सामने आ रहा है।

(अंजनी कुमार स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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