ट्रोल की राजनीति और तवलीन सिंह का निरपेक्ष दुख

Estimated read time 1 min read

तवलीन सिंह एक जानी-मानी पत्रकार हैं। उनके विश्लेषण को तवज्जो दी जाती है। हालांकि, इस बीच तवज्जो देने में लोग काफी कोताही बरत रहे हैं, तो उनके हिस्से में भी यह कम होता जा रहा है। लेकिन, बीच-बीच में उन्हें तवज्जों तो छोड़िये, उन पर राजनीतिक तौर पर फूहड़ किस्म की टिप्पणियां भी की गई। ये टिप्पणियां ऑनलाइन चलने वाले ट्रोल के रास्ते आये।

वह इंडियन एक्सप्रेस में साप्ताहिक ‘फिफ्थ कॉलम’ लिखती हैं। और, साथ ही उन्होंने भारतीय राजनीति पर कई किताबें भी लिखी हैं। वह गये रविवार, 5 मई, 2024 को लिखती हैंः ‘सोशल मीडिया के इस समय में एक राजनीतिक कॉलम लिखना एक मुश्किल भरा काम हो चुका है। दो रूपल्ली के ये ट्रोल, जो एक वाक्य किसी तरह लिख लेते हैं, वे खुद को राजनीतिक टिप्पणीकार समझते हैं और हम जैसे लोगों पर हमला कर अपना समय बिताते हैं। शायद वे सोचते हुए विश्वास करते हैं कि उन्हें इंडियन एक्सप्रेस में कॉलम लिखना चाहिए? कौन जानें? यदि मेरे लिखने में कांग्रेस पार्टी की आलोचना झलकती है तब मेरे पर गांधी परिवार के प्रति ‘नफरत’ का आरोपी बना दिया जाता है। यदि ऐसी ही आलोचनात्मक झलक नरेंद्र मोदी को लेकर दिखती है तब आरोप और भी डरावना हो जाता है। इसका विस्तार ‘पाकिस्तानी एजेंट से लेकर हिंदू-विरोधी और भारत-विरोधी तक जाता है।’

अभिजात्यता से भरे इन वाक्यों में ट्रोल को सोशल मीडिया तक सीमित कर देना बेहद आसान हो चुका है। लेकिन, आमतौर पर ट्रोल भाषा, उसकी योजना और कार्यक्रम मुख्य मीडिया के माध्यम से आ रहा होता है, तब उसे न सिर्फ दरकिनार कर दिया जाता है, बल्कि बात करने से भी बचा जाता है। ट्रोल व्यक्तिगत हमले, राजनीतिक विचारों को अपराध की श्रेणी में डालने, गतिविधियों को गलत ढंग से पेश करने और पहचान, जिसमें उसके फोटो, वीडियो आदि को तोड़-मरोड़ कर प्रचारित करने जैसे तरीके अख्तियार करते हैं।

ट्रोल अकेले नहीं आते हैं, ये बेहद योजनाबद्ध तरीके से एक स्रोत के सहारे सोशल मीडिया पर उतरते हैं और जिस तरह जंगली कुत्ते या भेड़िये शिकार की घेराबंदी करते हैं, उसकी तरह की रणनीति को ये अपनाते हैं। यहां, वे जिन स्रोतों का इस्तेमाल करते हैं उसमें देश के प्रधानमंत्री के बयान से लेकर एक सिनेमा की दुनिया का कलाकार, एक राजनीतिक चिंतक, अर्थशास्त्री से लेकर एक पत्रकार या सामाजिक कार्यकर्ता तक हो सकता है।

ऐसा नहीं है कि ट्रोल की यह रणनीति सोशल मीडिया तक ही सीमित है। यह रणनीति मुख्य मीडिया में भी अपनाया गया है। यहां यह दो रूपल्ली के माध्यम से नहीं, करोड़ों रुपये के वारे न्यारे के साथ होता है। यदि हम पिछले एक साल में, मीडिया की मुख्यधारा में कांग्रेस पार्टी के नेता राहुल गांधी के नेतृत्व की क्षमता को लेकर जितनी बहसों को आयोजित किया गया और आमतौर पर उनमें जो बातें की गई, वहां सिर्फ एक ओपिनियन बनाने का मसला ही नहीं था, वहां उनकी एक-एक गतिविधि को उनकी व्यक्तिगत क्षमता के साथ जोड़कर चर्चाएं की गईं। उनके व्यक्तिगत जीवन को राजनीतिक फलक पर लाकर परखने के जो तरीके अपनाये जा रहे थे, वह भी ट्रोल ही था।

अकेले प्रशांत किशोर को एक राजनीतिक व्याख्याकार के बतौर विभिन्न चैनलों, प्रिंट मीडिया समूहों ने मोदी का कद और राहुल की क्षमता को लेकर जितनी व्याख्याएं कराई गईं, वह हैरान कर देने वाली थीं। प्रशांत किशोर मोदी की क्षमता की व्याख्या उनकी राजनीति से बाहर जाकर करते थे और जब भी राहुल गांधी की बात आती थी तब वे कांग्रेस के संगठन और गांधीवादी राजनीति के संदर्भ में उन्हें पेश करते थे। वे अक्सर कहते हुए दिखे कि कांग्रेस को अपनी विचारधारा पर वापस आना चाहिए और संगठन को और लोकतांत्रिक बनाना चाहिए। ये सारे संदर्भ मोदी की व्याख्या में गायब दिखते थे। इस मसले पर इन मंचों से अन्य राजनीतिक विश्लेषक खासकर योगेंद्र यादव, प्रणव राय, रूचिर शर्मा, सुहास पालिस्कर आदि नदारद ही दिखे।

राहुल गांधी, कांग्रेस पार्टी और पूरे विपक्ष को मुख्य मीडिया ने जितनी योजनाबद्ध तरीके से उसे भारतीय राजनीति में अप्रासंगिक करार देने के कार्यक्रम चलाये वह भारतीय राजनीति और मीडिया के रिश्ते का सबसे खतरनाक और घिनौना हिस्सा है। चुनाव के दौरान चर्चा पर मोदी को बुलाया जाना सिर्फ मोदी की भक्ति ही नहीं है। यह मोदी की राजीनति की उन आलोचनाओं का जवाब भी है जो मोदी को अगले प्रधानमंत्री के तौर पर नहीं देखना चाहते।

यदि आप आंकड़ों से गुजरें तो दिखेगा कि विपक्ष और कांग्रेस के हिस्से इन मीडिया घरानों द्वारा चलाये गये नकारात्मक प्रचार ही आये हैं जबकि मोदी और भाजपा सरकारों के हिस्से उनकी तारीफ और गुणगान के कार्यक्रमों की बाढ़ दिखती है। मुख्य मीडिया जब विपक्ष की राज्य सरकारों, अल्पसंख्यक और अन्य समुदायों, यहां तक कि किसान और मेहनतकशों के बारे में रिपोर्ट, बहस, खबर चलाता है तब वह उन्हीं ट्रोल की भाषा और तौर तरीकों को अख्तियार करता है जिसकी चिंता तवलीन सिंह अपने कॉलम में कर रही हैं।

तवलीन सिंह का दुख उनकी निरपेक्ष राजनीति को ट्रोलों द्वारा ना समझा जाना है। यदि वह खुद अपनी टिप्पणियों पर नजर डालें, तब वहां उनकी ‘निरपेक्षता’ में काफी झोल दिखता है। लेकिन, यहां उनकी इस तरह की टिप्पणियों का व्याख्या करना मकसद नहीं है। यहां उनकी मीडिया को देखने का जो अभिजात्य तरीका है, उसे जरूर चिन्हित करना है। वह इस मीडिया, सोशल और मुख्य, के तार को शासन के डोर के साथ जुड़े होने, उसके निर्देशों पर काम करने और उसके राजनीतिक, आर्थिक हितों के एक होते जाने को नजरअंदाज करती हुई दिखती हैं। जिन ट्रोल की भाषा को कुछ समय पहले तक हम सोशल मीडिया पर अवतरित होते हुए देखते थे, उस तरह की भाषा का प्रयोग खुद जब मोदी ही कर रहे हैं तब इसे किसके चरम पतन की अवस्था मानी जाय?

भाषा का इस तरह का एकीकरण प्रधानमंत्री के चुनाव अभियानों में अभिव्यक्त हो रहा है। तवलीन सिंह के शब्दों में, ‘खुद प्रधानमंत्री और भारत को अपमानित कर रहे हैं’ इसे क्या माना जाय या एक खास राजनीतिक दिशा में जाने का संकेत है।

दरअसल, इसे सिर्फ ट्रोल या ट्रोल की राजनीतिक समझदारी या दो रूपये में बिके हुए लिख्खाड़ की तरह देखना एक पतित अभिजात्य राजनीतिक समझ है। यह राजनीति, समाज, अर्थव्यवस्था, यहां तक कि न्याय व्यवस्था को देखने का एक नजरिया है। यह लोकतंत्र, न्याय, जीवन, स्वतंत्रता और बराबरी के मूल्यों पर सीधा हमला करते हुए एक ऐसी अराजकता को पैदा करना है जिसमें सिर्फ राज्य की वह नियंत्रण व्यवस्था काम करे जिसकी बागडोर शासकों की एक ऐसी छोटी मंडली के हाथ में रहे जिसका एक हिस्सा तो प्रतिनिधित्व की औपचारिकता को पूरा कर रहा हो, लेकिन बड़ा हिस्सा इन औपचारिकताओं से बाहर रहकर फासिस्ट नियंत्रण की क्षमता में बना रहे।

ट्रोल एक राजनीतिक भाषा है और यह निश्चित ही फासिस्टों की ही भाषा है। तवलीन सिंह उसे सिर्फ अपनी निरपेक्षता के भरोसे तौल रही है, जबकि वह मुख्य मीडिया और राजनीति में सर चढ़कर बोल रहा है। जरूरत है हिम्मत कर अपनी बनाई हुई सीमा से बाहर जाकर असल हालात को देखने, समझने और लिखने की। तवलीन सिंह हम थोड़ी उम्मीद तो कर ही सकते हैं कि ऐसा करें।

(अंजनी कुमार स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

You May Also Like

More From Author

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments