Friday, April 26, 2024

उत्तराखण्ड की नौकरशाही पर मुख्यमंत्री के करीबी की पुलिसिया हुकूमत

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की करीबी के चलते 1996 बैच के आईपीएस अभिनव कुमार की उत्तराखण्ड की सत्ता के गलियारे में धाक कम होने का नाम नहीं ले रही है, जबकि शासन में बैठी आईएएस ही नहीं बल्कि पीसीएस लॉबी भी अभिनव की धार को कुन्द करने का कोई मौका नहीं छोड़ रही है। उत्तराखण्ड में किसी भी भाजपाई मुख्यमंत्री ने आज तक अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं किया और जानकारों का विश्वास है कि इस बार अगर तख्ता पलट हुआ तो उसकी पृष्ठ में कहीं न कहीं अभिनव कुमार का नाम भी किसी कोने में अवश्य होगा। सत्ता के गलियारों से छन कर आ रही सूचनाओं के अनुसार 1996 बैच के आईपीएस अभिनव कुमार आईएएस और पीसीएस अफसरों के तबादलों में भी पूरी दखल रख रहे हैं, और मुख्यमंत्री के नाम से बाकी बड़े फैसले तो हो ही रहे हैं।

विशेष प्रमुख सचिव अभिनव कुमार के नौकरशाही में जबरदस्त दबदबे और शासन में पूरी दखल का ताजा उदाहरण रणवीर सिंह चौहान को सूचना महानिदेशक के पद से हटाने के साथ ही सामने आया है। चौहान और अभिनव का टकराव सूचना विभाग के संयुक्त निदेशक कलम सिंह चौहान के अकारण और अचानक तत्काल तबादला आदेश से शुरू हुआ था। माना जाता है कि सर्वशक्तिमान अभिनव कुमार को कलम सिंह चौहान की कोई बात इतनी खटकी कि उन्होंने चौहान को तत्काल रिलीव कर हल्द्वानी भेजने का आदेश जारी कर दिया था। यह अभिनव का ब्रह्मास्त्र था जिसे आईएएस रणवीर ने हवा में ही विफल कर दिया था। 

राज्य सरकार ने मंगलवार को अपनी नौकरशाही के तबादलों की जो लिस्ट जारी की है उसमें 13 आईएएस और 10 पीसीएस के साथ सचिवालय सेवा के अधिकारी भी शामिल हैं जो कि शासन में अपर सचिव स्तर के अधिकारी हैं। इस लिस्ट में सचिन कुर्वे भी हैं जिनका कैबिनेट मंत्री रेखा आर्य के साथ टकराव हो गया था। कुर्वे के अलावा लिस्ट में जगह पाने वाले रणवीर सिंह चौहान भी हैं। जिनसे न केवल सूचना महानिदेशक का बल्कि अपर सचिव सूचना का भी कार्यभार छीन लिया गया है। जबकि पत्रकारों से सीधे ताल्लुक रखने वाले सूचना विभाग को रणवीर चौहान जैसे मृदुभाषी और व्यवहार कुशल अधिकारी की आवश्यकता है। सूचना महानिदेशक रहते हुये रणवीर के प्रेस के साथ मधुर सम्बन्ध रहे हैं। 

दरअसल अभिनव कुमार ने बिना किसी तर्कसंगत कारण बताये शासन में विशेष प्रमुख सचिव सूचना की हैसियत से कलम सिंह चौहान को बिना सूचना महानिदेशक की राय लिये तत्काल प्रभाव से हल्द्वानी स्थानान्तरित करने का आदेश जारी कर दिया था। चूंकि हल्द्वानी में विभाग का न तो इतना वरिष्ठ पद सृजित है और ना ही वहां इस पद के योग्य सेवा है। ऊपर से तत्काल ज्वाइनिंग देने का फरमान कलम सिंह चौहान को तो नागवार गुजरना ही था। साथ ही सूचना विभाग और पत्रकार जगत भी इस आदेश से अचम्भित था। चूंकि ऐसा ही एक बार विभाग के वरिष्ठतम् अधिकारी अनिल चन्दोला के साथ भी हो गया था। चन्दोला को तत्कालीन मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा और उनके नाम पर अभिनव की तरह ही शासन में मजबूत दखल रखने वाले सुबोध उनियाल के कोपभाजन के कारण पद समेत हल्द्वानी स्थानान्तरित कर दिया गया था। हालांकि उस समय भी डॉ. चन्दोला ने हल्द्वानी ज्वाइन नहीं किया और अपने संबंधों के बल पर मामला अन्ततः सुलटा लिया था। 

अपर निदेशक अनिल चन्दोला के साथ कुछ पत्रकारों की सहानुभूति अवश्य थी, फिर भी उन्होंने अपना केस स्वयं ही अपने बलबूते पर सुलझा कर अपना तबादला निरस्त करा दिया था। लेकिन इस बार कलम सिंह चौहान अकेले नहीं थे। उनके पीछे महानिदेशक और अपर सचिव रणवीर चौहान खड़े हो गये और रणवीर के पीछे समूची आईएएस और पीसीएस की बिरादरियां खड़ी हो गयीं। कारण साफ था। नौकरशाहों की इन बिरादरियों को एक पुलिस वाले (आईपीएस) की शासन में चौधराहट बेहद खल रही थी।

कुछ अपवादों को छोड़ कर शासन इन्हीं दो छोटी बड़ी बिरादरियों के द्वारा चलाया जाता है। उन्हें प्रशासन की ट्रेनिंग हासिल होती है जबकि आईपीएस या पीपीएस को एक फोर्स की ट्रेनिंग दी जाती है और उनकी जिम्मेदारी प्रशासन नहीं बल्कि प्रशासन के अनुसार कानून व्यवस्था की रखवाली होती है। लेकिन अभिनव कुमार सत्ता के गलियारे में मुख्यमंत्री धामी के बाद दूसरे नम्बर के शक्तिशाली शख्स हैं जिन्हें आईएएस पर भी हुकूमत चलाने के लिये विशेष प्रमुख सचिव का दर्जा दिया गया है। उत्तराखण्ड में पहली बार अभिनव कुमार के लिये यह पद सृजित किया गया है। 

रणवीर सिंह चौहान

मुख्यमंत्री के करीब होने के नाते अभिनव का दबदबा होना स्वाभाविक ही है लेकिन उनके दबदबे को सचिवालय नियमावली के तहत वैधानिक स्वरूप देने के लिये शासन में विशेष प्रमुख सचिव का पद सृजित किया गया। आज तक ऐसा पहले नहीं हुआ था। इस व्यवस्था के अनुसार सचिवालय, जहां से शासन चलता है, के प्रोटोकॉल के अनुसार तमाम सचिव और अपर सचिव स्तर के आईएएस और पीसीएस अभिनव कुमार के नीचे आ गये।  अभिनव कुमार मुख्यमंत्री धामी के चाहे कितने भी करीबी या राजदार क्यों न हों मगर शासन चलाने वाली मशीनरी को अभिनव की चौधराहट हरगिज गंवारा नहीं है और इसका असर शासन में देखा भी जा रहा है। धामी गलतफहमी में हैं, उनके आदेशों को नौकरशाही गंभीरता से नहीं ले रही है। 

बहरहाल अभिनव ने अपनी हेकड़ी दिखाने के लिये कलम सिंह चौहान का तबादला आदेश तो जारी कर दिया मगर विभागीय प्रमुख रणवीर चौहान ने कलम सिंह को रिलीव ही नहीं किया। कोई भी कर्मचारी जब तक रिलीव नहीं होता तब तक नयी ज्वाइनिंग भी नहीं दे सकता। जबकि कलम सिंह को अविलम्ब हल्द्वानी जाने के आदेश अभिनव ने दिये थे। अभिनव ने पुलिस की ट्रेनिंग ले रखी है जबकि रणवीर को प्रशासन का प्रशिक्षण और अनुभव प्राप्त है। उस वक्त आईएएस ही नहीं पीसीएस लॉबी भी रणवीर के साथ थी ? मजबूरन कलमसिंह चौहान का बेतुका तबादला निरस्त करना पड़ा और अभिनव को मुंह की खानी पड़ी। एक अहंकारी के लिये ऐसी हार पच भी कैसे सकती? 

नेताओं के भाग से या तिकड़म से मुख्यमंत्री पद का छींका टूट कर उनके मुंह में आ तो जाता है लेकिन पद को चलाना उतना आसान नहीं होता जितना कि हासिल करना होता है। धरती पर गाय को सांस में ऑक्सीजन लेने और सांस में ऑक्सीजन छोड़ने वाला पशु बताने और भारत पर 200 सालों तक अमेरिका का राज होने का ज्ञान देने वाले महापुरुष जब मुख्यमंत्री बनेंगे तो उन्हें राजनीति के कुरुक्षेत्र में अभिनव या ओम प्रकाश जैसे  सारथियों की मदद तो लेनी ही होगी। पंडित नारायण दत्त तिवारी के बाद लगभग सभी मुख्यमंत्रियों ने ऐसे सारथियों के सहारे शासन चलाया। ये सारथी शासन की पंचीदगियों और वैभव के स्रोतों से अनविज्ञ नेताओं के हरफनमौला बनकर काम आते रहे। 

मुख्यमंत्री का सबसे करीबी होने के नाते अभिनव कुमार का उत्तराखण्ड के शासन में अब भी डंका बजता है। इसलिये नौकरशाहों के तबादलों में भी उनकी दखल स्वाभाविक ही है। जाहिर है कि रणवीर से हिसाब चुकता करने का यही सही मौका था जिसे अभिनव कुमार चूके नहीं और रणवीर से वह सूचना विभाग छीन लिया गया जहां अभिनव को रुसवाई मिली थी। भारत के अंतिम हिन्दू सम्राट पृथ्वीराज चौहान के लिये रची गयी महाकवि चन्दबरदाई की कालजयी यह कविता अवसरों का सदुपयोग या दुरुपयोग करने के मामले में आज भी दुहराई जाती है। उन्होंने उस नाजुक घड़ी में कहा था, ‘‘ चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण, ता ऊपर सुल्तान है, मत चूको चौहान’’। लेकिन इस बार सुल्तान नहीं बल्कि चौहान ही निशाने पर आ गया।

(जय सिंह रावत वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल देहरादून में रहते हैं।)

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