नॉर्थ ईस्ट डायरी: नस्लीय टिप्पणी घटना के बाद छात्रों ने पूछा-एनसीईआरटी में पूर्वोत्तर का इतिहास क्यों नहीं?

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अरुणाचल प्रदेश के विधायक निनॉन्ग एरिंग पर कथित नस्लीय टिप्पणी के लिए पंजाब के एक यूट्यूबर को गिरफ्तार किए जाने के एक हफ्ते बाद पूर्वोत्तर के 30 से अधिक विश्वविद्यालय और छात्र संगठन एक ‘ट्विटर स्टॉर्म’ आयोजित करने के लिए एक साथ आए, जिसमें मांग की गई कि पूर्वोत्तर के इतिहास और संस्कृति को नेशनल काउंसिल ऑफ एजुकेशनल रिसर्च एंड ट्रेनिंग (एनसीईआरटी) के पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जाए।

पिछले हफ्ते लुधियाना के 21 वर्षीय यूट्यूबर पारस सिंह द्वारा अपलोड किए गए एक वीडियो से ट्विटर पर विरोध शुरू हो गया। इसमें उन्होंने एरिंग की उपस्थिति पर टिप्पणी करते हुए कहा कि वह भारतीय नहीं दिखते और दावा किया कि अरुणाचल प्रदेश भारत का हिस्सा नहीं था, बल्कि चीन में था, जिससे अरुणाचल प्रदेश और पूर्वोत्तर में व्यापक आक्रोश पैदा हुआ। 1 जून को पारस पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 124 ए (देशद्रोह), 153 ए (धर्म, जाति, जन्म स्थान, निवास, भाषा, आदि के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना), 505 (2) के तहत अरुणाचल प्रदेश के लोगों के खिलाफ “दुर्भावना और नफरत भड़काने” के लिए मामला दर्ज किया गया था। अरुणाचल प्रदेश की एक अदालत ने उन्हें छह दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया।

ट्विटर स्टार्म के आयोजकों में से एक नॉर्थ ईस्ट स्टूडेंट्स यूनियन (एनईएसयू), वडोदरा के सलाहकार, देबोनिल बरुवा ने कहा, “हम मानते हैं कि इस तरह के नस्लवाद को केवल शिक्षा के माध्यम से हल किया जा सकता है।” उन्होंने कहा, “पारस सिंह मामले ने इसे फिर उजागर किया है। लेकिन नस्लवाद के ऐसे उदाहरण बहुत आम हैं,” उन्होंने कहा।

एनईएसयू वडोदरा द्वारा आठ पूर्वोत्तर राज्यों के विश्वविद्यालयों से संपर्क करने के बाद, गुवाहाटी विश्वविद्यालय, डिब्रूगढ़ विश्वविद्यालय, नगालैंड विश्वविद्यालय, मिजोरम विश्वविद्यालय, एनआईटी- अगरतला, राजीव गांधी विश्वविद्यालय अरुणाचल प्रदेश जैसे 30 से अधिक प्रमुख विश्वविद्यालयों के साथ-साथ दिल्ली, मणिपुर के छात्र संघ आदि ने ट्विटर स्टार्म में भाग लिया है।

अरुणाचल प्रदेश के 24 वर्षीय छात्र तार नाकी ने कहा, “हमें लगता है कि ट्विटर स्टार्म इस मुद्दे को राजनेताओं और सांसदों का ध्यान आकर्षित करने में मदद करेगा। जब मैंने गुजरात में पढ़ाई की, तो लोगों को पता नहीं था कि अरुणाचल कहाँ है। वे मुझसे सीधे पूछते थे कि मैं किस देश से हूं – ‘क्या आप चीन से हैं? कभी-कभी मुझे ऐसा लगता था कि मैं अपने सिर पर एक बैनर लगा लेता हूं कि मैं अरुणाचल प्रदेश से हूं और यह भारत में है।”

कुछ राजनेताओं जैसे कि थेरी, नगालैंड के पूर्व वित्त मंत्री, नगालैंड के विधायक कुझोलुजो निएनु और अरुणाचल प्रदेश के एरिंग ने स्टार्म के लिए अपना समर्थन ट्वीट किया है। “पाठ्यक्रम में हमारी संस्कृति और इतिहास को शामिल किया जाना चाहिए। इसी मुद्दे पर 2017 में लोकसभा में एक विधेयक पेश किया था।” एरिंग ने प्रधानमंत्री, गृह मंत्री, सीबीएसई और एनसीईआरटी सहित अन्य के हैंडल को टैग करते हुए ट्वीट किया।

2017 में एरिंग ने संसद में एक निजी सदस्य विधेयक ‘शैक्षणिक संस्थानों में उत्तर-पूर्व संस्कृति का अनिवार्य शिक्षण’ पेश किया था, लेकिन इसे पारित नहीं किया गया था।

2014 में दिल्ली में 19 वर्षीय निदो तानिया पर नस्लीय हमले और हत्या के बाद, एमपी बेजबरुवा समिति की रिपोर्ट ने एनसीईआरटी पाठ्यक्रम में पूर्वोत्तर संस्कृति और इतिहास के एकीकरण सहित कई सिफारिशें की थीं।
बरुआ ने कहा, “पाठ्यपुस्तकों में पूर्वोत्तर से संबंधित मामलों को शामिल करने पर चर्चा हुई है, लेकिन यह वास्तव में कभी कारगर नहीं हुआ है।” जबकि 2017 में, एनसीईआरटी ने ‘नॉर्थ ईस्ट इंडिया- पीपल, हिस्ट्री एंड कल्चर’, कक्षा 9 से 12 तक के छात्रों के लिए एक पूरक पाठ्य पुस्तक प्रकाशित की।

बरुआ ने कहा कि इसका वास्तव में कोई प्रभाव नहीं पड़ा क्योंकि इसे केवल “पूरक पाठ” के रूप में सुझाया गया था। किसी ने इसे गंभीरता से नहीं लिया। अब हमें एक अध्याय की जरूरत है जो पाठ्यक्रम का अनिवार्य हिस्सा हो ताकि यह पूर्वोत्तर राज्यों और ‘मुख्य भूमि’ भारत के बीच की खाईं को पाट सके।”

(दिनकर कुमार दि सेंटिनेल के संपादक रहे हैं।)

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