देश की छोटी-बड़ी तमाम संस्थाओं में लोगों के लोकतांत्रिक अधिकार और अधिकारों को हासिल करने के लोकतांत्रिक तरीकों को किस कदर निष्प्रभावी बना दिया गया है, इसका ताजातरीन उदाहरण है, एम्स। यहां वर्षों से काम कर रहीं तमाम नर्स लंबे समय से छठे केंद्रीय वेतन आयोग की अनुशंसा को लागू करने और अनुबंध पर भर्ती खत्म करने की मांग करती आ रही हैं, लेकिन एम्स प्रशासन ने उनकी मांगों पर कान देना ज़रूरी नहीं समझा।
कल सोमवार को जब करीब पांच हजार नर्सों ने अपनी मांगों को लेकर अनिश्चितकालीन हड़ताल का एलान कर दिया तो एम्स प्रशासन ने प्रदर्शनकारी नर्सिंग कर्मचारियों को पत्र जारी करते हुए कहा, “यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि ड्यूटी के लिए रिपोर्ट करने वाले सभी नर्सिंग कर्मियों की उपस्थिति दर्ज की जाए और जो अनुपस्थित हों, उन्हें इस तरह चिह्नित किया जाए।”
हड़ताली नर्सें फिर भी न मानीं तो एम्स प्रशासन द्वारा आनन फानन में नर्सों की भर्ती का विज्ञापन निकाल दिया गया। विज्ञापन में 16 दिसंबर को इंटरव्यू की तारीख भी मुकर्रर कर दी गई।
जब दमन से भी बात नहीं बनी तो एम्स प्रशासन याचिका लेकर दिल्ली हाई कोर्ट पहुंच गया। एम्स की तरफ से कोर्ट में कहा गया कि कोरोना वायरस महामारी का समय है, लिहाजा स्ट्राइक पर नहीं जा सकते हैं। जहां दिल्ली हाई कोर्ट ने एम्स प्रशासन के पक्ष में फैसला देते हुए नर्सों की हड़ताल पर रोक लगा दी। हाई कोर्ट ने हड़ताल पर रोक लगाते हुए नर्सों को नोटिस जारी कर जवाब मांग लिया।
एम्स ने दिल्ली हाई कोर्ट को आश्वासन दिया है कि हड़ताली नर्सों की जो भी मांगें हैं, उन पर विचार किया जाएगा। दिल्ली हाई कोर्ट ने अगली सुनवाई के लिए 18 जनवरी की तारीख दी है।
इससे पहले एम्स नर्स एसोसिएशन ने हड़ताल पर जाते हुए कहा था कि एम्स प्रशासन उनकी मांगें नहीं मान रहा है, ऐसे में उनके पास हड़ताल पर जाने के अलावा कोई और चारा नहीं बचा है।
वहीं आज सुबह एम्स नर्स यूनियन के आह्वान पर नर्सिंग स्टाफ ने एम्स कैंपस में प्रदर्शन करते हुए प्रशासनिक भवन तक जाने के रस्ते में लगाए गए बैरिकेड्स तोड़ दिए, जहां उन पर सुरक्षा कर्मियों द्वारा बल प्रयोग हुआ और कई नर्स जख्मी हो गईं।
एम्स प्रशासन की मनमानी
एम्स प्रशासन का स्टैंड बेहद अमानवीय, गैरजिम्मेदाराना और दमनकारी है। हड़ताली नर्सों की मांगों पर विचार करने और उनसे संवाद करने के बजाय बाहर से नर्सों का इंतजाम करने का निर्णय कर लिया। प्रसासन की ओर से कहा गया कि 170 नर्सों को बाहर से आउटसोर्स किया जाएगा। कॉन्ट्रैक्ट पर नार्सिंग स्टॉफ की भर्ती करने के लिए एम्स की ओर से विज्ञापन भी दिया गया था।
विज्ञापन पर एम्स प्रशासन की ओर से कहा गया है कि हमारे पास नर्सों की आउटसोर्सिंग की कोई योजना नहीं है। यह केवल तभी था जब उन्होंने हड़ताल पर जाने का फैसला किया और हमारी बात नहीं सुनी, हमने पिछले दो दिनों में आकस्मिक योजना बनाई। उनके अनुसार, न तो वे काम करेंगे और न ही किसी और को काम करने देंगे।
नर्सों के हड़ताल पर जाने के बाद एम्स के निदेशक रणदीप गुलेरिया ने एक वीडियो संदेश जारी करके महामारी के समय में हड़ताल को दुर्भाग्यपूर्ण करार देते हुए कहा, “मैं सभी नर्सों और नर्सिंग अधिकारियों से अपील करता हूं कि वे हड़ताल पर नहीं जाएं और जहां तक नर्सों की बात है, उनके संदर्भ में हमारी गरिमा को शर्मिंदा नहीं करें।”
गुलेरिया ने कहा, “इसलिए मैं आप सभी से अपील करता हूं कि वापस आएं और काम करें और इस महामारी से निपटने में हमारा सहयोग करें। गुलेरिया ने कहा कि नर्स संघ ने 23 मांगें रखी थीं और एम्स प्रशासन और सरकार ने उनमें से लगभग सभी मांगें मान ली हैं। बस एक मांग मूल रूप से छठे वेतन आयोग के मुताबिक शुरुआती वेतन तय करने की असंगतता से जुड़ी हुई है।”
एम्स निदेशक ने कहा कि नर्स संघ के साथ कई बैठकें न केवल एम्स प्रशासन की हुई हैं, बल्कि स्वास्थ्य मंत्रालय के आर्थिक सलाहकार, व्यय विभाग के प्रतिनिधियों के साथ भी हुई हैं और जिस व्यक्ति ने छठे सीपीसी का मसौदा तैयार किया, वह भी बैठक में मौजूद था। उन्हें बताया गया है कि उसकी व्याख्या सही नहीं है।
कई नर्स एसोसिएशन समर्थन में आई हैं।
इस बीच कई नर्स एसोसिएशन ने एम्स नर्स एसोसिएशन के हड़ताल को अपना समर्थन दिया है। कुछ डॉक्टर एसोसिएशन भी समर्थन में खड़े हुए हैं।
(जनचौक के विशेष संवाददाता सुशील मानव की रिपोर्ट।)