महाकुंभ त्रासदी: योगी के पीछे अखाड़े गोलबंद, धर्म का यह कौन है चेहरा?

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महाकुंभ नगरी प्रयागराज बिलख रहा है। कहते हैं कि समुद्र मंथन के दौरान मिले अमृत कलश को दैत्यों ने देवताओं से झटक लिया था और भागते फिर रहे थे। इच्छा यही थी कि दैत्यों को अमृत पान करा दिया जाए ताकि देवता न उन्हें दंडित कर सकें और न ही मार सकें। देवताओं और दैत्यों के बीच अमृत कलश के लिए चली रेस का अंजाम यह हुआ कि प्रयागराज जहाँ गंगा, यमुना और सरस्वती बहती थीं उसके संगम पर अमृत की कुछ बूंदें टपक गईं। मान लिया गया कि पूरा का पूरा संगम ही अमृत में बदल गया। 

देवता और दानव की रेस आगे बढ़ती गयी और छीनाझपटी में कई और जगह अमृत की बूंदें गिरती गईं। जहाँ -जहाँ अमृत की बूंदें टपकी वहां कुम्भ मेले का आयोजन होता आया है। ये बातें सनातनी शास्त्र में दर्ज हैं। करोड़ों साल पहले की यह कहानी आज भी जीवंत है। इस कहानी पर भारतीय धर्म परायण लोगों का यकीन है। सच क्या है यह तो कोई नहीं जानता लेकिन धार्मिक इतिहास जिन लोगों ने तैयार किया है और आज भी करते दिख रहे हैं वे यही कहते हैं कि यही सत्य है। क्योंकि सनातन सत्य है इसलिए धार्मिक ग्रंथों में कही गई बातें भी सत्य हैं। 

मान भी लेते हैं कि हमारा सनातन सर्वोपरि है तब भी यह सवाल तो उठ ही सकता है कि देवताओं द्वारा अवतरित की गई नदियां आज इतना प्रदूषित क्यों है? फिर अब तो सरकार भी कहती है कि सरस्वती नदी विलुप्त हो गई है तो फिर संगम कैसा? और मान भी लिया जाए कि सनातनी संगम आज भी है तो क्या यह मान लिया जाए कि साधु ,संत ,महात्मा और नागा बाबा से लेकर तमाम कथावाचकों और अखाड़ों से जुड़े धर्माचार्य ,पंडित -पुरोहित और न जाने क्या -क्या वे सब सतयुगी हैं ? उनकी हर वाणी ईश्वर की वाणी है और उनका हर कर्म देवताओं द्वारा लक्षित कर्म है ?इसी से जुड़ा एक सवाल यह भी है कि जब महाकुम्भ में भीषण त्रासदी हुई तो इन संत ,धर्माचार्यों और तांत्रिकों को इसका पूर्व अनुमान क्यों नहीं लगा ? उनके तंत्र और दिव्य शक्ति कहाँ चले गए थे ? जो लोग किसी काम भविष्य बांचते हैं उनकी वह गुप्त विद्या कहाँ चली गई थी ? और नहीं भी गई थी तो जब यह घटना घट रही थी तो इन देवता तुल्य जीवों ने अपनी दिव्य शक्ति से उस घटना को रोक क्यों नहीं पाए ? महाकुम्भ के दौरान दुनिया भर से और पहाड़ ,कंदराओं ,गुफाओं और जंगलों में रहने वाले तपस्वियों ,योगी और योगिनियों ,औघड़ों ने महाकुम्भ को लज्जित क्यों होने दिया? ऐसे बहुत से सवाल हैं जो अब देश ही नहीं दुनिया भर के लोग पूछ रहे हैं। लेकिन  इसका जवाब कौन देगा? किसमें है इसकी शक्ति?

क्या राजनीति और सत्ता से भी किसी के पास ज्यादा ताकत होती है? अगर ऐसा है तो कोई संत, महात्मा वह ताकत दिखाता क्यों नहीं ? लेकिन सच तो यही है कि जो लोग सत्ता और राजनीति को चुनौती दे रहे हैं या देते दिख रहे हैं उनके ऊपर बज्र गिरना तय है। जिन साधु ,संतों ,कथावाचकों को आगे बढ़ाकर बीजेपी वोट की राजनीति सनातन और हिंदुत्व के नाम पर करती आ रही है वही सनातन के धर्माचार्य अब सत्ता के निशाने पर आ गए हैं। 

साफ शब्दों में कहें तो ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद अब सरकार के निशाने पर हैं। योगी राज के निशाने पर हैं। योगी राज का खौफ कितना है यह इस बात से साफ हो रहा है कि शंकराचार्य को चुनौती अभी  योगी सत्ता से नहीं साधु समाज से ही मिलनी शुरू हो गयी है। लगता है कि शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद या तो अब जेल जा सकते हैं या फिर पद से हटाए जा सकते हैं। याद रहे शंकराचार्य की नियुक्ति हालांकि सरकार नहीं करती लेकिन यह भी तो सच है कि जब देश और समाज के सारे धर्माचार्य एक होकर शंकराचार्य के खिलाफ मैदान में उतर जायें तो अविमुक्तेश्वरानंद क्या कर सकते हैं? 

शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद की गलती यही है कि उन्होंने प्रयाग में हुए दर्दनाक हादसे के लिए न सिर्फ सीएम योगी को दोषी ठहराया है बल्कि उन्होंने पूरी योगी सरकार को ही झूठा और बेकार भी बता दिया है। उन्होंने योगी से इस्तीफा तो मांगा ही है साथ ही पीएम मोदी और पार्टी अध्यक्ष नड्डा को भी कहा है कि इस पापी और झूठे आदमी को जल्द पद से हटा दिया जाये क्योंकि इसने झूठ बोलने का काम किया है और सनातनियों को बरगलाने का काम किया है।

इसने वह पाप किया है जिसके लिए क्षमा भी नहीं है। बड़ी संख्या में लोग महाकुम्भ में मारे गए और सीएम यह कहता रहा कि कोई बड़ी घटना नहीं है और अफवाह पर ध्यान देने की ज़रूरत नहीं है। शंकराचार्य आगे कहते हैं कि हम सनातनी हैं और धर्माचार्य भी। कोई सनातनी मरे तो हमारा कर्म होता है उसकी आत्मा की शांति के लिए उपवास करें। प्रार्थना करें। लेकिन योगी ने ऐसा भी नहीं करने दिया। हमें अँधेरे में रखा गया। हमसे झूठ बोला गया। 

शंकराचार्य की ये बातें सत्ता को पचे कैसे? जिसके पास अपार ताकत है और जिसके पास दलाल मीडिया की शक्ति हो और जिसके कवच में सभी धर्माचार्य ,पंडित ,पुरोहित ,कथावाचक और अखाड़े हों वह भला शंकराचार्य द्वारा किया गया अपमान कैसे बर्दास्त कर सकता है? फिर बैठकों का दौर चला ,दलाल मीडिया को दुरुस्त किया गया।

अखाड़ों से संवाद साधा गया ,धर्मचार्यों को अपने खेमे में मिलाया गया और फिर एक रणनीति के तहत शंकराचर्य अविमुक्तेश्वरानंद पर हमला किया गया। शब्दों के बाण से भेदा गया और उनके भीतर डर पैदा करने की कोशिश की गई। सबसे पहले तो दलाल मीडिया के जरिये शंकराचार्य के बयानों को दुनिया भर में फैलाया गया और फिर अखाड़ों के जरिये शंकराचार्य पर ही हमला किया गया। 

याद रहे सनातन में 13 अखाड़ों की कहानी है। एक से बढ़कर एक अखाड़े। सबकी अपनी नीति और अपनी कहानी। एक अखाड़े की दूसरे से नहीं बनती। बन्दूक लिए अखाड़ों के लोग चलते फिरते हैं। कहने को साधु -सन्यासी हैं लेकिन महँगी गाड़ियों में चलने और गनर रखने में उनकी अपनी शान है। इन अखाड़ों के अध्यक्ष है महंत रविंद्र पुरी। उनका बयान आया है कि शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानन्द  ही गलत हैं और नकली भी हैं। उन्हें ही हटा दिया जाए। उन्होंने जो बातें कही हैं वह सनातन के खिलाफ है। योगी जी तो सनातन के रक्षक हैं और कोई रक्षक गलत कैसे हो सकता है। पुरी ने कहा जो भी महाकुम्भ में हुआ है वह तो मात्र संयोग ही था। और संयोग को कौन टाल सकता है। 

लेकिन बात यहीं तक नहीं रुकी। बात और आगे बढ़ी। भविष्यवक्ता के नाम से ख्यात हुए बागेश्वर धाम बाबा ने तो महाकुम्भ में हुई मौत को मोक्ष का नाम तक दे दिया। उन्होंने कहा कि जिन लोगों की मौत महाकुम्भ में हुई है वे सब मोक्ष को प्राप्त हुए हैं। और मोक्ष पर बवाल क्यों? जाहिर है बागेश्वर बाबा का यह कथन शंकराचार्य पर एक प्रहार जैसा है। अब आगे क्या कुछ होगा और शंकराचार्य के साथ क्या कुछ यह सरकार कर सकती है इसे देखना बाकी है लेकिन सीएम को झूठा कहने वाले और इस्तीफा मांगने वाले शंकराचार्य अब फंस तो गए ही हैं।  

महाकुम्भ में कितने लोगों की मौत हुई यह आंकड़ा अब तक सामने नहीं है। सरकार की तरफ से यही कहा गया है कि 30 लोगों की जानें गई हैं और 60 से ज्यादा लोग घायल हैं। लेकिन सोशल मीडिया के जरिये देश भर के गांव से जो खबरें आ रही हैं उससे तो यही लग रहा है कि महाकुम्भ त्रासदी में सैकड़ों लोग मारे गए हैं और 15 सौ से ज्यादा लोग लापता हैं? सवाल यह है कि लापता लोग कहाँ गए? क्या वे मर गए या कहीं और भाग गए? इसका जवाब कौन देगा? जब सरकार महाकुम्भ में आये लोगों की गिनती करके यह कह सकती है कि दस करोड़ लोग आए तो मरने वालों और लापता लोगों की गिनती क्यों नहीं की जा रही है ? 

बिहार से भी बड़ी संख्या में लोग धर्म कमाने और अमृत पीने संगम गए थे ,दर्जनों लोगों की मौत हो चुकी है और बड़ी संख्या में लोग लापता हैं। एक लड़की जिसकी उम्र 20 साल बतायी जा रही है वह भी अपने परिजन के साथ स्नान करने गई थी ,मारी गई। जब उसके परिजन अस्पतालों का चक्कर लगाकर थक गए और शव नहीं मिला तो एक सरकारी स्थानीय अधिकारी ने उसके परिजन से कहा कई लाशें दूसरे स्थान पर रखी गई हैं। वहां जाइये।

जब लोग वहां गए तो मृतक सोनी कुमारी के शव का नंबर 66 बताया गया था। इससे यही साबित हो रहा है कि हादसे में काफी संख्या में लोग मारे गए हैं। लेकिन जब सरकार ने इतना बड़ा भव्य आयोजन किया था तो इस घटना की जिम्मेदारी भी उन्हें ही लेनी होगी। लेकिन क्या यह सब संभव है। योगी और मोदी की नाक दुनिया में न कट जाये इसी को छुपाने के लिए दलाल मीडिया को खड़ा किया गया है। एक मीडिया वाले ने अस्पताल में जब मृतक के आंकड़ों के बारे पूछा तो उसे गिरफ्तार करने की धमकी दी गई। गाली गलौज किया गया। आखिर इसके पीछे की राजनीति क्या है?

पाखंड का यह ऐसा खेला आज तक देखने को नहीं मिला होगा। धर्म के नाम पर धंधा की यह ऐसी बानगी है जिसे लोग सदियों तक याद रख सकते हैं लेकिन सवाल यही है कि अब धर्माचार्यों के भीतर की लड़ाई कहाँ जाकर रुकेगी यह कोई नहीं जानता।

(अखिलेश अखिल वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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