Thursday, March 28, 2024

सार्वजनिक क्षेत्र की जनरल इंश्योरेंस कंपनियों को कमजोर करने की साजिश के खिलाफ राष्ट्रपति से गुहार

नई दिल्ली। देश में सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को बंद करने या कॉर्पोरेट के हाथ बेचने की कवायद पिछले 3 दशक से जारी है। हाल के वर्षों में बीमा क्षेत्र में बहुराष्ट्रीय बीमा कंपनियों के प्रवेश और उनके द्वारा भारतीय निजी बीमा कंपनियों के साथ साझेदारी के बाद अब यह प्रक्रिया और तेज हो गई है। जीवन बीमा निगम (एलआईसी) अभी तक भारत की सार्वजनिक या निजी क्षेत्र दोनों में ही सबसे प्रतिष्ठित कंपनी मानी जाती थी। देश के 40 करोड़ लोगों तक सीधी पहुंच रखने वाली इस कंपनी पर ग्रहण कब लगेगा, कहा नहीं जा सकता।

पहले इसके 5% शेयर को बाजार में बेचने के बाद से जिस प्रकार से इसके स्टॉक का मूल्य लगातार गिरा है, वह इसके पराभव की दास्ता बयां करता है। इसमें अडानी समूह में एलआईसी की बड़ी हिस्सेदारी भी कहीं न कहीं प्रमुख भूमिका निभा रही है। आज निवेशकों सहित करोड़ों बीमा धारकों को संदेह घर कर रहा है कि हो न हो जैसे अन्य सार्वजनिक कंपनियों को औने-पौने दामों में बेचा गया, या उसे घाटे की स्थिति में लाकर बेचा जा रहा है, देर-सबेर एलआईसी की भी यही गति होनी है।

यहां पर एक मामला ‘स्वास्थ्य एवं वस्तु बीमा उद्योग’ की सार्वजनिक सेवा वाली ‘जनरल इंश्योरेंस कंपनियों’ (जीआईसी) से जुड़ा है, जिसके अंतर्गत 4 बीमा कंपनियां कार्यरत हैं। इन कंपनियों के जरिये भारत में स्वास्थ्य एवं मकान, दुकान, वाहन, ट्रांजिट बीमा सहित कई अन्य सेवाएं प्रदान की जाती हैं। इस क्षेत्र में भी निजी क्षेत्र की बीमा कंपनियां सक्रिय हैं, और उत्तरोतर इस व्यवसाय के बड़े हिस्से पर उनका कब्जा बढ़ता जा रहा है।

2014 से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में फसल बीमा के जरिये करोड़ों किसानों को भी इसकी जद में ले आया गया। लेकिन अक्सर देखने को मिलता है कि अति वृष्टि, ओला या सुखाड़ से प्रभावित खेती पर बीमा कंपनियों की ओर से न के बराबर मुआवजा दिया गया, या आंशिक भुगतान किया गया। यहां पर भी अधिकांश मुआवजा सरकारी बीमा कंपनियों द्वारा चुकाया जाता है। इसी प्रकार जहां भी नुकसान की संभावना हो, पब्लिक सेक्टर से जुड़ी कंपनियों को आगे आना पड़ता है।

पिछले दो दशकों से इस खींचतान में सार्वजनिक बीमा कंपनियों से बड़ी संख्या में उच्चाधिकारियों ने स्वैच्छिक अवकाश ग्रहण कर अच्छे-खासे पैकेज की निजी बीमा कंपनियों की पेशकश को स्वीकार किया। इसका नतीजा यह हुआ कि जहां भी इन सार्वजनिक कंपनियों का अच्छा बिजनेस था, उसे निजी कंपनियों ने इन भूतपूर्व अधिकारियों की मदद से हथियाया, और बाकी का हिस्सा सार्वजनिक क्षेत्र के हिस्से में रह गया है।

बीमाकर्मी आज कई मोर्चों पर अपनी लड़ाई लड़ रहे हैं। एक तरफ उन्हें लगातार इस क्षेत्र के निजीकरण के हमले से दो चार होना पड़ता है। दूसरी तरफ बड़ी संख्या में सरकार द्वारा लगातार देश के विभिन्न शहरों में इनके कार्यालयों को बंद किया जा रहा है। इस कड़ी में ‘लेटरल एंट्री’ के जरिये जॉइंट सेक्रेटरी पद पर नियुक्त एक अधिकारी के खिलाफ इन दिनों साधारण बीमा कंपनी के कर्मचारियों का आंदोलन अपने उच्चतम बिंदु पर चला गया है।

यूनियन का कहना है कि सौरभ मिश्रा की वित्तीय सेवा प्रभाग में जॉइंट सेक्रेटरी के पद पर नियुक्ति के बाद से जीआईसी की सेहत में सुधार लाने की उनकी भूमिका के बजाय उन्होंने इसे और कमजोर और पंगु बनाने में योगदान दिया है। सूत्रों के मुताबिक लंबे समय से खिलाफ कर्मचारियों के आंदोलन ने मिश्रा को अंततः त्यागपत्र देने के लिए मजबूर कर दिया, और संभवतः इस माह के अंत तक वे पद से मुक्त हो सकते हैं। इसी संदर्भ में यूनियन के महासचिव त्रिलोक सिंह एवं कार्मिकों द्वारा राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू को एक पत्र भी लिखा गया है। जिसमें विस्तार से संयुक्त सचिव मिश्रा के कारनामों को उजागर किया गया है।

राष्ट्रपति के नाम लिखे इस पत्र में दावा किया गया है कि अपनी नियुक्ति के इन डेढ़ वर्षों में सौरभ मिश्रा ने एकतरफा और मनमाने ढंग से फैसले लेकर निजी क्षेत्र के हितों को प्राथमिकता देने वाले कई फैसले लिए हैं और उन्हें लागू कराया है। इसकी वजह से बीमा कंपनियों को अस्थिर किया जा रहा है और निजी कंपनियों को मजबूती प्रदान की जा रही है, जो कि राष्ट्रीय हित के साथ-साथ आम भारतीय के भी हितों के खिलाफ है।

इतना ही नहीं पत्र में आरोप लगाया गया है कि संयुक्त सचिव न सिर्फ अपने हित में कंपनी के गेस्ट हाउस और कार का दुरूपयोग कर रहे हैं, बल्कि अपने परिवार के लिए भी कंपनी से एक कार जारी करवाकर लाखों रूपये का चूना लगा चुके हैं।

इसके साथ ही उनके द्वारा सलाहकार के रूप में ‘अर्नेस्ट एंड यंग’ की नियुक्ति का उद्देश्य बीमा कंपनियों को अस्थिर करने के लिए किया गया है, और इसके लिए कंपनी के फण्ड से 10 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया है। इस सलाहकार कंपनी को कंपनियों में घाटे के कारणों की पहचान करने और इन्हें लाभकारी स्थिति में लाने के लिए नियुक्त किया गया है। लेकिन यूनियन का आरोप है कि उक्त कंपनी के बारे में सार्वजनिक सूचना है कि इसके द्वारा ‘सीपीए लाइसेंस’ के लिए आवश्यक परीक्षा में धोखाधड़ी की गई, जिसके लिए इस कंपनी A&Y पर अमेरिका सरकार की ओर से 10 करोड़ डॉलर का भारी भरकम जुर्माना तक लगाया गया था।

जर्मनी के ‘ऑडिट वॉचडॉग’ ने भी इस एकाउंटिंग फर्म के ‘वायरकार्ड कांड’ में बड़े पैमाने पर धोखाधड़ी में संलिप्तता का पता लगने पर 5 लाख यूरो का जुर्माना लगाया था। इसके साथ ही पिछले 1 से 2 वर्षों में 1,000 से अधिक कार्यालयों को बंद कर दिया गया है, विशेष रूप से भारत के टियर II और III शहरों में, जो स्पष्ट रूप से आम जनता के लिए बीमा सेवाओं को प्रवेश स्तर पर अवरोधित करता है। इनमें कई लाभदायक और व्यवहार्य कार्यालयों को भी बंद करने के पीछे सार्वजनिक कंपनियों को कमजोर करने का छिपा एजेंडा है।

इतना ही नहीं संयुक्त सचिव और ‘अर्नेस्ट एंड यंग’ के दबाव में मोटर वाहन बीमा व्यापार नीति पर छूट का प्रतिशत निर्धारित कर कंपनी प्रबंधन ने कंपनियों के लिए आत्मघाती सिफारिश पर सहमति दे दी है, जिसके फलस्वरूप करोड़ों का मोटर बीमा प्रीमियम प्रभावित होना निश्चित है, और यह प्रीमियम निजी बीमा कंपनियों की ओर मोड़ा जा रहा है।

पत्र में आगे कहा गया है कि, उपरोक्त कार्रवाइयों से यह साफ़ हो जाता है कि सौरभ मिश्रा अपने गैर-पेशेवर एवं त्रुटिपूर्ण दृष्टिकोण से सार्वजनिक क्षेत्र की जनरल इंश्योरेंस कंपनियों को कमजोर कर रहे हैं, जिसके चलते ग्राहक सेवाएं प्रभावित हो रही हैं और आम जनता के हितों पर भी विपरीत प्रभाव पड़ रहा है। पत्र में राष्ट्रपति महोदया से अनुरोध किया गया है कि वे इस मामले को संज्ञान में लेकर आवश्यक हस्तक्षेप करें और सार्वजनिक जनरल इंश्योरेंस कंपनियों को बचाने के लिए किसी स्वतंत्र एजेंसी से जांच कराकर उक्त अधिकारी के खिलाफ कड़ी कार्रवाई के लिए निर्देशित करें।

जनरल इंश्योरेंस कंपनियों की कुल चार कंपनियों में से मात्र एक कंपनी ‘न्यू इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड’ ही लाभकारी स्थिति में है। पिछले वित्त वर्ष में ही एक कंपनी को बेचने के लिए बजट में मंजूरी दी गई थी। बीमा निगमों का यह सौभाग्य कहें कि मौजूदा दौर में बाजार ही इतना ठंडा पड़ा है कि सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को यदि औने-पौने दामों पर भी सरकार बेचना चाहती है तो भी इक्का-दुक्का निवेशक ही आगे आता है।

ऊपर से अडानी समूह पर जबसे हिंडनबर्ग रिपोर्ट का काला साया मंडराया है, सरकार खुद भी अब ऐसे फैसले लेने में कोताही बरत रही है। 2024 के लोकसभा चुनाव के बादल भी अब केंद्र सरकार की मुख्य चिंता में शामिल है, ऐसे में संभव है कि केंद्र सरकार की ओर से लोकलुभावन नारों को तरजीह दी जाए और कुछ समय के लिए जनरल इंश्योरेंस कंपनियों पर संकट टल जाए।

(रविंद्र पटवाल स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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Sushil
Sushil
Guest
11 months ago

It is absolutely correct

SHAM KUMAR SAINI
SHAM KUMAR SAINI
Guest
11 months ago

If it is so then it will be most unfortunate for Government of India to forciblely finish Four General Insurance PSUs and LIC by damaging them with wrong financial decisions by favouring most of Private Sector Companies and disfavouring PSU!
Worst suffering will be the Esteemed Customers, Staff, Agents and above all The Government itself. Millions of families shall loose their livelihood if these companies are forcibly closed. LIC paid Annual Profit of almost 3000 Crore to Govt of India last year on Government’s mere investment of 5 Crore in 1956. And this profit is being paid each year. All 5 Years Plans of Government of India had been funded by LIC to the tune of lakhs of crores each year. Many PSUs and State Government are funded by LIC. Government must stop this to save these Nava Rattnas for the public welfare and future of the nation!

Shrishti
Shrishti
Guest
11 months ago

Pvt. Insurers paying commission/incentives to agents/intermediaries over & above stipulated Commission for different LOBs by IRDA through illegal means. Took GST credit for false bills. Regulators & authorities are still investigating the matter, while the earned large chunk of market share & Premiums. At the same time PSGICs are being forced to close their offices , fix the discount structure for various products ..
DFS is intervening in day to day activities & marketing affairs of PSGICs, appointed Consultant EY India to design a roadmap to increase efficiency & profitability .. but without analysing the ground level insurance market & customer need. Not bothered for the future impact on business & customer service due to shifting of business from one office to another.

It would be better to form a Company/GIPSA level committee to study, analyse & then develop the better working environment , IT infra. & digital marketing , innovate the products as per market need & requirements.. As per my opinion they have better expertise & experience ,however lacking in decision making & execution ..

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