चंडीगढ़। बीते विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी के सबसे बड़े नारों और वादों में से एक था- किसानों को हर हाल में खुशहाल रखना और व्यापक स्तर पर नई कृषि नीति बनाकर किसानों को तरक्की की राह पर ले जाना। साथ ही, खेत-मजदूरों के लिए भी राहत भरा नया काम करना। चुनाव से भी पहले ये बड़े-बड़े नारे और वादे तब किए जाते थे जब किसानों ने दिल्ली सीमा पर विशाल और पक्का मोर्चा लगाया था। तकरीबन 800 किसान उस मोर्चे में शहीद हो गए। किसानों का दिल्ली कूच भी हुआ और उसने कई किसान मारे गए और बेहिसाब दिल्ली पुलिस की अवैध कैद में रहे।
आप सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल और पार्टी के कद्दावर नेता तथा तब के संगरूर से सांसद भगवंत सिंह मान कहा करते थे कि शहीद किसानों को ऐसा मुआवजा सरकार आने पर दिया जाएगा, जो बेमिसाल होगा। हर परिवार के एक सदस्य को नौकरी और नगद सहयोग राशि दी जाएगी। घायलों की भी सुध ली जाएगी। तब तक सब ने मान लिया था कि पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार आना तय है और भगवंत मान का मुख्यमंत्री बनना भी। लोगों ने उन पर विश्वास किया। लेकिन हो क्या रहा है?
डेढ़ साल बीत गए। शहीद किसी किसान के किसी परिजन को सरकारी नौकरी नहीं मिली और न घोषित मुआवजा। सब कुछ कागजी होकर रह गया। यह दीवारों पर लिखा सच है कि पंजाब की आम आदमी पार्टी की अगुवाई वाली सरकार ने पूरी तरह से किसानों की सुध नहीं ली। वोट ज़रूर लिए थे, जिन्हें वे भूल चुके हैं।
इन दिनों भगवंत मान का ज्यादातर वक्त मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के चुनावी दौरों में बीतता है। इसलिए कि दिल्ली के मुख्यमंत्री और आप सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल ऐसा चाहते हैं। सरकारी उड़़नखटोला भी चाहिए। सो अपने सूबे की तरफ उनका ध्यान कम है। उन्हीं के इलाके में एक वृद्ध आंदोलनकारी किसान पुलिस से संघर्ष करता हुआ मौत के हवाले हो गया। उसके कई अन्य साथी जख्मी हो गए। वे चंडीगढ़ जा रहे थे।
मुख्यमंत्री को याद दिलाने कि दो बार बाढ़ आ चुकी है। तीसरी बार के लिए चेतावनी जारी हो चुकी है। मुआवजे का मुनासिब बंदोबस्त किया जाए। लेकिन चंडीगढ़ की और कूच करना उनके लिए गोया गुनाह हो गया। हजारों किसानों की धरपकड़ पुलिस कर चुकी है। कई को उन्हीं के घरों में नजरबंद कर दिया गया है। उनके फोन छीन लिए गए हैं। बावजूद इसके किसान एकजुट हो रहे हैं और बाजिद हैं चंडीगढ़ जाने के लिए। पुलिस के खुफिया विभाग को यह जानकारी है। इसीलिए उन्हें रोकने के लिए कम से कम 5 हजार जवान चंडीगढ़-मोहाली सीमा पर तैनात हैं।
पंजाब एक महीने में दो-दो बार बाढ़ ग्रस्त हुआ। पानी अभी भी सूखा नहीं है। गाद और पत्थरी खेतों में बजबजा रही है। खुद सरकार को ही अच्छी तरह नहीं मालूम कि आर्थिक स्तर पर कुल कितना नुकसान हुआ है। कितने लोगों और पशुओं की जान गई है। अंदाजों के नाम पर अंधेरों में अंधाधुंध तीर चल रहे हैं। सब कुछ कागजी हो रहा है। जिन किसानों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जैसे घोर घमंडी शख्स को धूल चटा दी हो, क्या वे अब मान शासन की पैंतरेबाजी नहीं समझते होंगे?
यह वहम किसी और को हो न हो, मुख्यमंत्री भगवंत मान को ज़रूर है। किसान चाहते हैं कि उन्हें तत्काल बाढ़ का मुआवजा दिया जाए। कृषि योग्य जमीन पर हुई बर्बादी के 50 हजार रुपए प्रति एकड़ और क्षतिग्रस्त घरों के लिए 5 लाख रुपए तथा बाढ़ में मरे लोगों के परिजनों के लिए दस लाख रुपए। देना तो दूर की बात, मुख्यमंत्री इस दरख्वास्त को लेना भी नहीं चाहते। बोट में बैठकर वह बाढ़ ग्रस्त इलाकों का दौरा जरूर करते हैं। इस दौरान सरकारी अमले कि कवायद रहती है कि कम से कम आम लोग उनकी जहाज जैसी बड़ी और आलीशान गाड़ी के करीब फटकें। मुख्यमंत्री भगवंत मान में यह बदलाव चंद महीनों की देन है। पहले वह आम लोगों से खूब मिलते और बतियाते थे। अब उन पर दिल्ली का रंग चढ़ गया है। आसानी से तो क्या उतरेगा?
वही लोग उतारेंगे, जिन्होंने उन्हें जमीन से आसमान तक पहुंचा दिया था। यह उनकी गलतफहमी थी या लापरवाही, मालूम नहीं। पंजाब के लोगों ने इतना जरूर सोचा था कि तीसरा विकल्प शासन-व्यवस्था की बागडोर संभालेगा तो परिवर्तन होगा। बेरोजगारों पर पड़ने वाली लाठियां बंद हो जाएंगी और किसानों तथा खेत-मजदूरों की खुदकुशियां भी। सरकारी दफ्तरों का माहौल बदलेगा। लेकिन वही आलम, राजकाज का वही ढंग और वही फजीहत। खोखले नारे।
मुख्यमंत्री भारी भरकम सुरक्षा व्यवस्था का मजाक उड़ाया करते थे लेकिन अब? शायद ही कोई उनका ऐसा रिश्तेदार हो जिसके पास तथाकथित सुरक्षा के लिए पुलिस का दस्ता न हो। नजदीकी अथवा करीबी रिश्तेदारों की तो बात ही जाने दीजिए। क्या कुछ साल पहले तक कोई यह कल्पना भी कर सकता था कि आम आदमी पार्टी में ‘खास ही खास’ नजर आएगा। ऊपर के स्तर पर।
लेकिन पहले दिल्ली में सब कुछ बदला और अब पंजाब में। दिल्ली से पंजाब की कितनी दूरी है लेकिन सरकार का संचालन वहीं से होता है। स्वीकार कीजिए या इनकार, समकालीन सच यही है। दिल्ली की ही तर्ज पर पंजाब के जनांदोलनों की उपेक्षा की जाती है और दमन से उन्हें दबाया जाता है। वैसे भी दमन का पहला कदम उपेक्षा होता है। आतंकवाद बार-बार सिर उठाता है तो दिल्ली के दखल से उसे फौरी तौर पर बेदखल किया जाता है। मादक द्रव्यों की तस्करी में कभी कमी आती है तो कभी तेजी। नशीले पदार्थ फलों और सब्जियों की तरह उपलब्ध है। भारी भरकम फोर्स के बावजूद सरेआम लूटपाट और कत्ल की वारदातें हो रही हैं।
लोगबाग मुख्यमंत्री भगवंत मान से यही चाहते हैं कि वे पंजाब को पूरा वक्त दें क्योंकि उनके पास साढ़े तीन साल हैं। बेशक पंजाब की सड़ी-गड़ी व्यवस्था के लिए ये नाकाफी हैं। भगवंत मान को नहीं भूलना चाहिए कि जिस दिन अरविंद केजरीवाल को किसी दूसरे राज्य में कोई दूसरा भगवंत मान मिल गया तो, वह हाशिए पर होंगे। लोग इस बार उन्हें इतने ज्यादा मतों से नहीं जिताने वाले। भगवंत मान सरकार का गठन होते ही संगरूर में संसदीय उपचुनाव हुआ था। वहां उनकी पार्टी हार गई। यह सिर्फ आम आदमी पार्टी की हार ही नहीं थी, भगवंत मन की हार भी थी। सियासत की ढिठाई ने इन्हें यह कबूलने नहीं दिया। चीजें बरकरार हैं बल्कि बिगड़ रही हैं। किसान आंदोलन नरेंद्र मोदी सरकार को महंगा पड़ सकता है तो भगवंत मान सरकार उसके आगे क्या है?
(पंजाब से अमरीक की रिपोर्ट।)