एक बार फिर सांप्रदायिक-विघटनकारी एजेंडा के सहारे भाजपा?

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बहुसंख्यकवादी राष्ट्रवाद हमेशा से चुनावों में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए सांप्रदायिक विघटनकारी एजेंडा और नफरत का इस्तेमाल करता आया है। हिन्दू राष्ट्रवादी राजनीति के मोड्यूल के दो मुख्य आधार हैं– पहला, प्राचीन भारत, जिसके समाज में मनुस्मृति के मूल्यों का बोलबाला था और दूसरा, इतिहास, विशेषकर मध्यकालीन इतिहास को तोड़ना-मरोड़ना। इस सिलसिले में ये झूठ जम कर प्रसारित किये जाते हैं कि मुस्लिम शासकों ने बड़े पैमाने पर हिन्दू मंदिर तोड़े और हिन्दुओं को जबरदस्ती मुसलमान बनाया।

यह तो हुए मूल आधार। हिन्दू राष्ट्रवादी इस मोड्यूल में समय-समय पर अपने विशाल नेटवर्क की मदद से नए बिंदु जोड़ते रहते हैं। अब तक बाबरी मस्जिद के ढहाने को इस आधार पर औचित्यपूर्ण ठहराया जाता रहा है कि मुग़ल शासकों ने हिन्दुओं को नीचा दिखाने के लिए हिन्दू मंदिर नष्ट किये। यह एक बड़ा झूठ है। इस 2024 के आम चुनाव में मांस खाने को एक बड़ा मुद्दा बनाया जा रहा है।

हाल में एक तस्वीर सामने आई जो आठ अप्रैल की थी और जिसमें राजद नेता तेजस्वी यादव को मछली खाते हुए दिखाया गया था। नवरात्र और सावन के महीने में कई हिन्दू मांसाहारी भोजन नहीं करते। इस साल नवरात्र 9 अप्रैल से शुरू हुए। मगर फिर भी तेजस्वी को यह कह कर बदनाम किया गया कि वे पवित्र दिनों में मांसाहार कर रहे हैं!

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को तथ्यों को तोड़ने-मरोड़ने, सांप्रदायिक प्रचार करने और सांप्रदायिक इतिहास लेखन का प्रयोग कर नफरत फैलाने में महारत हासिल है। उन्होंने ‘मछली’ द्वारा उन्हें दिए अवसर का भरपूर उपयोग किया। उन्होंने याद दिलाया कि पिछले साल सावन के महीने में राहुल गांधी और लालूप्रसाद यादव ने मटन पकाया और खाया था। बड़ी चालाकी से उन्होंने सावन में मटन खाने को मुगलों द्वारा मंदिरों को नष्ट करने से जोड़ा।

उन्होंने कहा, “जब मुगलों ने भारत पर हमला किया तो वे केवल राजा को हरा कर संतुष्ट नहीं होते थे। वे तभी संतुष्ट होते थे जब वे मंदिरों को तोड़ देते थे और आराधना स्थलों को नष्ट कर देते थे। उन्हें इसमें आनंद आता था। इसी तरह, सावन के महीने में यह वीडियो दिखाकर वे लोग मुग़ल मानसिकता से देश के लोगों को भड़काना चाहते हैं।” मोदी के अनुसार, उनके राजनैतिक प्रतिद्वंद्वियों ने वोट बैंक की राजनीति के तहत ये वीडियो प्रसारित किये।

राजाओं द्वारा मंदिरों को नष्ट करने के मसले पर पर रिचर्ड ईटन समेत कई जाने-माने इतिहासकारों ने व्यापक शोध किया है। उन्होंने पाया है कि हिन्दू राजाओं ने भी मंदिर तोड़े। और दूसरी ओर, कई मुस्लिम राजाओं ने हिन्दू मंदिरों को दान दिया। कल्हण की राजतरंगिणी बताती है कि कश्मीर के हिन्दू राजा हर्षदेव ने मंदिरों से सोने और चांदी से बनी मूर्तियां उखाड़ कर शाही खजाने में जमा करने के लिए एक विशेष अधिकारी की नियुक्ति की थी। और औरंगजेब ने हिन्दू मंदिरों को दान दिए थे।

सांप्रदायिक राष्ट्रवादी प्रोपेगेंडा का पहला और सबसे बड़ा शिकार होता है सच। सांप्रदायिक मानसिकता जिस ढंग से चीज़ों की विवेचना करती है, जिस तरीके से निष्कर्षों पर पहुंचती है, उसका यथार्थ से कोई लेनादेना नहीं होता।

कांग्रेस के चुनाव घोषणापत्र, जिसे ‘न्याय पत्र’ का नाम दिया गया है, के जारी होने के तुरंत बाद प्रधानमंत्री मोदी ने कह दिया कि उस पर मुस्लिम लीग की छाया है। तथ्य यह है कि न्याय पत्र समाज के सभी कमज़ोर वर्गों के साथ सकारात्मक न्याय करने की बात करता है। मोदी के कुनबे के अन्य सदस्य भी इसी तरह की बातें करते रहते हैं।

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि उनके प्रदेश में अपराधियों को या तो जेल जाने पड़ेगा या जहन्नुम (इस्लाम में नर्क के लिए प्रयुक्त शब्द)। इसी तरह, आदित्यनाथ ने हाजी मलंग का मामला भी उठाया। मुंबई के नज़दीक स्थित इस पवित्र स्थल को हिन्दू आराधना स्थल ‘मलंग गढ़’ बताया जा रहा है। करीब तीन दशक पहले कर्नाटक में अपनी जडें ज़माने के लिए भाजपा ने बाबा बुधनगिरी दरगाह को मुद्दा बनाया था।

मोदी यह डर भी फैला रहे हैं कि अगर इंडिया गठबंधन सत्ता में आया तो वह संपत्ति का पुनर्वितरण करेगा और घुसपैठियों को संपत्ति करेगा। दूसरे शब्दों में, बांग्लादेश से आये मुसलमानों को ‘दूसरों’ की संपत्ति मिल जाएगी। साथ ही वे यह भी कहते हैं कि “कांग्रेस आपकी संपत्ति उन लोगों को दे देगी जिनके ज्यादा बच्चे हैं।” कुल मिलकर, वे यह कहना चाहते हैं कि कांग्रेस मुसलमानों का तुष्टिकरण कर रही है।

घुसपैठियों के नाम पर जो हौआ खड़ा किया जा रहा थे उसकी हवा तो आसाम में की गई एनआरसी की कवायद में ही निकल गई थी। जिन 19 लाख लोगों के पास अपनी नागरिकता को साबित करने के लिए दस्तावेज नहीं थे, उनमें से 13 लाख हिन्दू थे। जबकि दावा यह किया जा रहा था कि भारत में करोड़ों बांग्लादेशी घुसपैठिये रह रहे हैं (अमित शाह के शब्दों में दीमक)। जहां तक ज्यादा बच्चे पैदा करने का प्रश्न है, ताजा आंकड़ों के अनुसार, मुस्लिम महिलाओं की प्रजनन दर में गिरावट आ रही है और वर्तमान में, मुस्लिम महिलाओं की प्रजनन दर, राष्ट्रीय स्तर पर हिन्दू महिलाओं से थोड़ी ही अधिक है और अगर यही सिलसिला जारी रहता है, तो कुछ ही सालों में वह बराबर हो जाएगी।

हिन्दू दक्षिणपंथी यह प्रचार भी कर रहे हैं कि डॉ मनमोहन सिंह ने कहा था कि मुसलमानों का देश के संसाधनों पर पहला हक़ है। डॉ सिंह की जिस टिप्पणी को उदृत किया जा रहा है, वह उन्होंने सन 2006 में सच्चर कमेटी की रिपोर्ट प्रस्तुत होने के बाद की थी। इस रिपोर्ट में बताया गया था कि आर्थिक, सामाजिक और राजनैतिक दृष्टि से मुसलमानों की स्थिति दयनीय है और उसमें और गिरावट आती जा रही है।

उन्होंने जो कहा था वह यह था: “मुझे विश्वास है कि हमारी सामूहिक प्राथमिकताएं साफ़ हैं: कृषि, सिंचाई, जल संसाधन, स्वास्थ्य, शिक्षा, ग्रामीण अधोसंरचना में ज़रूरी निवेश, सामान्य अधोसंरचना में आवश्यक सार्वजनिक निवेश और अनुसूचित जातियों / जनजातियों, अन्य पिछड़ा वर्गों, अल्पसंख्यकों, महिलाओं और बच्चों की प्रगति के लिए कार्यक्रम।”

इन सभी उदाहरणों से साफ़ है कि हिन्दू दक्षिणपंथी अपने राजनैतिक हितों को साधने के लिए तथ्यों को तोड़ने-मरोड़ने में कितने उस्ताद हैं। वे केवल विघटनकारी राजनीति के बल पर जिंदा हैं। मुसलमानों के खिलाफ नफरत फैलाना और जो लोग तार्किक आधारों पर कमज़ोर तबकों की भलाई के लिए सकारात्मक कार्यवाही के बात करते हैं, उनकी निंदा करना ही इनके मुख्य काम है।

पिछले कुछ वर्षों में उनके प्रोपेगेंडा हथियारों की धार और तेज़ हुई है और उनका तंत्र का और विस्तार हुआ है। नतीजा यह कि वे अल्पसंख्यकों, विशेषकर मुसलमानों, का दानवीकरण करने के लिए मनगढ़ंत नैरेटिव का निर्माण करने में और सक्षम हो गए हैं।

दक्षिणपंथी गिरोह उन लोगों को हिन्दू-विरोधी कहता है जो प्रजातान्त्रिक तौर-तरीकों और संवैधानिक मूल्यों के पैरोकार हैं। इस समय, मीडिया भाजपा के साथ है और एक ऐसी आम सामाजिक समझ निर्मित करने का प्रयास कर रहा है जो भारत के बहुवादी संस्कारों के खिलाफ है। ये बहुवादी संस्कार सदियों में विकसित हुए हैं और इन्हीं से हमारा स्वाधीनता संग्राम उपजा, जो दुनिया का सबसे बड़ा जनांदोलन था। इंडिया गठबंधन के घटक दलों को चाहिए कि वे बहुसंख्यकवादी राजनीति के इन झूठों का पर्दाफाश करें।

(अंग्रेजी से रूपांतरण अमरीश हरदेनिया लेखक आईआईटी मुंबई में पढ़ाते थे और सन 2007 के नेशनल कम्यूनल हार्मोनी एवार्ड से सम्मानित हैं)

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