गुजरात की चुनावी राजनीति: एक केस स्टडी

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वर्तमान चुनाव में देश के अन्य हिस्सों में हो रही राजनीति से अलग हटकर गुजरात में ऐसी राजनीति हो रही है जिसे आसानी से समझ पाना संभव नहीं है। चुनाव शुरू हुए तब से लेकर अब तक सिर्फ एक ही मुद्दा बना हुआ है और वो है क्षत्रिय आंदोलन, जिसके इर्द-गिर्द राजनीतिक गलियारों में चर्चा होती रहती है कि क्या क्षत्रिय वोट कांग्रेस के पाले में खिसक रहे हैं और राजकोट से भाजपा हार रही है या नहीं? गुजरात में किसी भी राजनीतिक पार्टी के नेता या कार्यकर्ता से आप पूछ लो कि गुजरात में क्षत्रिय वोट कितने हैं, किस-किस सीट पर हैं तो हरेक के पास खुद के अनुमानित आंकड़े हैं।

बिहार, उत्तर प्रदेश बंगाल के नेताओं की बात अलग है लेकिन गुजरात के नेताओं के पास कभी डेटा नहीं होता ये अक्सर पत्रकारों का अनुभव रहा है। राजनीति की बातें हवा में होती हैं और जमीनी हकीकत कुछ और होती है। ऐसे माहौल में फिर भी भाजपा लगातार जीत दर्ज करती आ रही है। देश में दूसरे चरण के चुनाव के लिए मतदान संपन्न हुआ है। अब तक 189 लोकसभा सीट के लिए मतदान हो चुका है, और आगे तीसरे चरण में 11 राज्य और एक केंद्र शासित प्रदेश में 95 लोकसभा सीट के लिए 7 मई को मतदान होना है। गुजरात की सभी 26 सीट के लिए तीसरे चरण के चुनाव में मतदान होना था लेकिन सूरत से भाजपा के निर्विरोध चुने जाने के बाद अब गुजरात में 25 सीट पर मतदान होगा।

भाजपा सभी 25 सीटों पर चुनाव लड़ रही है, इंडिया गठबंधन में कांग्रेस ने 23 सीट पर उम्मीदवार उतारे हैं जब कि भरूच और भावनगर में सहयोगी दल के रूप में आम आदमी पार्टी चुनाव लड़ रही हैं। देश के बाकी हिस्से और गुजरात में चुनावी माहौल बिलकुल अलग हैं। देश के अन्य हिस्सों में इलेक्टोरल बॉन्ड, लोकशाही पर खतरा, रोजगार, महंगाई, संविधान की रक्षा, मनमोहन सिंह, मोदी के गारंटी और कांग्रेस की न्याय गारंटी चर्चा का विषय है। लेकिन गुजरात में ऐसी कोई चर्चा नहीं है।

चुनाव आचार संहिता लागू होने के 24 घंटे में कच्छ के अंजार में एक दलित किसान ने पुलिस FIR दर्ज कराई थी जिस में आरोप है कि वेल स्पेन कम्पनी ने उस की जमीन संपादित की थी, और मुआवजे की 16 करोड़ की रकम उसे धोखे में रखकर कंपनी ने उस रकम से उस के नाम से इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदे और भाजपा ने उस बॉन्ड को कैश करा लिया। गुजरात के चुनाव में ये बहुत बड़ा मुद्दा बन सकता था, प्रदेश में सिकुड़ती जा रही मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस के लिए ये संजीवनी साबित हो सकता था, लेकिन कांग्रेस ने प्रचार में कहीं भी कभी भी इस का जिक्र तक नहीं किया, न ही आम आदमी पार्टी ने भरूच और भावनगर में इसे चर्चा का विषय बनाया। 

16 मार्च को देश में आदर्श आचार संहिता लागू हुई तब से गुजरात में भाजपा ने कांग्रेस को पींग पांग प्लेयर बना दिया है। भाजपा के द्वारा क्रिएट किए गए नॉन इस्यू पर कांग्रेस खेलती रही। गुजरात में 16 लाख के करीब क्षत्रिय मतदाता में से ज्यादातर भाजपा के पाले में हैं। जब कि पाटीदार के एक करोड़ 15 लाख वोटर हैं जिस में से करीब 14 लाख वोटर कांग्रेस के पास हैं।  भाजपा ने अपने पाटीदार उम्मीदवार पुरुषोत्तम रुपाला के द्वारा क्षत्रिय विवाद खड़ा किया और उसे ऐसी हवा दी कि पूरे चुनाव का केंद्र बिंदु सिर्फ क्षत्रिय विवाद बना रहा। कांग्रेस के सारे मुद्दे पेपर पर रह गए और आज चुनाव प्रचार भी खत्म हो चुका। 

अब राजनीतिक गणित ये बता रहा है कि भाजपा ने क्षत्रिय समुदाय के 16 लाख वोट दांव पर रखकर पाटीदार समाज के एक करोड़ 15 लाख वोट पर संपूर्ण कब्जा कर लिया है। पाटीदार समाज के उम्मीदवार रूपाला को बदलने की क्षत्रिय समाज की मांग के सामने भाजपा बिल्कुल नहीं झुकी, इस का सीधा फायदा भाजपा को चुनाव में मिलता हुआ नजर आ रहा है। जहां तक क्षत्रिय समाज के 16 लाख मतदाताओं का सवाल है, वो भाजपा से नाराज जरूर हैं, ये भी हो सकता है कि वो भाजपा को वोट न दें, लेकिन भाजपा के बजाय कांग्रेस को वोट दे आए इतनी नाराजगी उन्हें भाजपा से नहीं है, और मोदी जब ये कहते हैं कि आप का एक एक वोट मुझे मिल रहा है तब गुजरात का आम हिन्दू सारी शिकायतें दरकिनार कर के कमल का बटन दबाता आया है।

प्रदेश में भाजपा के नेता या कार्यकर्ता के पास कुछ कहने को नहीं है। इतना ज़रूर है कि पहले हर सीट 5 लाख की लीड से जीतने का दावा किया जाता था, वो सुर अब बदल चुके हैं क्योंकि भाजपा को 4 लाख क्षत्रिय वोट का घाटा हो रहा है लेकिन मुआवजे में 8 लाख पाटीदार वोट ज्यादा मिल रहे हैं। 5 लाख से ज्यादा की लीड से भाजपा अब की जीत सकती है तो वो सीट नवसारी, वडोदरा और गांधीनगर हो सकती है। इसके अलावा किसी भी सीट पर 5 लाख की लीड लेना अब भाजपा के लिए संभव नहीं है। 

कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव में 12% वोट खोए थे, लेकिन आम आदमी पार्टी से गठजोड़ के बाद कांग्रेस 7% वोट रिकवर करती हुई नजर आ रही है। प्रदेश की सब से ज्यादा चर्चित सीट भरूच पर चैतर वसावा को आदिजाति के 60% वोट मिलते हुए दिखाई दे रहे हैं। मुस्लिम मतदान में भी इस बार करीब 7% का उछाल आ सकता है। लेकिन इसका मिलाजुला असर भरूच में भाजपा को हराने की संभावना पैदा नहीं करता। कम मार्जिन से ही सही, लेकिन गुजरात की 25 सीट में से किसी एक सीट पर भी भाजपा को हरा पाना इस चुनाव में भी नामुमकिन लग रहा है।

कांग्रेस के नेता भी चुनावी राजनीति पर कोई स्पष्ट बात नहीं रख पा रहे हैं। जमीनी प्रचार में कांग्रेस से ज्यादा आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता ज्यादा एक्टिव नजर आए लेकिन सोशल मीडिया पर भाजपा बहुत आगे है। बूथ मैनेजमेंट में भी भाजपा का मुकाबला कहीं नहीं है।

मतदान के दिन गुजरात में काफी गर्मी होगी, दोपहर 11 से ढाई तक मतदान कम होने की आशंका है, फिर भी अंतिम आंकड़े 64 से 68 प्रतिशत के करीब के आ सकते हैं। कुल मिलाकर ये निष्कर्ष निकलता है कि तीसरे चरण में जिन 95 सीटों पर मतदान होना है उस में गुजरात की 25 सीट पर भाजपा ने ठीकठाक चुनाव निकाल लिया है। कांग्रेस एक बार फिर से गुजरात के चुनावी मैदान में हारती हुई नजर आ रही है।

(सलीम हाफेजी गुजरात के वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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