जनता के खिलाफ मोदी सरकार का एक और ‘षडयंत्र’ है संसद का विशेष सत्र

सितंबर में संसद का पांच दिवसीय विशेष सत्र बुलाया गया है। लेकिन सरकार ने विशेष सत्र के एजेंडे का अभी तक खुलासा नहीं किया है। ऐसे में राजनीतिक गलियारों में तरह-तरह के कयास लगाए जा रहे हैं। यह भी आशंका व्यक्त की जा रही है कि उक्त पांच दिनों में संसद के अंदर 10 बिल पेश किए जाएंगे जिसमें महिला आरक्षण विधेयक, यूसीसी सहित अन्य बिल पेश किए जा सकते हैं। कहा जा रहा है कि सदन में ‘एक देश, एक चुनाव’ का बिल भी पेश किया जा सकता है।

ध्यान दें कि इस बिल के तहत देश में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ कराए जाने के फैसले को जमीन पर उतारा जाएगा। पीएम मोदी भी कई मौकों पर एक साथ चुनाव कराने की पैरोकारी कर चुके हैं। बीते दिनों उन्होंने राज्यसभा में कहा था कि अब हमें बार-बार के चुनाव कराए जाने के झंझट से बाहर आ जाना चाहिए और कुछ ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए कि एक साथ ही सभी चुनाव हो जाएं।

देश में बार-बार चुनाव आना और वो चुनाव हर हाल में जीत लेना इतना आसान नहीं होता। पिछले दस साल का रिकार्ड ये है कि राजनीतिक पार्टियों को हरेक विधानसभा चुनाव के लिए धर्म, जाति, और विशेष समुदाय को टारगेट करना पड़ता है, निम्न कोटि की राजनीतिक चालबाजियां करनी पड़ती है, बार बार पैसा लगाना पड़ता है और फिर भी हर बार सफलता नहीं मिलती। ऐसे में अगर देश में लोकसभा के साथ-साथ सभी राज्यों के विधानसभा का चुनाव एक साथ हो तो ये सारी प्रक्रिया एक बार में खत्म करके देश पर शासन आसानी से किया जा सकता है। भाजपा और खास कर पीएम मोदी को, ये इसलिए लागू करना है ताकि लोकसभा चुनाव में हमेशा की तरह प्रोपगेंडा चलाया जाए कि मोदी का विकल्प नहीं है, और भाजपा की जीत आसान हो जाती है। लेकिन वही फॉर्मूला राज्य विधानसभा के लिए लागू नहीं होती। ऐसे में देश में 5 साल में सिर्फ एक ही बार चुनाव हो तो स्वाभाविक तौर पर भाजपा को फायदा हो सकता हैं।

लेकिन क्या ये संभव है?

इसके लिए संविधान के अनुच्छेद 83, 85, और धारा 172, 174, और 356 में संशोधन करना जरूरी हैं। इसके अलावा लोक- प्रतिनिधित्व अधिनियम 151 में सुधार करना भी अनिवार्य हैं। अनुच्छेद 83 संसद के सदन की अवधि तय करता है। अनुच्छेद 85 में सदन के सत्र का स्थगन और विसर्जन तथा समय-सीमा नियमन हैं। धारा 172 राज्यों की विधानसभा की अवधि तय करती है। धारा 174 में विधानसभा के सत्र का स्थगन और विसर्जन तथा समय-सीमा नियमन हैं। जबकि धारा 356 में राज्यपाल के रिपोर्ट के आधार पर केंद्र सरकार के आग्रह पर राष्ट्रपति द्वारा राज्य में वैधानिक विफलता प्रतीत होने पर राज्यों की विधानसभा को भंग किया जा सकता हैं।

अब इन सब में महत्वपूर्ण कार्य है, वो धारा 356 में सुधार करना। अगर देश में लोकसभा के साथ-साथ सभी राज्यों की विधानसभा का चुनाव कराना है तो धारा 356 में संशोधन करना अनिवार्य हैं। वर्तमान समय में किसी भी राज्य में वैधानिक विफलता की कोई निशानी या घटना घटित नहीं हुई है। कुछ महीने पहले ही पंजाब, कर्नाटक, गुजरात में चुनाव संपन्न हुए हैं, इन राज्यों में लोकसभा चुनाव के साथ फिर से विधानसभा चुनाव कराने हैं तो इन राज्यों की भी विधानसभा भंग करना अनिवार्य होगा। लेकिन धारा 356 सिर्फ वैधानिक विफलता के आधार पर ही इस्तेमाल की जा सकती हैं। अगर धारा 356 में सुधार हो जाता है तो फिर अनुच्छेद 83, 85, और धारा 172, 174 में संशोधन करना सरल प्रक्रिया हैं।

क्या धारा 356 में संशोधन करना आसान है?

धारा 356 में संशोधन करना यानि संविधान में ही सुधार करना हैं। इसलिए धारा 356 में संशोधन के लिए लोकसभा और राज्यसभा की कुल संख्या के कम से कम 50 प्रतिशत सदस्य का सदन में मौजूद होना जरूरी है, और उनमें से दो तिहाई सदस्य का बिल को समर्थन करना आवश्यक हैं। इसके बाद देश कुल विधानसभा में से 50 प्रतिशत विधानसभा में इसी प्रकार दो तिहाई बहुमत से बिल को समर्थन करना जरूरी हैं। उसके बाद ही राष्ट्रपति के दस्तखत के साथ धारा 356 का संविधानिक सुधार हो सकता हैं।

अब मुश्किल ये है कि देश की 28 विधानसभा में से भाजपा के पास सिर्फ 11 विधानसभा है और चार अन्य विधानसभा में भाजपा के समर्थन वाली सरकार हैं जिसमें महाराष्ट्र, नागालैंड, पुडुचेरी और सिक्किम हैं। स्वाभाविक है कि बाकी 14 विधानसभा विपक्ष के पास हैं। तो ले दे कर भाजपा को खुद की 11 और गठजोड़ वाली अन्य 4 विधानसभा में धारा 356 ड्राफ्ट बिल का समर्थन जुटाना होगा। अब इन सभी राज्यों की विधानसभा में विपक्ष भी मौजूद है जो इस ड्राफ्ट बिल को समर्थन नहीं करेगा। और ड्राफ्ट बिल का समर्थन करने के लिए भाजपा को दो तिहाई बहुमत की जरूरत है जो गुजरात के अलावा किसी और राज्य में हासिल नही हैं।

ऐसे में, ये सारी उठापटक देश की जनता को और विपक्ष को असली मुद्दे से भटकाकर राजनीतिक उलझनों में फंसा देने का प्रयास हो सकता हैं। लेकिन इसका फायदा ये होगा कि विपक्षी एकता अब और मजबूत होगी, क्योंकि वन नेशन वन इलेक्शन के मुद्दे पर सारे विपक्षी मुख्यमंत्री और विपक्षी दल आपसी मतभेद को भूलकर एक साथ धारा 356 ड्राफ्ट बिल के विरोध में खड़े हुए मिलेंगे और इसका फायदा आनेवाले लोकसभा चुनाव में I.N.D.I.A. को होगा।

(सलीम हाफेजी स्वतंत्र पत्रकार हैं और अहमदाबाद में रहते हैं।)

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