मकपा माले ने रामनवमी की आड़ में बिहार में हुईं सांप्रदायिक उन्माद की घटनाओं की कड़ी भर्त्सना की है। माले महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य ने कहा कि बिहार शरीफ को सांप्रदायिक उन्माद के लिए सोच समझकर चुना गया। सौ साल पुराने ऐतिहासिक मदरसे को जला कर राख कर दिया गया। यह एक पहचान को मिटाने की कोशिश है।
दीपंकर ने कहा कि इस घटना के अगले दिन केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की नवादा में रैली हुई। उन्होंने शांति की अपील करने के बजाए सांप्रदायिक उन्माद की घटनाओं को वोट की राजनीति से जोड़ दिया। अमित शाह ने कहा कि गुजरात में भाजपा ने ऐसा कर दिया है कि वहां स्थाई शांति कायम हो गई है। यह स्थायी शांति क्या है? यह मुसलमानों के लिए दंगाई भाजपाइयों का कोडवर्ड है। गुजरात मॉडल जनसंहार पर आधारित मॉडल है। आज देश को बिहार मॉडल की जरूरत है। यह मॉडल देश को गुजरात होने से बचाएगा।
माले महासचिव ने कहा कि भाजपा के राम हिंसा के प्रतीक बना दिए गए हैं, वे आम हिन्दुओं के नहीं हैं। बिहार में जो ताजातरीन उन्माद की घटनाएं हुई हैं, उसमें प्रशासन की भी भूमिका बनती है। इसके खिलाफ आज सामाजिक समरसता के मूल्यों को फिर से से स्थापित करना होगा। यह महागठबंधन और हम सबके सामने चुनौती है।
दीपंकर भट्टाचार्य पटना के आइएमए हॉल में एआइपीएफ के बैनर तले आयोजित ‘फासीवाद के खिलाफ संघर्ष का बिहार मॉडल’ विषय पर एक परिचर्चा में बोल रहे थे। इस परिचर्चा में दीपंकर भट्टाचार्य के अलावा सामाजिक कार्यकर्ता सरफराज, डॉ विद्यार्थी विकास और ऐपवा की महासचिव मीना तिवारी ने बतौर वक्ता भाग लिया। परिचर्चा की अध्यक्षता पटना के जाने माने शिक्षाविद् गालिब ने की, जबकि संचालन एआइपीएफ के संयोजक कमलेश शर्मा ने किया।
परिचर्चा में बोलेते हुए डॉ विद्यार्थी विकास ने कहा कि भारत में फासीवाद का आधार ब्राह्मणवाद है। भाजपा शासन में इतिहास की पाठ्य पुस्तकों से बहुत से अध्यायों को हटा दिया गया है। दूसरी ओर देश की 70 करोड़ आबादी आज भी भुखमरी के कगार पर है। लगातार मानवाधिकारों का हनन हो रहा है। बिहार की धरती से इन फासीवादियों को मुकम्मल जवाब मिलेगा।

सामाजिक कार्यकर्ता सरफराज ने कहा कि देश में मुसलमानों को डर के साए में जीना पड़ रहा है। मदरसों को तहस-नहस किया जा रहा है। नमाज पढ़ते वक्त मस्जिदों पर हमला किया गया। राम के नाम पर दंगा-फसाद की इस राजनीति के खिलाफ हम सबको एकजुट होना होगा।
ऐपवा की महासचिव मीना तिवारी ने कहा कि बिहार की महिलाओं ने काफी जद्दोजहद के बाद अपने अधिकार पाए और अपनी पहचान हासिल की है। बिहार में जो संघर्ष चला है, उसमें बिहार की महिलाओं का बराबर का योगदान रहा है। आशा, रसोइया आदि स्कीम वर्करों की दावेदारी और उनकी मांगों को पूरी करने की जरूरत है।
इसके पहले संतोष सहर ने एआइपीएफ के उद्देश्यों के बारे में विस्तार से बताया। बिहार में शांति सद्भावना की बहाली, सांप्रदायिक उन्माद के पीड़ितों को मुआवजा व सुरक्षा, एपीएमसी ऐक्ट की पुनर्बहाली की मांग पर चल रहे आंदोलनों, बागमती पर तटबंध बनाने के खिलाफ चल रहे आंदोलन, स्कीम वर्करों, फुटपाथ दुकानदारों, अतिथि सहायक प्राध्यापकों आदि के प्रति एआइपीएफ की ओर से एकजुटपा प्रकट की गई है और आने वाले दिनों में इसे मजबूत बनाने का भी संकल्प लिया गया।
अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में गालिब ने बताया कि सांप्रदायिक उन्माद के खिलाफ एआइपीएफ शांति की अपील के साथ जनता के बीच जाएगा। कार्यक्रम से 41 सदस्यीय संयोजन समिति का भी गठन किया गया। एक सलाहकार मंडल का भी गठन किया गया, जिसमें प्रो. भारती एस कुमार, प्रो. संतोष कुमार, केडी यादव, पीएनपी पाल और संतोष सहर के नाम शामिल हैं।
कार्यक्रम में रामेश्वर चैधरी, रामलखन चैधरी, कुमार किशोर, विकास यादव, संतोष आर्या, विजयकांत सिन्हा, मंजू शर्मा, गजेन्द्र मांझी, फैयाज हाली और गुलाम सरवर समेत बड़ी संख्या में लोग शामिल थे।
(विज्ञप्ति पर आधारित)