नई दिल्ली। पिछले कुछ समय से देश की फिजाओं में आज़ादी, आज़ादी के स्वर गूंज रहे हैं। वहीं कुछ लोगों के लिए आज़ादी की मांग देशद्रोह लग रहा है। लेकिन जिन्हें आज़ादी नहीं हासिल है सिर्फ़ वही जानते हैं क्या मायने हैं इस शब्द के। आज़ादी के मायने समझने हैं तो जंतर मंतर पर बैठे बंधुआ मजदूरों से मिल आइए जो अपने ‘मुक्तिपत्र’ के लिए आंदोलन पर बैठे हैं। जिन्हें काम दिलाने के बहाने छत्तीसगढ़ से पहले श्रीनगर ले जाया गया और ईंट के भट्ठे पर एक साल तक बांधकर रखा। फिर एक साल तक रखने के बाद वहां से निकालकर छत्तीसगढ़ के 46 मजदूरों को पलवल हरियाणा के रामभट्ठा मालिक के हाथों बेच दिया गया। बंधुआ मजदूर बनकर ईंट बनाने के लिए। इसमें गर्भवती स्त्रियां, छोटे-छोटे बच्चे और पुरुष हैं।
रघुनाथ छत्तीसगढ़ के निवासी हैं। वो बताते हैं कि हमें श्रीनगर काम के लिए लिवा जाया गया। हमें ये बताया गया कि इतना पैसा मेहनताना मिलेगा, रहने, खाने की सुविधा भी दी जाएगी। लेकिन कुछ नहीं दिया। फिर हमें हरियाणा पलवल रामभट्ठा ले जाया गया उसका मालिक कक्कर था। ग्राम भंगुरी में राम भट्ठा में बंधक बनाकर रखा गया था। दिहाड़ी के नाम पर हमें वहां भी कुछ नहीं मिला। बीमार होने पर गर हजार पांच सौ कुछ मांगते भी थे मालिक कहता था कि कुछ नहीं देंगें। मैंने 6-10 लाख रुपए देकर तुम्हें खरीदकर लाया हूं। वहां हमें मारा पीटा जाता था। फिर हमने योजना बनाकर दो लोगों को वहां से चुपके से भगाया।
गौरी जिला जानकी चापा गांव छपौरा की हैं। उनकी गोद में डेढ़ साल का बच्चा है। गौरी भी छत्तीसगढ़ से पहले श्रीनगर ले जाई गई और फिर वहां से पलवल राम भट्ठे पर। गौरी बताती हैं कि हमारे पास न तो काम था न खेत-बारी। पेट पालने के लिए हम रोजगार ढूंढते ढूंढते दलाल के चंगुल में फंस गए। हमें कई जगह ले जाया गया। और काम करवाने के बाद दिहाड़ी नहीं दी गई। गौरी फिलहाल एक सप्ताह से निजामुद्दीन के रैन बसेरे में रह रही हैं। वहां दो जून का खाना मिल जाता है।
राम भट्ठा, अमर भट्ठा पर रखा गया। मारपीट किया गया। कई स्त्रियों के पास छोटे-छोटे बच्चे हैं। कुछ स्त्रियां गर्भवती भी हैं। उन तमाम महिलाओं के लिए न तो वहां आंगनवाड़ी की सुविधा है न गर्भवती महिलाओं के लिए वहां कोई आशा वर्कर थी। वो बच्चे जिन्हें पालना घर या स्कूल में होना चाहिए था वो ईंट भट्ठे की धूल फांक रहे थे।
दलाल जगदीश जमादार ने राम भट्ठे में छोड़ दिया
संतराम वो शख्स हैं जो राम भट्ठा से भागकर आए और अपने साथियों की रिहाई के लिए गुहार लगाई। संतराम भी छत्तीसगढ़ के जिला जानकी छापा के रहने वाले हैं। संतराम बताते हैं कि मुझे वहां इतना मार-पीटा गया था कि मैं चल भी नहीं पा रहा था। हमने आपस में राय किया कि ये तो मजदूरी देने के बजाय मजदूरी मांगने पर सबको मार रहा है। हमें यहां से निकलना चाहिए। सभी साथियों ने मिलकर साथ दिया। एक दिन सुबह 4 बजे शौच के लिए गए। उन्होंने हम पर नज़र रखने के लिए एक चौकीदार को भेजा था लेकिन उस दिन धुंध बहुत थी। और उस धुंध का फायदा उठाकर हम दो लोग वहां से भाग आए। हम लोग बाहर आकर गुहार लगाए तो हमें इस संगठन के लोगों ने वहां से उनके चंगुल से छुड़वाया।
संतराम बताते हैं कि उन लोगों को जगदीश नामक एक आदमी हमें रोजगार दिलाने के नाम पर पहले श्रीनगर में एक ईंट-भट्ठे पर ले गया। फिर वहां एक साल काम करने के बाद एक बस में भरकर निकाला और लाकर राम भट्ठे में छोड़ दिया। श्रीनगर में उसने सब हिसाब किया। वहां से निकलने से पहले जब हमने जगदीश से कहा कि पहले हमें यहां कि हमारी मजदूरी दिलवा दो तो वो बोला कि चलो मजदूरी मैं पलवल राम भट्ठे पर चलकर दूंगा।
शौचालय और पानी की व्यवस्था नहीं थी वहां। बीमार होने पर भी छुट्टी नहीं मिलती थी न दवा के लिए जाने दिया जाता था। ईंट भट्ठा मालिक राम कक्कर मारता था। पैसे मांगने पर कहता था कि तुम्हें जदगीश जमादार ने 6 लाख रुपए में हमारे हाथ में बेच दिया है। वो हमें बंदी बनाकर रखते थे। कहीं जाने नहीं देते थे। शौच के लिए भी जाते थे तो उनका एक बंदा नज़र रखने के लिए साथ जाता था। छत्तीसगढ़ में मेरे बूढ़े मां बाप हैं। एक 7 साल की बेटी है।
नेशनल कैंपेन कमेटी फॉर इरैडिकेशन ऑफ बांडेड लेबर के समन्वयक निर्मल गोराना बताते हैं – “इन लोगों को पहले एक साल तक श्रीनगर के ईंट भट्ठे पर बंधुआ मजदूर बनाकर काम करवाया गया। फिर एक साल बाद उन्हें वहां से वापस पलवल हरियाणा लाया गया। और इन लोगों ने वहां एक साल तक बंधुआ मजदूरी की। ये जानकारी जैसे ही संगठनों को मिली नेशनल कैंपेन कमेटी फॉर इरैडिकेशन ऑफ बांडेड लेबर, ह्यूमन राइट लॉ नेटवर्क और एक्शन एड एसोसिएशन तमाम संगठनों के साथियों ने अपनी सॉलिडैरिटी दिखाते हुए संज्ञान लिया और तत्काल एक शिकायतपत्र पलवल के जिलाधिकारी को भेजा। उन्होंने अपनी एक टीम बनाकर मौके पर भेजा। बांडेड लेबर सिस्टम (एबोलिशन) एक्ट 1976 के तहत। और उस टीम ने वहां से रेस्कयू करवाया। रेस्क्यू करवाने के बाद जब इनका स्टेटमेंट लेना था तो स्टेटमेंट पर इनका कोरे पेज पर साइन करवाया।
फिर अपनी मर्जी से उन्होंने उस पर क्या लिखा, क्या नहीं लिखा ये हमें नहीं मालूम। जबकि इन मजदूरों को बँधुआ मजदूर कानून के तहत एक मुक्तिपत्र जारी किया जाना था। एक रिलीज ऑर्डर मिलना था जो आज तक नहीं मिला। ये मजदूर अपने घर जाना चाहते हैं लेकिन जा नहीं सकते क्योंकि इनके पास किसी प्रकार की कोई सुविधा नहीं है। इन मजदूरों को जो मुक्ति प्रमाणपत्र मिलना था वो अब क्या मिलेगा। क्योंकि इन्हें नहीं पता है कि डीएम का ऑफिस कहां है।”
निर्मल गोराना आगे बताते हैं कि “डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट या सब डिवीजनल मजिस्ट्रेट दोनों में से किसी एक की जिम्मेदारी थी कि वो इन्हें रिलीज ऑर्डर जारी करती। पिछले एक सप्ताह से ये निजामुद्दीन के रैनबसेरे में पड़े हैं। इनको सबसे पहले कौन सुनेगा। इसलिए आज ये तमाम मजदूर यहाँ पर बैठे हैं ताकि यहाँ पर ये विरोध प्रदर्शन कर सकें। इस प्रकार की लापरवाही और कुकर्म जो प्रशासन कर रहा है, खेत का बाड़ा खेत को ही खा रहा है। जिस प्रशासन कि जिम्मेदारी थी इन्हें न्याय दिलवाना वो मालिक से भी ज्यादा इनके साथ भद्दा मजाक कर रहा है। कल ये सब मजदूर मिलकर चंडीगढ़ हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दाखिल करेंगे।”
बँधुआ मजदूरी के अजेय किले बने हुए हैं ईट भट्ठे
क्या विडंबना है कि आज भी देश भर के ईंट भट्ठे बँधुआ मजदूरी के अजेय दुर्ग बने हुए हैं। जहां आजादी के 73 साल बाद भी संविधान द्वारा तय किये गए सबके लिए आजादी के मौलिक सिद्धांत लागू नहीं होते। देश भर में लगातार उत्तर भारत से लेकर दक्षिण भारत तक के ईंट भट्ठों पर बंधुआ मजदूरी के मामले जब तब उजागर होते रहते हैं। सबसे ज़्यादा उत्तर प्रदेश और हरियाणा के ईंट भट्ठों पर मजदूर बंधक बनाकर रखे जाते हैं।
18 फरवरी 2020 को ही चेन्नई के तिरुवल्लूर से 247 बंधुआ मजदूरों को मुक्त करवाया गया। इन 257 मजदूरों में से 234 मजदूर उड़ीसा के बालानगीर, नुआपाड़ा कालाहाड़ी और सोनेपुर जिले के थे। इनमें 50 बच्चे (अधिकांश की उम्र 10 वर्ष से कम) और 88 स्त्रियां थी। चार साल पहले मई 2016 में भी तमिलनाड़ु के तिरुवल्लूर के ईंट भट्ठे से ही 328 बंधुआ मजदूरों को रिहा करवाया गया था।
इससे पहले 16 फरवरी को हरियाणा के ईंट भट्ठे से 54 बंधुआ मजदूरों को रिहा करवाया गया था। बिहार, झारखंड और उड़ीसा जैसे राज्यों के गरीब वर्ग के लोगों को बहला फुसलाकर देश भर के ईंट भट्ठों में तस्करी की जाती है। अकेले झारखंड में वर्ष 2015 से 2019 के बीच मानव तस्करी के 736 केस दर्ज किए गए हैं।
(स्वतंत्र पत्रकार सुशील मानव की रिपोर्ट।)