सुप्रीम फैसला: सुपरटेक के दोनों टावर गिरेंगे, नोएडा और कंपनी के अधिकारियों पर चलेगा मुकदमा

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उच्चतम न्यायालय ने नोएडा और सुपरटेक अधिकारियों की मिलीभगत के खिलाफ यूपीआईएडी अधिनियम 1976 और यूपी अपार्टमेंट अधिनियम 2010 के तहत  मुकदमा चलाने का आदेश देते हुए नोएडा के एमराल्ड कोर्ट स्थित 40 मंजिले ट्विन टावर को गिराने का आदेश दिया है। जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एमआर शाह की पीठ ने कहा कि कानून के शासन का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए अवैध निर्माण से सख्ती से निपटा जाना चाहिए। पीठ ने कहा कि इस तरह के निर्माण शहरी नियोजन के मूल पर प्रहार करते हैं, जिससे सीधे तौर पर पर्यावरण को नुकसान होता है और सुरक्षा मानकों में कमी आती है।

पीठ ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस निर्देश की पुष्टि की जिसमें सक्षम प्राधिकारी को नोएडा के अधिकारियों के खिलाफ मिलीभगत से मुकदमा चलाने की मंजूरी देने का निर्देश दिया गया था। पीठ ने आदेश में कहा कि हम अपीलकर्ता के अधिकारियों और नोएडा के अधिकारियों के खिलाफ यूपीआईएडी अधिनियम 1976 और यूपी अपार्टमेंट अधिनियम 2010 का उल्लंघन के लिए  यूपीयूडी अधिनियम की धारा 49 तथा यूपीआईएडी अधिनियम की धरा 12 के तहत  के तहत मुकदमा चलाने के आदेश सहित उच्च न्यायालय के निर्देशों की पुष्टि करते हैं।

पीठ ने पाया कि मानदंडों का उल्लंघन करके निर्माण को सुगम बनाने में नोएडा अधिकारियों और बिल्डरों के बीच मिलीभगत थी और वर्तमान मामले में नोएडा के अधिकारियों की मिलीभगत है। पीठ ने साफ कहा कि एमराल्‍ड कोर्ट टावर के लिए होम बायर्स की स्वीकृति नहीं ली गई थी। पीठ ने सुपरटेक को दो महीनों के भीतर बायर्स को रिफंड देने को कहा है। 12 फीसदी की दर से ब्‍याज भी देना होगा। इसके अलावा पीठ ने बिल्डर को रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन को दो करोड़ रुपये की लागत का भुगतान करने का भी निर्देश दिया।

पीठ ने कहा कि एमराल्‍ड कोर्ट टावर के लिए तमाम फायर सेफ्टी नॉर्म्स और यूपी अपार्टमेंट एक्ट का उल्‍लंघन हुआ था। कंस्ट्रक्शन के लिए सुपरटेक के साथ नोएडा अथॉरिटी ने अवैध साठगांठ की थी और टावर बनाया गया। पीठ ने ट्विन टावर को तीन महीने में ध्वस्त करने का आदेश दिया है।

सुनवाई के दौरान नोएडा अथॉरिटी ने कहा था कि प्रोजेक्ट को नियम के तहत मंजूरी दी गई थी। साथ ही दलील दी थी कि प्रोजेक्ट में किसी भी ग्रीन एरिया और ओपन स्पेस समेत किसी भी नियम का उल्लंघन नहीं किया गया है। वहीं फ्लैट बायर्स की ओर से दलील दी गई है कि बिल्डर ग्रीन एरिया को नहीं बदल सकता है।

पीठ ने कहा कि शहरी क्षेत्रों ,विशेष रूप से महानगरीय शहरों में, अनधिकृत निर्माणों में भारी वृद्धि हुई है। हालाँकि आवास स्टॉक की उपलब्धता, महानगरीय शहरों में, लोगों की निरंतर आमद को समायोजित करने के लिए विशेष रूप से बड़ी संख्या में आवासीय भवनों की उपलब्धता  की आवश्यकता है, इसे दो महत्वपूर्ण विचारों के साथ संतुलित किया जाना चाहिए – पर्यावरण की सुरक्षा और इनमें रहने वालों की सुरक्षा ।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2014 के आदेश में नोएडा स्थित टि्वन टावर को तोड़ने का आदेश दिया था और अथॉरिटी के अधिकारियों पर कार्रवाई का आदेश दिया था। उच्चतम न्यायालय के तत्कालीन चीफ जस्टिस आरएम लोढ़ा, न्यायमूर्ति मदन लोकुर और न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ की पीठ ने नोएडा में डेवलपर की दो इमारतों के विध्वंस पर रोक लगा दी थी। पीठ ने यथास्थिति बनाए रखने का निर्देश दिया था और सुपरटेक को इन दो टावरों में किसी भी फ्लैट को बेचने या स्थानांतरित करने से प्रतिबंधित कर दिया था।

पीठ ने कहा कि मामले का रिकॉर्ड ऐसे उदाहरणों से भरा हुआ है जो बिल्डर के साथ नोएडा प्राधिकरण की मिलीभगत को दर्शाता है, मामले में दुरभिसन्धि है। हाईकोर्ट ने इस मिलीभगत के पहलू को सही ढंग से देखा है। पीठ ने फैसले में कहा कि अवैध निर्माण से सख्ती से निपटा जाना चाहिए।” निर्णय में शहरी आवास की बढ़ती जरूरतों के बीच पर्यावरण को संरक्षित करने की आवश्यकता के संबंध में भी टिप्पणियां हैं।

इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस वीके शुक्ला और जस्टिस सुनीत कुमार की खंडपीठ ने 11 अप्रैल, 2014 को नोएडा प्राधिकरण को प्रमाणित प्रति दाखिल करने की तिथि से चार महीने की अवधि के भीतर प्लॉट चार, सेक्टर 93ए नोएडा में स्थित टावर्स 16 और 17 (एपेक्स और सियान) को ध्वस्त करने का निर्देश दिया था। हाईकोर्ट ने इसके साथ ही रियल एस्टेट फर्म सुपरटेक को मलबे को गिराने और हटाने का खर्च वहन करने का भी निर्देश दिया था। इसमें विफल रहने पर इसे नोएडा प्राधिकरण द्वारा भू-राजस्व के बकाया के रूप में वसूल किया जाएगा।

हाईकोर्ट ने यह भी कहा था कि सुपरटेक के अधिकारियों और नोएडा प्राधिकरण के अधिकारियों ने उत्तर प्रदेश औद्योगिक क्षेत्र विकास अधिनियम, 1976 और उत्तर प्रदेश अपार्टमेंट (निर्माण, स्वामित्व और रखरखाव का संवर्धन) अधिनियम, 2010 के तहत मुकदमा चलाने के लिए खुद को उजागर किया था। हाईकोर्ट ने यह भी कहा था कि यूपी शहरी विकास अधिनियम, 1973 की धारा 49 के तहत अभियोजन की मंजूरी जरूरी है, जैसा कि यूपी की धारा 12 द्वारा निगमित किया गया है। औद्योगिक क्षेत्र विकास अधिनियम, 1976 को सक्षम प्राधिकारी द्वारा आदेश की प्रमाणित प्रति दाखिल करने की तिथि से तीन माह की अवधि के भीतर अनुमोदित किया जाएगा।

खंडपीठ ने सुपरटेक को इस आदेश की प्रमाणित प्रति दाखिल करने की तारीख से चार महीने के भीतर सालाना चक्रवृद्धि ब्याज के साथ एपेक्स और सियेने (टी 16 और 17) में अपार्टमेंट बुक करने वाले निजी पक्षों से प्राप्त प्रतिफल की प्रतिपूर्ति करने के निर्देश भी दिए गए थे।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

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