फरीदाबाद। खोरी गांव में पुलिस ने आज बुधवार को आंदोलनकारियों पर लाठीचार्ज कर महापंचायत के लिए आई भीड़ को तो तितर-बितर कर दिया, लेकिन पुलिस किसान नेता गुरनाम सिंह चढ़ूनी को खोरी पहुंचने से नहीं रोक सकी। गुरनाम सिंह चढ़ूनी ने कहा कि जब तक गिरफ्तार कार्यकर्ताओं को रिहा नहीं किया जाता, यहां के लोगों का बिजली-पानी बहाल नहीं किया जाता, तब तक वो यहां से नहीं जाने वाले। पुलिस ने सामाजिक कार्यकर्ता राजवीर कौर, रविन्दर सिंह, संजय मौर्य सहित कई युवकों को गिरफ्तार कर लिया है। यह रिपोर्ट लिखे जाने तक किसान नेता खोरी गांव के लोगों के साथ सूरजकुंड रोड से खोरी जाने वाले रास्ते पर बैठे हुए हैं। वन विभाग की जमीन पर बसे खोरी गांव का अतिक्रमण हटाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दे रखा है। खोरी के लोगों का कहना है कि उजाड़ने से पहले उनका पुनर्वास किया जाए।
पल-पल बदलती रही रणनीति
खोरी की मजदूर आवास संघर्ष समिति ने मंगलवार देर शाम को महापंचायत का पोस्टर जारी कर सरकार की नींद हराम कर दी। रात में ही प्रशासन को ऊपर से आदेश मिला कि किसी भी कीमत पर महापंचायत नहीं होनी चाहिए। पुलिस और मैजिस्ट्रेट ने अल सुबह ही खोरी के आंबेडकर पार्क पर कब्जा कर लिया। महापंचायत का समय पूर्वाह्न 11:30 रखा गया था लेकिन तब तक खोरी का कोई भी बाशिंदा आंबेडकर पार्क नहीं पहुंचा। डेढ़ घंटे बाद लोग बिजली-पानी की मांग को लेकर घरों से निकलने लगे और आंबेडकर पार्क की तरफ बढ़े। लोगों के जत्थे शांतिपूर्ण थे। लोग सरकार और प्रशासन विरोधी नारे लगा रहे थे। तभी खोरी में बनी मस्जिद के पास से कुछ असामाजिक तत्व ने पुलिस पर पथराव किया। पुलिस समझ गई कि कुछ लोग यहां बड़े पैमाने पर गड़बड़ी कराना चाहते हैं। उसने वहां जमा भीड़ पर लाठी चार्ज कर भगा दिया। सूत्रों का कहना है कि पथराव करने वाले लोग सत्तारूढ़ सरकार के एजेंट थे, जो यहां साम्प्रदायिक तनाव पैदा करना चाहते हैं। लेकिन पुलिस उनके ट्रैप में नहीं फंसी।
इसके बाद किसान नेता गुरनाम सिंह चढ़ूनी के आने की सूचना मिली तो पुलिसकर्मी और प्रशासनिक अफसर सूरजकुंड रोड की तरफ भागे। अंदर की भीड़ ने सूरजकुंड रोड की तरफ बढ़ना चाहा तो उसे रोक दिया गया, इसके बावजूद भी काफी लोग सूरजकुंड रोड पर जा पहुंचे और साईं मंदिर के पास सड़क के किनारे बैठ गए।
तब तक गुरनाम सिंह चढ़ूनी अपने लावलश्कर के साथ वहां प्रकट हो गए और प्रदर्शनकारियों के साथ ही धरने पर बैठ गए। चढ़ूनी ने पुलिस अधिकारियों से कहा कि उन्हें खोरी गांव के अंदर जाने दिया जाए लेकिन पुलिस ने उन्हें मना कर दिया। पुलिस ने उन्हें बताया कि वहां धारा 144 लगी हुई है। इसलिए अंदर लोगों की भीड़ जमा नहीं होने दी जाए। हालांकि जिस जगह चढ़ूनी औऱ बाकी प्रदर्शनकारी धरने पर बैठे, वह जगह भी धारा 144 का इलाका है, लेकिन प्रशासन ने टकराव न मोल लेते हुए, वहां उन्हें गतिविधि जारी रखने दी।
प्रदर्शनकारी गिरफ्तार
पुलिस ने मंगलवार देर रात से ही खोरी में गिरफ्तारियां शुरू कर दी थीं। खोरी गांव के लोगों के समर्थन में पहुंचे भगत सिंह छात्र मंच के अध्यक्ष रविन्दर सिंह और राजवीर कौर समेत कई लोगों को पुलिस ने रात को ही गिरफ्तार कर लिया था। राजवीर कौर एक्टिविस्ट नौदीप कौर की सगी बहन हैं। इसी तरह इंकलाबी मजदूर केंद्र के संजय मौर्य को आज सुबह पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया।
संयुक्त किसान मोर्चा के नेता चढ़ूनी और सुरेश कौथ ने प्रदर्शनकारियों की तरफ से पुलिस और प्रशासनिक अफसरों से कहा कि जिन लोगों को भी खोरी से गिरफ्तार किया गया है, उन्हें छोड़ा जाए। हरियाणा खोरी गांव की स्थानीय कमेटी को बातचीत के लिए बुलाए, बिजली-पानी जैसी जनसुविधाएं जो बंद हैं, उन्हें फिर से शुरू कर दिया जाए। चढ़ूनी ने कहा कि अगर ये मांगें पूरी न हुईं तो सूरजकुंड रोड के किनारे खोरी के लोगों का धरना जारी रहेगा और वे भी यहीं बैठेंगे। चढ़ूनी ने जनचौक से बात करते हुए कहा कि खोरी के लोगों ने कोई अपराध नहीं किया है। अगर इस जमीन की जरूरत सरकार को है, तो वह ले ले लेकिन इसके बदले इन लोगों को कहीं तो बसाए। आवास इनका जन्मसिद्ध अधिकार है। गुरनाम सिंह चढ़ूनी ने कहा कि वे मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर से अपील करते हैं कि खोरी गांव के लोगों की कमेटी से बातचीत कर समस्या का हल निकाले।
चढ़ूनी ने बनाई कमेटी
इस बीच किसान नेता चढ़ूनी ने खोरी गांव के लोगों की एक कमेटी बनाई है जो सरकार या प्रशासन के बुलाने पर बातचीत के लिए जाएगी। इसमें उन्होंने हर वर्ग के लोगों को शामिल किया है। चढ़ूनी ने धरनास्थल पर बैठे लोगों से पूछा कि क्या वे किसानों के साथ हैं। अगर मजदूर तबका किसानों के साथ है, तो किसान भी उनके साथ हैं। मजदूरों के शामिल होने से हमारा संघर्ष और मजबूत होगा। उन्होंने आंदोलनकारियों से कहा कि वे लोग अगर एकजुट रहे तो इस संघर्ष में जीत निश्चित है।
पलट गई राजनीति
किसान नेताओं और बड़े पैमाने पर सामाजिक कार्यकर्ताओं के पहुंचने से खोरी को लेकर राजनीति कर रही आम आदमी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और भारतीय जनता पार्टी के नेता गायब हो गए हैं। खोरी के आंदोलन पर अब पूरी तरह से किसान नेता चढ़ूनी का कब्जा हो गया है। दरअसल, यहां की एक लाख आबादी पर हर पार्टी की नजर है। हर पार्टी खोरी के लोगों से सहानुभूति दिखा रही है लेकिन आंदोलन कोई खड़ा नहीं कर रहा है। खोरी के लोग यह बस अच्छी तरह समझ रहे थे इसलिए कोई भी उन पार्टियों के पास आंदोलन के लिए नहीं गया। फिर खोरी के लोगों ने कुंडली बॉर्डर पर जाकर गुरनाम सिंह चढ़ूनी को हालात से अवगत कराया। उन्होंने वहीं से बयान जारी कर रहा है कि किसान खोरी के साथ हैं। वे खोरी को नहीं उजड़ने देंगे। जरूरत पड़ी तो सारे किसान खोरी उठकर चले आएंगे।
चढ़ूनी ने उसी बयान में कहा था कि वे 30 जून को खोरी जरूर पहुंचेंगे। लेकिन तब हरियाणा सरकार ने इस धमकी को हल्के ढंग से लिया। अब किसान नेताओं के इस मामले में कूद पड़ने के बाद हरियाणा सरकार बदली-बदली नजर आ रही है। मुख्यमंत्री ने राज्य के आला अफसरों से सलाह मांगी है कि खोरी के लोगों को कहां बसाया जा सकता है। खट्टर चाहते थे कि भाजपा को इस बस्ती को बचाने का श्रेय मिले लेकिन स्थानीय भाजपा नेताओं को लेकर खोरी में इतना गुस्सा है कि वे वहां घुस नहीं सकते। अधिकांश भाजपा और कांग्रेस नेता वैसे भी गुर्जर समुदाय से हैं और खोरी के लोगों को जमीन बेचने वाले भी इसी समुदाय से हैं। खोरी के लोग इन बातों को जानते हैं, इसलिए वे किसी भाजपाई या कांग्रेसी नेता को मुंह लगाने को तैयार नहीं हैं।
निकलती जा रही है डेडलाइन
फरीदाबाद प्रशासन के हावभाव से लग रहा है कि उन्हें खोरी को उजाड़ने की अभी हरी झंडी नहीं मिली है। 7 जून को सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया था। छह हफ्ते की मोहलत प्रशासन को दी गई थी। इसमें से तीन हफ्ते निकल चुके हैं और अतिक्रमण हटाया नहीं जा सका है। अगर अगले हफ्ते या बाकी बचे तीन हफ्तों में खोरी मसले का हल नहीं निकला तो फरीदाबाद के प्रशासनिक और पुलिस अधिकारियों को सुप्रीम कोर्ट की अवमानना का सामना करना पड़ेगा। सरकार की परेशानी यह है कि अगर दस हजार मकान टूटे और एक लाख लोग बेघर हुए तो भाजपा की सामाजिक छवि खराब हो जाएगी। इसका असर यूपी चुनाव पर पड़ सकता है। खोरी में रहने वाले अधिकांश लोग यूपी और बिहार से हैं। जिसमें हर समुदाय के लोग शामिल हैं। अधिकारियों का कहना है कि यह मामला राजनीतिक इच्छा शक्ति का है। हम लोग तो बस माध्यम हैं। खट्टर सरकार की मर्जी होगी, तभी ये बस्ती बचेगी या उजड़ेगी। हम अपने वक्त पर अदालत के हुक्म की तामील कर देंगे। तब सरकार के आदेश का इंतजार नहीं होगा।
(यूसुफ किरमानी वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं)