वन अधिकार कानून भर से क्या होगा!

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बस्तर के कांकेर जिला अन्तर्गत लॉ की पढ़ाई कर रहे ग्राम तेलगरा निवासी 22 वर्षीय आदिवासी युवक दीपक जुर्री गांव-गांव जीपीएस मशीन ले कर घूम रहे हैं। गांवों में ग्रामीणों के साथ सभाएं कर उन्हें वन अधिकार कानून के बारे में जानकारी देते हैं। दीपक का मानना है कि संसद से पास किया गया अनुसूचित जन जाति एवं अन्य परंपरागत वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम 2006 संशोधित नियम 2012 के संबंध में कार्य नहीं किया जा रहा है। दीपक बताते हैं कि गांव वालों को उनके मालिकाना हक जो उन्हें मिलना चाहिए वो उन्हें नहीं मिल पा रहे हैं।

ये दीपक की ही कहानी नहीं है। ऐसे दर्जनों दीपक बस्तर के बीहड़ गांवों में वन अधिकार मान्यता कानून के तहत गांवों में जाकर सामुदायिक अधिकारों और प्रबंधनों के अधिकार के लिए गांवों में जागरूक कर रहे हैं। 

बता दें कि 10 सालों से अधिक संघर्ष के बाद आज वन अधिकार मान्यता कानून अन्तर्गरत ग्राम सभाओं को सामुदायिक प्रबंधन का अधिकार मिल गया है। दीपक खुशी जाहिर करते हुए कहते हैं कि यह एक सक्षम कानून है जो अनुसूचित जनजाति और अन्य परंपरागत निवासियों को उनका मालिकाना हक देता है। उनके साथ ऐतिहासिक अन्याय हुआ है। दीपक आगे कहते हैं कि इस काम को आगे बढ़ाया जाए ताकि हर गांव के लोग अपने गांव में अपना अधिकार, सुख-शान्ति और जंगलों की देखरेख के साथ प्रबन्धन भी कर सकें, जिससे उनकी आजीविका चलती है उससे बरकरार रख सकें।

दीपक बस्तर में कार्यरत कोया भूमकाल क्रांति सेना नामक संगठन से जुड़े हैं। यह संगठन आदिवासियों के सांस्कृतिक संवैधानिक संवर्धन के लिए काम करता है। इसमें विशाल ग्रामीण युवक-युवतियों की टोली है जो निःस्वार्थ भाव से सामाजिक जन-जागरूकता कार्य निरंतर करते रहते हैं।

गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ प्रदेश में पहली बार वन अधिकारों की मान्यता अधिनियम 2006 के अन्तर्गत सामुदायिक वन संसाधन अधिकार (CFR) धमतरी जिला अन्तर्गरत नगरीय विकास खंड के ग्राम जबर्रा में ग्राम सभा को सामुदायिक वन संसाधन का अधिकार दिया गया है। 

अब जबर्रा गांव की ग्राम सभा CFR मिलने के बाद प्रबंधन की ओर अग्रसर है। 10 बिंदु में ग्राम सभा ने प्रबंधन का एजेंडा तैयार किया है। प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने देश के पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी की 75वीं जयंती के अवसर पर धमतरी के वनांचल दुगली में आयोजित ग्राम सुराज और वनाधिकार मड़ई में जबर्रा गांव के ग्राम सभा को वनाधिकार पत्र प्रदान किया। जबर्रा में 5352 हेक्टेयर क्षेत्र जंगल में आदिवासियों को जंगल में संसाधन का अधिकार के तहत सामुदायिक वन संसाधन अधिकार दिया गया। इसके साथ ही ग्राम सभा को अपनी पारंपरिक सीमा क्षेत्र के अंदर स्थित जंगल के सभी संसाधनों पर मालिकाना हक मिलेगा और जंगल, जंगल के जानवरों के साथ-साथ जैव विविधता की सुरक्षा संरक्षण, प्रबंधन और उनको पुर्नजीवित करने के लिए अधिकार मिलेगा।

धमतरी जिले के बाद प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कांकेर जिला में भी वन अधिकारों की मान्यता अधिनियम 2006 के अन्तर्गत सामुदायिक वन संसाधन अधिकार (CFR) छत्तीसगढ़ में पहली बार सबसे अधिक सामुदायिक वन संसाधन का अधिकार पत्र कांकेर जिले के 20 गांव के ग्राम सभाओं को प्रदान किया। इसके साथ ही कांकेर, छत्तीसगढ़ की वन भूमि पर सबसे ज्यादा 45 हज़ार एकड़ से ज्यादा वन भूमि पर सामुदायिक वन संसाधन सीएफआर का हक देने वाला जिला बन गया। कांकेर जिले के 20 ग्रामों किरगोली, खैरखेड़ा, कुरसेल, मड़पा, भैंसागांव, बागझर, बड़े जैतपुरी, पोटेबेड़ा, गोड़बिनापाल, चिंगनार, माहुरपाट, कुम्हारी, तहसील डांगरा, आतुरबेड़ा, फुलपाड़, तारलकट्टा, हिन्दुबिनापाल, टोटीनडांगरा, गिरगोली और फुलपाड़ को 18 हजार 464 हेक्टेयर का सामुदायिक वन संसाधन अधिकार पत्र सौंपा। विदित हो कि जब देश में 10 लाख से अधिक आदिवासियों और परंपरागत निवासियों को जमीन से बेदखली का मामला सामने आया उस वक्त छत्तीसगढ़ में सामुदायिक वन अधिकार का मालिकाना हक दिया गया। 

अबूझमाड़ के लोगों को हेबिटेट राइट

अनुसूचित जनजाति और अन्य परंपरागत वनवासी अधिनियम 2006 (वन अधिकारों की मान्यता) या एफआरए की धारा 3 (1) (ई) का उपयोग करते हुए सरकार लोगों को आवास अधिकार मुहैया कराने का इरादा रखती है। ऐसे अधिकार विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूहों को ही दिए जा सकते हैं। छत्तीसगढ़ में पांच जनजातियां पहाड़ी कोरवा, अबूझमाडिया, बैगा, कमार और बिरहोर इस समूह में शामिल हैं। निवास अधिकार न केवल भूमि और आजीविका की रक्षा करते हैं, बल्कि संस्कृति और जीवन शैली को भी संरक्षति रखते हैं। अब तक मध्य प्रदेश की बैगा एकमात्र जनजाति है जिसने 2,300 एकड़ क्षेत्र में अपना निवास अधिकार प्राप्त किया है।

अबूझमाड़ में लागू हो जाने पर यह छत्तीसगढ़ का पहला जिला होगा। सागौन और साल के पेड़ों से ढंके 3,905 वर्ग किमी पहाड़ी इलाके में अबूझमाड़िया जनजाति के लोग रहते हैं। यहां आवाजाही का एकमात्र जरिया पगडंडी या पहाड़ की चढ़ाई है। अबूझमाड़ को माओवादियों की मांद माना जाता है। मैदानी इलाकों के उलट यहां झोंपड़ी वाले गांवों की बस्तियां पास-पास न होकर फैली हुई हैं।

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