कुर्सी सलामती के बाद अब सामंजस्य की कोशिश

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उत्तर प्रदेश में पिछले एक पखवाड़े तक चले राजनीतिक उठापटक के बाद एक बात तो स्पष्ट है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और पार्टी आलाकमान ने मान लिया है कि जब राज्‍य में विधानसभा चुनाव के लिए एक साल से कम का समय शेष है, पार्टी के स्‍टार प्रचारक और लोकप्रिय चेहरों में से एक योगी आदित्‍यनाथ को हटाना किसी भी तरह से उचित नहीं होगा। हटाना तो दूर इस बारे में विचार भी नहीं किया जा सकता। यह वह पहलू है जो भाजपा राजनीतिक तूफान के बाद शांति के दौर में दिखाना चाहती है और इस नाटक से हुए नुकसान के बाद डैमेज कंट्रोल में लगी है।

इस समय सीएम योगी आदित्यनाथ दिल्ली में हैं और डेढ़ घंटे की उनकी मुलाक़ात गृहमंत्री अमित शाह से हो चुकी है। शुक्रवार को योगी आदित्यनाथ की मुलाक़ात प्रधानमंत्री मोदी और पार्टी अध्यक्ष जे पी नड्डा से होने वाली है। इसे लेकर भी अटकलें लगाई जा रही हैं कि योगी को झुकना पड़ रहा है, योगी आलाकमान की बात मानेंगे तभी सीएम रहेंगे? आदि आदि। लेकिन इस विवाद में योगी आदित्यनाथ राम चरित मानस के शब्दों में कोई कुम्हड़बतिया नहीं हैं जो तर्जनी देख के मुरझा जाएं।

भाजपा में अटल बिहारी वाजपेयी से यूपी के तत्कालीन कद्दावर नेता कल्याण सिंह टकरा गये थे और यूपी में व्यापक समर्थन न मिलने के कारण उनका पराभव हो गया था और उनके स्थान पर राम प्रकाश गुप्ता यूपी के सीएम बना दिए गये थे। प्रदेश में राजनाथ सिंह, कलराज मिश्र सरीखे कद्दावर नेता कल्याण सिंह के खिलाफ थे और आलाकमान के साथ थे। इस समय राजनाथ सिंह, कलराज मिश्र सरीखा कोई कद्दावर नेता भाजपा में नहीं है जो अपने दम पर योगी आदित्यनाथ से टक्कर ले सके। दरअसल इस समय जो नेता भाजपा में हैं वे राम प्रकाश गुप्ता सरीखे कमजोर और लचर हैं।

कल्याण सिंह भले ही पिछड़े वर्ग से आते हों यूपी में कद्दावर पिछड़ी जातियां जाट, यादव, कुर्मी, कोयरी (मौर्य, कुशवाहा) का समर्थन उन्हें नहीं प्राप्त था। इन जातियों के तत्कालीन क्षत्रपों के अपने निजी स्वार्थ थे मंडल लागू करने वाले वीपी सिंह को जब पिछड़े वर्गों ने डम्प कर दिया था तब कल्याण सिंह की क्या औकात। कल्याण सिंह मात्र लोध समुदाय के नेता बनकर रह गये थे।

इसके विपरीत योगी आदित्यनाथ भले ही पहाड़ के ठाकुर हों पर उनके मुख्यमंत्री बनने पर बलिया से नोएडा तक के पावरफुल क्षत्रिय समाज को लगा की प्रदेश में राजनाथ सिंह, बीर बहादुर सिंह के बाद किसी ठाकुर को सूबे की कमान मिली है और वे भाजपा के पक्ष में पूरी तरह लामबंद हो गये जबकि इसके पहले क्षत्रिय समाज का बहुसंख्य मुलायम सिंह यादव के समाजवादी पार्टी के साथ था। योगी फैक्टर ने बिहार में भी राजपूतों को भाजपा के पक्ष में लामबंद किया और पिछले चुनाव में जगदानन्द सिंह के राजद अध्यक्ष होने के बावजूद राजपूत थोक के भाव में भाजपा के साथ रहे।

इसके अलावा योगी आदित्यनाथ विरासत की राजनीति के लिए जाने जाते हैं। योगी से पहले गोरखपुर में महंत दिग्विजिय नाथ हिन्दू महासभा से चुनाव लड़ते थे, उनके बाद महंत अवैद्यनाथ ने पहले हिन्दू महासभा फिर भाजपा से चुनाव लड़ा। अब उस मठ के महंथ हैं योगी आदित्यनाथ जिनका अपना संगठन हिदू युवा वाहिनी का तार पूरे उत्तर प्रदेश में फैला हुआ है। संघ योगी आदित्यनाथ की उपयोगिता और संगठन क्षमता जानता है। संघ गोरखपुर में हातों से राजनीति करने वाले और अपने-अपने गिरोह चलानेवालों से योगी ने कैसे टकराव लिया है यह भी संघ जनता है। संघ को भलीभांति मालूम है कि यदि योगी से ज्यादा छेड़छाड़ की गयी तो वे उत्तरप्रदेश में महाराष्ट्र के शिवसेना जैसा व्यापक संगठन हिन्दू वाहिनी या हिन्दू सेना खड़ा करने की क्षमता रखते हैं। इसलिए संघ योगी से कोई छेड़छाड़ नहीं करना चाहता।

उत्तर प्रदेश की राजनीति में अक्सर राजनाथ सिंह का नाम मुख्यमंत्री पद के लिए भाजपा में उछाल दिया जाता है जबकि राजनाथ सिंह भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुके हैं और उनकी बेदाग छवि रही है। राजनाथ सिंह पीएम पद के सबसे सशक्त दावेदार हैं। हालांकि नितिन गडकरी भी भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुके हैं और पीएम पद के दूसरे सशक्त दावेदार हैं। दोनों को संघ का समर्थन प्राप्त है वर्ना केंद्र सरकार में ये रक्षा मंत्री और सड़क परिवहन मंत्री नहीं रहते। लेकिन राजनाथ का नाम गडकरी पर भारी है क्योंकि गडकरी पर महाराष्ट्र में पूर्ति घोटाले का दाग है।      

प्लांटेड खबरें छपवाई जा रही हैं जिनमें कहा जा रहा है कि योगी आदित्‍यनाथ की पीएम नरेंद्र मोदी और बीजेपी के शीर्ष नेताओं के साथ दिल्‍ली में बैठकों की कड़ी को यूपी के सीएम के फिर से नियंत्रण करने के प्रयासों का हिस्‍सा है क्‍योंकि वे पार्टी में गहरे असंतोष का सामना कर रहे हैं। कहा जा रहा है कि ऐसे समय जब यूपी में अगले वर्ष विधानसभा चुनाव होने हैं, केंद्रीय नेतृत्‍व भी इसे लेकर चिंतित है। विभिन्‍न स्रोतों, जिसमें सांसद, विधायक और राज्‍य के मंत्री भी शामिल हैं, से मिले फीडबैक के बाद बीजेपी के शीर्ष नेता यूपी में नेतृत्‍व को लेकर खासे चिंतित हैं। बीजेपी के वैचारिक मार्गदर्शक माने जाने वाले राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ से संबंध राज्‍य के नेताओं और संघ पदाधिकारी दत्‍तात्रेय होसबोले ने भी इसी तरह की रिपोर्ट दी है। जबकि हकीकत में राज्य से बहुत अधिक कुप्रबंधन केंद्र सरकार का है जिससे यूपी सहित देश के सभी राज्य गम्भीरता से प्रभावित हो गये हैं। किसी सरकार की उपलब्धि यानि जीडीपी यदि माइनस सात पर होगी तो देश और प्रदेश का विकास सहज समझा जा सकता है। कोरोना में केंद्र की लापरवाही का खामियाजा यूपी सहित अन्य राज्य सरकारें भुगत रही हैं। 

दरअसल केंद्रीय नेतृत्‍व, पूर्व नौकरशाह एके शर्मा को कैबिनेट में स्‍थान बनाने के लिए दबाव बना रहा है, क्योंकि शर्मा भूमिहार हैं और पीएम के चुनाव क्षेत्र वाराणसी में भूमिहार मतदाताओं की संख्या खासी है। इसी तरह रिटायर्ड आईएएस अनूप चन्द्र पांडे को चुनाव आयुक्त और जितिन प्रसाद को कांग्रेस से भाजपा में शामिल करके ब्राह्मण कार्ड खेला गया है ताकि वराणसी क्षेत्र के ब्राह्मण मतदाताओं को अपने पक्ष में गोलबंद रखा जा सके। देर सबेर अपना दल की अनुप्रिया पटेल को केंद्र या प्रदेश में समायोजित किया जा सकता है क्योंकि वाराणसी संसदीय क्षेत्र में कुर्मी मतदाताओं की भी अच्छी संख्या है।

बंगाल में तीन चौथाई सीटें जीतने के बाद ममता की नंदीग्राम से पराजय को लेकर शीर्ष नेतृत्व को वाराणसी संसदीय में अपने समर्थक वर्गों को एकजुट करने की चिंता बढ़ गयी है क्योंकि ममता ने ललकार दिया है कि वे वाराणसी में आकर चुनाव प्रचार करेंगी। अगर बंगाली अस्मिता के सवाल पर वाराणसी में रहने वाले बंगाली समाज ने भाजपा से किनारा किया तो वाराणसी का चुनाव फंस सकता है।     

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

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