राजस्थान में सीटों को लेकर कांग्रेस आलाकमान में असमंजस

नई दिल्ली। चुनावी राज्य राजस्थान में सीटों को लेकर कांग्रेस नेतृत्व असमंजस में है। राज्य में 25 नवंबर को चुनाव होने हैं। लेकिन अभी उम्मीदवारों की पहली सूची भी जारी नहीं हुई है। मध्य प्रदेश, मिजोरम, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना जैसे अन्य चुनाव वाले राज्यों के विपरीत, पार्टी ने अभी तक राजस्थान के लिए अपने उम्मीदवारों की पहली सूची जारी नहीं की है। जिसके कारण अशोक गहलोत सरकार के कई मंत्रियों का भाग्य अधर में लटका हुआ है क्योंकि कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव के लिए अपने उम्मीदवारों की सूची तैयार करने के लिए बुधवार को लंबी बैठक की।

सूत्रों का कहना है कि पार्टी हाईकमान राजस्थान में कुछ मंत्रियों और विधायकों को टिकट नहीं देना चाह रही है। पहली सूची जारी न करने का यही कारण है। कुछ विधायकों और मंत्रियों के टिकट काटने को लेकर सीएम गहलोत और शीर्ष नेतृत्व के बीच गंभीर मतभेद बना हुआ है। सूत्रों के मुताबिक गहलोत अपने सभी मंत्रियों को फिर से टिकट देने के इच्छुक हैं। वह यह भी चाहते हैं कि पार्टी 2019 में कांग्रेस में शामिल हुए सभी छह पूर्व बहुजन समाज पार्टी (बसपा) विधायकों के साथ-साथ निर्दलीय विधायकों को भी मैदान में उतारे, जिनमें से ज्यादातर पूर्व कांग्रेसी थे, जिन्होंने संकट के दौरान उनकी सरकार का समर्थन किया था।

कांग्रेस के अंदरूनी सूत्रों के मुताबिक नेतृत्व उन लोगों को टिकट नहीं देना चाहता है, जिनके जीतने की संभावना कम या बहुत कम है। कहा जाता है कि इसका आकलन चुनावी रणनीतिकार सुनील कनुगोलू की टीम द्वारा किए गए आंतरिक सर्वेक्षणों पर आधारित है। लेकिन बताया जाता है कि कनुगोलू की टीम द्वारा पहचाने गए संभावित उम्मीदवारों की सूची से गहलोत पूरी तरह सहमत नहीं हैं। दरअसल, गहलोत ने एक बैठक में कथित तौर पर कहा था कि वह राजस्थान को रणनीतिकारों से बेहतर जानते हैं।

राजनीतिक चर्चा के मुताबिक जिन मंत्रियों की किस्मत अधर में लटकी है उनमें शांति कुमार धारीवाल, महेश जोशी, गोविंद राम मेघवाल और शकुंतला रावत शामिल हैं। धारीवाल और जोशी उन तीन कांग्रेस नेताओं में शामिल थे, जिन्हें पिछले साल हाईकमान ने तब कारण बताओ नोटिस दिया था, जब गहलोत के प्रति वफादार विधायकों के एक समूह ने कांग्रेस विधायक दल (सीएलपी) की बैठक का बहिष्कार कर दिया था, जिससे उस समय संकट पैदा हो गया था जब गहलोत को मुख्यमंत्री पद से हटाकर पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए जाने की चर्चा थी। लेकिन तब गहलोत ने राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने से इनकार कर दिया था, और राज्य में कांग्रेस विधायकों ने बगावत कर दिया था। तब कहा गया था कि विधायक सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनाने से असहमत हैं, क्योंकि उन्होंने बगावत करके पार्टी को संकट में डाल दिया था।

कांग्रेस की केंद्रीय चुनाव समिति (सीईसी) ने बुधवार को लगभग 100 सीटों के लिए उम्मीदवारों पर चर्चा करने के लिए बैठक की। लेकिन सूत्रों ने कहा कि पैनल ने उनमें से केवल आधी सीटों को ही मंजूरी दी है। बताया जा रहा है कि आलाकमान, खासकर राहुल गांधी बाकी सीटों के लिए स्क्रीनिंग कमेटी द्वारा सिंगल नाम सामने आने से नाराज हैं। सूत्रों ने कहा कि केंद्रीय नेताओं ने स्क्रीनिंग कमेटी से प्रत्येक सीट के लिए कम से कम तीन संभावित उम्मीदवारों के नाम लेकर वापस आने को कहा। चर्चा है कि स्क्रीनिंग कमेटी, जो संभावितों को शॉर्टलिस्ट करती है, गहलोत और उनके खेमे के कड़े विरोध के कारण तीन संभावित नामों की जगह सिर्फ एक नाम को ही आगे बढ़ाया।

कुछ केंद्रीय नेताओं ने आश्चर्य जताया कि क्या सीईसी का काम केवल उसके सामने रखे गए नामों पर “मोहर” लगाना है और सर्वेक्षणों सहित कई चैनलों से पार्टी को मिले फीडबैक को तवज्जो नहीं देना है। सूत्रों ने कहा कि गहलोत विधायकों और मंत्रियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण उन्हें टिकट देने से इनकार करने के खिलाफ थे।

मंगलवार को दिल्ली रवाना होने से पहले, गहलोत ने तर्क दिया कि अगर विधायक भ्रष्ट होते तो वह 2020 में उनकी सरकार को गिराने के लिए उनके समक्ष रखे गए पेशकश को स्वीकार कर लेते।

दरअसल, कांग्रेस राज्य में हाल में घटित दो राजनीतिक घटनाक्रम से उबर नहीं पा रही है। कांग्रेस के सामने संकट है कि वह किस गुट के साथ रहे। पहला, 2020 में सचिन पायलट का विद्रोह। दूसरा, अशोक गहलोत को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने की चर्चा के बीच गहलोत समर्थक विधायकों द्वारा समानांतर सीएलपी उम्मीदवार चयन के लिए बैठक आयोजित करना।

अब जब विधानसभा चुनाव है तो गहलोत गुट चाहता है कि सचिन पायलट का साथ देने वाले बागी विधायकों को टिकट न मिले। जबकि पायलट खेमे का तर्क है कि उस स्थिति में, वही नियम उन विधायकों पर लागू होना चाहिए, जिन्होंने समानांतर सीएलपी बैठक आयोजित करके आलाकमान के निर्देश की अवहेलना की थी। तमाम खींचतान के बीच सूत्रों ने कहा कि राजस्थान के लिए पार्टी की पहली सूची केवल उन्हीं उम्मीदवारों की हो सकती है जिनके नाम पर कोई असहमति नहीं है।

लेकिन चुनाव की तैयारियों के बीच पायलट और गहलोत खेमा एक बार फिर तलवार लेकर आमने-सामने है। जिसके कारण पार्टी का शीर्ष नेतृत्व असमंजस में है।

(जनचौक की रिपोर्ट।)

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