Sunday, April 28, 2024

बिहार की बदलती राजनीति के पीछे ‘साजिश’ और ‘विश्वासघात’!

नई दिल्ली। राजनीतिक साजिश और विश्वासघात हमेशा से ही नीतीश कुमार की राजनीति के महत्वपूर्ण हिस्से रहे हैं लेकिन कई लोगों ने हाल में उनके कृत्य में जो देखा है उसमें उनके प्रमुख सहयोगियों की साजिश और हेरफेर की झलक दिखाई दे रही है।

अंदरूनी सूत्रों ने यह खुलासा किया है कि एक ग्रुप है जो उनकी राजनीतिक सोच को प्रभावित करने के लिए उन पर योजनाबद्ध तरीके से काम कर रहा था। कुछ लोगों ने इस ग्रुप में “तीन मुख्य दोषियों” के होने बात कही है वहीं कुछ लोगों ने चौथे के होने की भी संभावना जताई है। सूत्रों का कहना है कि ये सभी लोग “बीजेपी विचारधारा वाले” लोग थे और इंडिया गठबंधन में नीतीश की भागीदारी से नाखुश थे।

बिहार महागठबंधन के प्रमुख घटक आरजेडी और कांग्रेस के नेता साजिश की अटकलों को हल्के में नहीं ले रहे हैं। यहां तक कि जेडीयू के भीतर भी एक वर्ग यह मानने लगा है कि नीतीश कुमार ने हाल के महीनों में अस्वाभाविक और अकथनीय भ्रम और असंगतता का प्रदर्शन किया है।

उन्होंने कई उदाहरण दिये जिसमें हाल ही में महिलाओं पर उनकी अमर्यादित टिप्पणी,  उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव को राबड़ी देवी और लालू प्रसाद के नौ बच्चों में से एक होने का मजाक उड़ाना और विधानसभा के अंदर पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी के खिलाफ उनका गुस्सा शामिल है।

एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि “दो मंत्री जो कभी चुनाव नहीं जीते और एमएलसी बनकर आए और मुख्यमंत्री कार्यालय में कार्यरत एक सेवानिवृत्त नौकरशाह ने साजिश रची। उन्हें एक पुराने टेलीफोन अटैंडेंट ने सक्रिय रूप से समर्थन दिया जो उनकी ओर से काम कर रहा था।

संदेह के घेरे में जो चौथा शख्स है वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का करीबी बताया जा रहा है और राष्ट्रीय राजनीति में एक ऊंचे स्थान पर है। इस व्यक्ति ने कुछ महीने पहले नीतीश कुमार के साथ एक लंबी बैठक की थी जिसने इस बदलाव की नींव रखी।

इसकी पुष्टि करते हुए महागठबंधन के एक सूत्र ने कहा कि “उन्होंने मुख्यमंत्री के साथ कुछ जेडीयू विधायकों की बैठक की व्यवस्था की। बैठक में मौजूद इन दोनों मंत्रियों ने यह सुनिश्चित किया कि विधायक मुख्यमंत्री को बताएं कि राम मंदिर उद्घाटन के कारण हुए धार्मिक ध्रुवीकरण के कारण राज्य में भाजपा को बढ़त हासिल हुई है और अगर ऐसा ही रहा तो जेडीयू का सफाया हो जाएगा। इंडिया गठबंधन में वे यह सुनिश्चित करने के लिए आरजेडी पर झूठे आरोप भी लगाएंगे कि तेजस्वी के साथ मुख्यमंत्री के रिश्ते तनावपूर्ण हो जाएं।”

उन्होंने दावा किया कि इस मंडली ने मुख्यमंत्री की बैठकों को नियंत्रित किया और यह सुनिश्चित किया कि उन्हें गठबंधन की स्थिति या ज़मीनी मूड पर निष्पक्ष प्रतिक्रिया न मिले।

उन्होंने कहा कि हाल के सप्ताहों में केवल उन लोगों को ही मुख्यमंत्री से मिलने की अनुमति दी गई जिन्होंने भाजपा समर्थक बातों का समर्थन किया था। उन्होंने बताया कि खुफिया जानकारी के नाम पर उसे इसी तरह के संदेश दिए गए थे। निर्दलीय जेडीयू और आरजेडी नेताओं को नीतीश से मिलने नहीं दिया गया।

हालांकि नीतीश ने इससे पहले अपने अवसरवादी फैसलों से आरजेडी और भाजपा को झटके दिए हैं। लेकिन इस सामय भाजपा को गले लगाने की उनकी रणनीति लोकसभा चुनाव से पहले विपक्ष की राजनीतिक गणना को हिला सकती है।

नीतीश को न केवल विपक्षी गठबंधन के वास्तुकार के रूप में देखा गया था बल्कि उन्हें संयोजक भी माना गया। यदि उन्हें पिछली इंडिया गठबंधन की बैठक में संयोजक नियुक्त किया गया होता तो संयुक्त विपक्ष को भारी नुकसान उठाना पड़ता।

बीजेपी से हाथ मिलाकर नीतीश ने इंडिया गठबंधन के नेताओं को न सिर्फ चौंका दिया है बल्कि तगड़ा झटका भी दिया है। इंडिया को नीतीश से ऐसी उम्मीद कतई नहीं रही होगी। इससे पहले नीतीश इंडिया द्वारा पारित प्रस्तावों के हस्ताक्षरकर्ता थे, जिसमें कहा गया था कि मोदी सरकार लोकतंत्र के लिए खतरा है और विपक्षी गठबंधन देश को बचाने के लिए लड़ रहा है।

नीतीश ने भी सार्वजनिक रूप से घोषणा की थी कि वह भाजपा में वापस जाने के बजाय मरना पसंद करेंगे। अचानक उनके अंदर इतना बड़ा बदलाव कैसे आया ये कोई नहीं जानता। पिछले महीने दिल्ली में जेडीयू की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में जहां नीतीश ने पार्टी की अध्यक्षता संभाली थी और मोदी सरकार के खिलाफ एक गंभीर आलोचनात्मक प्रस्ताव पारित किया गया था।

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने दिन में दो-तीन बार नीतीश से बात करने की कोशिश की लेकिन वह हर समय “व्यस्त” रहे। कांग्रेस संचार प्रमुख जयराम रमेश ने पुष्टि की कि मुख्यमंत्री आवास से वापस कॉल आई थी लेकिन खड़गे उस समय व्यस्त थे और दोनों के बीच बात नहीं हो सकी।

खड़गे ने उभरते संकट से निपटने के लिए शुक्रवार को छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को बिहार के लिए विशेष पर्यवेक्षक नियुक्त किया था।

(‘द टेलिग्राफ’ में प्रकाशित खबर पर आधारित।)

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