संक्रमितों की लगभग 92 लाख की संख्या के साथ, भारत वर्तमान में संयुक्त राज्य अमेरिका के बाद दुनिया में कोरोना वायरस के मामलों की दूसरा सबसे अधिक संख्या वाला देश है। भारत में जिस तरह से राजधानी दिल्ली समेत कई राज्यों में अब भी संक्रमण के नए-नए दौर आते जा रहे हैं, उससे ग्राफ की चिरप्रतीक्षित ढलान का वर्तमान दौर भी भ्रामक लगने लगा है। उधर, अमेरिका सहित दुनिया के कई देशों में आए नये उभार पिछले उभारों से भी ज्यादा खतरनाक दिख रहे हैं। अमेरिका में 20 नवंबर को दैनिक मामलों की संख्या दो लाख चार हजार से ज्यादा हो गई थी और 12 नवंबर के बाद से लगभग निरंतर एक लाख 50 हजार से ज्यादा बनी हुई है। दुनिया के अनेक देशों का यही हाल है, इसलिए दुनिया बड़ी बेसब्री से टीके का इंतजार कर रही है। रूस और चीन जैसे देशों ने तो पहले ही प्रयोगात्मक अधूरे और अप्रमाणित टीकों के साथ अपनी आबादी के कुछ हिस्सों का टीकाकरण शुरू भी कर दिया है।
भारत में विभिन्न चरणों में चार अंतरराष्ट्रीय टीकों के परीक्षण चल रहे हैं। साथ ही भारत में ही विकसित टीके कोवाक्सिन और जाइकोव-डी परीक्षण के दूसरे चरण में हैं, कोविशिल्ड (ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका वैक्सीन) के महत्वपूर्ण तीसरे चरण के परीक्षण की अभी शुरुआत हुई है, जबकि रूस के स्पुतनिक-वी के परीक्षण का तीसरा चरण शुरू होने वाला है। विशेषज्ञों का अनुमान है कि टीके की शुरुआती खुराकें 2021 के पूर्वार्ध तक मिल जाएंगी और वर्ष के उत्तरार्ध में बड़े पैमाने पर उत्पादन की उम्मीद की जा सकती है, लेकिन इतने बड़े पैमाने पर टीकाकरण का रास्ता आसान नहीं होगा। हम कुछ बिंदुओं पर विचार करेंगे जो इस रास्ते की बाधा बन सकते हैं।
टीकाकरण के लिए जरूरी ढांचे का अभाव:
विशेषज्ञों का मानना है कि भारत में 130 करोड़ लोगों के लिए टीकाकरण को सुनिश्चित करना एक बड़ी चुनौती होगी। विश्व स्वास्थ्य संगठन की ग्लोबल एडवाइजरी कमेटी के सदस्य गगनदीप कांग का कहना है कि भारत, जहां कई संभावित टीकों का क्लिनिकल ट्रायल चल रहे है, उसके पास बच्चों और महिलाओं के टीकाकरण से आगे का कोई ढांचा ही नहीं मौजूद है। चूंकि बुजुर्ग संक्रमण के लिहाज से सबसे नाजुक श्रेणी में हैं, इसलिए भारत को उनके टीकाकरण का ढांचा शीघ्रातिशीघ्र तैयार कर लेना चाहिए।
‘बायोकॉन’ की चेयरपर्सन और प्रबंध निदेशक किरन मजूमदार शॉ कहती हैं, “इतने बड़े पैमाने पर वयस्क टीकाकरण पहले कभी नहीं किया गया। पोलियो का टीकाकरण भी कई वर्षों में किया गया था। पोलियो वैक्सीन आशा कार्यकर्ताओं और अन्य लोगों द्वारा दी जा सकती है, लेकिन कोविड वैक्सीन एक इंट्रा-मस्कुलर इंजेक्शन होगा और आपको वैक्सीन देने के लिए नर्स, डॉक्टर, एमबीबीएस छात्रों की आवश्यकता होगी। मानव संसाधन के अलावा, हमें ठीक से स्थापित होने के लिए कोल्ड चेन के लिए बुनियादी ढांचा प्राप्त करने की आवश्यकता है। इसके अलावा, यह ऐसा टीका है जिसे शायद दो बार दिया जाता है। इससे बहुत जटिलता आती है। यह सब बहुत कुशलता से करने के लिए आपको एक डिजिटल नटवर्क की जरूरत है। आपको चेन पर निगाह रखने और पता लगाने और उसका डेटा संरक्षित रखने की प्रणाली की भी जरूरत पड़ेगी।”
‘आधार’ परियोजना के शिल्पकार रहे ‘इन्फोसिस’ के चेयरमैन नंदन नीलेकणी के अनुसार, “हमारी चुनौती यह है कि हमारे पास वयस्क टीकाकरण प्रणाली बिल्कुल नहीं है। हमें इसे बिल्कुल नए सिरे से शुरू करना होगा। यदि हमने कोविड-19 टीकाकरण का बोझ हमारे मौजूदा बुनियादी ढांचे पर डाल दिया तो न केवल यह एक बहुत बड़ा बोझ होगा, बल्कि इसका परिणाम यह होगा कि बच्चों के टीकाकरण में इसलिए रुकावट आने लगेगी कि उनका टीकाकरण करने वाले लोगों को कोविड-19 के टीकाकरण में लगा दिया गया है। मेरी सिफारिश है कि हम दो लाख लोगों के साथ एक बिल्कुल नए ढांचे का निर्माण करें जो सभी तरह के टीकाकरण करेगा। मौजूदा लोगों में से भी कुछ लोगों को शामिल किया जा सकता है, लेकिन हमें बड़े पैमाने पर टीकाकरण के लिए एक बिल्कुल नया बुनियादी ढांचा बनाने में निवेश करना होगा।”
नीलेकणी कहते हैं, “भारत में बच्चों और गर्भवती माताओं के टीकाकरण का एक शानदार रिकॉर्ड है। हमारे पास बच्चों के टीकाकरण का एक कार्यक्रम पहले से ही मौजूद है। हमने पोलियो टीकाकरण के मामले में बहुत अच्छा काम किया है, लेकिन हमारे पास वास्तव में वयस्क टीकाकरण का कोई अनुभव नहीं है, जबकि कोविड-19 टीकाकरण के मामले में काम का बड़ा हिस्सा वयस्क टीकाकरण का ही है। अमेरिका की स्थिति भारत से अलग है। अमेरिका की लगभग आधी आबादी हर साल फ्लू का टीका लगवाती है। वहां की 33 करोड़ आबादी में से लगभग साढ़े 16 करोड़ लोग हर साल फ्लू टीकाकरण कराते हैं, और इस साल वे 20 करोड़ फ्लू टीकाकरण की योजना बना रहे हैं। वहां यह काम कार्यालयों, फार्मेसियों या डॉक्टरों के माध्यम से किया जाता है, इसलिए उनके पास पहले से ही बड़े पैमाने पर वयस्क टीकाकरण के लिए बुनियादी ढांचा उपलब्ध है। इसलिए उनके लिए कोविड-19 टीकाकरण योजना को ऊपर से लागू करना इतना मुश्किल नहीं है।”
नीलेकणी के प्रस्तुत विजन के अनुसार, “टीकाकरण को एक बहुत बड़ा मिशन बनाने की जरूरत है। हमने जो आधार नामांकन प्रणाली विकसित की थी, उसमें एक दिन में 15 लाख नामांकन किया जा रहा था। इसके तहत देश के एक अरब लोगों तक आधार संख्या पहुंचाने में भारत को साढ़े पांच साल लग गए। यहां, हमें दो वर्षों में पूरी आबादी का टीकाकरण करना होगा, जिसका अर्थ है कि हमें दो वर्षों में 130 करोड़ लोगों तक पहुंचना है, और यह मानते हुए कि सबको इस टीके की दो-दो खुराकें लगेंगी, हमें दो वर्षों में कुल 260 करोड़ टीके लगाने होंगे। यानि एक साल में 130 करोड़ टीकाकरण करना होगा। इसका मतलब हुआ कि एक महीने में 10 करोड़ से अधिक टीकाकरण, अर्थात एक दिन में तीस लाख से अधिक टीके लगाने होंगे।”
“यह एक इतने बड़े पैमाने की चुनौती है, जिसका सामना हमने इतिहास में पहले कभी नहीं किया है, इसलिए ऐसा करने के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचे और उसकी डिजाइन के लिहाज से सोचना बहुत जरूरी है। हमें एक ऐसी प्रणाली डिजाइन करनी चाहिए जो देश के एक सिरे से दूसरे सिरे तक एक दिन में एक करोड़ टीकाकरण कर सकती हो। इसके लिए जरूरी है कि यह सारी प्रक्रिया एक ही एकीकृत डिजिटल ढांचे से जुड़ी हुई हो ताकि हर व्यक्ति एक जैसा अनुभव करे और एक ही तरीके से सारी जानकारी दर्ज की जाए। ऐसा ही दृष्टिकोण हमने आधार के समय में भी अपनाया था, वहीं हमें इस नए मुद्दे (टीकाकरण) में भी अपनाना होगा, हलांकि यह पहले की तुलना में बहुत अधिक जटिल है। टीकाकरण चाहे राज्य सरकारों द्वारा किया जाए, या यह निजी अस्पतालों, कॉरपोरेटों, परोपकारी लोगों या किसी अन्य द्वारा किया जाए, किंतु प्रमुख बात यह है कि जो कोई भी करे उसे एक ही तरह से किया जाना चाहिए। यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि हर एक के द्वारा तरीका एक ही अपनाया जा रहा है।”
नीलेकणि का सुझाव यह है कि हम टीकाकरण करने के लिए अधिकृत लोगों का एक ऐसा ढांचा बनाएं जो एक दिन में लगभग एक करोड़ टीकाकरण कर सके। इसके लिए हमारे पास दो लाख लोगों को प्रशिक्षित करने के लिए एक प्रशिक्षण प्रणाली हो जो प्रशिक्षुओं को टीकाकरण करने का तरीका सिखाए, लोगों को टीके के दुष्प्रभावों के बारे में समझाने का तरीका बताए और उन्हें समझाए कि लोगों को टीके के बारे में सहज कैसे बनाया जाए। केवल प्रमाणित टीकाकरण करने वाले ही टीकाकरण कर सकें। सार्वजनिक और निजी टीकाकरण केंद्रों का एक नेटवर्क हो। यह केंद्र चाहे सरकार द्वारा प्रायोजित हो, कोई अस्पताल हो, कोई कॉरपोरेट या फार्मेसी हो, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, लेकिन वे सभी एक ही ऐप तकनीक से जुड़े हों। कंप्यूटर या स्मार्टफोन पर एक ऐप होगा, और कोई भी व्यक्ति टीकाकरण के लिए एक अप्वाइंटमेंट ले सकता है।
मान लीजिए मैंने अपना नाम डाला, आधार ऑथेंटिकेशन किया, बस-मेरा नाम, टीकाकरण करने वाले का नाम, कौन सा टीका लगाया गया है, समय, तिथि, स्थान, सब कुछ दर्ज हो जाएगा। सारी सूचना उसी समय क्लाउड में पहुंच जाएगी, और उसी समय मुझे एक डिजिटल प्रमाणपत्र मिल जाएगा कि मेरा टीकाकरण हो चुका है, क्योंकि कोविड-19 वैक्सीन प्रणाली में, न केवल यह महत्वपूर्ण है कि मुझे टीका लग चुका है, बल्कि यह भी महत्वपूर्ण है कि आपको भी पता हो कि मुझे टीका लग चुका है।
डिजिटल प्रमाणपत्र को नौकरी के साक्षात्कार, हवाई अड्डे, रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड आदि पर दिखाया जा सकता है। यदि यह दो खुराक का टीका है, तो आप पहली बार एक प्रोविजनल डिजिटल प्रमाणपत्र जारी कर सकते हैं, और तीन सप्ताह के बाद, या जो भी तय अवधि हो, आप उस व्यक्ति को टीकाकरण के लिए फिर आने के लिए ईमेल या एसएमएस द्वारा एक रिमाइंडर भेज सकते हैं, और फिर टीकाकरण करने के बाद उन्हें अंतिम प्रमाणपत्र दे सकते हैं।
यदि टीकाकरण का प्रभाव सीमित अवधि तक ही कायम रह पाता है, क्योंकि हम नहीं जानते कि इन टीकों की प्रतिरक्षा कितनी लंबी है, छह महीने या दो साल, तो आपको उस व्यक्ति को फिर से बुलाने के लिए उस अवधि के अंत में फिर एक रिमाइंडर भेजने की जरूरत पड़ेगी। इसके लिए परिष्कृत तकनीक की आवश्यकता है, क्योंकि इन चीजों को एक अरब से अधिक लोगों के लिए किया जाना है।
टीकों की कमी और वितरण
वैक्सीन के तीन चरण होने की उम्मीद है। पहले चरण में संभवतः वैक्सीन की आपूर्ति में कमी रहेगी। संभवतः यह 2021 की पहली छमाही में होगा। ऐसे में सरकार कह सकती है कि हम प्राथमिकता के आधार पर कमजोरों, वृद्धों, स्वास्थ्य-कर्मियों, पुलिस-कर्मियों आदि के लिए टीका आवंटित करेंगे। दूसरे चरण में आपके पास पर्याप्त टीका हो सकता है, ऐसे में आप टीकाकरण शुरू करने में निजी क्षेत्र को लाना शुरू कर सकते हैं। तीसरे चरण में, संभवतः 2022 तक, हमारे पास टीके की अतिरिक्त मात्रा उपलब्ध हो जाएगी और हमें ऐसी परिस्थिति के लिए अपने ढांचे को अभी से डिजाइन कर लेना चाहिए।
टीके पर खर्च
नंदन नीलेकणी का मानना है कि टीके पर बहुत ज्यादा खर्च नहीं आने वाला है। यों भी, जब तक हम सामान्य स्थिति में नहीं आते हैं, तब तक अर्थव्यवस्था को लाखों करोड़ का नुकसान तो हो ही रहा है। टीकाकरण की लागत का बड़ा हिस्सा खुद टीके पर ही खर्च होगा। टीकों की शुरुआती लागत तीन से पांच डॉलर प्रति खुराक होगी। चूंकि दो खुराकें लगनी हैं, इसलिए यह खर्च प्रति व्यक्ति 10 डॉलर आएगा। इसका मतलब है कि पूरी आबादी का टीकाकरण करने के लिए सरकार, निजी क्षेत्र और परोपकारी संस्थाओं द्वारा कुल मिलाकर 13 अरब डॉलर खर्च करना है। यह उतना महंगा नहीं होगा। यह देखते हुए कि हम सामान्य स्थिति में लौटने के लिए जीवन की तलाश कर रहे हैं, इतनी लागत कोई ज्यादा नहीं है, लेकिन यह मुद्दा लागत का नहीं है। तकनीक पर भी कुछ सौ करोड़ का ही खर्च आएगा।
नंदन नीलेकणि कहते हैं कि जाहिर है, आबादी के एक बड़े हिस्से का टीकाकरण सरकार द्वारा करना होगा। अभी तक यह पता नहीं कि यह वैक्सीन मुफ्त लगाई जाएगी या ‘आयुष्मान भारत’ जैसी किसी बीमा योजना द्वारा कवर की जाएगी। आज 10 करोड़ परिवार, यानि लगभग 50 करोड़ लोग, ‘आयुष्मान भारत’ द्वारा कवर किए गए हैं, इसलिए तकनीकी रूप से वे सभी लोग सरकार से मुफ्त वैक्सीन के लिए पात्र हो सकते हैं। इसलिए कमजोर वर्ग और जो लोग पहले से ही सरकारी बीमा कार्यक्रमों के दायरे में हैं, उनके लिए सरकारी खर्चे पर ही टीका लगना चाहिए। अन्य सभी को मुफ्त टीका लगाने के लिए ‘कॉरपोरेट सामाजिक जिम्मेदारी’ आदि के तहत परोपकार के लिए धन जुटाया जा सकता है।
टीकों का कम ताप पर रखरखाव और ढुलाई
फोर्ब्स की रिपोर्ट के अनुसार, किसी भी कोरोना वायरस वैक्सीन को -70 डिग्री सेल्सियस के तापमान पर रखा जाना चाहिए। हालांकि, भारत में, अधिकांश कोल्ड चेन -30 डिग्री सेल्सियस तक के तापमान पर संचालित होती हैं। उचित संचालन सुविधाओं की कमी और अपर्याप्त भंडारण की स्थिति एक वैक्सीन के इस्तेमाल और उसकी उपयोगिता दोनों को प्रभावित कर सकती है। अन्य रणनीतिक मुद्दे भी हैं जो वितरण को प्रभावित कर सकते हैं। इसी तरह, कुछ टीके पाउडर के रूप में उपलब्ध कराए जाते हैं, जिन्हें पारंपरिक टीकों की तुलना में अलग तरीके से इस्तेमाल करने की आवश्यकता होती है। इसके लिए चिकित्सा कर्मियों को हर तरह के टीके लगाने का प्रशिक्षण देना होगा।
एंटीजेन टेस्ट का दोषपूर्ण डाटा
कुछ रिपोर्टों के अनुसार भारत में किए जा रहे लगभग 50% एंटीजेन परीक्षण झूठे हो सकते हैं। ऐसी भी खबरें हैं कि बहुत सारे क्षेत्र चिकित्सा-कर्मियों की कमी से जूझ रहे हैं, किंतु वहां का जिला प्रशासन इस समस्या पर ध्यान दिए बगैर उन पर प्रतिदिन मरीजों के टेस्ट का टारगेट पूरा करने का दबाव डाल रहा है, अतः चिकित्सा-कर्मी मजबूरन फर्जी आंकड़े प्रस्तुत कर रहे हैं। ऐसे परिदृश्य में, गलत डेटा बहुत सारी बाधाएं पैदा करेगा। इससे टीकाकरण के लिए किसी क्षेत्र की गंभीरता के आकलन में और उसकी प्राथमिकता तय करने पर भी असर पड़ सकता है।
संक्रमण की तेज दर से टीकाकरण अभियान पर जोखिम
देश में वर्तमान परीक्षणों में कोरोना संक्रमण की सकारात्मकता दर (पॉजिटिविटी रेट) 8% है। इसके अलावा, संक्रमण के प्रसार की दर अभी भी तेज है। इसके कारण मरीजों की संख्या का बढ़ते जाना तय है। संक्रमण के तेज प्रसार के रहते हुए बड़े पैमाने पर टीकाकरण का अभियान कम जोखिम भरा नहीं होगा।जाहिर है कि अभी आगे भी बड़ी चुनौतियां हमारा इंतजार कर रही हैं। हमने कोरोना महामारी के इस विशाल महासागर की अभी तक की यात्रा जर्जर स्वास्थ्य व्यवस्था की नाव के सहारे ही किया है। लहरों के थपेड़ों से जूझती हुई हमारी नाव हिचकोले खाती हुई चलती जा रही है।
हमारे देश के लोगों की विपरीत परिस्थितियों को बर्दाश्त करते जाने की क्षमता और अद्भुत जिजीविषा हमारे शासकों में देश को ‘राम भरोसे’ छोड़ देने का साहस भी देती रही है। अभी तक हमने अपर्याप्त अस्पतालों, बिस्तरों, वेंटिलेटरों, डॉक्टरों, नर्सों, फार्मेसिस्टों, लैब-टेक्नीशियनों, सफाई-कर्मियों आदि के बावजूद इस महामारी के साथ लगभग आठ महीने गुजार लिए हैं। विशेषज्ञों द्वारा दिए जा रहे सुझावों की दिशा में टीकाकरण के लिए आवश्यक उस विशाल बुनियादी ढांचे की स्थापना के संकेत अभी तक कहीं दिख नहीं रहे। कहीं ऐसा तो नहीं कि टीकाकरण भी ‘राम भरोसे’ ही छोड़ देने की योजना है!
- शैलेश
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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