Friday, April 26, 2024

देवास मल्टीमीडिया मामले में ईडी की किरकिरी, पीएमएलए अपीलीय ट्रिब्यूनल ने मामले को एडजुडिकेटिंग अथॉरिटी को वापस भेजा

निदेशालय (ईडी) की कार्रवाइयां जैसे-जैसे बढ़ती जा रही हैं वैसे-वैसे ईडी की लचर कार्यप्रणाली भी सामने आती जा रही है। जिसका नतीजा यह है कि पीएमएलए अपीलीय ट्रिब्यूनल में पहुंचने पर ईडी को फटकार सुननी पड़ रही है।  देवास मल्टीमीडिया मामले में पीएमएलए अपीलीय ट्रिब्यूनल के तत्कालीन अध्यक्ष जस्टिस मनमोहन सिंह और सदस्य जीसी मिश्रा ने एडजुडिकेटिंग अथॉरिटी द्वारा ईडी को देवास मल्टीमीडिया प्राइवेट लिमिटेड की संपत्ति जब्त करने की इजाजत देने के आदेश को खारिज कर दिया और मामले को ऐडजुडिकेटिंग अथॉरिटी को पुनर्विचार के लिए वापस भेज दिया है। ट्रिब्यूनल ने ईडी के कामचलाऊ काम करने के तौर-तरीके और दूसरी संघीय एजेंसी के तथ्यों को कॉपी-पेस्ट करने को लेकर खिंचाई की है।

दरअसल ट्रिब्यूनल के समक्ष देवास मल्टीमीडिया प्राइवेट लिमिटेड का धनशोधन रोकथाम अधिनियम, 2002 (पीएमएलए)  से संबंधित  मामला 11 सितंबर 2019 को आया था, जिसमें ट्रिब्यूनल ने पाया कि मामले में वास्तविक जांच के स्थान पर कॉपी-पेस्ट किया गया है। ट्रिब्यूनल ने सख्त लहजे में एजेंसी को किसी भी मामले की जांच के दौरान अपने स्वतंत्र दिमाग’ का प्रयोग करने के लिए कहा है ।

संपत्ति जब्त करने की कार्रवाई बेंगलुरू स्थित देवास मल्टीमीडिया प्राइवेट लिमिटेड के भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन की वाणिज्यिक इकाई एंट्रिक्स कॉरपोरेशन लिमिटेड के साथ सौदे में कथित घोटाले को लेकर ईडी ने  शुरू की थी। ट्रिब्यूनल ने अपने फैसले में कहा है कि अभिलेखों को देखने से स्पष्ट है कि प्रोविजनल अटैचमेंट ऑर्डर (पीएओ), वास्तविक शिकायत और विवादित आदेश को सीबीआई के आरोपपत्र से बस कॉपी-पेस्ट कर लिया गया है।

ट्रिब्यूनल के आदेश में कहा गया है कि दस्तावेजों की सामग्रियां आश्चर्यजनक तरीके से लगभग समान हैं और जो दिखाती हैं कि प्रतिवादी नंबर 1 (प्रवर्तन निदेशालय, बेंगलौर के उपनिदेशक), पीएओ को लिखने वाले और वास्तविक शिकायत और एडजुडिकेटिंग अथारिटी यानी खारिज आदेश के लेखक ने अपने दिमाग का प्रयोग नहीं किया।

ट्रिब्यूनल के आदेश में कहा गया है कि ऐसा प्रतीत होता है कि  अपीलार्थी ने बिंदुवार अपने मामले को विस्तार से एडजुडिकेटिंग अथॉरिटी के समक्ष रखा था,लेकिन इन क़ानूनी बिंदुओं पर निर्णय नहीं दिया गया। ट्रिब्यूनल ने पाया कि जिस व्यक्ति ने संपत्तियों को जब्त करने का आदेश दिया था, वह न्यायिक सदस्य ही नहीं था। 

ट्रिब्यूनल ने अपने आदेश में कहा कि  एडजुडिकेटिंग अथारिटी ने आदेश को बहुत ही सामान्य तरीके से पारित कर दिया। इस तरह के गंभीर मामले में कॉपी-पेस्ट स्वीकार्य नहीं है। ट्रिब्यूनल ने एडजुडिकेटिंग ऑथोरिटी को 20 अक्टूबर 19 से छह माह के भीतर दोनों पक्षों को सुनकर सदस्य (लॉ) द्वारा निर्णीत करने का आदेश पारित किया है। दोनों पक्ष एडजुडिकेटिंग अथॉरिटी के समक्ष 21 अक्टूबर को निर्देश के लिए उपस्थित होंगे।

इस आदेश के बाद प्रवर्तन निदेशालय ने अपने अधिकारियों को कॉपी-पेस्ट के बजाय  मौलिक जांच पड़ताल करने का निर्देश दिया है। दरअसल देश में इन दिनों कई विपक्षी नेताओं के खिलाफ कार्रवाई कर चर्चा में रहने वाली केंद्रीय वित्तीय जांच एजेंसी प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) अपने ही अधिकारियों की जांच की शैली को लेकर परेशान है। ईडी ने अपने अधिकारियों को दिशा-निर्देश जारी कर मामलों की जांच के दौरान अन्य जांच एजेंसियों पर निर्भरता के बदले खुद मौलिक जांच करने के लिए कहा है।

(लेखक जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार होने के साथ ही कानूनी मामलों के जानकार भी हैं।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

Related Articles