Sunday, April 28, 2024

आज भी बनी हुई है सावित्रीबाई फुले के विचारों की प्रासंगिकता

वाराणसी/जौनपुर। भारत देश की प्रथम महिला शिक्षिका सावित्रीबाई फुले के विचारों की प्रासंगिकता आज भी बनी हुई है। सावित्रीबाई फुले ने समाज और खासकर महिलाओं की उन्नति के लिए शिक्षा की जो अलख जगाने का काम किया उसी के चलते आज महिलाएं समाज में सिर उठाकर चलने के साथ-साथ पुरूषों से कहीं आगे निकलकर जिम्मेदारियों का बखूबी निर्वहन कर रही हैं।

सावित्रीबाई फुले ने हर जाति-धर्म के लोगों के लिए स्कूल खोला था। आज हम उन्हें याद तो करते हैं, लेकिन उनकी विचारधारा को अमल में नहीं लाते। दलितों, आदिवासियों, पिछड़ों, वंचितों के साथ-साथ उन महिलाओं के लिए भी सावित्रीबाई फुले के विचारों को जानना जरूरी है जो शिक्षा, हक-अधिकार जैसी बुनियादी जरूरतों से वंचित होकर ठोकरें खाने के लिए विवश हैं।

सावित्रीबाई फुले के विचारों को लोगों तक पहुंचाने के लिए उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले में उनके जन्मदिवस के अवसर पर एक साझा कार्यक्रम चलाया गया है, जिसमें कई संगठनों ने गांव-गांव जाकर महिलाओं को जागरूक करने और शिक्षा से जोड़ने का अभियान चलाया।

इस अभियान के तहत जौनपुर और उसे लगने वाले वाराणसी जिले के सरहदी इलाकों में लोगों से शिक्षा की उपयोगिता के बारे में चर्चा की गई और साथ ही साथ सावित्रीबाई फुले के जीवन प्रसंगों के बारे में बताया गया। कार्यक्रम में महिलाओं से कहीं ज्यादा किशोर और किशोरियों की संख्या देखी गई।

लोगों को भेंट की गई संविधान की उद्देशिका

जौनपुर जिला मुख्यालय से तकरीबन 30 किलोमीटर दूर पूर्व में स्थित केराकत तहसील क्षेत्र के छितौना गांव में ग्रामीण विकास संस्थान हथिनी की अध्यक्षता में आधुनिक भारत की पहली शिक्षिका सावित्रीबाई फुले की जयंती समारोह पर महिलाओं को जागरूक कर शिक्षा के प्रति उन्हें प्रेरित किया गया।

इस दौरान सौहार्द फेलो नीरा आर्या ने सावित्रीबाई फुले के चित्र पर माल्यार्पण कर महिलाओं को संविधान की उद्देशिका भेंट करते हुए बताया कि “सावित्रीबाई फुले महान नायक, समाज सुधारक व शिक्षा की देवी हैं। वह आधुनिक भारत की प्रथम महिला शिक्षक रही हैं। उनके जीवन में ज्योतिबा के साथ-साथ उनकी मौसी सगुनाबाई एवं उनकी सहेली फातिमा शेख का महत्वपूर्ण योगदान रहा है।”

उन्होंने कहा कि “आज जरूरी नहीं कि सब लोग सावित्रीबाई फुले ही बनें, लेकिन उनके विचारों का अनुसरण करते हुए हमें शिक्षा की ज्योति को जलाए रखना होगा। उस समय महिलाओं के लिए स्कूल खोलना पाप समझा जाता था, तब सावित्रीबाई फुले ने हर जाति धर्म के लिए स्कूल खोला। जब वे स्कूल में पढ़ाने जाती थीं तो उनके विरोधी उनके ऊपर गोबर व पत्थर फेंकते थे, जिस कारण वे स्कूल जाते समय एक साड़ी लेकर जाती थीं और स्कूल पहुंच अपनी साड़ी को बदल लेती थीं।”

नीरा आर्या ने छात्राओं एवं महिलाओं का आह्वान करते हुए कहा कि “सावित्रीबाई फुले के विचारों को हम सभी को आत्मसात करना चाहिए और उनके विचारधारा को अपने घर परिवार से लेकर पास पड़ोस तक विस्तार देना चाहिए, ताकि महिलाएं शिक्षा के जरिए अपने हक अधिकार के लिए लड़ सकें और अपने ऊपर होने वाले जुल्मों सितम का मुकाबला कर सकें।”

इस अवसर पर बंधुता मंच से पूनम, धनरा देवी, साधना सहित अन्य महिलाओं एवं किशोरियों ने सावित्रीबाई फुले से जुड़े प्रसंगों की चर्चा करते हुए बताया कि किस प्रकार सावित्रीबाई फुले ने मुफलिसी भरे जीवन को जीने के बाद भी संघर्षों से नाता नहीं तोड़ा, बल्कि उनसे सबक लेते हुए अन्य महिलाओं को भी जागरूक और शिक्षित करने का बीड़ा उठाया था।

फातिमा शेख को भी किया गया याद

दिशा फाउंडेशन और मां दुर्गा ग्रामीण विकास समिति के नेतृत्व में 3 जनवरी से चलाए जा रहे जागरूकता सप्ताह के तहत जौनपुर जिले के करंजकला ब्लाक के प्रेमापुर, पारापट्टी और मुफ्तीगंज ब्लाक के आज़ाद नगर मुरारा, केराकत के छितौना, बेहड़ा, थानागद्दी, रतनुपुर में एवं जौनपुर नगर पालिका क्षेत्र के मीरपुर वार्ड के धन्नेपुर मोहल्ला समेत जिले के 7 ग्राम सभाओं में एक साथ सावित्रीबाई फुले की 193वीं जयंती मनाई गई।

इस मौके पर सावित्रीबाई फुले की दोस्त और प्रथम मुस्लिम महिला शिक्षिका फातिमा शेख (जिनकी जयंती 9 जनवरी को मनाई जाती है) को भी याद किया गया। दोनों महान समाज सेविकाओं, शिक्षिकाओं की जयंती को एक साथ संयुक्त रूप से मनाया गया।

सावित्रीबाई फुले और फातिमा शेख की जयंती को सेवा सप्ताह संकल्प के रूप में मनाए जाने का निर्णय लेते हुए गांव-गांव घर-घर तक इन दोनों महान शख्सियत की विचारधारा को पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया, ताकि इनकी विचारधारा से वंचित महिलाओं, समाज के दबे-कुचले, पिछड़े परिवारों को जागरूक किया जा सके।

कई जगह हुए जयंती कार्यक्रम

जयंती समारोह की खास बात यह रही है कि इन संगठनों के कार्यकर्ता अपने हाथों से सावित्रीबाई फुले का चित्र बनाकर एवं चार्ट पेपर पर उनके विचार लिखकर यह भी संदेश देने की कोशिश की, कि प्लास्टिक फ्लेक्स के प्रयोग से कैसे बचा जा सकता है? कार्यकर्ताओं ने घर-घर जाकर बच्चों, महिलाओं एवं किशोरियों को इकठ्ठा कर गोष्ठियों एवं परिचर्चा का आयोजन किया।

प्रेमापुर में नट समुदाय की महिलाओं के संगठन की कार्यकर्ता सुषमा ने सावित्रीबाई फुले के बारे में बात रखते हुए कहा कि “माता सावित्रीबाई फुले देश की पहली महिला शिक्षिका थीं जिन्होंने मौजूदा सामाजिक व्यवस्था को ही चुनौती नहीं दी, बल्कि समाज में उस काम को करने का बीड़ा उठाया जिसे उस समय का पुरुष करने से डरता था। उनके साथ फातिमा शेख कंधे से कंधा मिलाकर चलती रहीं। फातिमा शेख के भाई उस्मान शेख ने भी सावित्रीबाई फुले और ज्योतिबा फुले का खुलकर सहयोग किया।”

ग्राम पारापट्टी में दलित समुदाय के बीच आयोजित कार्यक्रम में, जिसका नेतृत्व दिशा फाउंडेशन की करिश्मा और अंबिका कर रही थीं, ने समुदाय के लोगों को सावित्रीबाई फुले की जीवनी व विचारों से रूबरू कराया।

कार्यक्रम में अपने विचार रखते हुए दिशा फाउंडेशन के निदेशक लाल प्रकाश राही ने कहा कि “जब समाज पिछड़ा और अशिक्षित था तब महिलाओं ने उसका नेतृत्व किया। जिसमें भी हाशिए पर खड़े समाज की महिलाओं ने विशेष योगदान किया। माता सावित्रीबाई फुले और फातिमा शेख एक उदाहरण हैं, जिन्होंने आज से 150 वर्ष पहले समाज की सोई हुई कौम को जगाया और संघर्ष करने का रास्ता दिखाया।

शहरी क्षेत्र के धन्नेपुर मोहल्ले में युवाओं के साथ सावित्रीबाई फुले जयंती समारोह सप्ताह का आयोजन किया गया। जिसमें दर्जनों की संख्या में युवा लड़के-लड़कियां शामिल हुए। संस्थान ने जौनपुर नगर क्षेत्र के मीरपुर धन्नेपुर मोहल्ले में युवा लड़के लड़कियों के बीच सावित्रीबाई फुले और फातिमा शेख की जयंती सेवा सप्ताह का आयोजन किया, जिसमें पचास से ज्यादा युवाओं ने भाग लिया।

केराकत ब्लाक के छितौना सहित कई ग्राम सभाओं में जयंती सप्ताह समारोह का आयोजन किया। जिसमें ग्राम सभा की सैकड़ों महिलाएं शामिल हुईं। यहां साधना, नीरा आर्या और पूनम ने अपने विचार व्यक्त किए। मुफ्तीगंज ब्लाक के आज़ाद नगर मुरारा में विवेक शर्मा के नेतृत्व में आज़ाद पूर्व माध्यमिक विद्यालय में आयोजित कार्यक्रम में बच्चों समेत अन्य युवा लड़के लड़कियों ने हिस्सा लिया।

ठाकुर का कुंआ, माटी और किसान नाटक ने मोहा मन

माता सावित्रीबाई फुले के जन्मोत्सव सप्ताह समारोह के उपलक्ष्य में वाराणसी के मीरापुर बसहीं में गांधी चबूतरा के समीप उमेशचन्द्र मौर्य के आवास पर “अपने लोग, अपना मंच” के तत्वाधान में दो नायाब नाटक ‘ठाकुर का कुंआ’, ‘माटी और किसान’ का ‘मचंदूतम’ के अंतरराष्ट्रीय स्तर के रंगकर्मी कलाकारों ने प्रस्तुति देकर उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि दी।

कार्यक्रम के आयोजक ‘मंचदूतम’ के निदेशक अंतरराष्ट्रीय कलाकार अजय रोशन थे। सैकड़ों लोग नाटक देखकर भावविभोर हो गए। नाट्य कलाकारों में मुख्य रूप से अजय रोशन, गोपाल चन्द पटेल, ज्योति, नव्या, शशि प्रकाश चन्दन, शिवम, प्रशांत, शेषनाथ, सत्यप्रकाश, डॉ.लियाकत अली, करन कुमार ने भूमिका निभाई। इस दौरान अतिथियों एवं कलाकारों को अंगवस्त्रम देकर सम्मानित भी किया गया।

भारतीय नारीवाद की जननी थीं सावित्रीबाई फुले

भारत की पहली शिक्षिका सावित्रीबाई फुले का जन्म 3 जनवरी 1831 में महाराष्ट्र के सतारा डिस्ट्रिक्ट में हुआ था। सावित्रीबाई फुले और उनके पति ज्योतिबा फुले ने 1848 में पुणे के भिड़े वाडा में भारतीय लड़कियों के पहले स्कूल की स्थापना की थी। उन्हें भारतीय नारीवाद की जननी माना जाता है।

भारत में महिलाओं को एक लम्बे समय तक दोयम दर्जे का नागरिक समझा जाता रहा। यही कारण है कि उनकी जिंदगी को खाना बनाने और वंश को आगे बढ़ाने तक सीमित समझा गया था, लेकिन इस पुरानी सोच वाले समाज में भी सावित्रीबाई फुले जैसी महिला ने अन्य महिलाओं के उत्थान के लिए पढाई-लिखाई के लिए शिक्षा का इंतजाम मात्र 17 वर्ष की उम्र में देश का पहला गर्ल्स स्कूल खोलकर किया था।

प्लेग की बीमारी की वजह से सावित्रीबाई फुले की मौत 66 वर्ष की उम्र में 10 मार्च 1897 को पुणे में हुई थी। उनके पिता खंडोजी नेवशे पाटिल और माता लक्ष्मी थीं। उनके पति का नाम ज्योतिबा फुले था जो माली जाति से थे। सावित्रीबाई फुले की शादी मात्र 10 वर्ष की उम्र में हो गई थी। शादी के समय तक सावित्री बाई पढ़ी लिखी नहीं थीं, लेकिन उनके पति ने उन्हें घर पर पढ़ाया था। उन्होंने 2 साल के टीचर प्रशिक्षण कार्यक्रम में भी हिस्सा लिया था।

सावित्री बाई को देश की पहली भारतीय महिला शिक्षक और प्रधानाध्यापिका माना जाता है। वर्ष 2018 में कन्नड़ में सावित्रीबाई फुले की जीवन पर एक फिल्म भी बनायी गयी थी। इसके अलावा 1998 में इंडिया पोस्ट ने उनके सम्मान में डाक टिकट भी जारी किया था। वर्ष 2015 में उनके सम्मान में पुणे विश्वविद्यालय का नाम बदलकर सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय कर दिया गया था।

सावित्रीबाई ने अपने पति के साथ मिलकर कुल 18 स्कूल खोले थे। इन दोनों ने बाल हत्या प्रतिबंधक गृह नामक केयर सेंटर भी खोला था। इसमें बलात्कार से पीड़ित गर्भवती महिलाओं को बच्चों को जन्म देने और उनके बच्चों को पालने की सुविधा दी जाती थी। उन्होंने महिला अधिकारों से संबंधित मुद्दों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए महिला सेवा मंडल की स्थापना भी की थी। उन्होंने बाल विवाह के खिलाफ भी अभियान चलाया और विधवा पुनर्विवाह की वकालत की थी। सावित्रीबाई का शिक्षा के लिए संघर्ष काफी सराहनीय कार्य रहा।

सावित्रीबाई फुले की देन है महिला सशक्तिकरण

सावित्रीबाई फुले को दकियानूसी लोग पसंद नहीं करते थे। उनके द्वारा शुरू किये गये स्कूल का लोगों ने बहुत विरोध किया था। जब वे पढ़ाने स्कूल जातीं थीं तो लोग अपनी छत से उनके ऊपर गन्दा कूड़ा इत्यादि डालते थे, उनको पत्थर मारते थे। सावित्रीबाई एक साड़ी अपने थैले में लेकर चलती थीं और स्कूल पहुंच कर गंदी कर दी गई साड़ी बदल लेती थीं। लेकिन उन्होंने इतने विरोधों के बावजूद लड़कियों को पढाना जारी रखा।

सारांश के तौर पर अगर यह कहा जाये कि अगर आज के ज़माने में महिला सशक्तिकरण इतना अधिक हुआ है तो इसका सबसे पहला श्रेय सावित्रीबाई फुले को ही जाता है।

 (उत्तर प्रदेश से संतोष देव गिरी की रिपोर्ट।)  

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