दिल्ली के जंगपुरा स्थित ‘ह्यूमन राइट्स लॉ नेटवर्क’(HRLN) के सभागार में उपस्थित एक छोटा लेकिन संजीदा समूह पिछले दिनों एक ऐतिहासिक घटना का साक्षी बना। जब ‘वर्ल्ड कॉस्टीट्यूशन एंड पार्लियामेंट एसोसिएशन’ के अध्यक्ष और अमेरिका के रेडफोर्ड यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर एमीरिटस डॉं. ग्लेन टी मार्टिन ने संपूर्ण पृथ्वी पर शांति, न्याय, स्वतंत्रता और स्थिरता के शासन को स्थापित करने का संविधान प्रस्तुत किया। वहां उपस्थित लोगों के लिए भले ही यह नई बात थी लेकिन वैश्विक स्तर पर इस व्यवस्था को स्थापित करने की कोशिश लंबे समय से हो रही है। ‘विश्व संविधान और संसद संघ’ (डब्ल्यूसीपीए) किसी एक देश या भूभाग पर नहीं अपितु समूचे पृथ्वी पर शांति के सपने को साकार करने का अभियान चला रहा है।
आज जब समूचा विश्व हिंसा की चपेट में है। भारत, अमेरिका और यूरोप के कुछ देशों के साथ ही साथ ही समूचा मध्य एशिया आतंकवाद की चपेट में है। इसका कारण धार्मिक और नस्लीय भेदभाव में छिपा है। सबसे बड़ी विडंबना यह है कि शासक वर्ग साथ-साथ धार्मिक प्रतिष्ठान भी अपना हित साधने के लिए हिंसा और छल-छद्म का सहारा लेने से नहीं हिचक रहे हैं। वैश्विक स्तर पर कारपोरेट का नियंत्रण बढ़ता जा रहा है। जिसका मकसद अधिक से अधिक लाभ कमाना है। सत्ता और कारपोरेट के मिलीभगत से प्राकृतिक संसाधनों की लूट मची है। प्रकृति के अंधाधुंध दोहन से पर्यावरण को भारी नुकसान हो रहा है तो आम जनता बुनियादी सुविधाओं से मरहूम है। ऐसी वैश्विक परिस्थितियों में आम जनता बेबस है तो युवा निराश हैं। बेरोजगारी से जूझ रहे युवा हिंसक और अतिवादी संगठनों के आसान चारा बन गए हैं। विश्व भर में स्थापित सत्ता प्रतिष्ठानों के खिलाफ आक्रोश बढ़ रहा है। इस राजनीतिक और आर्थिक स्थिति में विश्व समुदाय हथियारों को खरीदने की होड़ में लगा है।
पृथ्वी पर शांति और न्याय का शासन स्थापित करने का विचार मानव इतिहास का अनूठा सपना है। यह स्वप्न उतना ही पुराना है जितना मानवता का इतिहास। समय-समय पर कई महापुरुषों ने विश्व शांति और न्यायपूर्ण समाज स्थापित करने का संदेश दिया। लेकिन यह संदेश व्यवहाररूप में न आकर महज उपदेश तक सीमित रहा।
विश्व शांति और न्यायपूर्ण व्यवस्था के इस सपने को पूरा करने के लिए कभी व्यवहारिक कोशिश नहीं की गई। यदि कोई प्रयास हुआ भी तो वह अपने स्वरूप में एकांगी और कुछ देशों की सीमा तक सिमट रहा। ऐसे प्रयासों को एकांगी हम इसलिए कह रहे हैं क्योंकि ‘पृथ्वी का अस्तित्व’ और ‘पृथ्वी पर अस्तित्व’ केवल मनुष्य भर का नहीं है। मानवता के शांति और न्याय के लिए जरूरी है कि विश्व व्यवस्था को मानवीय और प्राकृतिक बनाने में लगे व्यक्तियों और संस्थाओं को प्रकृति-पर्यावरण से लेकर छोटे जीव-जंतुओं की चिंता को भी इसमें शामिल करना चाहिए। यदि ऐसा नहीं किया गया तो यह सपना कभी साकार नहीं हो सकता है।
मानवता का इतिहास युद्ध-हिंसा और शोषण से भरा है। यह हिंसा शक्ति-साधन और लोभ के केंद्रीकरण के कारण समय-समय पर भयानक रूप में हमारे सामने आता रहा है। जिसमें मानवता और सभ्यता की कराह को आज भी देखा-सुना जा सकता है। द्वितीय विश्व युद्ध के समय यह कहा गया कि अब विश्व में कभी इस तरह के युद्ध नहीं होंगे। यदि दो राष्ट्रों के बीच कोई समस्या या टकराव की स्थिति आएगी तो संयुक्त राष्ट्र संघ जैसी संस्थाओं के मदद से उसका हल निकाल लिया जाएगा। लेकिन संयुक्त राष्ट्र संघ भी अपने स्थापना के बाद कुछ वर्षों तक सकारात्मक भूमिका निभाने के बाद आज अप्रासंगिक हो गया है। इसके साथ ही लोकतांत्रिक व्यवस्था से भी लोगों का मोहभंग हो रहा है।
ऐसे समय में डॉं. ग्लेन टी मार्टिन और ‘विश्व संविधान और संसद संघ’(डब्ल्यूसीपीए) के माध्यम से वैश्विक व्यवस्था में बदलाव के लिए संकल्परत समूह हमारे पृथ्वी के लिए आशा की एक किरण हैं। ‘विश्व संविधान और संसद संघ’ दुनिया भर में पर्यावरण संरक्षण, अहिंसक संघर्ष संकल्प, मानवाधिकार संरक्षण और सभी देशों और उसके निवासियों के सम्मान को देखते हुए नियम-कानून की बात करता है। डब्ल्यूसीपीए की स्थापना 1958 में प्रोफेसर फिलिप इस्ली और उनकी पत्नी मार्गरेट इस्ली ऑफ डेनवर कोलोराडो ने की थी, जो कि पृथ्वी के संघ के लिए एक संविधान बनाने और उस संविधान के तहत एक लोकतांत्रिक विश्व सरकार को बढ़ावा देने के लिए बनाया गया था।
जल्द ही इस संगठन से डॉ. टेरेंस आमेरसिंघे और डॉ. रेनहार्ट रुगे भी जुड़ गए थे। डॉं. ग्लेन टी मार्टिन के संगठन से जुड़ने के बाद यह एक विश्वव्यापी आंदोलन में बदल गया है, जिसमें आज कई देशों में दुनिया भर के हजारों नागरिक शामिल हैं। इसके अलावा, पिछले कुछ वर्षों में हजारों संबंधित विश्व नागरिकों ने डब्ल्यूसीपीए द्वारा आयोजित अनंतिम विश्व संसदों के प्रतिनिधियों के रूप में पंजीकरण किया है और खुद को पृथ्वी संविधान के व्यक्तिगत अनुसमर्थन के रूप में घोषित किया है। आज तक, दुनिया भर के शहरों में विश्व संसद के 14 सत्र हुए हैं। सबसे हालिया सत्र दिसंबर 2014 में कोलकाता, भारत में आयोजित किया गया था। डब्ल्यूसीपीए दिनोंदिन विश्वव्यापी स्वरूप लेता जा रहा है जो पृथ्वी पर शांति, न्याय, स्वतंत्रता और स्थिरता के लिए प्रेम और समर्पण के साथ काम कर रहा है। यह संगठन पृथ्वी और मानवता के भविष्य के लिए काम करने वाले मानवाधिकार संगठनों, पर्यावरण संगठनों, शांति संगठनों और अन्य संबंधित समूहों से व्यापक रूप से संबद्ध हैं।
भारत सदियों से वसुधैव कुटुंबकम् का संदेश देने वाला इकलौता देश है। भारत अति प्राचीन और समृद्धि सांस्कृतिक विरासत वाला देश रहा है। लेकिन हालिया घटनाओं को देखा जाए तो आज भारत जैसा समृद्ध संस्कृति वाला देश भी धर्म,संप्रदाय और जाति के झगड़े से जूझ रहा है। लंबे समय से संसार में सांप्रदायिकता और नस्लवाद साम्राज्यवादी शक्तियों के हाथ का सबसे मजबूत हथियार बना हुआ है। इसी के सहारे साम्राज्यवादी ताकतें छोटे और गरीब मुल्कों में जनता को बंटकर वहां के प्राकृतिक संसाधनों पर डाका डाल रहे हैं।
आज संपूर्ण धरती पर धर्म, संप्रदाय, जातिवाद को लेकर बढ़ती राजनीति और अमीर-गरीब के बीच चौड़ी खाईं को देखा और महसूस किया जा सकता है। राजनीतिक और धार्मिक लोगों के पास इस समस्या का कोई समाधान नहीं है। ऐसे में वेद के आदर्श वसुधैव कुटुंबकम् की भावना और ‘विश्व संविधान और संसद संघ’ से घृणा और हिंसा की अमानवीय राजनीति को समाप्त किया जा सकता है। अंधविश्वास और पाखंड के इस वातावरण में वैदिक आदर्शों को लेकर एक नया वैश्विक समाज बनाने का संकल्प लेकर एक आध्यात्मिक क्रांति का यह प्रयास चल पड़ा है। आइएं ! वसुधैव कुटुंबकम् को मूर्तिमान करने के लिए ‘एक विश्व, एक परिवार, एक सरकार’ की कल्पना को साकार करें।
(लेखक आर्य समाज के नेता और बंधुआ मुक्ति मोर्चा के अध्यक्ष हैं।)
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