Saturday, April 1, 2023

5 करोड़ ट्वीट को देख कर सोई सरकार

विमल कुमार
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क्या आपको मालूम है कि रेलवे में नौकरी पाने की आस लिए छात्र जब हताश हुए तो उन्होंने न्याय के लिए 5 करोड़ ट्वीट किए लेकिन सत्ता के नशे में चूर सरकार ने कोई संज्ञान नहीं लिया सब आंख मुद्दे रहे जबकि पूरी सरकार सोशल मीडिया पर है और डिजिटल भारत मे हमारे प्रधानमंत्री कंगना राणावत के ट्वीट को भी देखते हैं। इससे बड़ा देश का दुर्भाग्य क्या हो सकता है कि हर साल दो करोड़ लोगों का रोजगार देने का वादा करने वाले प्रधनमंत्री छात्रों को रेलवे की नौकरी नहीं दे रहे और हमेशा की तरह मौन साधे रहे। तीन साल के बाद रेलवे एग्जाम के नतीजे आ रहे हैं और उसमें भी गड़बड़ियां हीं गड़बड़ियाँ।

सरकार तर्क दे रही है कोरोना काल मे परीक्षाएं लेना मुश्किल लेकिन जब इस देश मे पंचायत से लेकर विधानसभा के चुनाव कोरोना में हो सकते हैं। अमित शाह चुनाव आयोग के कोरोना प्रोटोकाल का सरासर उल्लंघन करते हुए बिना मास्क लगाए चुनाव में रोड शो कर सकते हैं तो छात्रों के लिए एग्जाम क्यों नहीं। एक माह पहले दिल्ली में डॉक्टरों ने नीट एग्जाम की काउंसलिंग की मांग को लेकर रात में स्वास्थ्य मंत्री के आवास को घेरा और जुलूस निकाला तो पुलिस ने उन्हें बुरी तरह माराज़ख्मी किया। यहीं हाल बिहार और उत्तरप्रदेश के छात्रों का है। उन्हें भी बुरी तरह पीटा गया। इतना ही नहीं सैकड़ों छात्रों को गिरफ्तार कर जेल भेजा गया और अब खान सर जैसे शिक्षकों को गिरफ्तार करने की तैयारी हो रही है। यह हमारी चुनी हुआ सरकार की क्रूरता है।

सरकार तर्क देती है कि आंदोलन अहिंसक हो गया इसलिए करवाई की गई पर सवाल है जब एक दिन में 80 लाख ट्वीट कर छात्र न्याय की गुहार कर रहे थे तब क्या दिल्ली से लेकर बिहार तक रेलवे के अधिकारी सोए थे? क्या यह सरकार गूंगी बहरी है? सरकार अपनी जनता को गाजर मूली समझती है। भेड़ बकरी समझती है। क्या ये छात्र देश के नागरिक नहीं। आखिर आप जन प्रतिनिधि किस लिए हैं? नौकरशाह किस लिए हैं? जनता के प्रति आपकी जवाबदेही क्या है? आपकी संवेदनशीलता कितनी है? लेकिन सत्ता मिलते ही सरकार निरंकुश व्यवहार करती हैऔर उल्टे दमन करती है।

किसान तो एक साल बैठे रहे शांतिपूर्वक लेकिन सरकार ने उन पर भी दमन किया उन्हें जेल में ठूंस दिया। यह किस तरह का लोकतंत्र है। दरअसल मोदी सरकार की तानाशाही बढ़ती जा रही है और पुलिस दिन प्रति दिन क्रूर होती जा रही है। नौकरी का इम्तहान देनेवालों में पुलिस के भी बच्चे हैं। क्या अपने बच्चों को कोई इस तरह पीटता है। उनके होस्टल और लाज में घुसकर मारते हैं। क्या आप अपने ही बच्चों से बातचीत नहीं कर सकते?  

आप गणतंत्र दिवस मना रहे या क्रूरता दिवस मना रहे। आप आज़ादी के 75 साल पर महोत्सव मना रहे और अपने ही नागरिकों की आवाज़ नहीं सुन रहे। उन्हें हिंसा का रास्ता अपनाने पर मजबूर कर रहे है। ये छात्र न तो आतंकवादी हैं न नक्सली न पाकिस्तानी ये आपके नौनिहाल हैं लेकिन आपको तो बस जुमले बाजी करनी है, हिन्दू मुसलमान करना भारत पाकिस्तान करना है मुनाफे  की कम्पनियों को  बेचना है। अपना प्रचार करने के लिए अखबारों में झूठे आंकड़ों वाले विज्ञापन देना है लेकिन अपने देश की जनता के बारे में कुछ करना है। काम नहीं करना पर काम का विज्ञापन करना है।

क्या अपने ऐसा कोई देश देखा है जो 5 करोड़ ट्वीट को अनदेखा कर दे। आपके पास तो आई टीसेल है। कई एजेंसियां हैं जो सोशल मीडिया की निगरानी करती हैं लेकिन आप तो ताक़त के नशे में चूर हैं। नौकरी नहीं देसकते तो कम से कम उन्हें मां बहन की गन्दी गन्दी गालियां और लाठियां न दें।

आपने नौकरी को पंच वर्षीय योजना बना दिया। छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ किया।क्या भारतीय संविधान आपको यह इज़्ज़त देता है। आप तो संविधान की शपथ लेते हैं जनता की सेवा करने का लेकिन आप जनता को झूठे मुकदमे में फँसाते है। राज्य का यह क्रूर और निरंकुश चेहरा रोज और काला होता जा रहा है। यह भारतीय लोकतंत्र का दुर्भाग्य है लेकिन अब जनता आपके बहरूपिये चेहरे को समझने लगी है। एक दिन वह जागेगी जब आपका अत्याचार पानी की तरह नाक से ऊपर गुजरेगा।

(विमल कुमार वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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