Tuesday, March 19, 2024

अडानी पर लग रहे घोटालों के आरोपों पर सरकार की चुप्पी निंदनीय

हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट ने अडानी के आर्थिक घोटालों का पिटारा खोल दिया है। सरकार या यूं कहें प्रधानमंत्री के सबसे करीबी देश ही नहीं दुनिया का दूसरे सबसे अमीर शख्स के बारे में यह सोचा भी नहीं गया होगा कि, वह एक हफ्ते में ही दुनिया के दस शीर्ष उद्योगपतियों के क्लब से, आर्थिक घोटालों की वजह से, बाहर ही नहीं हो जायेगा, बल्कि पंद्रहवें स्थान पर आ जाएगा। पर ऐसा हो चुका है और अभी स्टॉक मार्केट के दो कारोबारी दिन शेष हैं।

जिस एफपीओ के दम पर, अडानी समूह ने सफलता की एक नई इबारत लिखने की सोची थी, वह ओवरसब्सक्राइब हुआ तो जरूर, पर रातों रात उसे अडानी समूह ने नैतिकता का तकाजा बताते हुए वापस ले लिया। नैतिकता और पूंजीवाद पर बालजा़क का एक कथन याद आता है, कि हर आर्थिक संपन्नता के पीछे कोई न कोई अपराध जरूर होता है। अडानी भी इस कथन के अपवाद नहीं रहे।

अडानी के एफपीओ के सफल होने और उसे फिर वापस लेने के बारे में, फोर्ब्स मैगजीन में छपे एक लेख की चर्चा करते हैं।- “इस बात के प्रमाण हैं कि अडानी समूह ने संभवतः अपनी $2.5 बिलियन की शेयर बिक्री में खरीदारी खुद ही की है।” यह निष्कर्ष है फोर्ब्स मैगजीन में छपे एक लेख का, जिसे लिखा है जॉन हयात ने, जो फोर्ब्स के स्टाफ से है।

लेख के अनुसार, “अडानी से कथित संबंधों वाली दो कंपनियों ने इस सप्ताह अडानी एंटरप्राइजेज के शेयर की पेशकश (ऑफर) को अंडरराइट किया है।” हिंडनबर्ग रिसर्च द्वारा अडानी समूह की एकाउंटिंग में धोखाधड़ी और शेयर बाजार में हेरफेर की कथित साजिश में सहायता करने की आरोपी दो कंपनियों ने, सोमवार को अडानी एंटरप्राइजेज के 2.5 बिलियन डॉलर के शेयर की पेशकश की अंडरराइटर थीं, जिस एफपीओ को बुधवार 1 फरवरी को अचानक रद्द कर दिया गया है।

अचानक एफपीओ को रद्द करने के बारे में, अडानी समूह ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर जो कहा है, पहले उसे पढ़ लें,- “अदानी एंटरप्राइजेज लिमिटेड, (एईएल) के बोर्ड ने अभूतपूर्व स्थिति और मौजूदा बाजार में उतार-चढ़ाव को देखते हुए एफपीओ की आय लौटाकर और पूर्ण किए गए लेनदेन को वापस कर अपने निवेशक समुदाय के हितों की रक्षा करने का निर्णय किया है।”

प्रेस विज्ञप्ति में आगे कहा गया कि “बोर्ड इस अवसर पर हमारे एफपीओ के लिए आपके समर्थन और प्रतिबद्धता के लिए सभी निवेशकों को धन्यवाद देता है। एफपीओ के लिए सब्सक्रिप्शन गुरुवार को सफलतापूर्वक बंद हो गया। पिछले सप्ताह स्टॉक में उतार-चढ़ाव के बावजूद, कंपनी, के व्यवसाय और प्रबंधन में, आपका विश्वास बेहद आश्वस्तकारी और विनम्र रहा है। धन्यवाद।”

अडानी समूह ने कहा कि “हालांकि, आज बाजार अभूतपूर्व रहा है, और आज हमारे शेयर की कीमत में उतार-चढ़ाव आया है। इन असाधारण परिस्थितियों को देखते हुए, कंपनी के बोर्ड को लगा कि इस मसले पर आगे बढ़ना नैतिक रूप से सही नहीं होगा। निवेशकों का हित सर्वोपरि है और इसलिए उन्हें किसी भी संभावित वित्तीय नुकसान से बचाने के लिए, बोर्ड ने एफपीओ के साथ आगे नहीं बढ़ने का फैसला किया है। हम अपने बुक रनिंग लीड मैनेजर्स (बीआरएलएम) के साथ काम कर रहे हैं ताकि आप का निवेशित धन, आप को वापस लौटाया जा सके।”

अडानी समूह ने आगे कहा कि “हमारी बैलेंस शीट सुदृढ़, और कैशफ्लो सुरक्षित संपत्ति के साथ बहुत मजबूत स्थिति में है, और हमारे पास अपने ऋण को चुकाने का एक त्रुटिहीन ट्रैक रिकॉर्ड है। इस निर्णय का हमारे मौजूदा परिचालनों और भविष्य की योजनाओं पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।”

समूह ने कहा कि “हम दीर्घकालिक मूल्य निर्माण पर ध्यान केंद्रित करना जारी रखेंगे और वृद्धि आंतरिक संसाधनों द्वारा प्रबंधित की जाएगी। बाजार में स्थिरता आने के बाद हम अपनी पूंजी बाजार रणनीति की समीक्षा करेंगे। हमें पूरा विश्वास है कि हमें आपका सहयोग मिलता रहेगा। हम पर आप ने जो विश्वास जताया है, उसके लिए धन्यवाद।”

फोर्ब्स ने अब इस बात की पड़ताल की है कि, हिंडनबर्ग खुलासे के बाद अडानी समूह के एफपीओ में किसने पैसा लगाये जिससे यह एफपीओ सफल हो गया। फोर्ब्स के अनुसार,-“लंदन स्थित निवेश फर्म, एलारा कैपिटल की सहायक कंपनी एलारा कैपिटल (इंडिया) प्राइवेट लिमिटेड और एक भारतीय ब्रोकरेज फर्म मोनार्क नेटवर्थ कैपिटल, अडानी एंटरप्राइजेज द्वारा बिक्री के लिए अपने प्रस्ताव समझौते में प्रकट किए गए 10 अंडरराइटर्स में से दो थे।”

हिंडनबर्ग रिसर्च के आरोपों के अनुसार,”एलारा कैपिटल का इंडिया ऑपर्च्युनिटीज फंड”, एक ऑफशोर माध्यम है, जिसके पास अडानी कंपनियों (अडानी एंटरप्राइजेज सहित) में 3 बिलियन डॉलर का सार्वजनिक रूप से कारोबार करने वाला स्टॉक है, जो भारतीय नियम और कायदों से बचने और उसे दरकिनार करने के लिए अडानी की “स्टॉक पार्किंग संस्थाओं” में से एक के रूप में कार्य करता है।

हिंडनबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार, “मोनार्क नेटवर्थ कैपिटल, एक भारतीय ब्रोकरेज फर्म, 2016 से, आंशिक रूप से, निजी तौर पर आयोजित अडानी प्रॉपर्टीज प्राइवेट लिमिटेड के स्वामित्व में है।”

हिंडनबर्ग द्वारा अडानी के प्रॉक्सी के रूप में पहचाने जाने वाले एक ऑफशोर फंड अल्बुला के पास, 2009 में मोनार्क में 10% स्वामित्व की हिस्सेदारी थी। फोर्ब्स के इस लेख के अनुसार, हिडनबर्ग द्वारा जो अध्ययन किए गए हैं, के रिकॉर्ड में उद्धृत है।

अडानी एंटरप्राइजेज द्वारा प्रकाशित ऑफरिंग स्टेटमेंट के अनुसार, शेयर की पेशकश में, एलारा कैपिटल की जिम्मेदारियों में “सभी प्रचार की सामग्री का प्रारूपण और अनुमोदन” शामिल था, जबकि मोनार्क को निवेशकों के लिए “गैर संस्थागत विपणन” का काम सौंपा गया था।

अडानी एंटरप्राइजेज ने पहली बार नवंबर में धन उगाहने के प्रयास की घोषणा की थी, लेकिन 24 जनवरी को हिंडनबर्ग रिसर्च ने अपनी 100 पन्नों की रिपोर्ट प्रकाशित की, जिसमें अडानी समूह द्वारा लेखा धोखाधड़ी करने और स्टॉक के माध्यम से अपने मूल पूंजी को समृद्ध करने के लिए लंबी साजिश का आरोप लगाया गया है।

हालांकि अडानी समूह ने हिंडनबर्ग की रिपोर्ट का खंडन किया और अमेरिकी निवेश फर्म के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की धमकी दी है, लेकिन इस रिसर्च रिपोर्ट के पहली बार प्रकाशित होने के बाद, अदानी एंटरप्राइजेज ने एफपीओ को रद्द करने का फैसला किया और कहा कि वह निवेशकों को उनका धन वापस कर देंगे।

एफपीओ में 400 मिलियन डॉलर का निवेश अंतिम समय में करके अबू धाबी की कंपनी IHC निवेश फर्म ने एफपीओ को पूरी तरह से सफल बना कर उसे उबार लिया। जॉन हयात, अपने लेख में लिखते हैं कि, “ऐसा “कथित तौर पर खुद गौतम अडानी द्वारा फोन पर आईएचसी को निजी अनुरोध करने के बाद किया गया।”

उसी लेख के अनुसार, “दो अन्य भारतीय उद्योगपति, जेएसडब्ल्यू के सज्जन जिंदल और भारती टेलीकॉम के सुनील मित्तल ने भी इस मामले में, “सूत्रों के अनुसार,” जैसा कि इकोनॉमिक टाइम्स और फाइनेंशियल टाइम्स ने लिखा है, “एफपीओ को सफल बनाने के लिए, “आखिरी मिनट में हांथ लगाने” (द लास्ट मिनट पुश) की पेशकश की।

इलारा कैपिटल और मोनार्क नेटवर्थ कैपिटल की भागीदारी से यह सवाल और संशय उठता है कि “क्या अडानी के किसी निजी फंड को 2.5 अरब डॉलर के लक्ष्य को पूरा करने में मदद देने के लिए लगाया गया था।”

फोर्ब्स के लेख के अनुसार सिटीग्रुप के एक पूर्व निवेश बैंकर और ऑस्ट्रेलिया स्थित क्लाइमेट एनर्जी फाइनेंस के निदेशक टिम बकले कहते हैं, “वास्तव में इस मुद्दे को हल करने का एकमात्र तरीका यह है कि अडानी ही यह बात स्पष्ट कर दें कि सभी शेयर खरीदे किसने है।”

अडानी समूह की आर्थिक गतिविधियों पर दस साल से अधिक समय से अध्ययन करने वाले टिम बर्कले ने यह भी कहा कि, “यह मेरी अटकलें हैं, पर यह अटकल हवा में नहीं, कुछ अंदरूनी सूत्रों पर आधारित है, जिसका खुलासा मैं नहीं कर सकता।”

फोर्ब्स के ही अनुसार, जिस तरह से एफपीओ के शेयर खरीदने की पेशकश की गई, उस पर टिप्पणी करते हुए, अमेरिकी हेज फंड अरबपति बिल एकमैन ने भी बुधवार को संदेह व्यक्त करते हुए ट्वीट किया: “अगर @AdaniOnline की पेशकश में, संबद्ध खरीदारों के साथ धांधली की गई हो तो मुझे आश्चर्य नहीं होगा।”

फोर्ब्स ने अडानी समूह, एलारा कैपिटल और मोनार्क नेटवर्थ कैपिटल से उनका पक्ष जानने के लिए, इस लेख के लिखते समय संपर्क करने की कोशिश की, पर इन तीनों कंपनियों के अफसरों ने फोर्ब्स के अनुरोध का जवाब नहीं दिया।

इन तीनों कंपनियों का पक्ष फोर्ब्स को नहीं मिल पाया। जॉन हयात आगे अपने लेख में लिखते है, “लंदन मुख्यालय वाली इलारा कैपिटल, पीएलसी में निवेश बैंकिंग के अध्यक्ष रमनीश कोचगवे (उनके लिंक्डइन प्रोफाइल और इलारा की वेबसाइट के अनुसार) ने अडानी एंटरप्राइजेज के पेशकश दस्तावेज़ में इलारा कैपिटल (इंडिया) प्राइवेट लिमिटेड की ओर से हस्ताक्षर किए गए हैं। उस इकाई को 2006 में भारतीय राज्य महाराष्ट्र में रजिस्टर्ड किया गया था। लंदन स्थित मूल कंपनी, अपनी वेबसाइट के अनुसार, एक दूसरी, इसी तरह नामित इकाई, एलारा फाइनेंस (इंडिया) प्राइवेट लिमिटेड को भी नियंत्रित करती है, जिसे 2011 में महाराष्ट्र में में रजिस्टर्ड किया गया था।”

हिंडनबर्ग रिसर्च रिपोर्ट में एलारा के दो पूर्व व्यापारियों का उल्लेख है, जिसमें बताया गया है कि, कैसे इसके फंड “जानबूझकर अपने लाभकारी स्वामित्व को छिपाने के लिए डिज़ाइन किए गए हैं,” और रिपोर्ट के अनुसार, “यह स्पष्ट है” कि अडानी प्रिंसिपल्स (मुख्य पूंजी) के पास इंडिया ऑपर्च्युनिटीज फंड द्वारा रखे गए $3 बिलियन के स्टॉक हैं।

रिपोर्ट के अनुसार, “एक व्यापारी ने हिंडनबर्ग को बताया, “मुझे लगता है कि यह राशि, निश्चित रूप से अडानी समूह के पास है… क्योंकि कोई और खरीदना नहीं चाहेगा।”

व्यापारी का नाम फोर्ब्स ने अपने लेख में नहीं खोला है। अडानी समूह ने हिंडनबर्ग की प्रतिक्रिया के खंडन में भेजे गए अपने चार सौ पन्नों के जवाब में, इलारा कैपिटल के धन से किसी भी तरह का संबंध होने से इनकार किया है। अडानी समूह ने लिखा, “यह कहना गलत है कि वे किसी भी तरह से प्रवर्तकों से संबंधित पक्ष हैं।”

हिंडनबर्ग के अनुसार, मोनार्क नेटवर्थ कैपिटल, का आंशिक रूप से अडानी समूह की इकाई के स्वामित्व में होने के अतिरिक्त, समूह की कंपनी के साथ व्यापारिक लेन-देन का दस्तावेजी इतिहास है। 2018 में, एक उद्योगपति राकेश शाह, जिसे फोर्ब्स के लेख में ब्रदर इन लॉ लिखा है (वह गौतम अडानी के बहनोई है या साले यह मुझे नहीं पता) ने मोनार्क के साथ भागीदारी की और इस भागीदारी से, एक एयरलाइन की खरीद भी की।

एक साल बाद, मोनार्क कंपनी ने, अडानी ग्रीन एनर्जी की $110 मिलियन के बांड ऑफर को, अंडरराइट किया। हिंडनबर्ग रिसर्च ने अपनी रिपोर्ट में लिखा, “सेबी के प्राविधानों का अनुपालन सुनिश्चित करने के महत्व को देखते हुए, यह उम्मीद की थी कि, अडानी समूह, अपने सौदे का कुशलता पूर्वक प्रबंधन करने के लिए अनुभवी, और विश्वसनीय बुक रनर का चयन करेगा।

लेकिन, अडानी ग्रीन एनर्जी ने, बुक रनर के रूप में एक ऐसी इकाई को चुना जो इसे अगर सीधे तौर पर नियंत्रित नहीं कर सकती थी तो बाजार को प्रभावित, जरूर कर सकती थी। मोनार्क का ट्रैक रिकॉर्ड पहले से ही खराब रहा है। मोनार्क को साल 2011 में शेयर बाजार में हेराफेरी का दोषी ठहराया गया था।

हिंडनबर्ग को भेजे गए अडानी समूह के जवाब में मोनार्क नेटवर्थ पूंजी के आंशिक स्वामित्व से इनकार नहीं किया गया, लेकिन यह भी कहा कि उसने “मोनार्क की साख और खुदरा बाजार में काम करने की क्षमता का लाभ उठाने के लिए मोनार्क के साथ भागीदारी की थी।”

मोनार्क के साल 2011 में हेराफेरी का दोषी पाए जाने के आरोप पर अडानी समूह ने कहा कि, यह बात दस साल पुरानी है इसके लिए मोनार्क को एक महीने के लिए शेयर बाजार की ट्रेडिंग से निलंबित कर दिया गया था। अडानी के अनुसार, “एक दशक पहले किए गए एक माह के निलंबन की अब कोई और प्रासंगिकता नहीं है।”

अडानी समूह के 2.5 बिलियन डॉलर के शेयर के अन्य अंडरराइटरों में एसबीआई कैपिटल मार्केट्स, जो भारतीय स्टेट बैंक की निवेश बैंकिंग सहायक कंपनी है; जेफरीज इंडिया प्राइवेट लिमिटेड, जो अमेरिकी निवेश बैंक जेफरीज की सहायक कंपनी है; और विभिन्न भारतीय वित्तीय संस्थान जैसे वॉल स्ट्रीट बैंक जिन्होंने हाल के वर्षों में अडानी समूह के डॉलर-मूल्यवर्गीय ऋण प्रस्तावों की दलाली की थी, ने अडानी समूह के अंडरराइटर्स के रूप में भाग नहीं लिया था।

लेकिन, अडानी समूह का एफपीओ तो सफल रहा। फिर अचानक क्या बात हो गई कि अडानी समूह को उस सफल एफपीओ को वापस लेना पड़ा और वापस लेते समय यह कहा गया कि यह एक नैतिक जिम्मेदारी के कारण एक सफल एफपीओ को वापस लेना पड़ा है। हुआ यह कि हिंडनबर्ग रिसर्च रिपोर्ट जारी होने के बाद बाजार में गिरावट का दौर शुरू हो गया, लेकिन गिरावट के इस दौर में भी अडानी समूह के शेयरों की खरीद हुई। चूंकि हिंडनबर्ग रिपोर्ट के बाद अधिकांश विशेषज्ञों और अडानी समूह के प्रतिद्वंद्वियों की नजर इस एफपीओ पर लगी थी और जब एफपीओ सफल हुआ तो इसकी पड़ताल शुरू हुई कि आखिर किस-किस इसे खरीदा है।

बेशर्म स्टॉक हेरफेर और लेखा धोखाधड़ी का आरोप तब लगना शुरू हुआ, जब एईएल (अडानी इंटरप्राइजेस लिमिटेड) के शेयर का बाजार मूल्य, निर्गम मूल्य से नीचे रहने के बावजूद विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) और गैर-संस्थागत निवेशकों सहित योग्य संस्थागत खरीदारों (क्यूआईबी) ने इसे जम कर खरीदा और एफपीओ अंतिम दिन 1.12 गुना सब्सक्राइब हो गया।

हालांकि खुदरा निवेशकों के हिस्से को केवल 0.12 गुना (12 प्रतिशत) सब्सक्राइब किया गया था, जिसमें निवेशकों ने 2.29 करोड़ शेयरों के कोटा के मुकाबले केवल 27.45 लाख शेयरों के लिए बोली लगाई थी। कर्मचारियों का कोटा भी केवल 55 प्रतिशत कोटे की बोलियों के साथ अंडरसब्सक्राइब रहा।

अडानी समूह के शेयरों और बांडों में मंदी बुधवार 1 जनवरी को फिर से शुरू हो गई। अडानी एंटरप्राइजेज के शेयरों में 28% और अडानी पोर्ट्स और विशेष आर्थिक क्षेत्र में 19% की गिरावट आई। इस प्रकार दोनों के लिए यह खराब दिन रहा।

1 जनवरी को अडानी एंटरप्राइजेज के शेयर की कीमत 34 प्रतिशत से अधिक की गिरावट के साथ 2,975 रुपये के पिछले बंद के मुकाबले 1,942 रुपये के एक दिन के निचले स्तर पर पहुंच गई, जो कि 1,933.75 रुपये के निचले सर्किट के आसपास थी। स्टॉक अंततः 28.45 प्रतिशत गिरकर 2,128.70 रुपये पर बंद हुआ।

बुधवार को दोपहर के समय, ब्लूमबर्ग ने बताया कि “क्रेडिट सुइस ग्रुप एजी ने अपने निजी बैंकिंग ग्राहकों को मार्जिन ऋण के लिए कोलेटरल बांड के रूप में, अडानी समूह की कंपनियों के बांड को, स्वीकार करना बंद कर दिया है।”

अज्ञात स्रोतों के हवाले से ब्लूमबर्ग ने बताया कि स्विस ऋणदाता की निजी बैंकिंग शाखा ने अडानी पोर्ट्स और स्पेशल इकोनॉमिक ज़ोन, अदानी ग्रीन एनर्जी और अदानी इलेक्ट्रिसिटी मुंबई लिमिटेड द्वारा बेचे गए बांड्स के लिए शून्य ऋण मूल्य निर्धारित कर दिया है। ब्लूमबर्ग ने कहा कि क्रेडिट सुइस की कार्रवाई ने संकेत दिया कि अडानी समूह गंभीर वित्तीय अनियमितता की गिरफ्त में है।

ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट में बताया गया है कि “जब एक निजी बैंक, ऋण मूल्य को शून्य कर देता है, तो ग्राहकों को आम तौर पर, नकद या अन्य प्रकार से टॉप अप करना पड़ता है और यदि वे ऐसा करने में विफल रहते हैं, तो उनकी प्रतिभूतियों का परिसमापन किया जा सकता है।

इसी बीच सरकार समर्थक अडानी समूह के बचाव में आए और हिंडनबर्ग रिपोर्ट, जिसने अडानी की पतनगाथा की भूमिका लिखी है को एक साजिश कहना शुरू किया है। जो हिंडनबर्ग रिपोर्ट को साजिश मानते है, उनसे, मेरे कुछ सवाल हैं-

  • क्या टैक्स हेवेन कहे जाने वाले देशों से विनोद अडानी ने अडानी समूह में फंड नहीं भेजे?
  • क्या SBI, LIC ने अडानी को मुंहमांगा लोन नहीं दिया और NPA नहीं किया?
  • फ्रॉड और काले धन से पलते पूंजीपतियों को क्या भारत का पर्याय कहा जायेगा?

सिर्फ़ अडानी ही नहीं बल्कि उन बैंकों की भी आज खाट खड़ी हो गई है, जिनके क़र्ज़ से अडानी साहब शक्तिमान बने घूम रहे थे।

यहीं यह सवाल भी महत्वपूर्ण है कि-

  • अडानी पोर्ट से 3000 KG ड्रग पकड़ी गई, उनकी जांच हुई या नहीं, कोई खबर नहीं।
  • हिंडनबर्ग ने स्टॉक मार्केट में हेराफेरी से लेकर काले धन के लिए कुख्यात देशों से अडानी समूह द्वारा फंड उठाने के आरोप सप्रमाण दिए, इनकी जांच अब तक शुरू नहीं हुई। क्या अडानी को जांच से इम्यूनिटी प्राप्त है?

जब आम जनता की मेहनत से कमाई रकम एक पूंजीपति को लुटाई जा रही है तो वे उसी पूंजीपति के निर्लज्ज बचाव में हैं। शर्मनाक।

ऐसे उद्योगपति देश के दुश्मन की तरह हैं, जब वे फ्रॉड कर, टैक्स चुरा कर, अफसरों और राजनेताओं को रिश्वत, चुनाव के लिए अनाप शनाप धन, तरह तरह के आर्थिक अपराध करके, मीडिया खरीद कर, दंगाई प्रोग्राम चलवाते हैं तब। ये देश के ही नहीं समाज और मानवता के भी दुश्मन हैं। इनके धन का क्षय हो।

अपराध, अपराध है चाहे उसे अरबपति करें या हम आप जैसे लोग। अब तक हिंडनबर्ग रिपोर्ट पर सरकार को कार्रवाई शुरू कर देनी चाहिए थी, ताकि पता चल सके कि Tax Haven कहे जाने वाले देशों और शेल कंपनियों के माध्यम से अडानी समूह को अनुचित धन मिलने के जो आरोप लगे हैं, उसमें कितनी सच्चाई है।

पर सरकार वैसे ही चुप है, जैसे वह नोटबंदी में लोगों की परेशानी और कोरोना के समय ऑक्सीजन की कमी से मरते मरीजों के समय चुप थी। क्या सरकार की प्राथमिकता में जनता कहीं है भी? सरकार तो एसबीआई, एलआईसी से अडानी का शेयर खरीदवा रही है। प्राथमिकता में उद्योग भी नहीं हैं, है तो बस, अडानी है।

(विजय शंकर सिंह रिटायर्ड आईपीएस हैं)

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