राज्यपाल का अभिभाषण भाजपा-जदयू की धोखेबाजी पर पर्दा नहीं डाल सकती

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पटना। भाकपा-माले विधायक दल के नेता महबूब आलम ने राज्यपाल महोदय के अभिभाषण पर कड़ा विरोध जताते हुए कहा कि यह अभिभाषण पूरी तरह से झूठ का पुलिंदा है और बिहार की वास्तविक समस्याओं को संबोधित करने की बजाय भाजपा-जदयू सरकार द्वारा जनता से की गई धोखेबाजी पर पर्दा डालने की एक नाकाम कोशिश है।

महबूब आलम ने आरोप लगाया कि सरकार का यह अभिभाषण केवल जनता को गुमराह करने के उद्देश्य से तैयार किया गया है, जिसमें किसानों से लेकर गरीब, मजदूर और महिलाओं तक की समस्याओं को अनदेखा किया गया है।

महबूब आलम ने कृषि के मुद्दे पर कहा कि राज्यपाल के अभिभाषण में यह दावा किया गया कि 2008 से बिहार में कृषि रोडमैप लागू है और धान, गेहूं और मक्का की उत्पादकता में बढ़ोतरी हुई है। यह दावा पूरी तरह से भ्रामक और सच्चाई से परे है। उन्होंने सवाल किया कि क्या बिहार में किसी भी फसल की न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर खरीद होती है? क्या राज्य सरकार ने किसानों के लिए कोई ऐसी नीति बनाई है, जिससे उन्हें उचित मूल्य मिल सके?

महबूब आलम ने याद दिलाया कि बिहार पहला राज्य था जिसने मंडी व्यवस्था को खत्म कर दिया था और किसानों को बाजार के हवाले कर दिया। इससे किसान बुरी तरह प्रभावित हुए हैं और उनकी स्थिति लगातार खराब होती जा रही है। इसके अलावा, बटाईदार किसानों के बारे में राज्य सरकार हमेशा चुप रहती है। उनका रजिस्ट्रेशन नहीं हुआ है, और उन्हें किसी भी किसान योजना का लाभ नहीं मिल रहा है, जबकि बिहार की कृषि का सबसे बड़ा हिस्सा उन्हीं बटाईदारों के कंधों पर है।

महबूब आलम ने केंद्रीय बजट पर भी सवाल उठाया और कहा कि बिहार के विकास के लिए बजट में कोई भी राशि नहीं दी गई। खासकर बिहार की आधारभूत संरचनाओं के लिए कोई प्रावधान नहीं किया गया है, जो राज्य की जनता के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। साथ ही, विशेष राज्य के दर्जे की मांग को लेकर भाजपा-जदयू की सरकार पूरी तरह से विफल रही है। उन्होंने सरकार को याद दिलाया कि यह वही सरकार है, जो अपनी “डबल इंजन” वाली सरकार के प्रचार-प्रसार में जुटी रहती है, लेकिन जब वास्तविक जरूरत थी, तो यह सरकार पीछे हट गई।

महबूब आलम ने राज्य सरकार की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि बिहार के 95 लाख परिवार 6 हजार रुपये की न्यूनतम आय पर जीवन यापन कर रहे हैं, जो कि राज्य की गरीब जनता के लिए काफी चिंताजनक है। राज्य में आशा, जीविका, रसोइया, आंगनबाड़ी और अन्य स्कीम वर्कर्स को न्यूनतम मानदेय तक नहीं मिल रहा है। वे सड़कों पर अपने अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे हैं, लेकिन सरकार उनके मुद्दों पर ध्यान नहीं दे रही है।

महबूब आलम ने राज्य में दलितों, अल्पसंख्यकों और महिलाओं पर बढ़ती हिंसा का भी मुद्दा उठाया। उन्होंने कहा कि राज्य में सुरक्षा का माहौल लगातार बिगड़ रहा है और सरकार इस पर कोई कार्रवाई नहीं कर रही है। खासतौर पर स्नेहा कुशवाहा कांड ने यूपी और बिहार सरकार की नाकामी को उजागर किया है। इसके अलावा, मॉब लिंचिंग और अल्पसंख्यकों पर हमलों में बढ़ोतरी हो रही है, जो कि राज्य के सुशासन के दावों की पोल खोलने के लिए पर्याप्त है।

महबूब आलम ने यह भी कहा कि कब्रिस्तान की ज़मीन पर दबंगों द्वारा कब्जा किया जा रहा है, जो कि असंवेदनशीलता की एक और मिसाल है। सरकार इस पर कोई ठोस कदम उठाने के बजाय, अपनी नाकामी पर पर्दा डालने की कोशिश कर रही है।

महबूब आलम ने बिहार में शिक्षा की स्थिति पर भी गंभीर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि राज्य में 80 प्रतिशत से अधिक ड्रॉपआउट हैं और पलायन की दर लगातार बढ़ रही है। उच्च शिक्षा की स्थिति भी बहुत खराब है और शिक्षा व्यवस्था पूरी तरह से भ्रष्टाचार में घिरी हुई है। राज्य सरकार ने शिक्षा के क्षेत्र में कोई ठोस सुधार नहीं किया है, जिसके कारण छात्रों का भविष्य अंधकारमय हो गया है।

इसके साथ ही, उन्होंने कहा कि जब महागठबंधन की सरकार थी, तब स्थायी शिक्षकों की बहाली की प्रक्रिया शुरू की गई थी, लेकिन भाजपा-जदयू की सरकार ने इस प्रक्रिया को रोक दिया। खासकर टीआरई 3 के अभ्यर्थी सप्लीमेंट्री रिजल्ट के लिए लाठियां खा रहे हैं, लेकिन सरकार इस पर ध्यान नहीं दे रही है। महागठबंधन सरकार के दौरान टीआरई 1 का सप्लीमेंट्री रिजल्ट निकाला गया था, लेकिन अब सरकार इस पर क्यों नहीं काम कर रही है?

महबूब आलम ने भाजपा-जदयू की सरकार को हर मोर्चे पर असफल और दमनकारी बताया। उन्होंने कहा कि बिहार की जनता अब बदलाव चाहती है और 2 मार्च को पटना के गांधी मैदान में होने वाला महाजुटान इसका सबसे बड़ा उदाहरण होगा। बिहार की जनता अब ढकोसला नहीं, बल्कि वास्तविक बदलाव चाहती है। उन्होंने कहा कि यह महाजुटान केवल एक राजनीतिक प्रदर्शन नहीं, बल्कि राज्य में हो रहे अन्याय और दमन के खिलाफ एक आवाज़ होगी, जो राज्य के हर नागरिक को प्रभावित करेगी।

(प्रेस विज्ञप्ति)

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