Tuesday, March 19, 2024

सरकार ने दिया है जोशीमठ सरीखी आपदाओं को न्योता: अतुल सती

(जनचौक की कंट्रीब्यूटिंग एडिटर अल्पयु सिंह ध्वंस के कगार पर खड़े जोशीमठ के दौरे पर गयी थीं। उन्होंने वहां से कई गंभीर और जानकारी भरी रिपोर्टें दी हैं। जिनको डॉक्यूमेंटरी और टेक्स्ट की शक्ल में जनचौक पर दिया गया है। इसी दौरे में उन्होंने इस आंदोलन के सबसे महत्वपूर्ण नेता अतुल सती से मुलाकात की और उनसे लंबी बातचीत की। पेश है उनका पूरा साक्षात्कार-संपादक)  

सवाल: जोशीमठ किस ओर बढ़ रहा है ?

अतुल सती: मेरा कहना इस पर ठीक नहीं है। मैं केवल Quote कर देता हूं।गढ़वाल मंडल के आयुक्त साहब ने मुख्यमंत्री के साथ हुई बैठक में हमसे कहा कि 40 फीसदी शहर नहीं रहेगा। अब ये कोई वर्गाकार जगह नहीं है, मैदान नहीं है,ये तो एक ढलान पर बसा शहर है और ढलान पर अगर आप एक तरफ का चालीस फीसदी काटेंगे तो बाकी का क्षेत्रफल यानि ढलान बचेगी नहीं। मैंने मुख्यमंत्री के सचिव मीनाक्षी सुंदरम के साथ हुई बैठक में पूछा कि जोशीमठ में जो कुछ होने वाला है उसके बारे में उन्हें स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए। इस पर उन्होंने कहा कि वो भी ये नहीं जानते कि क्या होने वाला है, उन्होंने कहा कि ये तो वैज्ञानिक ही बता सकते हैं। तब हमने उनसे कहा कि वैज्ञानिक यहां इतने दिनों से घूम ही रहे हैं और इसलिए आपको तो पता होना चाहिए। लेकिन उन्होंने कहा कि वो इस सवाल का जवाब नहीं दे सकते।

मैं उस  बैठक का  बहिष्कार कर बाहर आ गया। तो अब आपके सवाल पर आएं और देखें कि जोशीमठ किस ओर बढ़ रहा है तो इसे ऐसे देखने की ज़रूरत है कि दरारें लगातार बढ़ रही हैं।जहां 14 महीने पहले सिर्फ 10-12 घरों में दरारें थीं अब 700 से ज्यादा घरों में  ऐसी दरारें आ चुकी हैं, कहने का मतलब ये हर रोज़ बढ़ ही रहा है। बात सिर्फ दरारों की होती तो कुछ और बात थी लेकिन अब तो घरों से 

atul
अतुल सती

पानी निकल रहा है और उस पानी को देखकर लग रहा है कि ये एनटीपीसी टनल का पानी है जो बाहर आ गया है। हमारी ये आशंका आज की नहीं है। पिछले 18 साल से हम ये बात कह रहे थे, लगातार हम इस पर बोल रहे थे और दुख इस बात का है कि हमारी आशंकाएं सच साबित हो गईं।

सवाल: सवाल सिर्फ 25 हज़ार लोगों के विस्थापन का ही नहीं है, लोगों में खासा डर और अनिश्चितता है। इन सारे मसलों पर सरकार का रवैया कैसा है? आप क्या कहेंगे ?

अतुल सती:मैं लगातार ये बात कह रहा हूं कि आपदा अभी आई नहीं है,आपदा आने वाली है और ज्यादा खतरनाक है।आ चुकी होती और हम डूब चुके होते तो आप लोग हमारी लाशों का फोटो खींच रहे होते तो अलग बात थी तब तो हमें पता नहीं चलता। समझने वाली बात ये है कि ये आपदा मल्टीडाइमेंशनल

है। रैणी में फरवरी 2021 को आई आपदा के दौरान हम कई मानवीय किस्सों के गवाह रहे थे। मैंने उनका ज़िक्र भी किया है कि कैसे एक परिवार के तीन बेटे  

आपदा के शिकार हो गए। आपदाएं हर उम्र, हर वर्ग के लोगों पर अलग-अलग असर डालती हैं। कोई खेती -बाड़ी पर निर्भर है तो कोई दूध बेचकर घर चला रहा है।मज़दूर, गरीब और किसान सब लोग यहां हैं।

कुछ लोग ऐसे हैं जो व्यापार से जुड़े हैं। कई लोग ऐसे हैं जो होटल और रेस्टोरेंट के काम में लगे हैं। बहुत बड़ी तादाद ऐसे लोगों की भी है जो रोज़ कमाते और खाते हैं। कहने का मतलब ये है कि आपदा बहुआयामी है और इसके प्रभाव भी बहुआयामी होने वाले हैं।

atul sati
अतुल सती से बात करती अल्पयु सिंह

इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए हमने इस सरकार से मांग की है कि आप एक हाई- लेवल कमेटी बनाएं, उसको पावरफुल करें और स्थानीय लोगों को उसमें शामिल किया जाए। हमने सरकार से कहा था कि हम भी इस कमेटी का हिस्सा बनने के लिए तैयार हैं। हम सरकार के कंधे से कंधा मिलाकर इसे हल कर सकते हैं। हम इसे इसलिए हल कर सकते हैं क्योंकि 

एक तो हमने बहुत सारी आपदाएं देखी हैं। दूसरी बात ये है कि लोगों से हमारा एक कनेक्शन है, वो हमारी बात सुनते हैं। इसलिए हम इस आपदा के समय लोगों को समझाने में सरकार की मदद कर सकते हैं। दिक्कत ये है कि जब किसी का घर छूटता है तो उनकी भावनाएं चरम पर होती हैं। उन्हें समझाना और उनके दर्द को सुनना बेहद ज़रूरी है। इसलिए हमने सरकार से कहा कि पूरी प्रक्रिया को और मानवीय बनाना चाहिए। सरकार को हमने सलाह दी कि आप लोकल लेवल पर  को-ऑर्डिनेशन कमेटी बनाएं, उसमें वॉर्ड मेम्बर्स को रखें, लोगों को कमेटी में जगह दीजिए उनके साथ समन्वय बना कर चलिए।

2021 की आपदा में ऐसा ही किया गया, कोई को-ऑर्डिनेशन नहीं हुआ, हमारे लिखने और बोलने का कोई फ़र्क नहीं पड़ा। वहां हुआ ये कि जब टीवी कैमरे वापस चले गए तो लोगों को उनके हाल पर छोड़ दिया गया। ऐसा ही पैटर्न हमेशा देखने को मिला। केदारनाथ त्रासदी में यही हुआ।यही 1991 में हुआ और 1998 में भी देखने को मिला ।हम सब देखते रहे हैं।

अब तो आपदाओं का परनाला खुल गया है। उत्तराखंड में कई दूसरी जगहें ऐसी आपदाएं घटने के लिए तैयार बैठी हैं, आशंका है कि कई जगहों पर भू-स्खलन की घटनाएं देखने को मिल सकती हैं।

इसीलिए हमने आपदा प्रबंधन के सचिव से कहा था कि जोशीमठ के केस को एक केस स्टडी की तरह लिया जाना चाहिए। जोशीमठ को एक पायलट प्रोजेक्ट की तरह लीजिए लेकिन जो कुछ यहां होना चाहिए वही नहीं हो रहा है तो दूसरी जगहों की क्या बात करें ?

सवाल: आपने जैसे कहा कि जोशीमठ तो अब हमारे सामने है, लेकिन दूसरे कई इलाके हैं जो इस संकट से दो चार होने वाले हैं, तो वो कौन से ऐसी जगहें हैं 

जो खतरे की जद में हैं और उन्हें कैसे बचाया जा सकता है ?

अतुल सती: मैं कई बार बता चुका हूं कि उत्तराखंड का पहाड़ी क्षेत्र यानी धारचुला से लेकर उत्तरकाशी तक सारा इलाका खतरे के मुहाने पर है। अनियंत्रित विकास की वजह से ये खतरा दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। ये इलाके कमज़ोर पहाड़ और नए हिमालय के क्षेत्र पर बसे हैं पर इंसान ने इनके साथ बहुत अत्याचार किया है। हम केदारनाथ जैसी बड़ी त्रासदी देख चुके हैं। सरकार ने कहा था कि 6 हज़ार लोग मरे हैं तो क्या सिर्फ 6 हज़ार की ही मौत हुई थी? कहने का मतलब है कि हम बहुत बड़ी आपदा को न्योता दे रहे हैं। ऑल वेदर हाईवे और 

रोड कटिंग के काम ने काफी नुकसान किया है। एक रिपोर्ट के मुताबिक इसने 145 भूस्खलन के ज़ोन पैदा कर दिए हैं। दिक्कत रेलवे की परियोजनाओं को लेकर भी हैं, जिन्होंने जगह-जगह सुरंगें बनाकर खासा नुकसान किया है। देवप्रयाग से लेकर रुद्रप्रयाग तक सारा इलाका आपने खोद डाला है ।वहां के लोग परेशान हैं। धारचुला, नैनीताल और कर्णप्रयाग से लेकर कितनी ही ऐसी जगहें हैं जो 

इस खतरे की जद में हैं। इसलिए पहाड़ का कोई क्षेत्र सुरक्षित नहीं है। पीएम अंतर्राष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस में कार्बन उत्सर्जन कम करने का वादा करते हैं।लेकिन यहां जोशीमठ के लोगों को उनके हाल पर छोड़ दिया गया है। समझने की ज़रूरत है कि जोशीमठ को बचाने की जिम्मेदारी सबकी थी, जो नहीं निभाई गई।

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

Related Articles