सरकारी टेलीकॉम कंपनी को बर्बाद कर देने वाली केंद्र सरकार ने निजी टेलीकॉम कंपनी VI (वोडाफोन आईडिया) में 35.8 % हिस्सेदारी ली है। सरकारी राहत पैकेज के तहत कंपनी ने सरकार को कर्ज के बजाय इक्विटी देने का फैसला किया है। गौरतलब है कि वोडाफोन आइडिया (VI) पर एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू (AGR) और स्पेक्ट्रम का बकाया है। इसके साथ ही इसका ब्याज भी है। इसी के आधार पर सरकार को 35.8% हिस्सेदारी मिलेगी।
डिपॉर्टमेंट ऑफ टेलीकॉम यानी डॉट इस बारे में वित्त मंत्रालय से जल्द ही चर्चा करेगा, ताकि कर्ज को इक्विटी में बदलने की प्रक्रिया पूरी हो सके। इसके पीछे की रणनीति सरकार की यही है कि निवेशकों का विश्वास कंपनी में बना रहे।
क्या सरकार VI का 35.8% हिस्सा अंबानी को बेचेगी
देश की तीसरी सबसे बड़ी टेलीकॉम कंपनी वोडाफोन आइडिया में सरकार भले ही सबसे ज्यादा हिस्सा की मालिक होगी, लेकिन वह न तो इसके बोर्ड में होगी और न ही ऑपरेशन में शामिल होगी। आज इसका शेयर 10% ऊपर है, जबकि कल 20% से ज्यादा गिरावट में था।
वोडाफोन आइडिया का ऑपरेशन और सब कुछ कंपनी पहले की ही तरह चलाएगी। सरकार केवल इसकी 35.80% की मालिक होगी। सरकार का कोई भी अधिकारी इसके बोर्ड में नहीं आएगा। यही नहीं, ज्यादा हिस्सेदारी होने के बाद भी इसे सरकारी कंपनी नहीं बनाया जाएगा।
सूत्रों के मुताबिक, जब वोडाफोन आइडिया स्थिर हो जाएगी, यानी इसका कर्ज़ और सब कुछ सही रास्ते पर आ जाएगा, तब सरकार इसमें अपनी हिस्सेदारी बेचकर बाहर निकल जायेगी।
वोडाफोन आइडिया के एमडी रविंदर टक्कर ने मीडिया में बयान देकर कहा है कि कंपनी निवेशकों के साथ लगातार बात कर रही है, ताकि फंड जुटाया जा सके। उम्मीद है कि इसे मार्च 2022 तक पूरा कर लिया जाएगा।
वोडाफोन आइडिया पर एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू (AGR) और स्पेक्ट्रम का बकाया है। इसके साथ ही इसका ब्याज भी है। इसी के आधार पर सरकार को 35.8% हिस्सेदारी मिलेगी।
इस फैसले के बाद वोडाफोन पीएलसी की हिस्सेदारी कंपनी में 44.39% से घटकर 28.5% पर आ जाएगी। जबकि आदित्य बिड़ला ग्रुप की हिस्सेदारी 27.66 से घटकर 17.8% पर आ जाएगी। टेलीकॉम कंपनियों को 12 जनवरी तक इस पर फैसला करना था और उससे एक दिन पहले ही दो कंपनियों ने इस फैसले को स्वीकार कर लिया था।
टाटा में सरकार की हिस्सेदारी 9.5%
इसी तरह का मामला टाटा टेलीसर्विसेस के साथ भी कल अंजाम तक पहुंचाया गया। जिसमें टाटा ने अपने कर्ज़ को इक्विटी में बदलने का फैसला किया।
टाटा टेलीसर्विसेस में सरकार की हिस्सेदारी 9% से ऊपर होगी। टाटा टेलीसर्विसेज पर AGR के रूप में 850 करोड़ रुपए का बकाया है। इस विकल्प को स्वीकार करने के बाद अब कंपनी में सरकार की 9.5% हिस्सेदारी हो गई है।
टाटा टेलीसर्विसेस का शेयर एक साल में 32 गुना बढ़ा है। 13 जनवरी 2021 को यह शेयर 9.33 रुपए पर था। 11 जनवरी 2022 को यह 291 रुपए पर बंद हुआ। आज 5 पर्सेंट की गिरावट है।
महंगी कीमत में 5G स्पेक्ट्रम नीलामी होने पर फुल सर्विस शुरू होना मुश्किल
दूरसंचार नियामक ट्राई ने 5जी स्पेट्रक्म की नीलामी पर स्टेक होल्डर्स से टिप्पणियां आमंत्रित की थीं, जिसके जवाब में टेलीकॉम कंपनियों ने चिंता जाहिर की है।
सीओएआई ने कहा है कि देश में कई गुना ज्यादा क़ीमत पर 5जी स्पेक्ट्रम नीलाम करने की सिफारिश की गई है। सरकार यदि यह सिफारिश मान लेती है तो दूरसंचार कंपनियों के लिए देश में 5जी की फुल सर्विस शुरू करना मुश्किल हो जाएगा।
देश में टेलीकॉम कंपनियों की आय का क़रीब 32% हिस्सा स्पेक्ट्रम पर ख़र्च होता है। अन्य किसी भी बड़े देश में यह 18% से ज्यादा नहीं है। इस लिहाज से स्पेक्ट्रम की क़ीमत अनुमानित आय के अनुपात में होना चाहिए, ताकि टेलीकॉम सेक्टर प्रगति कर सके।
दरअसल दूरसंचार नियामक ट्राई ने 5जी स्पेक्ट्रम के लिए जो न्यूनतम कीमत की सिफारिश की है, वह ज्यादातर विकसित देशों की नीलामी कीमत से कई गुना ज्यादा है।
ट्राई ने 3.5 गीगाहर्ट्ज बैंड वाले 5जी स्पेक्ट्रम की न्यूनतम कीमत 492 करोड़ रुपए प्रति मेगाहर्ट्ज रखने की सिफारिश की है। सेल्युलर ऑपरेटर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सीओएआई) ने अपनी टिप्पणी में कहा है कि हाल ही में ब्रिटेन में हुई नीलामी में 3.6-3.8 गीगाहर्ट्ज के 5जी स्पेक्ट्रम की न्यूनतम कीमत 40.03 करोड़ रुपए, हांगकांग में (3.5 गीगाहर्ट्ज) 3.87 करोड़ रुपए और पुर्तगाल में (3.6 गीगाहर्ट्ज) 1.07 करोड़ रुपए प्रति मेगाहर्ट्ज तय की गई थी।
नीलामी प्रक्रिया के बाद कभी नहीं बिके 50% स्पेक्ट्रम
सीओएआई के मुताबिक साल 2016 में नीलामी के लिए जितने स्पेक्ट्रम रखे थे, उनमें से महज 41% बिके। 2021 में तो यह आंकड़ा 37.1% पर सिमट गया। यह अर्थव्यवस्था की तरक्की के लिए एक बड़ा मौका गंवाने जैसा है। स्पेक्ट्रम की न्यूनतम क़ीमत स्पेक्ट्रम के वैल्युएशन के 50% से ऊपर नहीं होनी चाहिए।
2जी स्पेक्ट्रम आवंटन ने यूपीए सरकार गिरा दी
2जी स्पेक्ट्रम के आवंटन प्रक्रिया पर भाजपा और कैग ने मिलकर एक फर्जी घोटाला रचा। जिसे कार्पोरेट मीडिया ने ख़बर की शक्ल में इतनी बार चलाया कि केंद्र सरकार ही गिर गई।
मामला साल 2010 में सामने आया जब भारत के महालेखाकार और नियंत्रक (कैग) ने अपनी एक रिपोर्ट में साल 2008 में किए गए स्पेक्ट्रम आवंटन पर सवाल खड़े करते हुये कोर्ट का रुख किया था।
दरअसल कैग ने अपनी रिपोर्ट में आकलन व्यक्त किया था कि 2जी घोटाले की वजह से राजस्व को 1.76 लाख करोड़ रुपये के राजस्व का भारी नुकसान हुआ। कैग रिपोर्ट के आधार पर सीबीआई ने अपने आरोप पत्र में कहा था कि 2जी स्पेक्ट्रम लाइसेंस आवंटन में राजस्व को 30,984 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था। उच्चतम न्यायालय ने दो फरवरी 2012 को लाइसेंस आवंटन निरस्त कर दिए थे।
डॉ मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने 2जी स्पेक्ट्रम कंपनियों को नीलामी की बजाय पहले आओ और पहले पाओ की नीति पर लाइसेंस दिए थे।
भारत के महालेखाकार और नियंत्रक ने आरोप लगाया कि सरकारी खजाने को अनुमानत 1 लाख 76 हजार करोड़ रुपयों का नुक़सान हुआ। जबकि अगर लाइसेंस नीलामी के आधार पर दिए जाते तो ख़जाने को कम से कम एक लाख 76 हज़ार करोड़ रुपए और हासिल हो सकते थे।
लोकसभा चुनाव के बीच मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और मामले में तत्कालीन दूर संचार मंत्री ए. राजा के अलावा मुख्य जांच एजेंसी सीबीआई ने सीधे-सीधे कई और हस्तियों और कंपनियों पर आरोप तय किए थे।
पूर्व दूर संचार मंत्री पर आरोप था कि उन्होंने साल 2001 में तय की गई दरों पर स्पेक्ट्रम बेच दिया जिसमें उनकी पसंदीदा कंपनियों को तरजीह दी गई। क़रीब 15 महीनों तक जेल में रहने के बाद ए. राजा को ज़मानत दी गई। तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री एम. करुणाधि की बेटी कनिमोझी को भी मामले में जेल जाना पड़ा था और उन्हें बाद में ज़मानत मिली। इनके अलावा राजनीतिक और उद्योग जगत की कई और बड़ी हस्तियों को इस मामले से जुड़े अलग-अलग आरोपों में हिरासत में लिया गया।
कोर्ट ने फैसले में कहा था कुछ लोगोत ने तथ्यों को मरोड़कर फर्जटा घोटाला पैदा किया
21 दिसंबर 2017 को पटियाला कोर्ट ने इस मामले में फैसला सुनाते हुए पूर्व दूरसंचार मंत्री ए. राजा, द्रमुक सांसद कनिमोझी समेत सभी आरोपियों को बरी कर दिया।
कोर्ट ने कहा था कि दो पक्षों के बीच पैसों का लेन-देन होने का कोई सबूत नहीं है। कुछ लोगों ने चालाकी से कुछ चुनिंदा तथ्यों का इंतजाम किया और एक घोटाला पैदा कर दिया जबकि कुछ हुआ ही नहीं था।
विशेष सीबीआई न्यायाधीश ओपी सैनी ने फैसला सुनाते हुए कहा कि दूरसंचार विभाग के संबंधित सरकारी अधिकारियों के विभिन्न कार्यकलापों और अकर्मण्यता की वजह से हर किसी ने समूचे मामले में एक बड़ा घोटाला देखा।
राजा और अन्य से संबंधित सीबीआई के मामले में अदालत ने अपने 1,552 पन्नों के आदेश में कहा, हालांकि अधिकारियों के विभिन्न कार्यकलापों और अकर्मण्यता के चलते, जैसा कि ऊपर उल्लिखित है, किसी ने भी दूरसंचार विभाग के रुख पर भरोसा नहीं किया और हर किसी ने एक बड़ा घोटाला देखा जबकि कुछ हुआ ही नहीं। इन कारकों ने लोगों को एक बड़े घोटाले के बारे में अटकलों के लिए विवश किया।
सैनी ने कहा, इस तरह, कुछ लोगों ने चालाकी से कुछ चुनिंदा तथ्यों का इंतजाम कर और चीजों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश कर एक घोटाला पैदा कर दिया।
विशेष न्यायाधीश ने यह भी कहा कि दूरसंचार विभाग के नीतिगत फैसले विभिन्न फाइलों में बिखरे हुए थे और इसलिए उनका पता लगाना तथा उन्हें समझना मुश्किल था।
(जनचौक के विशेष संवाददाता सुशील मानव की रिपोर्ट।)