रांची। सरकार की स्कीम के तहत माओवादी हिंसा के शिकार किसी भी व्यक्ति के आश्रित को तीन लाख का मुआवजा दिया जाएगा। जिसके तहत एक लाख राज्य सरकार और दो लाख केंद्र की सिक्योरिटी रिलेटेड एक्सपेंडिचर (एसआरई) फंड देगा।
इसके अलावा हिंसा के शिकार के आश्रित को तृतीय व चतुर्थ वर्ग की सरकारी नौकरी दी जाएगी। किंतु झारखंड में सरकारी दावों के बीच अभी तक हाल में मारे गए आदिवासियों के आश्रितों को कोई मुआवजा नहीं मिल सका है।
झारखंड राज्य में आदिवासियों की क्या स्थिति है, यह टाटा शहर के बसने के इतिहास से ही पता चल जाता है। 15 नवंबर 2000 को आदिवासी राज्य के तौर पर झारखंड की स्थापना की गई। जिसका मुख्य संकल्प आदिवासियों के उत्थान के लिए काम करना तथा उन तक सारी सरकारी सुविधाओं को पहुंचाना था। इसकी एक कड़ी थी राज्य में माओवादी हिंसा को खत्म करना।
झारखंड में चार माओवादी इलाकों में एक कोल्हान का सारंडा जंगल है। सरकारी दावों के अनुसार इस क्षेत्र के सबसे ज्यादा नक्सल प्रभावित क्षेत्र टोंटो और गोइलकेरा थाना को माओवाद के प्रभाव से 95 प्रतिशत तक मुक्त करा लिया गया है। इसके बाद भी सारंडा के जंगल में सुरक्षा बल और माओवादी मुठभेड़ में आम आदिवासियों को अपनी जान गंवानी पड़ रही है।
इतना ही नहीं कई बार IED ब्लास्ट में भी कई लोगों की मौत हो जाती है। जंगल में वनोपज लाने के दौरान होने वाली ऐसी घटनाओं में मारे गए लोगों को सरकारी मुआवजा देने का प्रावधान है।
चुनावी यात्रा की दौरान जनचौक की टीम ने कोल्हान की माओवाद प्रभावित इलाकों का दौरा कर यह जानने की कोशिश की कि क्या माओवादी हिंसा में मारे गए लोगों को किसी तरह का कोई मुआवजा मिला है कि नहीं।
इसके लिए हमारी टीम चाईबासा से लगभग 40 किलोमीटर दूर गोइलकेरा गई। जहां हमने हिंसा से प्रभावित इलाकों के बारे में जानने की कोशिश की।
न विधवा पेंशन, न बेटे की मौत का मुआवजा
रान्डोय पूर्ति (50) गोइलकेरा की रहने वाली हैं। उनके बेटे सिंगाराय पूर्ति की दिसंबर 2022 में IED ब्लास्ट में मौत हो गई। लगभग दो साल बिताने के बाद भी उन्हें मुआवजा नहीं मिल पाया है। वह गांव में अपने दो बेटे के साथ कच्चे मकान में रहती हैं।
घटना वाले दिन के बारे में वह बताती हैं कि “मेरे बेटे की नई-नई शादी हुई थी। वह अपने ससुराल गया था। वहीं परिवार के सदस्यों के साथ जंगल गया और ब्लास्ट में उसकी मौत हो गई”।
वह आगे कहती हैं ‘बेटे की मौत के बाद उसके पार्थिव शरीर को यहां लाया गया। थाने से बड़ा बाबू (एसएचओ) आए थे। एफआईआर लिखकर ले गए। उसके बाद न कोई आया और न ही कोई पैसा मिला है’।
रान्डोय अपने घर में अब दो बेटों के साथ रहती हैं। बेटे की मौत के बाद बहू ने दूसरी शादी कर कर ली है। वह बताती हैं “बच्चे जब छोटे थे तब ही पति की मृत्यु हो गई। खेती किसानी करके बच्चों को पाला है।
अब मेरी उम्र ज्यादा हो गई इसलिए ज्यादा काम नहीं कर पाती हूं। न तो मुझे सरकारी राशन मिलता है और न ही विधवा पेंशन”।
इस गांव के मुंडा (सामजिक प्रधान) पंचा सोरेन हमें रान्डोय के घर लेकर गए थे। उन्हें भी इस घटना के बारे में पूरी जानकारी है। वह कहते हैं ‘बेटे की मौत के बाद रान्डोय की दिमागी स्थिति ठीक नहीं है। बेटा घर का सहारा था। अब वह भी नहीं रहा तो इन्हें कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है’।
साल 2022 की घटना का जिक्र करते हुए वह बताते हैं कि हमारे सामने ही पुलिस ने सारी कार्रवाई पूरी की। बोला गया था कि मुआवजा मिलेगा, लेकिन लगभग दो साल बीत जाने के बाद कुछ नहीं हुआ है।
आंखों के सामने पति की मौत
इसके बाद हम गोलइकेरा के ईचाहतू गांव गए। गांव की पहाड़ी पर रहती है नंदी पूर्ति। पहाड़ी पर घर होने के कारण चारों तरफ पेड़ पौधे हैं। घर पर नंदी के चार बच्चे और बहू हैं।
नंदी के घर के बाहर कई एल्यूमिनियम के बड़े बर्तनों में पानी भरकर रखा गया है क्योंकि वहां पानी नहीं आता। परिवार के सदस्य दूर कहीं से पानी लेकर आते हैं। घर में बिजली भी नहीं है।
मिट्टी के घर में सिवाय बर्तन और बिस्तर के कुछ नहीं था। नंदी के पति कृष्ण पूर्ति की उसकी आंखों के सामने ही आईडी ब्लास्ट में मौत हो गई।
वह बताती हैं ‘मैं और मेरे पति दोनों जंगल की तरफ जा रहे थे। घर से निकले और कुछ दूरी तक गए। पति आगे थे और मैं पीछे, कदम आगे बढ़े और ब्लास्ट हो गया। वह दूर जा गिरे और उनकी मौत उसी समय हो गई। मैं तो इस घटना से बहुत डर गई।
वह आगे बताती हैं इस घटना के बाद थाने से बड़ा बाबू आए और एफआईआर लिखकर ले गए। लेकिन बाद में न कोई अधिकारी आया और न ही कोई मुआवजा मिला। घर की आर्थिक स्थिति खराब होने लगी तो बड़ा बेटा गुजरात काम करने चला गया है। बाकी बच्चे पढ़ते हैं’।
सरकारी राशन से भी वंचित
नंदी बताती हैं कि पति की मौत के बाद राशन भी मिलना बंद हो गया है। राशन कार्ड में पति के फिंगर लगे हुए थे। अब उनकी मौत के बाद न तो कोई राशन कार्ड की समस्या हल करके दे रहा है और न ही मुझे पेंशन मिल रही है। जबकि इसके लिए मैं कई बार संबंधित लोगों से मिली और गुहार लगाते थक चुकी हूं।
वह कहती हैं मुआवजे के पैसों में देरी होने पर मैंने पंचायत में भी इसकी शिकायत की। लेकिन इसका कोई जवाब नहीं आया है। पति की मृत्यु को डेढ़ साल हो गए हैं। अब हमलोग राशन से भी वंचित हो गए।
नंदी यह सारी बातें बहुत गुस्से में कहती हैं। उसे गुस्सा है कि मौत की खबर और उसकी समस्या कई बार खबरों में आऩे के बाद भी कोई इस पर किसी भी तरह से कोई भी संज्ञान नहीं ले रहा है। उसने हमसे कहा, इस बार भी लिखकर ले जाओ, छाप दो लेकिन कोई फायदा नहीं होगा।
पुलिस विभाग द्वारा जानकारी नहीं दी गई
हमने इन मुआवजों के बारे में पश्चिम सिंहभूम के उपायुक्त कुलदीप चौधरी से बात की। उन्होंने कहा कि ‘पुलिस विभाग द्वारा अभी पूरी जानकारी मुहैय्या नहीं कराई गई है। पहाड़ी और जंगल का इलाका होने के कारण कई जगहों पर पहुंचने में समय लग जाता है। प्रक्रिया पूरी होने के बाद आश्रितों को मुआवजा दिया जाएगा’।
उपायुक्त के अनुसार जांच के दौरान यह भी जानकारी प्राप्त हुई है कि कईयों के पास पूरे दस्तावेज नहीं है। जिसके कारण इसमें देरी हो रही है।
सरकार की प्राथमिकता में नहीं हैं आदिवासी
माओवादी हिंसा पर काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता सिराज दत्ता का कहना है कि “इस तरह की चीजों से यह साफ है कि आदिवासी किसी भी स्थिति में सरकार की प्राथमिकता में नहीं है। जबकि इन्हीं इलाकों से खनिज निकाला जा रहा है। लेकिन आदिवासियों को किसी तरह की सुविधा नहीं दी जा रही है”।
वह आगे कहते हैं कि हमारे पास इस संबंध में जितनी भी जानकारी है उसके अनुसार फिलहाल किसी को भी कुछ नहीं मिला है। स्थिति यह है कि कोर्ट के आदेश पर तुरंत मुआवजा मिल जाता है, लेकिन बिना इसके कोई सुध भी नहीं लेता। जबकि हिंसा भले ही पुलिस फोर्स के द्वारा हो या माओवादियों द्वारा, हिंसा सहने वाले आदिवासी किसी की भी प्राथमिकता में नहीं है।
सामजिक संगठन द्वारा चाईबासा के अंदरुनी इलाकों में पीछे दो सालों में मारे गए और घायल हुए लोगों की एक सूची जारी की गई है। जिसमें दो साल के अंदर 12 लोगों की आईडी की चपेट में आने से मौत हुई और छह लोग घायल हुए हैं।
(झारखंड से पूनम मसीह की ग्राउंड रिपोर्ट।)
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