चंदौली। उत्तर प्रदेश में डोम समाज की बेबसी और बदहाली की एक बानगी देखिये, पता सैयदराजा बाजार में जीटी रोड (जनपद-चंदौली) के किनारे करीब साठ साल से रहते आ रहे सैकड़ों भूमिहीन-दलित डोम समाज के ऊपर आफत आई हुई है। आलम यह है कि इनकी पीड़ा, तकलीफ और अरजी कोई सुनने को तैयार नहीं है। ना ही समाज के जिम्मेदार, अधिकारी और ना ही आम नागरिकों को इनकी पीड़ा दिखाई और आह सुनाई दे रही है।
डोम समाज की महिला, पुरुष, बच्चे और किशोरवय लड़कियां समूची गृहस्थी के साथ खुले आसमान के नीचे दिन-रात काटने को मजबूर है। इतना ही नहीं आसमानी आंधी, तूफान, बारिश और लू में इन लोगों को छोटे बच्चों के साथ कई दिनों तक फांका भी करना पड़ता है। क्योंकि बांस के चार डंडे पर बिछी तिरपाल ही इनका घर है। लू में आग लगने का डर वहीं, बारिश में राशन, कपड़े, ईंधन-जलावन की लकड़ी भीग जाने से इनको सुबह के इंतजार में संतोष करना पड़ता है।
जनचौक की टीम बुधवार को तकरीबन ढाई बजे दोपहर में सैयदराजा में स्थित डोम समाज की बस्ती में पहुंची। जहां सुबह से बच्चे भूख से कुलबुलाते सड़क पर घूम रहे थे, वहीं भोजन पकाने के लिए ईंधन-लकड़ी, तेल-राशन और पानी की व्यवस्था में जुटे डोम समाज का कुनबा मिला। पेश है सैयदराजा से पवन कुमार मौर्य की ग्राउंड रिपोर्ट:
अधेड़ उम्र की प्रभावती अपनी बस्ती में टहल रही हैं। बस्ती सड़क से लगी है। सड़क के फुटपाथ के पीडब्ल्यूडी की जमीन है। जिसमें डोम समाज की बस्ती बसी है। सड़क के दक्षिण दिशा में इनके घरों से ठीक पहले नाला है। जिसमें बाजार व कस्बे का नाबदान वा दूषित पानी बहता है। नाला इनके घरों के सामने खुला हुआ है और सदैव पानी से भरा रहता है।
बारिश के दिनों में जल-जमाव और गर्मी के दिनों में चिलचिलाती धूप में जन-जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है। दिन के समय में मोटर गाड़ियों की आवाजाही से निकलने वाला कानफाडू शोर से सहज ही तबीयत बिदक जाती है। इन वाहनों से रात में हादसे का भय बना रहता है। बिजली-बत्ती और साफ-सफाई के अभाव में जानलेवा मच्छरों का आतंक, यानि सैयदराजा के इन डोम समाज के लोगों को न दिन में ही आराम और ना ही रात को चैन।
बस्ती में तिरपाल की बनी झुग्गी में कपड़े, बर्तन और खाट पड़े हैं, सोमवार-मंगलवार को हुई बारिश में सबकुछ भींग गया है। घरों व घरों के आसपास जल-जमाव होने से ये लोग अक्सर सोने-बैठने के लिए फुटपाथ पर चरपाई लगाते हैं। नाला, नाबदान, और साफ़-सफाई के कामों से 150-200 रुपए की दिहाड़ी से परिवार के भरण-पोषण को ही पूरे नहीं पड़ते हैं। सरकारी राशन कोटे से मिलने वाला महीने भर का अनाज दो हफ्ते से अधिक नहीं चल पाता है।
हाल के दिनों ने इनकी शिकायत है कि इनको आसपास के व्यापारी और दबंग इनकी बस्तियों को उजाड़ने में लगे हैं। छोटी जात और दुकान-मकान के सामने पड़ने वाली इनकी बस्ती भूमाफिया के आंख का कांटा बन गई है। लिहाजा, कुछ ही दिनों पहले छबीले डोम की झुग्गी-झोपड़ी को स्थानीय एक बनिया-व्यापारी ने उजाड़ दिया और गृहस्थी का सारा सामान सड़क के किनारे फेंक दिया। जहां (पीडब्ल्यूडी की जमीन) ये साठ साल से रहते आ रहे थे। अब उससे भी बेदखल किया जा रहा है। इनके पास कोई आश्रय ही नहीं बचा है, खुला आसमान और फुटपाथ ही इनकी समूची दुनिया है।
प्रभावती देवी “जनचौक” से कहती हैं कि “मैं यहां साठ बरस से रह रही हूं। अभी तक सरकारी आवास की सुविधा नहीं मिली है, लोग वोट लेने के वक्त आवास दिलाने का वादा करते हैं, चुनाव बितने के बाद जनप्रतिनिधि हमलोगों की परेशानियां और किये वादे भूल जाते हैं। मैं यह वादा खिलाफी कई दशकों से देखते-देखते अब बुढ़ापे के करीब आ गई हूँ। मेरा घर जीटी रोड के उत्तर दिशा में था, जिसे स्थानीय चिरकुट पांडे नामक व्यक्ति ने ढहा दिया और सारा सामान सड़क पर फेंक दिया।
तब से अब यहां झुग्गी लगाकर रह रही हूं। यहां भी बनिया परेशान कर रहा है। हम लोग दिहाड़ी कर अपना और परिवार का भरण-पोषण करें कि दबंगों-गुंडों से लड़ाई-झगड़ा करें। मेरे परिवार में कुल 30 सदस्य हैं। सैयदराजा कस्बे में डोम समाज की आबादी 200 से अधिक है। झुग्गी उजाड़ने और प्रताड़ित किये जाने की वजह से हमारे परिवार को दो वक्त की रोटी खाने-पकाने की कोई सुव्यवस्थित जगह नहीं बची हैं।”
प्रभावती आगे कहती हैं “बुधवार को बारिश की वजह से न सुबह और न ही शाम को भोजन बन सका। इसके चलते सभी को बच्चे समेत भूखे पेट समय काटना पड़ा। एक स्थानीय नामवर नमक व्यक्ति ने दो-दो समोसे दिए जिसे खाकर पानी पिये। आप ही बताइये दो-दो समोसे से पेट भरेगा ? उत्तर दिशा में सरकारी जमीन में बने घर को गिराए जाने से उसी के विपरीत दक्षिण दिशा में झुग्गी लगाई थी, जिसे एक बनिया-व्यापारी ने उजाड़ दिया।
मेरा चूल्हा-चौकी सब बारिश में भीगकर नष्ट हो गया है। बाल-बच्चों को लेकर रात में सड़क के किनारे सोते हैं, गुजरती मोटर-गाड़ियों से डर बना रहता है। नींद नहीं आती है। रातभर जगकर गुजारा करना पड़ता है। बहुत परेशानी में हैं हम लोग। कहीं कोई सुनवाई नहीं हो रही है।” प्रभावती के साथ-साथ छबीले चौधरी, फूलन देवी समेत कई भूख, गरीबी और उजाड़े जाने के खतरों से प्रताड़ित हैं।
अट्ठाइस वर्षीय जेजे चौधरी नगर पालिका सैयदराजा में झाड़ू और नाले की सफाई का काम करते हैं। और महीने के आठ हजार रुपए मिलते हैं। अपनी पत्नी को के साथ बुधवार की दोपहर में लगभग ढाई बजे के आसपास खाना बनाने की तैयारी में जुटे थे। उनके परिवार में एक बेटी और एक बेटा समेत कुल चार सदस्य हैं।
वह बताते हैं कि “आठ हजार रुपए से क्या होता है ? आज दोपहर के दो बज चुके हैं, अभी बासी मुंह हैं। मंगलवार की बारिश में भूखे ही रहना पड़ा। बारिश में ईंधन, राशन और लकड़ी के भींग जाने से जैसे-तैसे व्यवस्था कर अभी खाना बनाने जा रहे हैं, ताकि बच्चों और खुद को भूखा नहीं रहना पड़े। सभी सुविधाएं अमीरों के पास ही जा रही हैं, हमलोगों को गैस सिलेंडर (उज्ज्वला योजना) नहीं मिला है। बिजली नहीं है। नाले के पानी में पनपने वाले मच्छर की वजह से मच्छर दिन रात काटते हैं। जिससे कई बार हम लोग बुखार की चपेट में आ जाते हैं। हमारी परेशानियों पर कोई बात नहीं करना चाहता।”
जेजे आगे कहते हैं “हमलोगों को हो रही दिक्कत\परेशानी की बात कोई नहीं सुनता है, न नगर पालिका का चेयरमैन और न ही सैयदराजा विधानसभा के बीजेपी के विधायक सुशील सिंह। विधायक प्रत्येक शनिवार के दिन आते हैं। उनका कार्यालय हमलोगों के झुग्गी के थोड़ी दूरी पर ही है। शनिवार के दिन हम लोग उनके कार्यालय में अपनी अर्जी और समस्या लेकर जाते हैं, तो विधायक जी नहीं सुनते हैं। विधायक के कार्यालय अब जाते हैं तो भगा देते हैं। विधायक को आश्वासन देते-देते पहला कार्यकाल समाप्त हो गया, अब दूसरा भी समाप्ति को ओर है।”
जेजे की पत्नी काजल भी रोटी, कपड़ा और मकान के लिए संघर्ष कर रही हैं। वह कहती हैं “कई बार विधायक को कार्यालय में आवास और बंजर भूमि पर स्थाई रूप से बसने के लिए लिखित अर्जी और पर्ची दिए, लेकिन कहीं कुछ नहीं हुआ। सुशील लगातार दूसरी बार विधायक हैं। सैयदराजा बाजार के ठीक दक्षिण में ताल में पुलिस थाने के पीछे हाइवे के पास काफी सरकारी बंजर जमीन है, लेकिन जनप्रतिनिधि वहां हमलोगों को बसाने में कोई रूचि नहीं दिखा रहे हैं, जबकि हमलोगों का जीवन बुरी तरह से प्रभावित है। ऐसी दशा में हमलोग कितने दोनों तक परिवार और बहन-बेटियों के साथ गुजारा कर पाएंगे ?
राशन मिलता है, लेकिन वह महीने भर के लिए पूरा नहीं पड़ता है। नाला खुला हुआ है। छोटे-छोटे बच्चे कई बार नाले में गिर जाते हैं। खुले नाले की वजह से मच्छर भी परेशान करते हैं। कई बार नगरपालिका अध्यक्ष से मांग करने के बाद भी नाले पर पटिया लगाकर नहीं ढका जा सका है। पास में सड़क है। बच्चे दिनभर आते-जाते रहते हैं। उनकी सुरक्षा को लेकर बहुत भय बना रहता है। सरकार से हमारी मांग है कि हमारे भूमिहीन डोम समाज को सरकारी बंजर भूमि पर आवास, शौचालय, बिजली, जल निकासी और नागरिक सुरक्षा की सुविधा के बसाया जाए, तभी हमलोग मुख्यधारा से जुड़ पाएंगे।”
गौरतलब है कि ये डोम समाज के लोग बताते हैं कि इनका भी संबंध बनारस के डोमराजा कल्लू डोम से हैं। ये लोग इन्हीं के कुनबे से हैं और कालांतर में रोजी-रोटी के लिए चंदौली, मिर्जापुर, गाजीपुर, भदोही और जौनपुर समेत पूर्वांचल के जनपदों में चले आये और यहीं के होकर रह गए हैं। सैयदराजा में बसने के कई दशकों तक इनका जीवन जैसे-तैसे चलता रहा, लेकिन हाल के एक-दो दशक में इनके जीवन पर महंगाई, भूमाफिया और दबंग चौतरफा हमला बोले हुए हैं, वो इसलिए कि इनकी बाजार में स्थित बेशकीमती जमीन को लूटा जा सके।
इन जमीनों से इन गरीबों को बेदखल कर भूमाफिया अपने कारोबार को मुफ्त में चमका सके। लिहाजा, इन गरीब, अनपढ़ और अपने क़ानूनी अधिकार की समझ नहीं होने से इनको उजड़ा जा रहा है। वहीं, एक ओर वाराणसी (बनारस) के सांसद और देश के प्रधानमंत्री अपने पहले कार्यकाल में बनारस के डोमराजा के परिवार के जगदीश चौधरी को अपना प्रस्तावक बनाया था। तब डोम समाज के लोगों में अपने साथ होने वाले भेदभाव, तिरस्कार और योजनाओं के लाभ देने में अनदेखी जैसी खामियों से राहत की बात महसूस हुई, लेकिन बनारस से 40-50 किमी दूर चंदौली जनपद में डोम समाज की चहुमुखी बदहाली और प्रतिकूल परिस्थिति में कट रहे जीवन को देखने के बाद हर हर किसी का कजेला पसीज जाएगा कि “यह भी क्या जीवन है, ना सुबह के भोजन की गारंटी और ना ही रात को चैन की नींद।”
स्वच्छकार समाज बौद्धिक संस्थान वाराणसी के प्रवक्ता व जन अधिकार पार्टी के मंडल अध्यक्ष रामचंद्र त्यागी कहते हैं कि “बीजेपी ने जिस चुनावी नारे के साथ मोदी जी को चुनाव में उतारा और बंपर जीत हासिल की। इसमें डोम समाज भी ‘सबका साथ और सबका विकास’ के नारे से जुड़कर आशान्वित था कि अब उनके दुःख के दिन जल्द ही बीतने वाले हैं। हमने सोचा समाज में जात-पात और भेदभाव की खाई पटेगी तो हम लोगों का समाज भी मुख्यधारा में शामिल हो जायेगा। समय तो बीत गया लेकिन आज भी डोम समाज जहां का तहां पड़ा है। मोदी सरकार ने हजारों करोड़ रुपए देश में स्वच्छता के नाम पर विज्ञापन में खर्च कर दिया। इससे क्या हासिल हुआ?
यदि सरकार चाहती तो स्वच्छकार समाज यानी डोम, वनवासी, खटीक और नट अन्य हाशिए के समाज के शिक्षा और मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए योजना आदि जारी कर सकती थी।”
वह आगे कहते हैं “वाराणसी, चंदौली, शहर, क़स्बा, गांव और अन्य स्थानों पर हम लोगों यानी बच्चों, महिलाओं और बुजुर्गों के साथ जातिगत भेदभाव आज भी जारी है। हाल के दशकों में बढ़ती भूमि की कीमतों से दबंग और माफिया की नजर में डोम समाज की झुग्गी-झोपड़ियां चुभ रही हैं। वह गरीब और अनपढ़ समाज को पैसे और जोर के दम पर डराकर भगा देना चाह रहे हैं।
और इनके जाने से खली हुई जमीन को अपने व्यापारिक, व्यावसायिक और आवासीय लाभ के रूप में इस्तेमाल करना चाहते हैं। यह सिर्फ सैयदराजा की ही बात नहीं है- चकिया-मोहम्मदाबाद, वाराणसी-सारनाथ (तिलमापुर) समेत पूर्वांचल भर के जनपदों में डोम-भंगी, नट और मुसहर समाज की झुग्गी-झोपड़ी को उजाड़ने की कई घटनाएं देखने-सुनने को मिल रही हैं। अपने साथ हुई ज़्यादती की शिकायत पीड़ित व्यक्ति\समाज द्वारा पुलिस थाने आदि में करने पर उचित सुनवाई या कार्रवाई नहीं हो पाती है। इससे दबंग और भूमाफिया का मन बढ़ जाता है, जो इन्हें गाहे-बगाहे डराता-धमकाता रहता है। जिससे इनका जीवन बुरी तरह से प्रभावित होता है।”
“जबकि, सूबे की सरकार का स्पष्ट निर्देश है कि भूमिहीन दलित समाज जो जहां सरकारी भूमि पर लंबे अरसे से रहता आ रहा है, उसे उचित पुनर्वास की व्यवस्था देकर ही उक्त भूमि से हटाया जा सकता है। वहीं, ग्राउंड पर स्थानीय दबंग जोड़तोड़ और रुपए के दम पर डोम समाज के लोगों को प्रताड़ित कर रहे हैं।
पीड़ित पक्ष अपनी शिकायत लेकर थाने जाता है तो उसे भगा दिया जाता है। मेरी सरकार और जिलाधिकारी से निवेदन है कि जनपद में जहां भी भूमिहीन भंगी, डोम और दलित समाज कई दशकों से रहता आ रहा है, उन्हें वहीं बसाया जाए। अन्यथा, शासकीय दृष्टि से बहुत आवश्यक होने की दशा में उचित पुनर्वास की सुविधा देकर पलायित किया जाए। ताकि, सदियों से हासिये पर पड़े डोम समाज को मुख्यधारा से जोड़ा जा सके। तभी सही मायनों में देश विकास की ओर अग्रसर होगा।”
बहरहाल, सैयदराजा के डोम समाज के जीवन को सतत विकास के पैमाने पर कसने पर हर स्तर पर शून्य ही हाथ लगेगा। रहने को न पक्का मकान, न बिजली, न साफ-सफाई, न ही स्वच्छ पेयजल और न ही इज्जतघर। कहने का मतलब यह कि जब इनके जीवन को करीब से झांकने पर हर तरह का अभाव, गरीबी, अशिक्षा, लाचारी और बीमारी में धंसती उम्र का एहसास है तो वहीं, जाति को लेकर अपमान-तिरस्कार का जहर रोजाना पीना आम बात है। अभाव और तिरस्कार सहते बेपटरी चल रहा है, चंदौली के सैयदराजा के डोम समाज के लोगों का जीवन।
मानवाधिकार जन निगरानी समिति के संयोजक व दलित मानवाधिकार कार्यकर्ता डॉ लेनिन रघुवंशी के अनुसार “उत्तर प्रदेश जमींदारी उन्मूलन अधिनियम की धारा 4 बीऍफ़ के तहत अनुसूचित जाति (एससी) और जनजाति (एसटी) के लोग वर्ष 2013 से पहले से यदि किसी भी जमीन पर रह रहा है, (खलिहान छोड़कर) तो वह उसका असंक्रमणीय भूमिधर हो जाता है। बहुत जरूरी होने पर पुनर्वास के लिए संविधान की धारा 21 के अनुसार जीवन जीने का अधिकार गरिमा के साथ, योजना बनाकर उचित पुनर्वास की व्यवस्था करनी पड़ेगी। अब जीवन जीने के अधिकार के साथ शिक्षा का अधिकार जुड़ गया है।”
“दूसरी बात, अगर एससी-एसटी को गैर एससी-एसटी जाति का व्यक्ति हटा रहा है तो उसपर अनुसूचित जाति-जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम-1989 के तहत कार्रवाई होती है। पीड़ित पक्ष को क़ानूनी सहायता और पुनर्वास की व्यवस्था होनी चाहिए। सैयदराजा कस्बे में डोम समाज जब पांच दशकों से अधिक समय से रह रहा है तो ये नैतिक विषय है, जब किसी विकास कार्य या योजना में किसी व्यक्ति की भूमि या आवास आदि का अधिग्रहण होता है तो उसे मुआवजा दिया जाता है।
बलपूर्वक इन्हें हटाया नहीं जा सकता। डोम समाज की पीड़ित महिला प्रभावती के अनुसार बलपूर्वक हटाने वाले कोई पांडे, बनिया या व्यापारी पर एससी-एसटी एक्ट के तहत मुक़दमा दर्ज किया जाना चाहिए। ऐसी स्थिति में शासन-प्रशासन को मामले को गंभीरता से लेनी चाहिए, यदि प्रशासन ढिलवाही बरत रहा है तो यह बहुत गलत बात है। यह मानवाधिकार का उल्लंघन है।”
वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता और वंचित-पसमांदा वर्ग के अधिकारों पर काम करने वाले मनीष शर्मा कहते हैं कि “समाज के आखिरी पायदान पर रह रहे लोगों के जीवन स्तर से ही योजनाओं की सफलता का मूल्यांकन होता है। बनारस या पूर्वांचल में समाज का अंतिम व्यक्ति मुसहर, नट, डोम, भंगी जाति के गरीब भूमिहीन लोग हैं। कई दशकों तक सैयदराजा नगर पालिका में होने के बाद भी जब डोम समाज लोगों के जीवन स्तर में कोई बदलाव नहीं आया है, इससे साबित होता है कि सरकारी या अन्य योजनाएं सही से काम नहीं कर रही हैं या इन्हें दिया ही नहीं जा रहा।
इतने लम्बे समय की उपेक्षा से यह साबित होता है कि सभी ने सिर्फ डोम समाज का वोट लेकर इनके हित को भुला दिया है। चाहे वह खाद्यान्न की हो, आंगनबाड़ी, कुपोषण मिटाओ, प्रधानमंत्री आवास योजना, स्वास्थ्य सुविधा या फिर बच्चों को स्कूल से जोड़ने की हो। उपेक्षित डोम बस्ती से ऐसा लगता है कि योजनाओं को भ्रष्टाचार का घुन और जातिवाद का रोग लग चुका है। सरकार, जिलाधिकारी और जिम्मेदारों को डोम समाज के पीड़ितों की परेशानियों को गंभीरता लेना चाहिए।”
(पवन कुमार मौर्य पत्रकार हैं और चंदौली व बनारस में रिपोर्टिंग करते हैं)
Yogi Baba dhyan den
इन लोगों को R & R Act के तहत वैकल्पिक निशुल्क आवास देना प्रशासन की जिम्मेदारी है l इन लोगों के लिये आवास व मोवावज़ा भी schedlued caste sub plan से दिया जा सकता है l