ग्राउंड रिपोर्ट: विद्यालय परिसर में फैला हुआ है मृत पशुओं का हाड़-मांस, संक्रामक बीमारी फैलने का खतरा

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मिर्ज़ापुर। राष्ट्र के विकास में शिक्षा की उपयोगिता काफी अहम मानी गई है। ख़ासकर प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा को बुनियादी शिक्षा की संज्ञा दी गई है। यदि बुनियादी शिक्षा रुपी ढांचा ही चरमरा जाए तो व्यक्ति के विकास की सीढ़ी डगमगाने लगती है।

सरकार प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालय की दशा में सुधार और शिक्षकों की शत प्रतिशत उपस्थिति सुनिश्चित करने, विद्यालय आने वाले बच्चों को मीनू के हिसाब से दोपहर का भोजन भी परोस रही है, बावजूद इसके ना तो प्राथमिक विद्यालयों की दशा में सुधार हो पा रहा है और ना ही प्राथमिक शिक्षा के स्तर में सुधार हो पा रहा है।

कहीं छात्रों के अनुपात में शिक्षक नहीं हैं तो कहीं छात्र नदारद हैं।

यही हाल विद्यालयों की व्यवस्थाओं का भी है। कहीं बाउंड्री वॉल है तो गेट नदारद है, कहीं कक्ष हैं तो खिड़की-दरवाजे नदारद हैं। साफ-सफाई से लेकर अन्य बुनियादी जरूरत का भी अभाव किसी से छुपा हुआ नहीं है।

यह अलग बात है कि कहने के लिए सभी ग्राम पंचायतों में सफाई कर्मियों की तैनाती की गई है जिनके कंधों पर विद्यालयों की भी साफ-सफाई का भार है, लेकिन यह कितनी सफाई करते हैं यह विद्यालयों की साफ-सफाई और मौके की स्थिति को ही देखकर सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है।

बात करें जिला मुख्यालय से सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में स्थित प्राथमिक एवं माध्यमिक विद्यालयों की व्यवस्थाओं का तो इन्हें देख रोना आता है। जहां मनमानी और अव्यवस्थाओं का बोलबाला दिखाई देता है।

जहां अधिकारी भी जाने से कतराते हैं, जिसका असर यह है कि इन इलाकों की प्राथमिक शिक्षा व्यवस्था पूरी तरह से रामभरोसे चल रही है। ऐसे में कैसे ग्रामीण बच्चों को मुक्कमल प्राथमिक शिक्षा का ककहरा ज्ञान होगा? यह विचारणीय है।

ग्रामीणांचलों के विद्यालयों की नहीं ली जाती है खोज खबर

मिर्ज़ापुर जनपद मध्य प्रदेश की सीमा से लगा हुआ है। मिर्ज़ापुर का हलिया विकास खंड क्षेत्र जंगलों, पहाड़ों वाला एरिया है। जिसके पिछड़ेपन की तस्वीर दूर से ही धुंधली नजर आती है।

अधिकारियों से लेकर जनप्रतिनिधियों की उदासीनता ही कहा जाएगा कि यहां अन्य सरकारी व्यवस्थाओं की तरह शिक्षा व्यवस्था का भी लुंज-पुंज ढांचा नज़र आता है।

शिक्षा जैसी बुनियादी व्यवस्था की पड़ताल करने के गरज से “जनचौक” टीम ने मिर्ज़ापुर जिला मुख्यालय से 85 किमी दूर तथा हलिया ब्लॉक मुख्यालय से तकरीबन 25 किलोमीटर दूर सिंगरौली, सीधी जनपद (मध्य प्रदेश) की सीमा से सटे हुए बेलाही ग्राम सभा का भ्रमण किया गया।

दिन रहा बुधवार, 25 सितंबर 2024 का, समय रहा 11.30 पर टीम विद्यालय पर पहुंचती है, तो मौके पर हेड मास्टर रमेश कुमार सहित कुछ और टीचर दिखाई दे जाते हैं। दूर से ही यह विद्यालय गांव से बाहर टापू जैसे एरिया में दिखाई देता है।

इस विद्यालय में कुल पांच शिक्षकों की तैनाती होना बताया जा रहा है। जिसमें से चार माध्यमिक विद्यालय में एक प्राथमिक विद्यालय में तैनात हैं।

बेलाही ग्राम सभा में माध्यमिक एवं प्राइमरी विद्यालय एक ही कैंपस में होने और तकरीबन 300 छात्र संख्या पर शिक्षकों की कम संख्या अध्यापकों के समक्ष तो परेशानी खड़ी करती ही है, इससे शिक्षण कार्य भी प्रभावित होता है।

ग्रामीण दबी जुबान बताते हैं कि “शिक्षकों की संख्या कम होने और शिक्षकों के बराबर ना आने से यह विद्यालय केवल नाम मात्र का विद्यालय बन कर रह गया है। यहां न तो समय से अध्यापक आते हैं और ना ही उनकी बच्चों को पढ़ाने में रूचि दिखाई देती है।

एक ही कैंपस में भले ही प्राथमिक एवं माध्यमिक विद्यालय स्थित है लेकिन यहां व्यवस्थाओं का घोर अभाव दिखलाई देता है। विद्यालय भवन का बाउंड्री वॉल हुआ है, लेकिन मुख्य गेट नदारत है, जिससे यह विद्यालय परिसर पूरी तरह से चारागाह बना हुआ नजर आता है।

अक्सर घुमंतू मवेशियों से लेकर नीलगाय इत्यादि भी विद्यालय परिसर में प्रवेश कर जाया करते हैं।

विद्यालयों में अध्यापकों के समय से न आने जाने से छात्रों की संख्या नाम मात्र की दिखाई देती है, जबकि यहां 300 बच्चों का नाम लिखा हुआ है। बेलाही गांव हलिया ब्लाक का अति पिछड़ा गांव और जंगल में बसा हुआ है।

यहां के प्रधान अशिक्षित और अति पिछड़ी जाति से ताल्लुक रखते हैं। दूसरे गांव की मुखिया (प्रधान) महिला होने के कारण अध्यापक इसका नाजायज फायदा उठाते हैं। महिला ग्राम प्रधान शर्मिला के पति कमलेश कहते हैं कि “बेलाही गांव स्थित प्राथमिक एवं माध्यमिक विद्यालयों की शिक्षा व्यवस्था पूरी तरह से बेपटरी हो चुकी है।

यहां की व्यवस्था को लेकर आवाज उठाई गई, कई बार शिकायत भी की गई, लेकिन कोई भी इस ओर ध्यान नहीं देता है। विद्यालयों में शिक्षकों के आने-जाने का कोई समय न होने से विद्यालय आने वाले छात्रों की भी संख्या कम होती गई है।”

विद्यालय भवन में मृत मवेशी के मिले हांड-मास

ग्रामीण बताते हैं कि बेलाही प्राथमिक एवं माध्यमिक विद्यालय में गेट न होने से जानवरों का यह ठौर ठिकाना बना हुआ है। चारा पानी के अभाव में पिछले कई दिनों से कैद बनी हुई एक गाय को विद्यालय भवन के अंदर तड़प-तड़प कर दम तोड़ देने के लिए विवश होना पड़ा। जिसका अस्थि-पंजर, हड्डी-पसली एवं उसका मल-कचरा मौके पर पड़ा हुआ दिखाई दिया है।

जिसे साफ कराए जाने की भी जरूरत नहीं समझी गई है। ऐसी स्थिति में कोई संक्रामक रोग भी फैल सकता है? इन सवालों का मौके पर उपस्थित अध्यापकों को भी जवाब देते हुए नहीं बना।

नाम न छापे जाने की शर्त पर एक शिक्षक ने बताया कि “इस गांव में सफाई कर्मी नदारद रहते हैं, न ही वह विद्यालय की तरफ कभी रुख करते हैं। ऐसे में हम तो झाड़ू लगाएंगे नहीं?”

गांव में सफाई कर्मी के तौर पर रामाश्रय यादव नामक व्यक्ति की तैनाती होना बताया जाता है। वे कब गांव में आते हैं, के सवाल पर ग्रामीण कहते हैं कि कभी वह गांव में झांकने तक नहीं आते हैं। इससे गांव में साफ-सफाई की व्यवस्था पूरी तरह से चरमराई हुई दिखाई देती है।”

दो किलो आलू में भगोना भर पानी वाली सब्जी

बेलाही गांव के प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों के बच्चों को दोपहर के भोजन के रूप मीनू को दरकिनार कर मनमाने तरीके से भोजन परोसा जाता है, जिसे जानवर भी अनमने ढंग से खाएंगे।

गांव निवासी सुजीत कुमार विश्वकर्मा ‘जनचौक’ को बताते हैं कि गांव में स्थित प्राथमिक एवं माध्यमिक विद्यालय बनने वाला दोपहर का भोजन महज दिखावे के तौर पर तैयार किया जाता है।

सब्जी के नाम पर दो किलो आलू में पतीला भर पानी होता है समझ सकते हैं कि सब्जी कैसी हो सकती है। जिसके साथ चावल परोस कर दायित्वों की इतिश्री कर ली जाती है। इसी प्रकार दाल का भी यही हाल होता है।”

वह बताते हैं कि अधिकांश शिक्षक तो मोबाइल फोन में ही जूझते हुए लगे रहते हैं। जिससे बच्चे भी पढ़ने के बजाए इधर-उधर कूदते-फांदते हुए समय काटते हैं। यहां न शिक्षक समय से आते हैं, न ही यहां कोई व्यवस्था है। भोजन भी मनमाने ढंग से दिया जाता है।

सरकार ने प्राथमिक एवं माध्यमिक विद्यालयों में भोजन बनाने के लिए बाकायदा रसोई घर के साथ सिलेंडर गैस की सुविधा दी हैं, लेकिन यहां तो गैस सिलेंडर पर नहीं लकड़ी के चूल्हे पर खाना बनता है।

पूछे जाने पर रसोई घर में तैनात महिला रसोईया का कहना होता है कि “जो मिलेगा उसी पर ही हम काम करेंगे, ई त साहब लोगन जाने कि के पर बनी अऊर का बनीं‌”

गौरतलब हो कि जिले के कुल 12 ब्लॉकों में 1200 प्राथमिक विद्यालय, 208 उच्च प्राथमिक विद्यालयों का होना बताया जा रहा हैं। इनमें से अधिकांश विद्यालय जो सुदूर ग्रामीण अंचलों में स्थित है, उनकी बदहाली की कहानी कमोवेश एक जैसी ही दिखाई देती है।

जिनकी व्यवस्था में सुधार की फिलहाल कोई भी गुंजाइश दिखाई नहीं देती। अकेले हलिया विकास खंड क्षेत्र में स्थित कुल 79 गांवों में कुल 233 सरकारी विद्यालयों में प्राथमिक 153 एवं माध्यमिक विद्यालय 80 बताए जा रहे हैं।

बहरहाल, बेलाही गांव में स्थित प्राथमिक एवं माध्यमिक विद्यालयों की दशा को लेकर जब विद्यालय में गौवंश के मृत शरीर के अस्थि-पंजर पड़े होने के संदर्भ में जानकारी के लिए फोन किया गया तो खंड शिक्षा अधिकारी और खंड विकास अधिकारी ने फोन नहीं उठाया।

अलबत्ता उपजिलाधिकारी लालगंज गुलाब चन्द्र को जब मोबाइल पर इसकी सूचना दी गई तो उन्होंने फ़ौरन संबंधित अधिकारियों को निर्देश देने के साथ आश्चर्य जताया कि विद्यालय में गोवंश की मौत हो गई और मौके पर कोई पहुंचा तक नहीं ना सफाई कराना मुनासिब समझा गया है?”

(मिर्जापुर से संतोष देव गिरी की रपोर्ट)

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