चंदौली। जोखिम उठाने का साहस और कड़ी मेहनत के बदौलत असंभव को संभव किया जा सकता है। एक कहावत है “संकल्प का कोई विकल्प” नहीं होता है। ऐसी ही एक दास्तां पूर्वी उत्तर प्रदेश के चंदौली जिले में स्थित सकलडीहा विकासखंड के कटसिल गांव की है, जो धीरे-धीरे आत्मनिर्भरता की ओर कदम बढ़ा रहा है। यह गांव न सिर्फ अपने लोगों आजीविका का साधन मुहैया करा रहा है, बल्कि, जनपदभर के तमाम उन गांवों के लिए मिसाल बन गया है। जहां से सैकड़ों-हजारों की तादात में प्रतिवर्ष नौजवान और ग्रामीण पृष्ठभूमि के लोग रोजी-रोटी की तलाश में सूरत, बम्बई, हैदराबाद, लुधियाना, गुड़गांव जैसे महानगरों को पलायन करते हैं। महानगरों में ये लोग बड़ी ही मुश्किल परिस्थितियों में कुछ रुपए बचाकर अपने परिवार को सींचते हैं। बहरहाल, राजू अंसारी के एक प्रयास ने कटसिल गांव के नौजवानों का पलायन थाम लिया है। पेश है पवन कुमार मौर्य की ख़ास रिपोर्ट :
आज से लगभग पांच साल पहले कोरोना महामारी में बेरोजगार हुए राजू ने कभी सोचा नहीं था कि उनके प्रयास से गांव की बेरोजगारी दूर हो जाएगी और लोगों को रोजगार मिलने से आर्थिक तंगी से आजादी मिलने लगेगी। बनारस में रहकर बनारसी साड़ी की बुनाई करने वाले राजू, कोरोना लॉकडाउन में काम छीन जाने के बाद घर पर ही दरी-पायदान बुनाई का काम शुरू किया। शुरुआत में एक के बाद एक कई चुनौतियां आई। जिनका निराकरण राजू ने धैर्य और सजगता से किया। देखते ही देखते यह काम चल पड़ा और कुछ ही महीने में गांव के तीस से अधिक युवा और दर्जनों महिलाएं भी इस काम से जुड़ गई।

सबसे दिलचस्प यह है कि लॉकडाउन में महानगरों के कारखाने बंद होने पर घर आये बेरोजगार नौजवानों को दरी बुनाई और इससे होने वाली आय ने उनके कदम को वापस महानगरों को पलायन से थाम लिया। दरी बुनाई से होने वाली नकद आय ने ग्रामीणों के खुशहाल जीवन के रास्ते खोल दिए हैं। प्रत्येक महिलाओं को औसत रूप से चार से पांच हजार रुपए प्रतिमाह व दरी बुनाई में लगे पुरुष 14 से 16 हजार रुपए प्रतिमाह की कमाई कर रहे हैं।

‘मजदूर नहीं कारीगर कहिये’
दरी बुनाई में जुटे सत्येंद्र कुमार “जनचौक” से कहते हैं “मेरी शादी हो गई और घर पर मां-बाबूजी, छोटा भाई और बहन है। कोरोना से पहले तक मैं बेंगलुरु (कर्नाटक) में एक कारखाने में काम करता था। इससे मुझे प्रतिमाह 12 हजार रुपए मिलते थे। जिसमें कमरा का किराया 2000 रुपए, राशन का 2000 रुपए, यात्रा पर 1500 और अन्य खर्च काटकर बड़ी मुश्किल से चार-पांच हजार रुपए घर भेज पाता था। इतने पैसे बचाने के लिए कारखाने में 12 घंटे, आवागमन में दो घंटे खाना बनाने-खाने में दो घंटे खर्च करने पड़ते थे। इसके बाद शादी या बीमारी की खबर मिलने पर केवल वापस घर (चंदौली जनपद) आने में 2000 हजार रुपए और लगभग दो दिन का समय खर्च करने पड़ते थे। जाने में भी इतने ही पैसे लगते थे, साथ ही टिकट कंफर्म होने न होने की दिक्कत सो अलग।”

सत्येंद्र आगे बताते है “इस्तेफ़ाक से कोरोना महामारी फैलने के बाद सरकार ने लॉकडाउन लगा दिया और कारखाने बंद हो गए। काम न होने की स्थिति में घर लौटना पड़ा। तो कई महीने तक बेरोजगारी और आर्थिक तंगी से तनाव में था। फिर राजू भाई के दरी बुनाई केंद्र के बारे में चर्चा सुना था। इनके यहां जाकर काम करने लगा। पहले चार-पांच सौ रुपए कमा पाता था। अब रोजाना 800-900 रुपए का काम करता हूं। समय से पैसे मिल जाता है। गांव में घर-परिवार के पास रहते हुए रोजाना 800-900 रुपए कमाना गांवों में अब भी बड़ी बात है। पहले मैं कंपनी में मजदूर था। यहां मुझे लोग दरी बुनाई कारीगर के नाम से जानते हैं। जरूरत पड़ने पर मैं घर भी जा सकता हूं। कोई रोक-दबाव नहीं है। गांव में रूम का किराया नहीं देना है, आवागमन का खर्च नहीं के बराबर है, इस वजह से मैं महीने के 16000-18000 रुपए बड़ी आसानी से कमा लेता हूं, जो वह बचत में आती है, यह पूरे पैसे परिवार को आगे बढ़ाने में मदद कर रही है। मेरे जैसे कई नौजवान हैं, जो पहले हैदराबाद-गुजरात में मजदूरी करने जाते थे। अब दरी बुनाई से जुड़कर प्रसन्न हैं।”
पेट्रोल पंप पर बारह घंटे तक खड़े रहकर तेल देने वाले राजकुमार, शिवमुनि और छह हजार रुपए प्रतिमाह के वेतन पर कपड़ा के दुकान पर मजदूरी करने वाले गोलू अंसारी ने नौकरी छोड़ अब दरी कारीगर हो गए हैं। इनका मानना है दरी बुनाई से काम का दाम के साथ और सम्मान भी मिल रहा है।
पहली आमदनी ने बढ़ाया हौसला
कटसिल गांव के राजू अंसारी कहते है कि “हमलोगों को दरी बुनाई का आइडिया कोविड पीरियड के दौरान आया। लॉकडाउन में मेरा यह काम भी छीन गया और मैं बेरोजगार हो गया। हमलोगों के सामने परिवार चलने के लिए चुनौतियां खड़ी हो गई। मेरी पत्नी गांव में स्वयं सहायता समूह “हरिओम स्वयं सहायता समूह” चला रही थीं।”

‘समूह की महिलाओं संग बैठक कर दरी बुनाई काम के लिए सहमति जुटाई और काम में जुट गए। पहली आमदनी में खर्चे काटकर सबसे हिस्से दो-दो हजार रुपए आये। फिर क्या सभी ने मिलकर और उत्साह में काम करने लगे। अब प्रति महिला सदस्य चार से पांच हजार रुपए की आमदनी प्रतिमाह हो जाती है। एक दरी के तैयार होने में 400 रुपए का कच्चा माल और 400 की मजदूरी आती है। महीने में 60-70 दरी और 150-170 पायदान तैयार कर प्रति दरी 1100 रुपए बिक जा रही है।”
शहर में अकेलापन और कारखाने में मजदूर
हैदराबाद में मजदूरी कर लौटे गांव लौटे रंजीत के लिए दरी बुनाई किसी सौगात से कम नहीं है। वह अपने काम से संतुष्ट हैं और एक सांस में कई खूबियां गिना देते हैं। कहते हैं कि “मैं अपने गांव में हूं और मेहनत कर पैसे कमा रहा हूं। तीन-चार साल पहले हैदराबाद में एक कारखाने में मजदूर थे। वहां न कोई पहचान थी और न ही सहूलियत। हम लोगों की पहचान बड़े शहर में अकेलापन और कारखाने में मजदूर सिमित है। वहां रखने खाने, आने-जाने के लिए पैसे खर्च करने पड़ते थे और पानी भी खरीद कर पीना होता था। यानी हर काम पैसे से होता था। सुबह से शाम तक पैसों की जरुरत रहती थी। घर से दूर होने पर अधिक काम और अच्छा खानपान नहीं होने से हर महीने तबियत ख़राब होती थी। इसकी वजह से और परेशानी बढ़ जाती थी।”

वह कहते हैं “इतना ही नहीं बीमारी से आराम नहीं होने पर काम छोड़कर घर से पैसे मांगकर ट्रेन पकड़कर घर आना पड़ता था। हफ्ते-दस दिन में ठीक होने पर फिर किसी से कर्ज लेकर वापस काम (हैदराबाद) पर जाना पड़ता था। बचत कुछ नहीं थी, जो कमाते थे, सब खर्च हो जाते थे। कर्ज अलग से लेना पड़ता था, बहुत परेशानी थी साहब। लेकिन, मैं गांव में दरी बुनकर इन समस्याओं से मुक्ति हूं। मैं अपने घर-परिवार में रहते हुए 14-15 हजार रुपए कमा रहा हूं। इससे अधिक भला क्या चाहिए। ”
लोगों के लिए प्रेरणा

आमतौर पर देखा जाए तो गांव स्तर पर बेरोजगारी, पूंजी का अभाव, श्रमिक, तैयार माल के लिए बाजार की चुनौतियों और स्वरोजगार के लिए पहल की गुंजाइश कम या ना के बराबर देखने को मिलती है, लेकिन कोरोना महामारी में बेरोजगार हुए राजू की परेशानी देख, पत्नी शकीला बानो ने घर पर दरी बुनाई का गृह उद्योग शुरू करने का विचार किया। स्वयं सहायता समूह की महिलाओं, राजू व शकीला बानो की संयुक्त कोशिश ने महीनों में हकीकत का रूप ले लिया और आशातीत आमदनी होने लग। इनकी सफलता आसपास के गांव में लोगों को प्रेरणा दे रही है।
काम मांगने पहुंच रहे लोग
गांव में ही काम का उचित दाम समय पर मिलने से स्थानीय महिलाएं और बेरोजगार नौजवान काम की तलाश में राजू के दरी बुनाई केंद्र पर पहुंचने लगे। राजू ने पहले सिर्फ दो मशीन लगाई थी। अब दस-दस मशीनों के दो सेट पर दरी बुनाई का काम तेजी से चल रहा है। राजू का कहना है कि लोगों काम के लिए आ रहे हैं, ऐसे में उनको लौटना अच्छा नहीं लगता है। इस वजह से मैनें हाल ही में हाल ही जमीन ख़रीदा है और वहां भी पैसों की व्यवस्था कर दरी बुनाई मशीनें लगाने की योजना है, ताकि और लोगों को काम मिल सके। इतना ही नहीं राजू दरी बुनाई केंद्र से प्रशिक्षण लेकर गांव में दो-तीन स्थानों पर भी दरी बनाने का काम चल रहा है।
महिलाओं द्वारा बने पायदान की मांग
स्थानीय बाजारों और जिलास्तर पर प्रदर्शनी में 100-120 रुपए में बिकने वाले छोटी मशीनों पर हाथ से बने गए पायदान की बड़ी मांग रहती है। कटसिल के अलावा आसपास के बड़वलडीह, बट्ठी, नई बाजार समेत आधा दर्जन गांवों की महिलाएं कच्चा माल ले जाकर अपने घरों में पावदान की बुनाई कर आत्मनिर्भर बन रही हैं। रीता, रीमा, चमेली समेत कई महिलाएं पायदान बनाती हैं।
सैयदराजा से आता है कच्चा माल, आसानी से बिक जाता है उत्पाद
राजू अंसारी ने बताया कि “कच्चा माल गांव से दस किलोमीटर दूर सैयदराजा से ले आते हैं। इसके लिए पैसे नहीं देने पड़ते हैं, कोई भी जो दरी बनाने का इच्छुक है, कच्चा माल मंगा सकता है और तैयार माल उनको देकर भुगतान प्राप्त कर सकता है। यहां से दरी भदोही भेज दी जाती है। भदोही से खाड़ी देश और यूरोप निर्यात कर दी जाती है। आसानी से उत्पाद के बिक जाने से काम को रफ़्तार और श्रमिकों का उत्साह बढ़ा हुआ है। दरी बुनाई के चलते मेरे गांव में नौजवानों की बेरोजगारी दर कम है।”
खाड़ी देश और यूरोप में मांग
कारोबारी के अनुसार कालीन नगरी भदोही से कालीन (दरी) व्यापारी बाहर कच्चा माल भेज कर कालीन की बुनाई करवाते हैं। इससे गांवों लोगों के लिए रोजगार के अवसर तो बढ़ जाते हैं। साथ ही माल तैयार होने में समय भी अपेक्षाकृत कम लगता है. ऐसे में तैयार दरी को भदोही में लाकर उसे कारखानों में सजाया-संवारा (फ़ाइनल टच) देकर अंतर्राष्ट्रीय बाजार के लिहाज से तैयार किया जाता है, जिसे कालीन कहा जाता है। भदोही कालीन की मांग अमेरिका, रूस, जापान, खाड़ी देश, तुर्की और यूरोप से बनी हुई है।
जिलाधिकारी की अपील
जिलास्तरीय ग्राम उद्योग की प्रदर्शनी में चंदौली के जिलाधिकारी निखिल टीकाराम फुंडे ने कटसिल गांव के दरी गृह उद्योग की पहल को मुक्त कंठा से सराहते हुए, जनपदवासियों से अपील कि “जनपद के महिलाएं, पुरुष और नौजवान स्वरोजगार और गृह\लघु उद्योग के जरिये भी बेहतर आय प्राप्त कर सकते हैं और कई को रोजगार उपलब्ध करा सकते हैं। इसके लिए उत्तर प्रदेश सरकार और जिला प्रशासन हर संभव मदद को तैयार है।”
मसलन, जिलास्तर पर कटसिल गांव निर्मित दरी और पायदान आदि की बिक्री के लिए शासन द्वारा लगाई जा रही जिलास्तरीय प्रदर्शनी में काफी सराहना मिलती है और उत्पाद हाथों-हाथ बिक जाते हैं। यहां के कारीगरों के हाथ से बने बेहतरीन कालीन (दरी) कालीन नगरी भदोही के रास्ते अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी ताल ठोंक रहे हैं।
(पवन कुमार मौर्य पत्रकार हैं)
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