कल 10 अक्तूबर को विश्व बेघर दिवस था। बेघरी को लेकर कल इंडो ग्लोबल सोशल सर्विस सोसाइटीज (IGSSS) ने एक वेबिनार कार्यक्रम रखा। इसमें कोविड-19 वैश्विक महामारी के दौरान और सामान्य दिनों में भी बेघर लोगों के साथ होने वाली समस्याओं को तमाम ज़मीनी कार्यकर्ताओं द्वारा साझा किया गया।
मीडिया बेघरों के मुद्दे पर संवेदनशील नहीं
झारखंड की राजधानी रांची में ‘ASHA’ नामक फाउंडेशन चलाने वाले अजय जी ने बताया, “रांची में 12 शेल्टर होम हैं, जिन्हें नगर निगम चलाता है, लेकिन ये नाम भर के लिए हैं। नगर निगम के लोग इसे लेकर बिल्कुल भी संवेदशील नहीं हैं। इन शेल्टर होम में पानी और शौचालय तक की सुविधा नहीं है, कोई रहना भी चाहे तो रहे कैसे। हमारे देश की मीडिया बेघरी के मुद्दे को लेकर संवदेशनशील नहीं है।”
अजय बताते हैं कि रांची में 120 स्लम बस्तियां चिन्हित की गईं, इनमें से अधिकांश खत्म कर दी गईं। सिर्फ़ 56 बची हैं। स्लम बस्तियों से उजाड़े हुए लोग सड़क किनारे टेंट और पन्नियां तानकर रहते हैं। कोविड-19 के समय स्थिति ज़्यादा खराब थी। शेल्टर होम की व्यवस्था ठीक नहीं है। जिन एनजीओ को शेल्टर होम चलाने का जिम्मा दिया गया है, उनकी मानसिकता ठीक नहीं है। यहां कर्मचारियों को पैसा नहीं मिलता इसलिए कोई कर्मचारी नहीं है। शेल्टर होम के बगल के दुकान वालों के जिम्मे चलते हैं ये शेल्टर होम। वो अपना सामान भी वहीं रखते हैं और अपनी दुकान और शेल्टर होम दोनों देखते हैं।”
बीएमसी ने शेल्टर होम में पानी देने से कर दिया मना
जगदीश मुंबई में शेल्टर फॉर पीपल डेमोक्रेसी (CPD) चलाते हैं और सालों से बेघरों के लिए ग्राउंड पर जाकर काम कर रहे हैं। जगदीश बताते हैं कि उनकी प्राथमिकता में बेघरों को स्वस्छ पानी मुहैया करवाना है। वो कहते हैं, “कोविड-19 के समय बीएमसी ने नोटिस जारी किया था, जिसमें मुंबई शेल्टर होम में पानी पिलाने से मना कर दिया गया था। हम इस मामले को लेकर कोर्ट गए हैं।”
‘पहचान’ फाउंडेशन के संस्थापक बृजेश महाराष्ट्र के शेल्टर होम के बारे में बताते हैं कि महाराष्ट्र पहला राज्य है जहां के मुख्यमंत्री ने 10 अक्तूबर को बेघर दिवस मनाने के लिए रिकजनाइज किया और सर्कुलर जारी किया। उन्होंने साल 2019 में कहा कि 2 अक्तूबर से लेकर 10 अक्तूर तक बेघर सप्ताह के रूप में मनाया जाए। शेल्टर होम में रहने वालों को बेसिक सर्विस इक्विटी पर पैसे खर्च करने पड़ते हैं। बृजेश एक बात पर जोर देकर कहते हैं, “बेघर लोग शहर निर्माता हैं, भिखारी नहीं। सरकार को उनके लिए भी पॉलिसी लानी चाहिए।” बृजेश बताते हैं कि बेघर लोगों के सामने आईडेंटिटी की सबसे बड़ी दिक्कत पेश आती है। व्यक्तिगत आईडेंटिटी और कलेक्टिव आईडेंटिटी दोनों तरह की।
बिहार के शेल्टर होम, क्वारंटीन सेंटर में तबदील कर बंद कर दिए गए
पटना के धर्मेंद्र ‘दलित विकास समिति’ के नाम से संस्था चलाते हैं। धर्मेंद्र बताते हैं, “कोविड-19 और लॉकडाउन के समय बेघर लोगों के लिए बहुत ही बुरा गुज़रा है। बिहार सरकार ने तमाम शेल्टर होम को क्वारंटीन सेंटर बना दिया था। ऐसे में बेघरों के सामने आश्रय का संकट पैदा हो गया। क्वारंटीन सेंटर खत्म होने के साथ ही शेल्टर होम बंद हो गए। किसी को कुछ नहीं पता है कि वो लोग कहां गए जो कोविड-10 से पहले शेल्टर होम में रहते थे।”
बेघरों को लेकर जन जागरूकता की ज़रूरत
आंध्र प्रदेश गुंटूर के रोशन बेघरों के लिए शेल्टर होम चलाते हैं। रोशन कहते हैं, “भारत सरकार को प्रत्येक राज्य के मुख्यमंत्रियों के लिए एक सर्कुलर जारी कर देना चाहिए कि वो 10 अक्तूबर को बेघर दिवस के तौर पर मनाएं। इससे जनजागरुकता फैलेगी। लोग-बाग जानेंगे कि बेघरी कितनी बड़ी समस्या है और कितना संवेदनशील मसला है। ये हर मनुष्य की मौलिक ज़रूरत है। मानव विकास इंडेक्स के मुताबिक बेघर होना मानवाधिकारों का हनन है।”
रोशन बताते हैं कि सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देश के मुताबिक राज्य में कुल 88 कार्यरत सेंटर हैं। प्रत्येक की क्षमता 30-35 व्यक्तियों की है। कोविड-19 के समय फिजिकल डिस्टेंसिंग को देखते हुए एक शेल्टर होम में महज 15 लोग ही रह सकते हैं। ऐसे में बेघरों के सामने विकट समस्या खड़ी हो गई थी कि क्या करें कहां जाएं।
बेघर महिलाओं को करना पड़ता है तीन स्तर के उत्पीड़न का सामना
जुबेर शेख़ गुजरात के सूरत में ‘SAATH’ नामक संस्था चलाते हैं। जुबेर कहते हैं, “बेघर लोग सिटी मेकर्स (शहर निर्माता) हैं, लेकिन उनके लिए ही कुछ नहीं है। उनके लिए कार्यक्रम करने तक की आज परमीशन नहीं मिली। कोविड-19 के समय इन लोगों को ज़्यादा तकलीफ़ों का सामना करना पड़ा। न सरकार ने इनकी सुध ली न प्रशासन ने। सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट दिशा-निर्देश हैं कि प्रति लाख आबादी पर एक शेल्टर होम होना चाहिए, लेकिन अहमदाबाद और सूरत में अपेक्षाकृत कम शेल्टर होम हैं।”
जुबेर शेख़ ने कहा कि शहरों में बेघरों को तीन स्तर का उत्पीड़न सहना पड़ता है। सबसे पहले तो उन्हें पुलिस उत्पीड़ित करती है। फिर कार्पोरेशन का उत्पीड़न सहना पड़ता है और तीसरे स्तर पर जो इलाके के मसल पॉवर लोग होते हैं वो उत्पीड़ित करते हैं। कई बार वो लोग मारकर बेघरों से उनके रुपये-पैसे फोन भी छीन लेते हैं। महिलाओं और बच्चियों के लिए स्थितियां ज़्य़ादा बुरी होती हैं। सड़कों पर सोने पर उनके साथ यौन दुर्व्यवहार होता है। जो घर में हैं उनके साथ होने वाले यौन दुर्व्यवहार को तो हम देख ही रहे हैं। कल्पना कीजिए कि जो रोड किनारे सोती हैं उन्हें कितना झेलना पड़ता होगा। उनके बच्चे सारा दिन रोड पर रहते हैं। कई बार वो रोड एक्सीडेंट का शिकार भी होते हैं। गुजरात मॉडल बेघरों को बढ़ावा देने वाला है।
गुजरात मॉडल है होमलेसनेस को बढ़ावा देने वाला
इंदु प्रकाश सिंह साल 1999 से ही दिल्ली और देश के दूसरे राज्यों के बेघरों के लिए काम करते आए हैं। अभी हाल ही में वो भारत के बेघरों के मुद्दे को यूनाइटेड नेशंस में उठाकर आए हैं। वे कहते हैं, “आज गांधी का अंतिम व्यक्ति बेघर है। मौजूदा व्यवस्था में गांधी जी के अंतिम व्यक्ति के साथ काम कर पाना आसान नहीं है। सरकार इनके मुद्दे को लेकर समर्पित नहीं है। ये सरकार खुद समाज को बांटने का काम कर रही है। लोगों को उनके घरों से उजाड़कर बेघरी को बढ़ावा दे रही है। ऐसे में हमारी चुनौती बढ़ जाती है। हम बेघरी (होमलेसनेस) को खत्म करना चाहते हैं और सरकार बढ़ा रही है। आज कोर्ट और सरकार मिलकर लोगों को बेघर करने पर लगी हुई है। हम जानते हैं कि कैसे एक झटके में 48 हजार झुग्गी बस्तियों को तोड़कर लाखों लोगो को एक झटके में बेघर करने का फरमान सुप्रीम कोर्ट ने दिया है, लेकिन हमें सरकार को छोड़ना नहीं है सरकार को जोड़ना है। उनको साथ लेकर काम करना है। हमें ये गांधी के रास्ते पर चलकर ही संघर्ष करना है। साथ ही हमें सरकार की कार्यपद्धति देखते हुए चौकन्ना रहना होगा। लोकतंत्र का चौथा स्तंभ मीडिया भले ढह रहा हो, लेकिन चौथे स्तंभ के तौर पर नागरिक समाज इमर्ज कर रहा है।”
इंदु प्रकाश ने कहा कि आज मेंटल हेल्थ डे भी है, लेकिन शेल्टर होम में रहने वाले प्रताड़ितों के लिए कांउसलर तक नहीं उपलब्ध हैं। सड़कों पर रहने वाली स्त्रियां सुरक्षित नहीं हैं। वो अपनी पीड़ा नहीं कह पाती हैं, उनके मानसिक इलाज के लिए काउंसलर की ज़रूरत है।”
स्मार्टसिटी के नाम पर उजाड़े जा रहे लोग
कर्नाटक के शशांक बताते हैं, “स्मार्टसिटी के नाम पर शहरों से झुग्गी बस्तियां उजाड़ी जा रही हैं। कर्नाटक में तो इंडिपेंडेट कमेटी काम ही नहीं कर रही है। मैसूर में जो शेल्टर होम हैं वो भी बस टाइम पास के लिए चल रहे हैं। सरकार इन्हें बस सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन करने के लिए पेपरों पर जिंदा रखे हुए है। कई बार सरकार एनजीओ के सर्वे को गलत बताकर उनका समर्थन नहीं करती। ऐसे में हमें उन्हें अब ग्राउंड पर ले जाने की ज़रूरत है। सरकारी सर्वे और एनजीओ के सर्वे के अंतर को देखते हुए हमें जीपीएस ट्रैकिंग सर्वे करके रियल फिगर लेकर पूरे प्रमाण के साथ आना होगा, जिन्हें खारिज ही न किया जा सके।”
एनआरसी आया तो बहुत से लोग होंगे बेघर
इंदु प्रकाश सरकार की नीतियों पर कहते हैं, “अगर एनआरसी आता है तो बड़े पैमाने पर लोग बेघर होंगे।” हैदराबाद की इंदिरा अम्मा और सईद फिरोज़ बेघरों के लिए दो शेल्टर होम चलाते हैं। वो बताते हैं कि सिटिजनशिप कानून (सीएए) लागू होने के बाद से शेल्टर होम में रहने वालों के आईडेंटिटी प्रूफ बनवाने के लिए दो प्रूफ मांगे जा रहे हैं। पहला वर्क प्रूफ और दूसरा एड्रेस प्रूफ। ये लोग 10 से 12 तरह के काम करते हैं, ऐसे में इन्हें कोई वर्क प्रूफ तो देता नहीं है। ऐसे में दिक्कत हो रही है। इन लोगों के आईडेंटिटी कार्ड नहीं बन पा रहे हैं। सीएए कानून बनने के बाद से प्रशासन के अधिकारी अब आईडेंटिटी कार्ड ही नहीं बना रहे हैं।”
उन्होंने बताया कि दूसरी समस्या सर्वे के स्तर पर है। सरकारी सर्वे जिन इलाके में 1000 से 1200 बेघर रहने का करके देते हैं, वहीं एनजीओ के सर्वे में वहां 5-6 हजार बेघर निकलते हैं। तो इस स्तर पर भी समस्या हो रही है।
लखनऊ की ज्योति बताती हैं कि बेघरों के बारे में सारा ऑनलाइन डाटा ही गायब कर दिया है। गूगल पर डाटा ढूंढिए तो सरकार की स्कीमें निकलती हैं। लखनऊ में एक मोहल्ला है ‘बाबा का पुरवा’। वहां लोग 100 साल से रहते आ रहे हैं। कई लोग तो चार-पांच पीढ़ी से रह रहे हैं। फरवरी 2020 में बाबा का पुरवा में हर घर में नोटिस आया कि खाली करो सब टूटेगा। लोग कोर्ट भागे तो छह महीने का स्टे दे दिया गया। छह महीने के बाद फिर से लोगों को दोबारा नोटिस भेजा गया है। अब लोग करें तो क्या करें। कहां जाएं।”
सरकार शेल्टर होम के फंड खत्म कर देगी
दिल्ली के विनय केंद्र सरकार की नीयत पर सवाल खड़े करते हुए कहते हैं कि सरकार ने एनयूएलएम में दीन दयाल जोड़ कर पहले इसे DAY-NULM बनाया। अब सरकार कि योजना इसे 2022 तक बंद कर देने की है। सरकार एनयूएलएम न भी बंद कर पाई तो किसी तरीके से फंड खत्म कर ही देगी।वहीं इंदु प्रकाश कहते हैं कि हमें शेल्टर होम के फंड के ढांचे पर भी गंभीरता से विचार करने की ज़रूरत है। अजीम प्रेमजी बेघरों पर खर्च करने को तैयार हैं। हमें इस तरह के लोगों से बात करनी होगी।
(जनचौक के विशेष संवाददाता सुशील मानव की रिपोर्ट।)
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