Sunday, April 28, 2024

इजराइल भेजे जाएंगे भारतीय मजदूर, युद्ध प्रभावित देश में नौकरी के लिए हरियाणा सरकार ने निकाला आवेदन

नई दिल्ली। एक तरफ तो इजराइल और हमास के बीच तीन महीने से भी ज्यादा समय से भयानक युद्ध चल रहा है, सैकड़ों लोग रोज मारे जा रहे हैं। इसी बीच इजराइल में नौकरी पाने के लिए हरियाणा सरकार ने वैकेंसी निकाली है जिसके लिए उम्मीदवार इंटरव्यू दे रहे हैं। पेट की आग ने युद्ध के खौफ को भी मात दे दिया है। देश में बढ़ती महंगाई और बेरोजगारी से परेशान लोग युद्ध प्रभावित देश में भी जाने को तैयार हैं। रोहतक में हरियाणा का विदेश सहयोग विभाग, हरियाणा कौशल रोज़गार निगम लिमिटेड (HKRNL) और हरियाणा कौशल विकास मिशन की ओर से उम्मीदवारों की भर्ती प्रक्रिया शुरु की गई है।

42 वर्ष के जगदीश प्रसाद इजराइल में नौकरी पाने के लिए रोहतक के एमडी यूनिवर्सिटी में इंटरव्यू देने आए थे। वे कहते हैं कि “इंटरव्यू अच्छा गया। ‘उन्होंने मुझसे कहा कि मैं उन्हें दिखाऊं कि दीवार के एक हिस्से को कैसे प्लास्टर किया जाए।”

प्रसाद राजस्थान के दौसा में राजमिस्त्री का काम करते हैं। इजराइल में नौकरी के लिए इंटरव्यू देने वालों में से प्रसाद अकेले नहीं हैं बल्कि ओडिशा, पंजाब, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश समेत देश भर से 600 उम्मीदवार इंटरव्यू दे रहे हैं।

हमास के साथ युद्ध के दौरान देश में भारतीय मजदूरों के आगमन को इजराइल ने तेजी से ट्रैक करने का अनुरोध किया जिसके बाद कम से कम दो राज्यों हरियाणा और उत्तर प्रदेश ने वहां नौकरी पाने के इच्छुक उम्मीदवारों को इंटरव्यू के लिए आवेदन करने की अधिसूचना जारी की है।

हरियाणा सरकार ने दिसंबर में विज्ञापन जारी किया था जिसमें इजराइल में बढ़ई, लोहा मोड़ने वाले, सिरेमिक टाइल फिक्सर और राजमिस्त्री समेत 10,000 पदों को भरने के लिए उम्मीदवारों को बुलाया जा रहा है जिन्हें 1.37 लाख रुपये मासिक वेतन दिया जाएगा।

उम्मीदवारों की भर्ती के लिए छह दिवसीय स्क्रीनिंग कैंप लगाया गया है। उम्मीदवारों को अभी ये भी नहीं पता है कि उन्हें किस कंपनी के लिए हायर किया जा रहा है और वे इजराइल में कहां तैनात होंगे। उन्हें अभी इस बात का अंदाजा भी नहीं है कि वहां उनकी जान कितनी महफूज होगी?

इंटरव्यू देने आए प्रसाद का कहना है कि जब उन्हें नौकरी के बारे में पता चला तो उन्होंने दौसा में एनएसडीसी केंद्र में अपना रजिस्ट्रेशन कराया जिसने उन्हें इंटरव्यू के लिए रोहतक केंद्र में रिपोर्ट करने के लिए कहा।

प्रसाद का कहना है कि उन्हें अभी सिर्फ पैसा कमाना है जिससे उनके परिवार का गुजारा अच्छी तरह से चल सके। प्रसाद अच्छी तरह से जानते हैं कि वहां उनकी जान को खतरा भी हो सकता है लेकिन वे कहते हैं कि “अच्छा पैसा मिल रहा है। मैं कई वर्षों से राजमिस्त्री का काम कर रहा हूं और पिछले 10 वर्षों में मेरी सैलरी लगभग 4,000 रुपये बढ़ी है, लेकिन महंगाई बहुत ज्यादा है। हमें ऐसी नौकरियां ढूंढनी होंगी जिनमें अधिक वेतन हो, अगर भारत में नहीं, तो विदेश में ही सही।”

अब तक इजरायली निर्माण उद्योग में लगभग 80,000 मजदूरों का सबसे बड़ा समूह फिलिस्तीनी प्राधिकरण से आया था। लेकिन 7 अक्टूबर को संघर्ष शुरू होने के बाद से इजराइल ने उनकी इंट्री पर रोक लगा दी है। जिसके बाद इजराइल को मजदूरों की ज़रूरत है। इज़राइल में लगभग 18,000 भारतीय काम करते हैं जिनमें से ज्यादातर देखभाल करने वाले हैं।

पढ़े-लिखे लोग भी देश में नौकरी नहीं मिल पाने के कारण अपनी जान जोखिम में डालकर पैसा कमाने के लिए इजराइल जाना चाहते हैं। रामपाल गहलोत उनमें से एक हैं। गहलोत राजस्थान के सीकर के रहने वाले हैं और इतिहास में पोस्ट ग्रेजुएट भी कर चुके हैं।

वे कहते हैं कि “कॉलेज के बाद मैं पांच सरकारी भर्ती परीक्षाओं में बैठा, लेकिन किसी में सफल नहीं हुआ। फिर मैंने अपनी पारिवारिक ज़मीन पर खेती शुरू की लेकिन पैसे कम पड़ गए। सीकर में एनएसडीसी केंद्र में मैंने ड्राइवर और सुरक्षा गार्ड के पदों के लिए आवेदन किया लेकिन कोई नौकरी नहीं मिली। फिर, जब मैंने इज़राइल में इस भर्ती अभियान के बारे में सुना, तो मैंने स्टील फिक्सर के पद के लिए आवेदन करने का फैसला किया।“

इसी तरह ओडिशा से भी रविंदर प्रधान तीन दिन पहले इंटरव्यू देने आए थे लेकिन गुरुवार की देर शाम तक उन्हें नहीं बुलाया गया था। प्रधान ने कक्षा 7 तक पढ़ाई की है। वे कहते हैं “मैंने इससे पहले सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और मॉरीशस में काम किया है। मेरा परमिट खत्म होने के बाद मैं 10 महीने पहले सऊदी से वापस आया था। तब से मैं नौकरी की तलाश में हूं। फिर मुझे इजराइल में नौकरी के बारे में पता चला। मैंने आवेदन कर दिया। मैं जानता हूं कि वहां जाना बहुत जोखिम भरा है लेकिन फिर भी अच्छे पैसे मिल रहे हैं।”

एचकेआरएनएल के एक अधिकारी पल्लवी संधीर ने बताया कि “भर्ती अभियान 21 जनवरी तक चलेगा और यूपी भी 23 जनवरी से एक अभियान चलाएगा।”

पिछले साल अप्रैल में दौरे पर आए इजराइल के अर्थव्यवस्था मंत्री नीर बरकत ने भारत से मजदूरों को लाने की संभावना पर चर्चा की थी। इजराइल में चल रहे युद्ध के कारण मजदूरों की संख्या में कमी आ गई।  पिछले महीने दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों ने भारत से तेल अवीव में मजदूरों के आगमन को आगे बढ़ाने पर चर्चा की थी।

और यह सब वह सरकार कर रही है जो युद्ध शुरू होने के दौरान इजराइल से तमाम नागरिकों को स्पेशल विमानों से स्वदेश ला चुकी है। ऐसे में यह सवाल उठता है कि अगर किसी अमीर नागरिक का किसी युद्ध क्षेत्र में रहना उचित नहीं है तो फिर भला गरीब को वहां क्यों रहना चाहिए? या फिर गरीबों की जान की कोई कीमत नहीं है? सरकार की नजर में कम से कम नागरिकों के बीच धन और दौलत के आधार पर इस तरह का भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए।

यह बात अलग है कि देश में ऐसी स्थितियां पैदा कर दी गयी हैं जिसमें किसी के जिंदा रहने के लिए न्यूनतम रोजी-रोजगार भी मयस्सर नहीं है। ऐसे में पेट की आग बुझाने के लिए गरीब नागरिक जान का जोखिम भी लेने के लिए तैयार है। गरीबों की यह जितनी मजबूरी है उससे कई गुना सरकार का नाकामी है। और अपने नागरिकों को किसी देश में युद्ध का चारा बनने या फिर उन्हें उसके हवाले करने की किसी सरकार को इजाजत नहीं दी जा सकती है।

यह इस समाज की क्रूरतम स्थिति है जिसका नागरिकों को सामना करना पड़ रहा है। उससे दिलचस्प बात यह है कि इसकी तरफ कोई ध्यान देने के लिए तैयार नहीं है। और चीजों का इस तरह से महिमामंडन हो रहा है जैसे देश ने अपनी सारी समस्याएं हल कर ली हैं और वह विश्वगुरू बनने की राह पर सरपट दौड़ा जा रहा है।

(‘द इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित खबर पर आधारित।)

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