दूरगामी हैं हिसार में किसानों की जीत के संकेत

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हिसार में कल क्रांतिमान पार्क में हुयी किसानों की सभा में बड़ी संख्या में पहुंचे किसानों की एकता ने स्थानीय व प्रदेश प्रशासन को सकते में ला दिया। संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा पुलिस कमिशनरेट के घेराव करने के कार्यक्रम का आह्वान किया गया था। विगत में मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर द्वारा हिसार में कोविड केयर सेंटर के  उद्घाटन के दिन किसानों के विरोध प्रदर्शन पर पुलिस द्वारा बल प्रयोग के बाद 350 किसानों पर मुकदमे दर्ज कर दिये गये थे और कई वाहनों को क्षतिग्रस्त कर दिया  गया था। 

सरकार व प्रशासन के इस तानाशाही रवैये से नाराज किसानों ने संघर्ष करने का  निर्णय किया था। प्रदेश सरकार ने स्थितियों को भाँपते हुये पर्याप्त पुलिस बल का बन्दोबस्त किया था।

किसान आन्दोलन के कई बड़े नेता भी घेराव के समर्थन में हिसार पहुँच गये थे। लेकिन अपेक्षा से अधिक किसानों की संख्या व रोष के कारण  किसी अप्रत्याशित टकराव से बचने की खातिर स्थानीय प्रशासन व सरकार को किसानों से बातचीत  करने पर मजबूर होना पड़ा। आखिर 2 घंटे की वार्तालाप के बाद प्रशासन को झुकना पड़ा और किसानों की मांगों को स्वीकार करने की अधिकारिक घोषणा जिला के  खंड न्याय दंड अधिकारी ने किसान मंच पर आ कर की जिसे किसानों की एक जीत के रूप में माना गया। इस घटना ने किसानों की ताकत व केन्द्र की सरकार से अपनी  मांगें मनवाने को लेकर एक नये हौसले को स्थापित कर दिया। 

पिछले 6 महीनों से देश में किसान 3 नये कृषि कानूनों को लेकर आंदोलन कर रहे हैं।  वर्तमान सरकार इन 3 कृषि कानूनों को किसानों व कृषि क्षेत्र के लिये बड़े सुधारवादी  बदलाव के रूप में स्थापित करना चाहती है। सरकार के अनुसार आधुनिक समय में ऐसे बदलाव कृषि क्षेत्र के लिये आवश्यक है जिनके परिणाम स्वरूप किसानों की दशा को सुधारा जा सकता है। किसान इन  सुधारों को सरकार द्वारा पूंजीपतियों के लिये बनायी गयी नीतियों के तौर पर मानते हैं व भविष्य में अपने शोषण के साथ अपनी कृषि भूमि को पूंजीपतियों द्वारा हड़पने के षड्यंत्र के रूप में समझते हैं। किसानों के लिये ये संघर्ष अपने अस्तित्व को बचाये रखने व भविष्य को सुरक्षित  रखने का है। 

पंजाब से शुरू हुये किसान अंदोलन के काफिले को दिल्ली जाने से रोकने के लिये  हरियाणा की भाजपा-जजपा गठबंधन सरकार ने तरह-तरह की बाधायें खड़ी की लेकिन रोकने में सफल नहीं हो पायीं। पंजाब के किसानों के दिल्ली कूच के साथ ही  इसका प्रभाव व विस्तार हरियाणा पश्चिमी उत्तर प्रदेश, राजस्थान में होने लगा और इन प्रदेशों के किसानों की भागीदारी ने आंदोलन को मजबूत किया। 

केन्द्र व राज्य सरकारों ने विभिन्न प्रकार के प्रचार से आन्दोलन को खारिज करने के  हर जतन किये लेकिन संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा प्रदेश में की गयी महापंचायतों ने किसानों को ग्रामीण स्तर तक जागरुक व संगठित कर दिया। विभिन्न कठिनाइयों से  जूझते किसानों ने वर्तमान सरकार की नीतियों को जांचना परखना शुरु किया तब पाया कि ये नीतियां उनके हितों के संरक्षण के विपरीत हैं। 

कृषि से संबंधित समस्याओं के समाधान से अलग नये कृषि सुधार को किसानों ने  पूर्णतया नकार दिया। नये कृषि कानूनों को रद्द करवाने के लिये किसान संघर्षरत हैं। इस दिशा में केन्द्र में सत्तासीन भाजपा सरकार द्वारा बार बार वार्ताओं के बाद भी  कोई ठोस निर्णय नहीं करने के कारण किसान असंतुष्ट हैं। 

सरकार की उपेक्षा से आहत किसान आरपार की लड़ाई  की स्थिति में हैं। कोविड महामारी में स्वास्थ्य सेवाओं की चरमरायी व्यवस्थाओं ने आम जन जीवन को बुरी तरह से प्रभावित किया है जिसके चलते संक्रमण गांव तक फैल चुका है। सरकार की  नित नयी नीतियों के प्रति व्यापक आक्रोश समाज के हर वर्ग में है।

26 मई को दिल्ली के विभिन्न मोर्चों पर बैठे किसानों के आंदोलन के 6 महीने पूरे हो  जायेंगे। संयुक्त किसान मोर्चा ने 26 मई को देशव्यापी काला दिवस के रूप में मनाने  की घोषणा की है।

हिसार एक शताब्दी से संघर्षों की भूमि रही है। स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी गर्म दल  के नेता व कांग्रेस के अध्यक्ष रहे लाला लाजपत राय की  कर्मभूमि भी यही हिसार ही  है। यहीं पर लाला लाजपत राय ने लाहौर उच्च न्यायालय में जाने से पहले वकालत की और हिसार बार एसोसिएशन की स्थापना में अहम भूमिका दर्ज की। हरियाणा की  राजनीति का केन्द्र भी यही स्थान रहा है जहां से चौ देवीलाल, बंसी लाल व भजन लाल सरीखे नेता देश ने देखे हैं।

हिसार में किसानों की यह जीत भाजपा-जजपा का क्या भविष्य तय करती है व आन्दोलन को आगे किस दिशा में ले जायेगी ये देखना होगा।

(जगदीप सिंह सिंधु वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल गुड़गांव में रहते हैं।)

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