वाराणसी। आईआईटी बीएचयू गैंगरेप मामले में पीड़िता की वर्चुअल पेशी को लेकर कोर्ट में बहस और अभियुक्तों की आपत्ति ने न्याय प्रक्रिया को नए सिरे से बहस का मुद्दा बना दिया है।
फास्ट ट्रैक कोर्ट के जज कुलदीप सिंह ने मामले की संवेदनशीलता को समझते हुए पीड़िता को ‘असुरक्षित साक्षी’ (Vulnerable Witness) घोषित किया और उसकी गवाही वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से कराने का आदेश दिया।
वाराणसी की फास्टट्रैक कोर्ट (प्रथम) के जज कुलदीप सिंह ने पीड़िता को ‘Vulnerable Witness’ मानते हुए यह फैसला सुनाया। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि पीड़िता कोर्ट रूम में नहीं आएगी, बल्कि उसके लिए अलग से ‘Vulnerable Witness Room’ बनाया जाएगा।
यहां से वह वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से अपनी गवाही देगी। अभियुक्तों की आपत्ति के बावजूद, कोर्ट ने पीड़िता की सुरक्षा और मानसिक स्थिति को प्राथमिकता देते हुए यह आदेश जारी किया है।
पीड़िता ने कोर्ट में अपनी याचिका में कहा कि बार-बार कोर्ट आने-जाने और अभियुक्तों का सामना करने से उसकी पढ़ाई और मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा असर पड़ रहा है।
उसने वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से गवाही देने की अनुमति मांगी थी। पीड़िता ने अपने बयान में कोर्ट को यह भी बताया कि परीक्षा और इंटर्नशिप के कारण वह बार-बार कोर्ट आकर जिरह में शामिल नहीं हो सकती।
पीड़िता की याचिका और अभियोजन पक्ष की दलील सुनने के बाद कोर्ट ने यह आदेश दिया कि पेशी के दौरान पीड़िता विटनेस रूम में मौजूद रहेगी। वहां कंप्यूटर तकनीकी विशेषज्ञ के अलावा कोई अन्य व्यक्ति नहीं होगा।
कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि विटनेस रूम की पूरी जांच की जाएगी, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि कोई अनधिकृत व्यक्ति वहां मौजूद न हो।
अभियुक्तों कुणाल पांडे, आनंद चौहान और सक्षम पटेल ने पीड़िता की वर्चुअल पेशी का विरोध किया। उनके वकील ने दलील दी कि ‘Vulnerable Witness Room’ में पेशी का फायदा उठाया जा सकता है और कोर्ट में पीड़िता को कानून की अतिरिक्त मदद मिल सकती है। हालांकि, कोर्ट ने उनकी आपत्ति को खारिज करते हुए पीड़िता को वर्चुअल पेशी की अनुमति दी।
डिप्रेशन में पीड़िता
गैंगरेप की वारदात नवंबर 2023 में हुई थी, जब बीएचयू के आईआईटी कैंपस में बाइक सवार तीन युवकों ने एक छात्रा के साथ सामूहिक दुष्कर्म किया। पुलिस ने इस घटना के बाद तीनों अभियुक्तों को गिरफ्तार कर जेल भेजा था। हालांकि, बाद में उन्हें जमानत मिल गई।
इस घटना ने देशभर में सुर्खियां बटोरीं। पीड़िता ने आरोप लगाया कि कोर्ट के लगातार चक्कर लगाने और अभियुक्तों से सामना करने के कारण वह डिप्रेशन में चली गई। उसने अपनी याचिका में कहा कि सामाजिक उपेक्षा और बार-बार घटना को याद करना उसके लिए बेहद कठिन है।
पीड़िता ने कोर्ट को अपने संघर्ष के बारे में बताया। उसने कहा कि बार-बार कोर्ट आना उसकी पढ़ाई, परीक्षा और मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहा है। उसने यह भी कहा, “मैं इन अभियुक्तों का सामना नहीं करना चाहती। कोर्ट की पेशी ऑनलाइन हो, ताकि मैं कैंपस से ही कार्रवाई का हिस्सा बन सकूं।”
कोर्ट ने पीड़िता की सुरक्षा को प्राथमिकता देते हुए यह निर्देश दिया है कि उसकी उपस्थिति गोपनीय रखी जाए। अभियुक्तों को कोर्ट रूम में पेश किया जाएगा, लेकिन पीड़िता से उनका सामना नहीं होगा। इसके अलावा, विटनेस रूम में मौजूद सभी गतिविधियों की निगरानी सुनिश्चित की जाएगी।
वर्षों से न्याय की राह देख रही एक पीड़िता के लिए आशा की किरण तब जगी जब अदालत ने उसकी वर्चुअल गवाही की अपील को स्वीकार कर लिया।
न्यायालय ने महाराष्ट्र के एक मामले का हवाला देते हुए पीड़िता को “असुरक्षित साक्षी” के रूप में मान्यता दी और उसकी गवाही वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से कराने का निर्णय लिया।
न्यायाधीश का दृष्टिकोण
अभियोजन पक्ष के वकील ने स्मृति बड़ाडे बनाम स्टेट ऑफ महाराष्ट्र के मामले का उल्लेख किया, जिसमें उच्च न्यायालय ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से बयान की अनुमति दी थी। इस नजीर के आधार पर, उन्होंने पीड़िता की वर्चुअल गवाही की मांग की।
भारतीय न्याय प्रणाली में पीड़ितों के हित में “असुरक्षित साक्षी जमा योजना” भी बनाई गई है, जो ऐसे मामलों में पीड़ितों की सुरक्षा और गोपनीयता सुनिश्चित करती है।
अदालत ने उत्तर प्रदेश राज्य न्यायालय वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग नियमावली के तहत “अभिहित वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग सॉफ्टवेयर” का विवरण मांगा। लेकिन अभियोजन पक्ष इस तकनीकी विवरण को मुहैया नहीं करा सका।
शिक्षण संस्थान के वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग सॉफ्टवेयर की जानकारी न होने के कारण, अदालत ने परिसर के ही “असुरक्षित साक्षी कक्ष” से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की अनुमति दी।
न्यायाधीश ने पीड़िता को “असुरक्षित साक्षी” मानते हुए कहा कि बलात्कार या सामूहिक बलात्कार की शिकार वयस्क महिला इस श्रेणी में आती है। उन्होंने कहा कि ऐसे मामलों में पीड़िता के हितों का संरक्षण करते हुए, उचित वातावरण में गवाही और जिरह कराना न्यायालय का कर्तव्य है।
अदालत ने यह भी उल्लेख किया कि एक बार जांच या विचारण प्रारंभ होने के बाद, इसे तब तक जारी रखा जाना चाहिए जब तक सभी गवाहों की गवाही और जिरह नहीं हो जाती।
पीड़ित छात्रा, जो बनारस की एक प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थान में अध्ययनरत है, लगातार छह तिथियों पर न्यायालय में उपस्थित रही। लेकिन अभियुक्तों की ओर से जिरह पूरी नहीं हो सकी और विभिन्न बहानों से कार्रवाई टाली जाती रही।
इस दौरान, बार-बार अदालत आने और अभियुक्तों का सामना करने से वह मानसिक रूप से बेहद परेशान हुई। उसकी शैक्षणिक गतिविधियां और करियर भी प्रभावित होने लगे।
दूसरी ओर, अभियुक्तों ने पीड़िता की वर्चुअल गवाही का विरोध किया। उनके वकील ने दलील दी कि पीड़िता “असुरक्षित साक्षी” की श्रेणी में नहीं आती, क्योंकि वह पुलिस सुरक्षा में अदालत आती-जाती है।
उन्होंने यह भी कहा कि वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से गवाही कराने पर पीड़िता को अतिरिक्त कानूनी सहायता मिल सकती है, जिसका कैमरे में पता नहीं चलेगा। उन्होंने अदालत से अनुरोध किया कि वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की अनुमति न दी जाए।
सभी दलीलों को सुनने के बाद, अदालत ने फैसला किया कि पीड़िता की शेष गवाही और जिरह वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से कराई जाएगी।
यह प्रक्रिया न्यायालय परिसर के “असुरक्षित साक्षी कक्ष” से होगी, जहां केवल आवश्यक तकनीकी विशेषज्ञ ही मौजूद रहेंगे। अदालत ने यह सुनिश्चित किया कि पीड़िता की सुरक्षा, गोपनीयता और मानसिक स्वास्थ्य का पूर्ण ध्यान रखा जाएगा।
अभियोजन पक्ष के वकील मनोज गुप्ता ने स्मृति बडाडे बनाम महाराष्ट्र राज्य मामले का उल्लेख करते हुए कोर्ट को बताया कि भारतीय न्याय संहिता के तहत ऐसे मामलों में Vulnerable Witness Deposition Scheme लागू होती है। इस स्कीम के तहत पीड़िता को मानसिक और शारीरिक असुविधा से बचाने के लिए विशेष प्रावधान किए गए हैं।
गुप्ता ने कहा कि पीड़िता एक 20 वर्षीय छात्रा है, जो आईआईटी बीएचयू में पढ़ाई कर रही है। बार-बार कोर्ट आने से उसके शैक्षणिक जीवन और मानसिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। अभियोजन ने उत्तर प्रदेश राज्य न्यायालय वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग नियमावली के तहत वर्चुअल गवाही की अनुमति मांगी।
हालांकि, अदालत परिसर में उपलब्ध वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग सॉफ्टवेयर की तकनीकी जानकारी नहीं मिलने के कारण यह कार्य बीएचयू परिसर में कराने की अनुमति नहीं मिल सकी।
अभियुक्तों का विरोध और उनकी दलीलें
अभियुक्तों कुणाल पांडेय, आनंद चौहान और सक्षम पटेल के वकील ने कोर्ट में वर्चुअल पेशी का विरोध करते हुए कहा कि पीड़िता ‘असुरक्षित साक्षी’ की श्रेणी में नहीं आती। उनके अनुसार, पीड़िता को पुलिस सुरक्षा के साथ कोर्ट लाया और ले जाया जाता है।
वह बीएचयू परिसर में मौजूद है, न विदेश गई है और न ही किसी अन्य असुरक्षित स्थान पर है। वर्चुअल गवाही के दौरान यह सुनिश्चित नहीं किया जा सकता कि पीड़िता को कानूनी सहायता या बाहरी निर्देश प्राप्त न हो।
पीड़िता की वर्चुअल पेशी के आदेश के खिलाफ अभियुक्तों ने आपत्ति दर्ज कराई और इसे अन्यायपूर्ण बताया। अभियुक्तों के वकील ने यह भी तर्क दिया कि वर्चुअल पेशी की अनुमति केवल उन परिस्थितियों में दी जानी चाहिए, जब पीड़िता जेल या अस्पताल में हो, या किसी गंभीर स्थिति में कोर्ट आने में असमर्थ हो।
उनका कहना है कि पीड़िता को वर्चुअल पेशी का लाभ उठाने का मौका मिल सकता है। अभियुक्तों ने यह भी तर्क दिया कि ऐसे मामलों में वर्चुअल पेशी दोनों पक्षों की सहमति से ही होनी चाहिए।
जज कुलदीप सिंह ने कहा कि गैंगरेप जैसे मामलों में पीड़िता का मानसिक और शारीरिक संरक्षण अदालत की प्राथमिकता होनी चाहिए। उन्होंने स्पष्ट किया कि पीड़िता के लिए अदालत परिसर में Vulnerable Witness Room तैयार किया जाएगा।
विटनेस रूम में सिर्फ तकनीकी विशेषज्ञ मौजूद रहेंगे। वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के दौरान रूम की जांच की जाएगी कि वहां कोई अनधिकृत व्यक्ति मौजूद न हो।
मामले की पृष्ठभूमि
नवंबर 2023 की रात बीएचयू के आईआईटी परिसर में एक छात्रा के साथ तीन युवकों ने सामूहिक दुष्कर्म किया था। इस घटना ने पूरे देश में हड़कंप मचा दिया था। पुलिस ने तीनों अभियुक्तों को गिरफ्तार कर जेल भेजा, लेकिन बाद में उन्हें जमानत मिल गई।
पीड़िता ने बार-बार कोर्ट में पेश होने और अभियुक्तों का सामना करने से उत्पन्न मानसिक आघात के चलते वर्चुअल पेशी की मांग की। उसने कोर्ट को बताया कि बार-बार कोर्ट आने से उसकी पढ़ाई और परीक्षाओं पर असर पड़ रहा है।
पीड़िता के अनुसार, अभियुक्तों के वकील बार-बार स्थगन का सहारा लेकर मामले की सुनवाई में देरी कर रहे हैं। इससे वह मानसिक रूप से परेशान हो रही है। उसने कोर्ट से अपील की कि उसकी गवाही जल्द से जल्द रिकॉर्ड की जाए, ताकि वह अपने जीवन में आगे बढ़ सके।
इस मामले में कोर्ट ने स्पष्ट किया कि पीड़िता के हितों का संरक्षण करना न्यायालय का दायित्व है। गवाही और जिरह की प्रक्रिया को शीघ्रता से पूरा करने के लिए अदालत ने वर्चुअल पेशी का फैसला सुनाया, जो न्याय की गति को तेज करने की दिशा में एक अहम कदम है।
कोर्ट का यह निर्णय पीड़िता के लिए राहत लेकर आया है, जो न्याय की लंबी लड़ाई में मानसिक और शारीरिक संघर्षों का सामना कर रही थी।
अदालत ने उसके शैक्षणिक कैरियर और मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता देते हुए यह कदम उठाया। यह मामला न्याय प्रणाली में पीड़ितों के अधिकारों और उनकी सुरक्षा की दिशा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हो सकता है।
(विजय विनीत बनारस के वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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