नई दिल्ली। छात्राओं के लिए सबसे ज़्यादा सुरक्षित और सहज माने जाने वाली जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) कैम्पस का मिज़ाज बदल रहा है? छात्राओं के साथ छेड़खानी और हिंसा की बढ़ती वारदातों को लेकर जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी स्टूडेंट यूनियन (जेएनयूएसयू) चिंतित है।
जेएनयू कैम्पस में 17 दिन चली जेएनयूएसयू की भूख हड़ताल के मुद्दों में यह मसला भी प्रमुखता से शामिल रहा। यूनियन पदाधिकारियों का आरोप है कि ऐसे ही एक गंभीर मसले में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़े छात्रों की संलिप्तता के कारण जेएनयू प्रशासन पीड़ित छात्रा और उसके समर्थन में एकजुट हुए छात्रों पर ही कार्रवाई कर रहा है।
जेएनयू उच्च शैक्षणिक गुणवत्ता, मुखर बौद्धिक बहसों, राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय मसलों पर आंदोलनों और प्रगतिशील माहौल के लिए मशहूर रहा है। इस यूनवर्सिटी की अनेक उपलब्धियां ऐसी रही हैं, जो इसकी शैक्षणिक गुणवत्ता से भी बढ़कर हैं। मसलन, छात्राओं की सहज, जीवंत और सक्रिय उपस्थिति।
अरावली की चट्टानों और जंगल के बीच के रास्तों पर रात में भी किसी अकेली छात्रा को निरापद आगे बढ़ते देखकर यहां पहली बार आने वाला कोई भी शख़्स भले ही हैरत में पड़ जाता हो लेकिन यह जेएनयू कल्चर में शामिल बात रही है। ऐसी चीज़ें हासिल करने में एक वक़्त लगता है और जब जेएनयू को हर तरह बर्बादी के रास्ते पर धकेला जा रहा हो तो भी कैम्पस में इस कल्चर की झलक मिलती है।
अफ़सोस यह कि इस कैम्पस में छात्राओं के साथ छेड़खानी की कई गंभीर वारदातें हो चुकी हैं। जेएनएसयू के अध्यक्ष धनंजय के मुताबिक, लड़कियों का गाड़ियों से पीछा करने, उन पर छींटाकशी करने, लड़की को गाड़ी में खींचने की कोशिश करने से लेकर लड़कों द्वारा सार्वजनिक रूप से मास्टरबेट करने जैसी गंभीर वारदातें अंज़ाम दी जा चुकी हैं।
लाइब्रेरी से निकली एक छात्रा से छेड़खानी का मामला तो इसलिए भी गंभीर हैं क्योंकि उसमें आरोप एबीवीपी से जुड़े स्टूडेंट्स पर हैं।
जेएनएसयू अध्यक्ष धनंजय के मुताबिक, इस मामले में एक ऐसा नाम भी आया है, जो 2016 में रहस्यमय ढंग से लापता हो गए छात्र नजीब के साथ विवाद में भी आ चुका है। यह घटना घटी थी तो पीड़ित छात्रा ने अगले दिन न्याय की मांग करते हुए समर्थन में एकजुट हुए स्टूडेंट्स के साथ मिलकर यूनवर्सिटी गेट बंद कर दिया था।
आरोप है कि पीड़ित छात्रा और उनके समर्थन में प्रदर्शन करने वाले स्टूडेंट्स पर कार्रवाई करते हुए कई-कई हज़ार रुपये जुर्माना लगा दिया गया है। धनंजय ने बताया कि दो आरोपी छात्रों पर कार्रवाई करने के नाम पर उनके हॉस्टल बदल देने की खानापूर्ति की गई है। बाहरी रहे दो लोगों का यूनिवर्सिटी में प्रवेश निषिद्ध किया गया लेकिन वे अक्सर कैम्पस में घूमते पाए जाते हैं।
जेंडर सेंसेविटी कमेटी अगेन्स्ट सैक्सुअल हराशमेंट (जीएसकैश) की वापसी की मांग कर रही जेएनयूएसयू का मानना है कि इंटरनल कंप्लेंट्स कमेटी (आईसीसी) यौन उत्पीड़न के मामलों को डील करने में पूरी तरह बेअसर रही है। इस कमेटी में न स्टूडेंट यूनियन का प्रतिनिधित्व है, न रिड्रेसल।
आईसीसी के पास जेंडर सेंसेटाइजेशन का कोई कार्यक्रम तक नहीं है। कैम्पस में छात्राओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने में नाकाम आईसीसी मॉरल पुलिसिंग के अलावा किसी काम की नहीं है। जीएसकैश छात्रों और अध्यापकों की निर्वाचित इकाई हुआ करती थी।
यौन उत्पीड़न के मामलों में जांच की रफ़्तार तेज़ करने और समयबद्ध न्याय सुनिश्चित करने, पीएचडी में वीमेन डिपराइवेशन पॉइंट्स की बहाली करने और जेंडर सेंसेटाइजेशन प्रोग्राम पूरी गंभीरता और संवेदनशीलता के साथ चलाने की मांग कर रही स्टूडेंट यूनियन का मानना है कि एक सोची-समझी साजिश के तहत यूनवर्सिटी का माहौल ख़राब करने की कोशिश की जा रही है।
एक तरफ़ छात्राओं के साथ छेड़खानी के मामलों में पारदर्शिता के साथ कार्रवाई नहीं की जा रही है, तो दूसरी तरफ़ कैम्पस में कमर्शियल फ़िल्मों की शूटिंग की अनुमति दे दी जाती है। गौरतलब है कि पिछले दिनों इमरजेंसी पर किसी फ़िल्म की शूटिंग के लिए आए सुधीर मिश्रा और उनकी टीम को यूनियन के भारी विरोध के कारण कैम्पस छोड़ कर जाना पड़ा था।
बहरहाल, जेएनयू स्टूडेंट यूनियन की इस भूख हड़ताल की एक उपलब्धि यह रही कि क़रीब आठ साल बाद ऐसा हुआ कि प्रशासन आंदोलनकारी स्टूडेंट्स के साथ न केवल बातचीत के लिए तैयार हुआ बल्कि कई प्रमुख मांगों पर सहमति जताते हुए उन्हें पूरा करने का आश्वासन भी दिया।
जेएनयूएसयू के संयुक्त सचिव मो. साजिद ने बताया कि पिछले कुलपति जगदीश कुमार के कार्यकाल में प्रशासन छात्रों के आंदोलनों को पूरी तरह नकारने और गतिरोध को बढ़ावा देने में मुब्तिला रहा था। छात्र आंदोलन के भयानक दमन और कैम्पस में स्टूडेंट्स पर हिंसक हमलों की वारदातों को कौन भूल सकता है?
जेएनयूएसयू की नयी ईकाई ने अपने निर्वाचन के तुरंत बाद छात्रों से उनके सुझाव आमंत्रित कर उनके आधार पर चार्टर ऑफ डिमांड तैयार किया था, जो 16 अप्रैल को प्रशासन को सौंप दिया गया था। यूनियन के अध्यक्ष धनंजय, उपाध्यक्ष अभिजीत, महासचिव प्रियांशी, संयुक्त सचिव साजिद व अन्य छात्र प्रतिनिधियों ने 11 अगस्त को भूख हड़ताल शुरू की थी।
भूख हड़ताली स्टूडेंट्स की स्वास्थ्य समस्याओं और कई अनचाही स्थितियों के बावजूद इस आंदोलन के नतीज़ों को लेकर यूनियन आशान्वित है। इस दौरान एक अहम घटनाक्रम यह हुआ कि महासचिव प्रियांशी (बाप्सा) ने वाम संगठनों से मतभेद जताते हुए ख़ुद को आंदोलन से अलग कर लिया था।
गौरतलब है कि अध्यक्ष धनंजय (आइसा) सहित सभी पदों पर लेफ्ट की जीत हुई थी। महासचिव पद पर निर्वाचित हुईं बाप्सा की प्रियांशी को भी वाम का समर्थन था।
आंदोलन की मांगों में मेरिट-कम-मीन्स (एमसीएम) छात्रवृत्ति की बढ़ोतरी प्रमुख थी। पिछले सालों में मैस बिल्स में तेज़ी से भारी बढ़ोतरी के बावजूद फैलोशिप आदि की राशि में वृद्धि नहीं की जा रही है।
प्रशासन ने वादा किया है कि यूजीसी से अतिरिक्त फंड मिलने पर स्कूल ऑफ एजुकेशन एंड मैनेजमेंट स्टडीज के विद्यार्थियों को भी छात्रवृत्ति दी जाएगी। जेएनयू एंट्रेंस एग़्जाम (जेएनयूइइ) की बहाली का आश्वासन भी दिया गया है।
अगर आश्वासन पर अमल होता है कि अगले शैक्षणिक सत्र से जेएनयू प्रवेश परीक्षा फिर से जेएनयूइइ के ज़रिये करानी शुरू कर दी जाएगी। अगले सत्र में प्रवेश में नेफे कमेटी रिपोर्ट के सुझाव के तहत वायवा अंक कम करने और पार्थसारथी रॉक्स गेट रोज़ाना सुबह 6 से रात 10 बज़े तक खोलने का भी भरोसा दिया गया है।
यूनियन इस गेट को 24 घंटे खुला करने की मांग करती रही है। स्टूडेंट फेक्लटी कमेटी (एसएफसी) के नियमित चुनाव कराने और पूर्व में आंदोलनों में भागीदारी के कारण छात्रों के विरुद्ध चल रही जांच बंद करने का आश्वासन भी यूनियन को दिया गया है।
स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग जो छात्रों से भारी फीस वसूली के बावजूद टिन की छत में चल रहा है, उसके भवन निर्माण से लेकर विभिन्न हॉस्टलों और भवनों में मूलभूत ज़रूरतों को पूरा करने की मांगें भी यूनियन उठा रही है। बराक हॉस्टल जिसका उद्घाटन 4 फरवरी को गृह मंत्री अमित शाह ने किया था, अभी तक खोला नहीं गया है।
यूनियन का कहना है कि प्रशासन इसे चालू करने में बजट का अभाव बता रहा है। आरोप है कि प्रशासन के मंसूबे इस हॉस्टल को छात्रों से चार से पांच हज़ार रुपये की फीस के साथ शुरू करने के हैं, जो यूनिवर्सिटी की मूल भावना के विरुद्ध है। जेएनयू की ख़ूबी ही दूर-दराज़ से आने वाले ग़रीब स्टूडेंट्स को अपना लेने की रही है।
(धीरेश सैनी की रिपोर्ट)