Friday, April 19, 2024

टैक्स सरकार के राज में जनता पर महँगाई की मार

गांव के चौबारे की साप्ताहिक बाज़ार में सब्जी का दाम जेब की पहुंच से बाहर देख राजेंद्र पटेल अल-सुबह तहसील की मंडी पहुँच गये और एक सब्जी विक्रेता से मुखातिब होकर बोले-

क्यों भाई, परवल कैसे दिये ?

भाई 400 रुपये धरा, 100 रुपये किलो ?

शिमला मिर्च ?

150 रुपये किलो ?

बीन्स ?

200 रुपये किलो?

बैंगन, और तुरई?

200 रुपये धरा, 50 रुपये किलो

कुँदरू 300 रुपये धरा और अरवी 50 रुपये किलो, भिंडी 50 रुपये किलो।

राजेंद्र पटेल पूरी मंडी घूमे-घामे, हर एक दुकान पर जा जाकर सब्जी का रेट लिया और आखिर में टूटे मन से 20 रुपये किलो आलू और 20 रुपये किलो प्याज और 30 रुपये किलो टमाटर लेकर घर आये और पत्नी से बोले महीने दो महीने आलू-प्याज की सब्जी खा लो। इसके बाद तो ये भी पिछले चार पांच सालों की तरह फिर हमारी पहुंच से बाहर जाने ही वाली हैं। उनकी बीवी ने झुंझलाकर कहा, हाय राम, सब्जी, दाल, तेल सबमें तो आग लगी है क्या खायें, कैसे जीयें।

बता दें कि राजेंद्र पटेल फूलपुर प्रयागराज के निवासी हैं और वो एक बिजली फर्म में 7000 रुपये मासिक के वेतन पर स्टोर कीपर का काम करते हैं। परिवार में बूढ़ी मां, जीवनसंगिनी और तीन बच्चे हैं। 2 बेटे पढ़ रहे हैं, बेटी ब्याह लायक हो गयी है। खेती के नाम पर 4 बिस्वा पैतृक ज़मीन है। बीवी खेती के सीजन में रोपाई कटाई करके कुछ दिहाड़ी कमा लेती थी लेकिन कोरोना में अब लोग मजदूरों के बजाय मशीनों से कटाई कराने लगे हैं, तो काम मिलना मुश्किल हो रहा है। 

प्रतापगढ़ के पुन्नी लाल बताते हैं कि भैय्या दाल कभी दोनों जून खाते थे, फिर एक जून खाने लगे, अब हाल ये है कि एक दिन का आँतर (अंतराल) देकर बनाते हैं वो भी पानी-पातर। ये हाल तब है जबकि प्रतापगढ़ जिला अरहर दाल उत्पादन के लिये मशहूर रहा है। गौरतलब है कि इस वक्त़ अरहर दाल 100-110 रुपये किलो, उड़द और मूँग दाल 120-130 रुपये किलो, चना दाल 80-90 रुपये प्रति किलो बिक रहा है।

राजधानी दिल्ली में ओला टैक्सी चलाने वाले वीरेंदर बताते हैं कि दिल्ली की सब्जी दाल का रेट और उनके गांव की सब्जी दाल की क़ीमतें कमोवेश एक सी है। गांव में बस इतनी सहूलियत है कि आपको रहने का रेंट नहीं देना होता है। पर गांव में नौकरी और कामकाज की सहूलियत नहीं है।

जौनपुर जिला के अच्छे लाल बताते हैं कि जनवरी महीने में सरसों तेल का दाम 140-150 रुपये प्रति लीटर था। होली पर सरसों तेल (खुला अनपैक्ड) दाम 170 रुपये प्रति लीटर हो गया। आज के समय में सरसों तेल का दाम 190-210 रुपये लीटर है। जबकि पिछले साल यानि अप्रैल 2020 में सरसों तेल 115 रुपये प्रति लीटर था। 

संजय सिंह बताते हैं पहले खुला तेल (अनपैक्ड) और पैक तेल के दाम में फ़र्क़ होता था। अब सारा फर्क़ खत्म हो गया है। फ़ॉर्चून सरसों तेल के पैकेट में नया रेट प्रिंट होकर आ जाता है। उसके बाद खुला तेल भी उसी क़ीमत पर बिकने लगता है। क्या दिल्ली, क्या मुंबई और क्या सरसों के खेतों वाला गांव। सरसों तेल का दाम हर जगह एक सा हो गया है। फ़ॉर्चून आज इस स्थिति में आ गया है कि वे देश में सरसों और रिफाइंड तेल के दाम निर्धारित और नियंत्रित करने लगा है।  

राम सजीवन यादव कहते हैं सरकार ने हमें आदिम युग में लौटा दिया है। पहले हम बाज़ार से ख़रीदकर नहीं खाते थे। खेत में जो होता था पूरा साल उसी में काम चलाते थे। तेल कम होता था तो तिथि त्योहार पर पूड़ी, पराठा की जगह रोटा बनाते थे। बता दूं कि रोटा दो लोईयों को मिलाकर बेलनाया और सेंका जाता है। और फिर दोनों तरफ तेल लगाकर सेंकने के बाद बीच से फाड़कर अलग कर लिया जाता है। इस तरह एक पराठे के तेल में 2 रोटा तैयार किया जाता है। आज बेलगाम महंगाई थोपकर फिर वही हालात बना दिये गये हैं। प्रधानमंत्री कहते हैं पकौड़ा बेचों लेकिन पकौड़ा तलने के लिये भी तो तेल चाहिये न मोदी जी। या फिर नाले के गैस की तर्ज़ पर इसके लिये भी आपके पास कोई फॉर्मूला है। 

महँगाई ने रिश्तों पर डाला असर

गाज़ियाबाद की गृहिणी सीमा देवी अपना दर्द साझा करते हुये कहती हैं- महँगाई ने मेरे रिश्ते को बहुत बुरी तरह प्रभावित किया है। बच्चों को लगता है कि मैं कंजूस हो गयी हूँ। बाज़ार से अच्छी मनपंसद सब्जियां नहीं लाती, बारिश में पकौड़े नहीं बनाती। वहीं पति से किचेन के ज़रूरी सामानों को लेकर आये दिन कहासुनी होती है। दरअसल रोज ही कुछ न कुछ खत्म हुआ रहता है। वो कहते हैं अभी फला चीज फला दिन तो आया था। इतनी जल्दी खत्म हो गया। रेखा देवी बताती हैं कि पहले वेतन मिलते ही पति घर के सामान के लिये एक मुश्त पैसा दे देते थे। तो सब्जियां छोड़कर बाकी किचेन और घर का महीने भर का सामान इकट्ठे ले आती थी। लेकिन अब महँगायी इतनी बढ़ गयी है कि सारा सामान एक बार में आ ही नहीं पाता। पिछले साल 600 रुपये में पांच लीटर सरसों का तेल ले आती थी तो पांच लोगों के परिवार में महीने पूरा हो जाता था। लेकिन अब 5 लीटर सरसों तेल के लिये 1 हजार रुपये देने पड़ रहे हैं। यही हाल दाल का है। पहले उड़द, मूंग, मसूर, चना, अरहर सब 2-2 किलो ले आती थी। मिक्स दाल बनाती थी और महीने का एवरेज आ जाता था। लेकिन अब तो हर दाल एक दाम हो गयी है। सस्ते महँगे में कोई फर्क़ ही नहीं रहा अब।      

उत्तर प्रदेश के सीमांत किसान राम नाथ पाण्डेय कहते हैं भाजपा जब जब सत्ता में आती है महँगाई लेकर आती है। हमने साल 1999 से 2003 के दर्म्यान भी ऐसा ही देखा भोगा है। ये बनियों की पार्टी है बनियों के हित में काम करती है। पिछले पांच साल में आमदनी कुछ भी नहीं बढ़ी और महंगाई कई गुना बढ़ा दी गयी है।  

प्रयागराज जिले के राजेश पटेल निजी स्कूल में 3500 रुपये मासिक पर शिक्षक थे। कोरोना महामारी में निजी स्कूल ने निकाल दिया, ये कहकर कि जब स्कूल ही नहीं खुल रहा तो शिक्षक रखकर क्या करें। उन्हें न तो मनरेगा में काम मिल रहा है न ही कहीं और। सरकारी राशन की दुकान (कोटा) से हर महीने फिलहाल गेहूं चावल तो मिल जा रहा है लेकिन उसे खायें किसमें मिलाकर ये संकट उनके सामने यक्ष प्रश्न सा हरदम सिर पर सवार रहता है।

कोरोना महामारी के बीच आम जनता बढ़ती महंगाई का भी सामना कर रही है। पिछले एक साल में खाद्य तेल की कीमतों में जबरदस्त तेजी देखने को मिली है और कीमतें 62 प्रतिशत से ज्यादा उछल चुकी हैं। कीमतों में तेजी का आलम यह है कि कीमतों में वृद्धि की औसत दर 11 साल के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई है। उपभोक्ता सामानों में खाने की चीजें, सब्जियां, खाद्य तेल से लेकर पेट्रोल-डीजल-रसोई गैस सबके दामों में बेतहाशा वृद्धि हुयी है।

केंद्रीय उपभोक्ता मंत्रालय की वेबसाइट के आंकड़ों के मुताबिक देश में पिछले एक साल में 6 प्रकार के खाद्य तेल की कीमतों में 20 से लेकर 56 प्रतिशत तक का इज़ाफ़ा हुआ है। सरसों के तेल की कीमत इस साल 28 मई को 44 रुपए प्रति लीटर बढ़ कर 171 रुपये प्रति लीटर हो गई है जबकि पिछले साल 28 मई को इसकी कीमत 118 रुपये प्रति लीटर थी। इसी अवधि में सोया तेल की कीमतें 50 प्रतिशत बढ़ी हैं। यदि खाद्य तेलों की प्रति माह की महंगाई की बात करें तो इनकी औसत वृद्धि दर 11 साल के उच्चतम स्तर पर पहुंच गयी है।

खुदरा मुद्रा स्फीति (उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर आधारित) मई में 6 माह के उच्चतम स्तर 6.3 प्रतिशत तक जा पहुंची। खाद्य पदार्थों की मुद्रास्फीति अप्रैल में 1.96 प्रतिशत से बढ़कर मई में 5.01 प्रतिशत हो गयी। पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों में महीने भर में 11.58 प्रतिशत का उछाल आया। खाद्य तेल की कीमतों में वर्ष भर में 30.84 प्रतिशत का उछाल आया। मांस-मछली की कीमतों में 9.03 प्रतिशत, अण्डे में 15.16 प्रतिशत, फलों में 11.98 प्रतिशत व दालों में 9.39 प्रतिशत का उछाल आया। वैसे तो सभी उपभोक्ता वस्तुओं के दाम बीते 2-3 माह में बढ़े हैं पर सबसे ज्यादा रुलाने का काम खाद्य तेल और पेट्रोलियम कर रहे हैं। पेट्रोलियम के दामों में वृद्धि बाकी सभी सामग्रियों के दामों को भी बढ़ा रही है।

दालों के आयात पर टैक्स

प्रतीकात्मक छवि

केंद्र सरकार ने इस साल से आयातित दलहनों पर 20 से 50 फीसदी तक कृषि अवसंरचना एवं विकास उपकर लगाने का फैसला देश की अवाम पर थोपा है। जबकि मौजूदा समय में केंद्र सरकार चना पर आयात शुल्क 60 फीसदी, मटर पर 50 फीसदी, काबुली चना पर 40 फीसदी और मसूर पर 30 फीसदी वसूलती है।

हालांकि केंद्र सरकार द्वारा फरवरी 2021 में मौजूदा वित्त वर्ष (2021-22) के लिये पेश केंद्रीय बजट में सरकार ने मटर, काबुली चना, बंगाल चना और मसूर पर आयात शुल्क घटाकर 10 फीसदी करने का प्रस्ताव रखा था।

केंद्र सरकार द्वारा फिलहाल मसूर दाल पर 20 फीसदी, काबुली चना पर 30 फीसदी, मटर पर 40 फीसदी और बंगाल चना एवं मटर पर 50 फीसदी कृषि अवसंरचना और विकास उपकर वृद्धि को 2 फरवरी 2021 से लागू कर दिया है।

इसके चलते भी लॉकडाउन के देश में दालों के दम तेजी से बढ़े हैं। जबकि उत्पादन में पिछले साल की अपेक्षा वृद्धि हुयी है। अब तक सभी तरह की दालों के दाम लगभग 30 फीसदी बढ़ गये हैं। पिछले साल की इस अवधि से तुलना करें तो दालों की कीमत में 20 से 30 फीसदी का इजाफा हो चुका है। पिछले कुछ वक्त से दालों की प्रति किलो कीमत 15 से 20 रुपये तक बढ़ चुकी है। पिछले साल इस अवधि में चना दाल की कीमत 70-80 रुपये प्रति किलो थी लेकिन इस बार यह 100 रुपये से अधिक तक पहुंच चुकी है। अरहर दाल 100 रुपये प्रति किलो बिक रही है। गौरतलब है कि भारत दालों का सबसे बड़ा उपभोक्ता और आयातक देश है। जबकि विश्व का 23.63% दाल का उत्पादन भारत में होता है। ये जानकारी 13 फरवरी 2021 को खुद केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर ने विश्व दलहन दिवस पर भाग लेते हुये वर्चुअल संबोधन में बताया था। उन्होंने बताया था कि साल 2019-20 में भारत में 23.15 मिलियन टन दलहन का उत्पादन हुआ है।

क्यों बढ़ रहे खाद्य तेलों के दाम

हालांकि देश में हर चीजे को महंगाई ने दबोच रखा है। लेकिन फिलहाल खाद्य तेलों पर बात करते हैं और इसी आधार पर दाल और सब्जी समेत तमाम खाद्यों पर लागू करके समझ लेंगे। जैसा कि ये सवाल है कि खाद्य तेलों के दाम (सब्जियों और दालों के भी) क़ीमत क्यों बढ़ रही है। इस सवाल के ढेरों जवाब मिल जायेंगे। जैसा कि केंद्रीय कृषि मंत्री ने 9 जून को बयान दिया है कि – “देश में सरसों के तेल के दाम बढ़े हैं क्योंकि सरकार ने इसमें मिलावट बंद करा दी है।” लेकिन दाम तो रिफाइंड तेल के भी बढ़े हैं, इसका जवाब केंद्रीय कृषि मंत्री ने नहीं दिया।

कभी खेती न करने वाले विशेषज्ञ एक जवाब ये भी देते हैं कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तेल के दाम बढ़े हैं और भारत कुल खपत का 56 प्रतिशत आयात करता है। तो एक सवाल फिर पैदा होता है कि भाई अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खाद्य तेलों की क़ीमतों में इज़ाफा क्यों हुआ है। तो साल्वेंट एक्सट्रेक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इण्डिया (एस.ई.ए.आई.) के कार्यकारी निदेशक बी.वी. मेहता इसके जवाब में कहते हैं कि इसका एक बड़ा कारण वेजिटेबल आयल से बायो फ्यूल बनाना है। खाद्य तेल की शिफ्टिंग अब फ़ूड बास्केट से फ्यूल बास्केट की तरफ हो रही है। अमरीका, ब्राजील और अन्य देशों में सोयाबीन के तेल से रिन्यूबल फ्यूल बनाने पर जोर दिया जा रहा है। चीन द्वारा बड़े पैमाने पर की जा रही खरीद, मलेशिया में लेबर को लेकर चल रहा विवाद, पाल्म और सोया की बिजाई वाले इलाकों में समुंद्री तूफान ला निफिया का प्रभाव और मलेशिया और इंडोनेशिया में पाल्म आयल का निर्यात शुल्क भी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर तेल की कीमतें बढ़ने के कारण हैं।

वहीं केंद्र सरकार कह रही है देश के लोग ज़्यादा तेल खाने लगे हैं, और उत्पादन कम कर रहे हैं। कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक पिछले 5 साल के दौरान देश में खाद्य तेल की प्रति व्यक्ति उपलब्धता प्रति वर्ष 19.10 किलोग्राम से 19.80 किलोग्राम रही है। कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार 2015-16 से लेकर 2019-20 के मध्य देश में खाद्य तेल की मांग बढ़ कर 23.48 मिलियन टन से बढ़ कर 25.92 मिलियन टन हो गयी है जबकि इस दौरान घरेलू आपूर्ति इस से काफी कम 8.63 मिलियन टन से लेकर 10.65 मिलियन टन के मध्य रही है। साल 2019-20 में सरसों और मूंगफली के प्राथमिक स्रोतों और नारियल, राइस ब्रैन, कॉटन और पाल्म आयल जैसे दूसरे स्रोतों को मिला कर उपलब्धता 10.65 मिलियन टन रही जबकि इस दौरान देश में खाद्य तेल की मांग 24 मिलियन टन रही।

इस लिहाज से देश में मांग और आपूर्ति के मध्य 13 मिलियन टन का अंतर रहा है। देश में खाने के तेल की बढ़ी मांग के चलते 2019-20 में भारत ने 61,559 करोड़ रुपये की कीमत का 13.55 मिलियन टन खाद्य तेल आयात किया है और यह देश की कुल मांग का 56 प्रतिशत है। आयात किए गए कुल तेल में 7 मिलियन टन पाल्म आयल, 3.5 मिलियन टन सोयाबीन आयल और 2.5 मिलियन टन सूरजमुखी का तेल शामिल है। भारत अर्जेंटीना और ब्राजील से सोया तेल खरीदता है जबकि इंडोनेशिया और मलेशिया से पाल्म आयल की खरीद की जाती है और सूरजमुखी का तेल भी अर्जेंटीना से खरीदा जाता है।

खाद्य तेल पर लगेन वाले 35.75% – 49% आयात शुल्क का कहीं जिक्र ही नहीं

प्रतीकात्मक छवि

इस साल 2 फरवरी से लागू करों की दर के मुताबिक एग्रीकल्चर इंफ्रास्ट्रक्चर और डिवैलमैंट सेस और सामाजिक सुरक्षा सेस को मिला कर सरकार खाद्य तेल पर 35.75 प्रतिशत कर वसूल करती है। रिफाइंड, ब्लीच्ड और डिऑड्राइज्ड (आर.बी.डी.) पाल्म आयल पर आयात शुल्क की दर 59.40 प्रतिशत है इसी प्रकार कच्चे और रिफाइंड सोयाबीन आयल पर आयात शुल्क 38.50 प्रतिशत से लेकर 49.50 प्रतिशत तक है। कार्पोरेट खाद्य तेल इंडस्ट्री आयात शुल्क कम करने के पक्ष में नहीं है, न ही सरकार है।

साल्वेंट एक्सट्रेक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इण्डिया के मुताबिक यदि मोदी सरकार खाद्य तेल पर लगने वाले आयात शुल्क में कमी कर दे तो छोटी अवधि में कीमतों में तेजी से कुछ हद तक राहत मिल सकती है।

राजस्व घाटे से बचने और तेल कीमतों को नियंत्रित करने का एक अन्य रास्ता सरकार द्वारा पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम के तहत खाद्य तेल की बिक्री हो सकती है और ऐसा करके सरकार गरीब तबके को महंगे तेल से राहत दे सकती है। लेकिन इसके लिये जनहित की नीयत होनी चाहिये। जो कि मौजूदा सरकार में नहीं है।

-जनचौक के विशेष संवाददाता सुशील मानव की रिपोर्ट

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