क्या देश एक बड़े टकराव की ओर बढ़ रहा है?

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देश एक बड़े टकराव की ओर बढ़ रहा है। राष्ट्रपति के अभिभाषण पर मोदी ने जो जवाब दिया, उसके नैरेटिव से यह स्पष्ट है। वह नैरेटिव संक्षेप में यह है कि मोदी जी भारत को आगे ले जाने की, विकसित भारत की जो कहानी लिख रहे हैं उसके खिलाफ विपक्ष साजिश कर रहा है और भारत की विकास यात्रा को पटरी से उतारना चाहता है। इसमें विदेशी दुश्मन ताकतें भी मदद कर रही हैं। मोदी जी उन्हें कामयाब नहीं होने देंगे और ईंट का जवाब पत्थर से देंगे। मोदी जी ने इसके लिए सेना का मनोबल गिराने का हवाला दिया ( उनका इशारा अग्निवीर की आलोचना की ओर था )। जनता को इसके खिलाफ खड़े होने का आह्वान किया। तमाम संस्थाओं से खड़ा होने की अपील किया। यहां तक कि उन्होंने लोकसभा अध्यक्ष को इन्हें बालक बुद्धि समझ कर माफ करने की बजाय उनसे सख्ती से निपटने की अपील किया।

बहरहाल देश में अमृतकाल के सुशासन की एक बानगी हाथरस कांड है। हाथरस हादसे ने सौ से ऊपर गरीब अभागे लोगों की बलि ले ली। सबसे पीड़ादायी यह है कि बाबा के दलित समुदाय पर असर के डर से कोई उसके खिलाफ बोलने की हिम्मत नहीं कर रहा है। मायावती जी ने बेशक दलित समुदाय के लोगों से ऐसे बाबाओं से दूर रहने और अपनी सत्ता के बल पर अपनी किस्मत बदलने का आह्वान करते हुए अपनी पार्टी बसपा से जुड़ने की अपील किया है। उन्होंने ऐसे बाबाओं के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है।

दरअसल हिंदुत्व के उभार के साथ ऐसे बाबाओं की बाढ़ आ गई है। एक भाजपा नेता ने बाबा का बचाव करते हुए संतोष जताया की उनकी वजह से इस क्षेत्र में धर्मांतरण रुका है। जाहिर है योगी सरकार अपने हिंदुत्व के एजेंडा को आगे बढ़ाने वाले और जनता में फॉलोइंग रखने वाले भ्रष्ट बाबाओं के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करने वाली, बल्कि चुनाव में उनका इस्तेमाल करना चाहेगी जैसे राम रहीम को बार बार पैरोल पर रिहा करके किया जा रहा है। जगह जगह गिरते पुल, ढहते टर्मिनल, यहां तक की राम पथ में भी गड्ढे मोदी राज के भ्रष्टाचार मुक्त सुशासन की दूसरी बानगी हैं।

दरअसल यूपी के 10 उपचुनावों समेत इस साल होने जा रहे विधानसभा चुनाव मोदी की नई पारी के लिए अग्निपरीक्षा साबित होने जा रहे हैं। इनके नतीजे राष्ट्रीय राजनीति के परवर्ती काल के घटनाक्रम को गहराई से प्रभावित करने जा रहे हैं। जैसी खबरें आ रही हैं महाराष्ट्र में नए गठबंधन की संभावनाएं व्यक्त की जा रही हैं। ऐसी उम्मीद है की इससे विपक्षी गठबंधन और ताकतवर बन कर उभरेगा। उधर हरियाणा में विपक्ष के हौसले बुलंद हैं। उनके साथ किसान आंदोलन, अग्निवीर योजना के विरोधी युवाओं तथा महिला पहलवानों के अपमान से उद्वेलित समाज का समर्थन है।

झारखंड में हेमंत सोरेन रिहा होकर न सिर्फ पुनः मुख्यमंत्री बन गए हैं। बल्कि उनको बेल देते हुए उच्च न्यायालय ने जो टिप्पणी की है, उससे पूरे समाज में यह संदेश गया है कि उनके खिलाफ फर्जी केस बनाया गया है। उनकी जेलबंदी के दौरान ही झारखंड की सभी 5 आदिवासी बहुल आरक्षित सीटें गठबंधन जीत चुका है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि विशेषकर आदिवासियों में उनकी फर्जी गिरफ्तारी पर क्या प्रतिक्रिया है। उम्मीद है की गठबंधन विधानसभा चुनाव में भी वहां बेहतर प्रदर्शन करेगा।

इसके बाद के राउंड में दिल्ली का चुनाव है। वैसे तो लोकसभा में फिर भाजपा ने सभी सीटें जीत ली हैं। वैसे भी लोकसभा और विधानसभा चुनाव की डायनामिक्स अलग होती रही है। जनता का वोटिंग पैटर्न अलग होता रहा है। लेकिन इतने खराब प्रदर्शन के लिए जमीनी स्तर पर दोनों दलों के कार्यकर्ताओं/ नेताओं के बीच आपसी भीतरघात को जिम्मेदार माना जा रहा है। चांदनी चौक जैसी कांग्रेस की अच्छी सीटें भी आप पार्टी के वोट ट्रांसफर न हो पाने के कारण नहीं जीती जा सकीं। क्या यह सब ऊपरी नेताओं के ग्रीन सिग्नल के बाद हुआ? अगर ऐसा है तो बेहद खतरनाक है और भविष्य के लिए चेतावनी है। क्या एक ईमानदार गठबंधन दिल्ली चुनाव लड़ेगा अथवा सबकी राह एकला चलो की होगी?

1. अगर भाजपा इन तमाम चुनावों में अच्छा करती है, जिसकी संभावना कम बताई जा रही है, तो फिर संभवतः वह संसदीय रास्ते से अपने एजेंडा को आगे बढ़ाना जारी रखे। परंतु अगर वह इन चुनावों में खराब प्रदर्शन करती है तो इस बात की पूरी संभावना है कि उनका डर्टी ट्रिक्स डिपार्टमेंट्स सक्रिय होगा और तरह तरह के नुस्खे आजमाए जायेंगे ताकि समाज में ध्रुवीकरण बढ़े और विपक्ष की तथा नागरिक समाज की हर असहमत आवाज को दबाया जायगा। अरुंधति राय, मेधा पाटकर आदि के खिलाफ इसकी शुरुआत हो गई है। इसके लिए नए दंड कानूनों से जिन्हें न्याय संहिता कहा जा रहा है सरकार अपने को पहले ही सुसज्जित कर चुकी है।

2. यह साफ है कि किसान युवा चुप नहीं बैठने वाले। चुनाव के दौरान विपक्ष ने जो सपने दिखाए उन्होंने जनता की आकांक्षाओं को बढ़ा दिया है। उन्हें पूरा करने के लिए क्या वे खड़े नहीं होंगे? अगर विपक्षी गठबंधन उन मांगों को पूरा कर सकता था तो आज की सरकार क्यों नहीं कर सकती ? क्या किसान कर्ज माफी और MSP की कानूनी गारंटी के लिए फिर खड़े नहीं होंगे?छात्र युवा क्या खाली पड़े सरकारी पदों को भरने तथा सबके लिए अप्रेंटिसशिप की मांग के लिए खड़े नहीं होंगे। क्या मजदूर अपनी मजदूरी बढ़ाने के लिए और लेबर कोड के विरुद्ध खड़े नहीं होंगे?

3. नायडू और नीतीश ने अपनी मांगे रखना और सरकार के सामने पेश करना शुरू कर दिया है। जाहिर है विशेष राज्य के दर्जे में जो भारी धनराशि और पैकेज इंवॉल्व है, उसे स्वीकार करना खर्च में कटौती (austerity) की अर्थनीति पर चलने वाली सरकार के लिए आसान नहीं होगी। इसके अलावा एक पंडोरा बॉक्स खुल जायेगा और तमाम राज्य पिछड़ेपन के आधार पर इसकी मांग उठा सकते हैं। धन की ही मांग मूलतः नायडू की भी है।इसे पूरा करना केंद्र के लिए आसान नहीं होगा।

ऐसी स्थिति में विधानसभा चुनावों के बाद, अगर परिणाम भाजपा के विपरीत रहे तो सहयोगियों का दबाव बढ़ सकता है और एनडीए में तनाव शुरू हो सकता है। इसके बाद डर्टी ट्रिक्स डिपार्टमेंट्स अपना काम शुरू कर सकता है जिसकी पृष्टभूमि पहले से तैयार की जा रही है। पंजाब में जैसे इंदिरा गांधी के अंतिम कार्यकाल की कहानी दुहराई जा रही है। हालांकि ऐतिहासिक संदर्भ बिल्कुल अलग है लेकिन अनेक समानताएं भी हैं।

दरअसल किसान आंदोलन के समय जो नुस्खा पूरी तरह लागू नहीं किया जा सका, उसे फिर आजमाने की तैयारी लगती है। जिस तरह दीप सिद्धू आदि के माध्यम से लाल किला प्रकरण को अंजाम देकर किसान आंदोलन को बदनाम करने और कुचलने की तैयारी थी और फिर संदिग्ध परिस्थितियों में सिद्धू की मौत के बाद योजनाबद्ध ढंग से अमृतपाल को दुबई से पंजाब लाया गया और उसने ड्रग जैसे कुछ पॉपुलर मुद्दों की आड़ में वहां कट्टरपंथ को बढ़ावा देने का खेल शुरू किया और अंततः निर्दल सांसद बनने में सफल हुआ।

यह साफ है कि पंजाब में अगर सिख कट्टरपंथ बढ़ता है तो हिंदू ध्रुवीकरण भी बढ़ेगा जिसका राजनीतिक लाभ भाजपा को मिलेगा। उससे बड़ी बात ये कि इस प्रक्रिया में जो मध्यमार्गी दलों का स्पेस है वह सिकुड़ता जायेगा और सबसे बडी बात यह कि किसान आंदोलन की संभावनाओं के लिए ख बेहद घातक सिद्ध होगा। सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के माहौल में किसान आंदोलन की चुनौती खत्म हो जाएगी। अगर यह बड़ा मुद्दा बना तो राष्ट्रीय राजनीति में ध्रुवीकरण का भी औजार बन सकता है।

जाहिर है विपक्ष तथा नागरिक समाज और जनांदोलन की ताकतों को आने वाले दिनों में हताश मोदी सरकार के हर दुस्साहसवाद का मुकाबला करने के लिए तैयार रहना होगा।

(लाल बहादुर सिंह इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष हैं)

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