Saturday, April 27, 2024

नियमगिरि के वास्तविक दावेदारों के खिलाफ राज्य-कॉर्पोरेट का संयुक्त अभियान क्या इस बार निर्णायक होने जा रहा है?

“गांव छोड़ब नाहीं, हम जंगल छोड़ब नाहीं, माई-माटी छोड़ब नहीं, लड़ाई छोड़ब नहीं।” इस लोकगीत को संभवतः देश के सभी नागरिकों ने कभी न कभी अवश्य सुना होगा। ओडिसा ने नियमगिरि के पहाड़ों की चर्चा भी पिछले दो दशक से आम रही है, जब नियमगिरि पर्वत रेंज में वेदांता ग्रुप के बाक्साइट खनन के लाइसेंस के खिलाफ डोंगरिया कोंध आदिवासी समुदाय का संघर्ष भारत ही नहीं दुनियाभर ने देखा था। अंततः वर्ष 2013 में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले ने वेदांता अल्युमिनियम को नियमगिरि से बाक्साइट खनन करने पर निषेध का आदेश जारी कर इन आदिवासियों के अस्तित्व को बचा लिया। सर्वोच्च न्यायालय ने अपनी टिप्पणी में वेदांता बनाम डोंगरिया कोंध संघर्ष को डेविड बनाम गोलियाथ की संज्ञा दी थी। लेकिन समय बदलता है, सत्ता का मिजाज निरंतर जनपक्ष के विरुद्ध होता गया है। इसकी मिसाल मानसून सत्र के दौरान खनन एवं वन क्षेत्र के वनाधिकार में व्यापक परिवर्तन में देखा जा सकता है। मोदी सरकार की देखादेखी राज्य सरकारों के रुख में भी अविश्वसनीय बदलाव आया है, और ओडिशा सरकार भी इसका अपवाद नहीं है।

कैम्पेन अगेंस्ट स्टेट रिप्रेसन ने अपने बयान में बताया है कि 6 अगस्त 2023 के दिन ओडिसा पुलिस ने नियमागिरी सुरक्षा समिति (एनएसएस) से जुड़े 9 लोगों के खिलाफ आईपीसी एवं यूएपीए की धाराएं लगाई हैं। ये आरोपपत्र दो एनएसएस कार्यकर्ता, कृष्णा सिकाका और बारी सिकाका की कालाहांडी जिले के लांजीगढ़ हाट से सादे वेश में पुलिस द्वारा किये गये जबरन अगवा किये जाने के एक दिन बाद हुई थी,  जहां पर वे ग्रामीणों के साथ आगामी विश्व आदिवासी दिवस के कार्यक्रम की तैयारियों के सिलसिले में बैठक कर रहे थे। एनएसएस कार्यकर्ताओं द्वारा इस बाबत जब पुलिस से संपर्क किया गया तो उसकी ओर से इस बारे में किसी भी जानकारी से इंकार किया गया। 

इन कार्यकर्ताओं की खोज-खबर के लिए एनएसएस ने कल्याणसिंहपुर पुलिस स्टेशन के सामने प्रदर्शन का कार्यक्रम रखा था। खबर है कि विरोध प्रदर्शन के बाद भीड़ जब तितर-बितर हो रही थी, तब पुलिस की ओर से भीड़ के बीच से ही एक और कार्यकर्ता द्रेंजू क्रिसिका को अगवा करने की भी कोशिश की गई थी। लेकिन ग्रामीणों के संख्या बल एवं सामूहिक कोशिशों का ही फल था जिसने अगवा करने की घटना को विफल कर दिया। इसके जवाब में पुलिस ने एनएसएस के 9 कार्यकर्ताओं, लाडा सिकाका, द्रेंजू क्रिसिका, लिंगाराज आजाद, खंडूल्माली सुरक्षा समिति के ब्रिटिश कुमार और कवि लेनिन कुमार के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर दी।

अधिकार समूह ने अपने बयान में कहा है कि 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस से कुछ दिन पहले ही इन अपहरणों एवं तथाकथित आतंकवाद विरोधी कानूनों के इस्तेमाल को ओडिशा में जनता के व्यापक लोकतांत्रिक संघर्षों के राजकीय दमन के वृहत्तर प्रयास के हिस्से के तौर पर देखना चाहिए।

2003 में भारत सरकार ने वेदांता लिमिटेड के साथ नियमगिरि पर्वत में बाक्साइट खनन के समझौते पर समझौता किया था। इस प्रोजेक्ट से इस पहाड़ और इसके आस-पास के क्षेत्रों के रहवासियों को अपने पारंपरिक भूमि से बेदखल होना पड़ता, जिसका व्यापक पर्यावरणीय विनाश न सिर्फ इस क्षेत्र के निवासियों के हिस्से में बदा था, बल्कि इससे बड़े पैमाने पर ओडिशा की आबादी को भी प्रभावित होना पड़ता, क्योंकि नियमगिरि की अनूठी बॉक्साइट संरचना राज्य भर के नदी जल को फिल्टर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती आई है। 

लेकिन सर्वोच्च न्यायालय के फैसले ने नियमगिरि के आदिवासियों के अधिकारों के हक में फैसला देकर इस क्षेत्र में खनन के काम पर अस्थाई रोक लगा दी, लेकिन इस क्षेत्र के निवासियों ने अपनी भूमि पर अपने अधिकारों की रक्षा के लिए अपने संघर्ष को आज भी जारी रखा है। मौजूदा दौर में राज्य मशीनरी ने कार्यकर्ताओं को अपहृत कर उनके ऊपर आतंकवाद विरोधी कानून लगाकर अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करने से रोकने के लिए दमनकारी उपायों को तेज कर दिया है।

लेकिन हकीकत तो यह है कि सिर्फ यही एक घटना नहीं घटी है, बल्कि नियमगिरि एवं इसके आसपास के क्षेत्रों में राज्य दमन में बड़े पैमाने पर तेजी आई है। 6 अगस्त को रायगडा के काशीपुर में वेदांता और अडानी ग्रुप के सिजिमाली और कुतुरमाली परियोजनाओं में बाक्साइट खनन अभियान के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किये थे। इस मुद्दे को हल करने के लिए वेदांता समूह ने एक अन्य कंपनी मैत्री को काम सौंपा और इस परियोजना के लिए समर्थन जुटाने के लिए स्थानीय निवासियों को अपने पक्ष में करने हेतु ग्राम सभा आयोजित कराई, लेकिन लोगों के जबर्दस्त प्रतिवाद से कंपनी के किये कराये पर पानी फिर गया था। 

यहां पर भी पुलिस द्वारा इन प्रदर्शनों को संगठित करने वाले कार्यकर्ताओं को देर रात में हिरासत में लेने की घटना प्रकाश में आई है। हाल ही में इन कार्यकर्ताओं को जब अदालत में पेश किया गया तो उन्होंने अपने उपर हुए शारीरिक हिंसा और दमन के चिन्ह दिखाए। इसी प्रकार 16 अगस्त को भी पुलिस ने सिजमाली क्षेत्र से 7 और लोगों को अगवा कर लिया है, और जल्द ही उन्हें कोर्ट में पेश किया जाना है, जो कि आम लोगों के लोकतांत्रिक प्रतिरोध का दमन करने का स्पष्ट प्रयास है। 

कैम्पेन अगेंस्ट स्टेट रिप्रेसन समूह के मुताबिक राज्य विकास के अपने साम्राज्यवादी मॉडल पर चलते हुए इन बाक्साइट प्रधान क्षेत्रों में कार्यकर्ताओं की भूमि से जुड़े संघर्षों पर हमले को जारी रखे हुए है। नियमगिरि की घटना में जिन दो कार्यकर्ताओं- कृष्णा सिकाका और बारी सिकाका को अगवा किया गया था, को उच्च न्यायालय में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका डालने के बाद जाकर पुलिस द्वारा पेश करने के लिए मजबूर किया जा सका है। बारी सिकाका को रिहा कर दिया गया है, लेकिन कृष्णा सिकाका के खिलाफ बलात्कार का आरोप लगाकर जेल भेज दिया गया है। 2018 से कृष्णा सिकाका लगातार आम सभाओं एवं प्रदर्शनों में भाग ले रहे हैं, लेकिन इन 5 वर्षों में पुलिस ने कभी भी उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं की। इससे यह संदेह खड़ा होता है कि उन्हें सिर्फ फंसाने के लिए ही यह आरोप मढ़ा गया है। 

इसके अलावा इस मामले में एक अन्य आरोपी उपेन्द्र भोई को शुरू में उनके परिवार ने 10 अगस्त से लापता होने की सूचना दी थी, लेकिन अब जाकर 15 अगस्त को पता चला है कि उन्हें रायगडा जेल में बंद रखा गया है। जमीन और संसाधनों की कॉर्पोरेट लूट को सुनिश्चित करने के लिए कंपनियों और राज्य का संयुक्त गठजोड़ इस तरीके से कार्यकर्ताओं पर अपने हमले और उत्पीड़न को जारी रखे हुए है, जो न सिर्फ अलोकतांत्रिक है बल्कि यह विकास के जनविरोधी साम्राज्यवादी मॉडल का भी पर्दाफाश करता है। 

कैम्पेन अगेंस्ट स्टेट रिप्रेसन समूह नियमगिरि सुरक्षा समिति (एनएसएस) कार्यकर्ताओं के खिलाफ लगाए गए फर्जी यूएपीए कानून एवं अन्य आरोपों को रद्द करने की मांग करता है, और सभी लोकतांत्रिक प्रगतिशील ताकतों से कॉर्पोरेट लूट के खिलाफ आंदोलन के पक्ष में खड़ा होने का आह्वान करता है।

कैम्पेन अगेंस्ट स्टेट रिप्रेसन समूह में शामिल विभिन्न जन संगठनों में एआईआरएसओ, आइसा, एआईएसएफ, एपीसीआर, बीएएसएफ, बीएसएम, भीम आर्मी, बिगुल मजदूर दस्ता, बीएससीईएम, सीईएम, सीआरपीपी, सीटीएफ, दिशा, डीआईएसएससी, डीएसयू, डीटीएफ, बिरादरी, आईएपीएल, कर्नाटक जनशक्ति, एलएए, मजदूर अधिकार संगठन, मजदूर पत्रिका, मोर्चा पत्रिका, एनएपीएम, एनबीएस, नौरोज़, एनटीयूआई, पीपुल्स वॉच, रिहाई मंच, समाजवादी जनपरिषद, समाजवादी लोक मंच, बहुजन समाजवादी मंच, एसएफआई, यूनाइटेड अगेंस्ट हेट, डब्ल्यूएसएस एवं वाई4एस जैसे संगठनों की अग्रणी भूमिका है। 

डेविड और गोलियाथ की इस लड़ाई के बारे में 2013 में भी कयास लगाये जा रहे थे कि यह संघर्ष-विराम है, अभी लड़ाई अपने अंजाम तक नहीं पहुंची है। वर्तमान में देश के कुछ हिस्सों में भयानक सूखा तो हिमाचल में भारी तबाही मची है। नियमगिरि के आदिवासी समुदाय किसी विकास की अपेक्षा नहीं करते हैं, बल्कि वे जिस हाल में हैं उसमें उन्हें असीम सुख और तृप्ति प्राप्त होती है। लेकिन असल गरीब और भूखे वे कॉर्पोरेट और साम्राज्यवादी शक्तियां हैं, जिनकी भूख का आकार पूरे विश्व में भयंकर सूखे, बाढ़, गर्मी, ग्लोबल वार्मिंग, महामारी और आणविक विनाश के लिए पूरी तरह से जिम्मेदार है। अपनी भूख उसने खुरचन के तौर पर शिक्षित मध्य वर्ग सहित आधुनिक पश्चिमी सभ्यता के अंधानुकरण में फंसी व्यापक वैश्विक जनमत में बिखेर दिया है, और हम सब मिलकर नियमगिरि के अंत में भागीदारी निभा रहे हैं। 

(रविंद्र पटवाल जनचौक की संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)

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