नई दिल्ली। जेएनयू से जुड़ी एक सनसनीखेज रिपोर्ट आयी है जिसमें बताया गया है कि जेएनयू प्रशासन ने एचआरडी मंत्रालय से जेएनयू को कुछ समय के लिए बंद करने की सिफारिश की थी। लेकिन मंत्रालय ने उसे खारिज कर दिया। प्रशासन ने यह सिफारिश रविवार को हुई हिंसा के बाद की थी।
इकोनामिक टाइम्स के हवाले से आयी रिपोर्ट में बताया गया है कि यह प्रस्ताव सोमवार को जेएनयू प्रशासन और मानव संसाधन विकास मंत्रालय की बैठक में दिया गया था। हालांकि कुलपति जगदेश कुमार उस बैठक में शामिल नहीं थे।
अपने दो पन्नों की रिपोर्ट में विश्वविद्यालय प्रशासन ने पूरी जिम्मेदारी छात्रों और उनके द्वारा फीस वृद्धि के खिलाफ किए जाने वाले आंदोलन पर मढ़ दी है। इसमें कहा गया है कि इसी हिस्से ने कुछ सप्ताह पहले एडमिन ब्लाक में तोड़फोड़ की थी साथ ही उसने कुलपति के दफ्तर को भी तहस-नहस कर दिया था।
रिपोर्ट नकाब पहने बाहरी लोग कैंपस में कैसे घुसे इसकी व्याख्या कर पाने में नाकाम रही है। इसकी बजाय रिपोर्ट में कहा गया है कि फीस वृद्धि का विरोध कर रहे छात्रों ने रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया में शामिल लोगों पर हमलावर हो गए तब प्रशासन को पुलिस बुलानी पड़ी।
प्रशासन ने तुरंत पुलिस से संपर्क किया और उसे कैंपस के भीतर आकर कानून और व्यवस्था बनाने के लिए कहा। रिपोर्ट में कहा गया है कि इस बीच जब तक पुलिस आती प्रदर्शनकारियों ने रजिस्ट्रेशन के लिए आए लोगों की पिटाई शुरू कर दी। लिहाजा पूरी रिपोर्ट में बाहर से आए लोगों का कोई जिक्र नहीं है। वह कैसे घुसे और किन पर हमला किया और फिर उनकी पहचान क्या है इन तमाम सवालों पर रिपोर्ट मौन है।
नकाबपोशों का एक जगह जिक्र है लेकिन वह भी पेरियार होस्टल में उनके घुसने का। जबकि सबसे ज्यादा हिंसा साबरमती छात्रावास में हुई थी। लेकिन रिपोर्ट में कहीं साबरमती छात्रावास का जिक्र तक नहीं है। इससे समझा जा सकता है कि जेएनयू प्रशासन किस हद तक पक्षपाती हो गया है। और यह केवल पक्ष तक सीमित नहीं है बल्कि विद्यार्थी परिषद से लेकर दिल्ली पुलिस प्रशासन तक एक गठजोड़ की तरफ इशारा करता है। जिसमें गृहमंत्रालय किसी न किसी रूप में शामिल है।