ऊपर जो शीर्षक है वह दो राज्यों की राजनीतिक कहानी को आगे बढ़ाती है। इस कहानी में चार राजनीतिक पार्टियां हैं। एक तरफ झारखंड के भीतर बीजेपी और झामुमो के बीच का द्वन्द है तो दूसरी तरफ बिहार की राजनीति है जहाँ नीतीश कुमार के सहारे बीजेपी सत्ता का सुख भोग रही है। बिहार में जहाँ बीजेपी और जदयू मिलकर सरकार चला रहे हैं तो झारखंड में झामुमो को तोड़कर बीजेपी आगामी चुनाव में सत्ता पाने को लालायित है।
बीजेपी ने झामुमो के बड़े नेता चम्पई को अपने पाले में कर लिया है। बीजेपी को उम्मीद है कि चम्पई के आने से झारखंड के कोल्हान इलाके के 14 सीटों पर बीजेपी को बढ़त मिल सकती है क्योंकि झामुमो अभी तक चम्पई के सहारे ही वहां चुनाव जीतती रही है और बीजेपी को भारी चुनौती भी मिलती रही है। पिछले चुनाव में कोल्हान से बीजेपी साफ़ हो गई थी। सभी सीटें इंडिया गठबंधन के पास चली गई थी।
लेकिन कहानी अब यह है कि जो बीजेपी झारखंड में झामुमो के खिलाफ राजनीति कर रही है वही बीजेपी बिहार में नीतीश के साथ भी कुछ उसी तरह की राजनीति खेलने को आतुर है। वही खेल ! पार्टी में दरार और अपनी पार्टी को मजबूत करने का बड़ा खेल। यह खेल जदयू और लोजपा के खिलाफ कभी भी हो सकता है। इस बात की जानकारी बीजेपी के लोगों को जितनी नहीं है उससे ज्यादा जानकारी जदयू और चिराग पासवान को है। लेकिन जदयू के प्रमुख तो नीतीश कुमार हैं और लगे हाथ प्रदेश के सीएम भी हैं। उनकी यारी बीजेपी से भले ही सत्ता का सुख पाने के लिए हो लेकिन उनका मिजाज तो समाजवादी है। उनका अपनापन लालू यादव से कुछ ज्यादा है और फिर वे पिछड़ों और दलितों का साथ भी नहीं छोड़ना चाहते।
कोई माने या नहीं माने नीतीश कुमार इन दिनों तेजस्वी यादव के कुछ ज्यादा करीब हैं। भले ही नीतीश कुमार जो भी बयान देते फिरें लेकिन बिहार की राजनीति इस बात की गवाह है कि वे तेजस्वी के साथ मिलते हैं और कई बातों पर चर्चा भी करते हैं। यह मुलाकात कभी सीधे होती है तो कभी इशारों में, तो कभी और तरीकों से। अभी हाल में ही नीतीश और तेजस्वी की एक बड़ी मुलाकात हुई है जिसमें नीतीश कुमार कुछ वादे तेजस्वी से कर गए हैं। मीडिया में बहुत सी बातें आयीं। बिहार में सत्ता बदलने की बात होने लगी और नीतीश कुमार की पलटी मारने की कहानी चलने लगी। बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व परेशान हुआ, बीजेपी अध्यक्ष नड्डा पटना पहुंचे और नीतीश से मिलकर सफाई मांगी।
क्या आपको लगता है कि नीतीश जैसे घाघ नेता नड्डा को अपनी सफाई देंगे ? उन्हें जो कहना था मीडिया के सामने कह गए और चलते बने। लेकिन कहानी इतनी भर ही नहीं थी। सच तो यह है कि नीतीश के तेजस्वी के साथ किये गए इस हालिया वादे से बीजेपी की परेशानी ज्यादा बढ़ गई है। अब उसे चैन नहीं है। हम उस पर ही चर्चा करेंगे। लेकिन सबसे पहले कोल्हान और चम्पई को लेकर इंडिया गठबंधन और झामुमो के खेल पर एक नजर डालने की ज़रूरत है।
कोल्हान आदिवासियों का एक ऐसा इलाका है जहां शुरू से ही शिबू सोरेन की मजबूत राजनीतिक जमीन रही है। शिबू सोरेन ने इस इलाके की पूरी राजनीति चम्पई सोरेन के हवाले कर दी थी। चम्पई जी गुरूजी के ख़ास भी रहे और आंदोलन के समय के हमसफ़र भी रहे हैं। चम्पई की खासियत यह है कि वे मधुर भाषी हैं और कोल्हान में सबके प्रिय भी। लेकिन यह भी सच है कि कोल्हान के लोग वोट भले ही चम्पई की आवाज पर देते रहे हैं लेकिन उन आदिवासियों के हाथ में गुरु जी और तीर धनुष की तस्वीर भी होना जरुरी है। आदिवासी समाज में तीर धनुष का झंडा थामे रखना किसी शान से कम नहीं। गुरु जी की तस्वीर को घरों में रखना एक शगल जैसा है। मानो गुरु जी उनके लिए भगवान के सामान ही हैं।
चम्पई जब से बीजेपी के साथ गए हैं पूरा झामुमो इस पर मौन है। कोई भी झामुमो नेता चम्पई के खिलाफ कुछ भी कहने को तैयार नहीं है। झामुमो नेताओं को सख्त हिदायत दी गई है कि कोई भी नेता चम्पई के खिलाफ कुछ नहीं बोलेगा। इस हिदायत का पालन अभी तक हो रहा है। लेकिन अब झामुमो जो करने जा रही है वह बीजेपी के लिए बड़ा ही घातक है और चम्पई की राजनीति के लिए बड़ी चुनौती। जानकार कह रहे हैं कि चम्पई इस चुनौती को शायद ही झेल पाएं। और अगर वह झेल भी लेते हैं तो बीजेपी जिस मकसद से चम्पई को पार्टी में ले गयी थी उसे और भी बड़ा नुक्सान हो सकता है और ऐसा हुआ तो बीजेपी की राजनीतिक मौत झारखंड में हो सकती है।
चम्पई सोरेन सरायकेला सीट से चुनाव जीतते रहे हैं, झारखंड का निर्माण सन 2000 में हुआ था। उस समय वहां बीजेपी की जीत हुई थी। इसके बाद 2005 से चम्पई सोरेन यहाँ से चुनाव जीत रहे हैं। लेकिन उनकी जीत की मार्जिन को देखें तो कहा जा सकता है कि पिछले तीन चुनाव में उनके जीत का अंतर काफी कम रहा है और हर बार वे बीजेपी उम्मीदवार को हराकर ही चुनाव जीतते रहे हैं। झामुमो अब चम्पई के खिलाफ बड़ा दांव खेलने जा रहा है। जो जानकारी मिल रही है उसके मुताबिक झामुमो सरायकेला सीट से हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन को मैदान में उतारने जा रही है। जानकारी यह भी मिल रही है कि कल्पना सोरेन इस बार दो सीटों से चुनाव लड़ सकती है। एक सीट गांडेय है जबकि दूसरी सीट सरायकेला।
सीएम हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन बीजेपी में चले गए चम्पई सोरेन को चाचा संबोधित करती हैं। चम्पई के लिए यही संबोधन हेमंत भी करते हैं। झामुमो के भीतर इस बात की चर्चा हो रही है कि कल्पना को सरायकेला से खड़ा करके चम्पई को वहीं घेर दिया जाए। इस रणनीति के तहत बीमार चल रहे शिबू सोरेन भी एक बार सरायकेला का दौरा करेंगे। वे भाषण तो नहीं देंगे लेकिन इलाके के लोगों से एक बार मुलाकात करेंगे और कहेंगे कि देखो किस तरह से जीवन भर बीजेपी को गरियाने वाला चम्पई सत्ता की लालच में आज बीजेपी के साथ खड़ा हो गया है और झामुमो को कमजोर करने का खेल किया है।
झामुमो के लोग अब कह रहे हैं कि चाहे आगामी चुमाव में झामुमो के परिणाम जो भी हों लेकिन सरायकेला से चम्पई को जीतने नहीं देना है। रणनीति यह भी है कि कल्पना सोरेन चुनाव के दौरान चम्पई के खिलाफ कुछ भी नहीं बोलेंगी। वह बीजेपी पर हमला करेंगी लेकिन चम्पई के खिलाफ जुबान तक नहीं खोलेगी। ऐसा करके चम्पई शायद ही कल्पना के खिलाफ कुछ बोल सकें और ऐसा हुआ तो कोल्हान का आदिवासी समाज चम्पई की गद्दारी का सबक सिखा देगा।
इधर सरायकेला की राजनीति भी तेजी से बदल रही है। बीजेपी के पुराने नेता जो चम्पई के खिलाफ राजनीति करते रहे हैं वे अब झामुमो में जाने को तैयार हैं। लगभग आधा दर्जन बीजेपी के नेता झामुमो की दरबारी कर रहे हैं और उनका किसी भी समय झामुमो में जाने का ऐलान हो सकता है। बड़ी बात तो यह है कि झारखंड में बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष बाबू लाल मरांडी भी चम्पई के पार्टी में आने से खासे नाराज हैं। लगे हाथ अर्जुन मुंडा भी चम्पई के बीजेपी में आने को पचा नहीं पा रहे हैं। इन दोनों नेताओं को लग रहा है कि जब पहले से ही दो बड़े आदिवासी नेता बीजेपी में हैं तब चम्पई की क्या जरूरत है? बाबूलाल मरांडी को तो अपना भविष्य ही अब संकट में लगता दिख रहा है।
सूत्रों से जो जानकारी मिल रही है उसके मुताबिक़ अक्टूबर महीने में झारखंड की राजनीति में बड़ा तूफ़ान आने वाला है। बीजेपी की कोशिश यह है कि झामुमो और कांग्रेस के कुछ और नेताओं को तोड़ा जाए जबकि झामुमो इस फेर में लगा है कि बीजेपी के भीतर जो आदिवासी नेता हैं सब फिर से झामुमो में लौट जाएं। कोई दर्जन भर बीजेपी से जुड़े आदिवासी नेता पित्रपक्ष के बाद कोई बड़ा निर्णय ले सकते हैं। लेकिन यह सब कयास की बात है। असली बात तो यही है कि हरियाणा और जम्मू कश्मीर के चुनाव परिणाम के बाद देश की राजनीति में बड़ा बदलाव होना तय है और इस बदलाव से भला झारखंड कैसे बचेगा?
अब थोड़ी बिहार की चर्चा कर ली जाए। बिहार में सत्ता परिवर्तन की बात अभी भले ही दब गई है लेकिन सूत्रों से जो जानकारी मिल रही है उससे साफ़ है कि बिहार में बड़ा उलट फेर होगा और यह जल्द ही हो सकता है। बता दें कि पिछले दिनों जब तेजस्वी और नीतीश कुमार की बात हुई थी तो यह कहा गया था कि सूचना आयुक्त की नियुक्ति को लेकर यह मिलन हुआ था। इस बात में सच्चाई भी है। लेकिन मुलाकात के बाद नीतीश और तेजस्वी के बीच लगभग 20 मिनट की मुलाकात अलग से एकांत में हुई थी।
यह मुलाकात काफी अहम थी और इसकी जानकारी बीजेपी को लग गई थी। फिर बीजेपी ने नड्डा को पटना भेजा और नीतीश से मुलाकात हुई। लेकिन राजद के एक नेता के साथ ही बीजेपी के एक बड़े नेता ने भी इस बात की पुष्टि की है कि नीतीश कुमार ने तेजस्वी को एकांत मुलाकात में यह कह दिया कि उन्होंने जो वादा किया था उन्हें आज भी याद है और वह उसे पूरा करेंगे। लेकिन इसके लिए अभी इन्तजार की जरूरत है।
बता दें कि नीतीश कुमार जब राजद के साथ सरकार चल रहे थे तो उन्होंने कहा था कि तेजस्वी को सीएम बनाकर वे केंद्र की राजनीति में जायेंगे। हालांकि इसकी कोशिश भी की गई लेकिन इंडिया गठबंधन में नीतीश की राजनीति को पलीता लग गया। जब उनकी बात इंडिया गठबंधन में नहीं बनी तो उन्होंने प्लान बदल लिया और फिर से बीजेपी के साथ चले गए।
लेकिन अब भले ही नीतीश कुमार यह कहते दिख रहे हों कि वे अब कहीं नहीं जाएंगे लेकिन जदयू के तीन सांसदों ने इस पत्रकार को कहा है कि ”राजनीति में बयानों का कोई मतलब नहीं होता। हम बिहार की सरकार चाहते हैं जबकि बीजेपी केंद्र के साथ ही बिहार की सरकार को बनाये रखना चाहती है। बिहार में हमें बीजेपी की कोई जरूरत नहीं भी पड़ सकती है लेकिन केंद्र में बीजेपी को हमारी जरूरत है। फिर और भी कई बातें हैं। इसलिए हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखंड के चुनाव परिणाम बहुत कुछ बता सकते हैं। बीजेपी के विचार से हमारी राजनीति संचालित नहीं होती।”
जदयू सांसदों के इस बयान को समझें तो बहुत कुछ समझ में आ सकता है। लेकिन मामला यहीं तक नहीं है। एक जानकारी यह भी मिल रही है कि बीजेपी के भीतर मोदी और शाह के विरोधी दर्जन भर से ज्यादा नेता नीतीश के टच में हैं। जो जानकारी मिल रही है उसके मुताबिक इन बीजेपी नेताओं ने नीतीश कुमार से यह भी कहा है कि थोड़ा इन्तजार कीजिये। अगर संघ के लोग मोदी और शाह की जगह कोई और नाम की चर्चा करते हैं तब एनडीए से बाहर जाने की क्या जरूरत है?
इसलिए महाराष्ट्र और हरियाणा चुनाव के बाद जो भी बातें सामने आएँगी उसके मुताबिक़ आगे का निर्णय लेना ठीक होगा। कहा जा रहा है कि नीतीश कुमार भी वक्त का इन्तजार कर रहे हैं। अगर संघ बीजेपी नेतृत्व को लेकर कोई बड़ा फैसला लेगा तो संभव है कि नीतीश कुमार बीजेपी के साथ रह जायेंगे वरना पटना में सत्ता परिवर्तन को कोई रोक नहीं सकता।
(अखिलेश अखिल वरिष्ठ पत्रकार हैं।)