Tuesday, March 19, 2024

काशी विद्यापीठ : कुलपति ने ज़ारी किया फ़रमान सोशल मीडिया पर धर्म के ख़िलाफ़ न लिखें अध्यापक

महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के कुलपति आनंद कुमार त्य़ागी के हवाले से रजिस्ट्रार सुनीता त्यागी ने एक आदेश पत्र ज़ारी किया है। जिसमें काशी विद्यापीठ के अध्यापकों, कर्मचारियों और अधिकारियों को निर्देशित किया गया है कि वो सोशल मीडिया, प्रिंट मीडिया, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया एवं अन्य संचार माध्यमों पर धार्मिक उन्माद, वर्ग भेद, जाति भेद, सामाजिक कटुता एवं वैमनस्य फैलाने वाले तथा विश्वविद्यालय की गरिमा को मलिन करने वाले वक्तव्य एवं पोस्ट न करें। ऐसा करने पर सम्बंधित शख्स के खिलाफ तत्काल कठोर दंडात्मक कार्यवाही की जाएगी। कुलपति का आदेश उनकी प्रशासनिक अयोग्यता, बौद्धिक सोच की कमी और दक्षिणपंथी झुकाव को उजागर करती है। क्या अपने इस आदेश के मार्फ़त उन्होंने प्रोफेसर मिथिलेश गौतम मामले का फैसला सुना दिया है। आखिर उनके इस फ़रमान का मिथिलेश गौतम मामले में क्या फ़र्क पड़ेगा।

क्या कुलपति के फ़रमान से आपके पुनर्बहाली की उम्मीदों को फर्क़ पड़ा है पूछने पर पुरखामोशी ओढ़ लेते हैं डॉ मिथिलेश गौतम। शायद उनके लिये इस फ़रमान के नतीजतन निजी हित से ज़्यादा व्यापक हित मायने रखता है। वो कहते हैं – विश्वविद्यालय एक ऐसा संस्थान होता है जहां विद्यार्थियों में, शैक्षिक, सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक एवं समाज से सम्बंधित मुद्दों पर समालोचनात्मक चिंतन करने की क्षमता और समझ विकसित किया जाता है। जिससे विद्यार्थी समाज में सकारात्मक परिवर्तन ला सके। उक्त क्षमता को विकसित करने की सबसे बड़ी जिम्मेदारी उस संस्थान में कार्यरत अध्यापकों की प्रमुख रूप से होती है। 

मिथिलेश गौतम

डॉ मिथिलेश आगे कहते हैं कि यदि अध्यापकों के ऊपर संस्थानों द्वारा तय कर दिया जाए कि क्या बोलना है और क्या नहीं, तब ऐसी परिस्थिति में अध्यापकों के ऊपर एक गुलामी और तानाशाही व्यवस्था स्थापित कर दिया जाना है। इस तरह की व्यवस्था एक विश्वविद्यालय में नहीं होनी चाहिए और ये संविधान सम्मत भी नहीं है। उन्होंने आगे कहा कि राजनीति विज्ञान या फिर ऐसे तमाम विषयों के पाठ्यक्रम में जहां एक तरफ संविधान, सामाजिक मुद्दे, इतिहास, एवम् समाज का आर्थिक विकास पढ़ना होता है जिससे वो आधुनिक और विकासवादी क्रम के साथ संवैधानिक और वैज्ञानिक बातों को बताए और बढ़ाए। इस पर्चे में धर्म, संप्रदाय, जाति, दलित, महिला, आदिवासी, अन्य पिछड़ा वर्ग के मुद्दे शामिल है। ऐसी परिस्थिति में संस्थान द्वारा निर्गत आदेश के अनुसार हमें संविधान और मुद्दे से सम्बंधित पर्चे को बाहर करना पड़ेगा I

गुप्त कमेटी का गठन

परसों कुलपति से मिलकर आये समाजवादी छात्र संघ के प्रतिनिधि छात्रों को कुलपति ने बताया है कि डॉ मिथिलेश गौतम मामले में एक कमेटी गठित की गई है। डॉ मिथिलेश से जब हमने यह जानना चाहा कि कमेटी में कौन लोग हैं तो उन्होंने कहा कि वो गुप्त कमेटी है जिसके बारे में कोई नहीं जानता। जबकि रजिस्ट्रार और कुलपति ने इस मामले में सफाई के लिये फोन किये जाने पर फोन नहीं उठाया। 

सवाल यह है कि आखिर इतनी जल्दबाजी क्यों की गई। प्रक्रिया तो यही है कि पहले कमेटी गठित की जाती, जांच होती, जांच परिणाम आने के बाद कार्रवाई की जाती। कुलपति पर यदि कोई दबाव था तो वो डॉ मिथिलेश गौतम को बर्खास्त करने के बजाय उन्हें छुट्टी पर भेज सकते थे। लेकिन कुलपति खुद को नियमों से ऊपर मानते हैं। उनकी सनक भरे फैसलों के कई किस्से हैं। उन्होंने प्रोफेसर सत्या सिंह को महज इसलिये डीन के पद से हटा दिया था क्योंकि उन्होंने 62 वर्ष की आयु-सीमा पार कर चुके एक संविदा अध्यापक की सेवा पर कुलपति से मार्गदर्शन मांगते हुये उनकी सैलरी स्लिप पर हस्ताक्षर करने से मना कर दिया था। जिसके बाद कुलपति ने अपने अतिरिक्त पॉवर का इस्तेमाल कर उम्र सीमा 62 से 65 करने हेतु फाइल कुलसचिव को भेज दिया। लेकिन कोई नियम न होने के कारण आदेश निर्गत नहीं हो पाया। इसके बाद कुलसचिव महोदय ने एक डिग्री कॉलेज की प्रिंसिपल को काशी विद्यापीठ के विज्ञान संकाय का डीन नियुक्त कर दिया।   

शिक़ायत से पहले ही टाइप हो गया बर्खास्तगी पत्र

रजिस्ट्रार सुनीता पांडेय प्रोफ़ेसर मिथिलेश गौतम को बर्खास्त करने के लिये कितनी अधीर थीं इसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने पहले बर्खास्तगी का आदेश पत्र ज़ारी टाइप किया और फिर अपने संरक्षित छात्र नेता से प्रोफेसर के खिलाफ़ शिकायत पत्र भिजवाया। खुद काशी विद्यापीठ की कुलसचिव डॉ सुनीता पांडेय का बयान है कि छात्रों ने 29 सितंबर को शिक़ायत पत्र सौंपा है। जबकि प्रोफेसर मिथिलेश को बर्खास्त करने के आदेश वाला एक पत्र 28 सितंबर की तारीख के साथ टाइप किया गया है। जिसमें कुछ बिंदुओं को पेन से भरा गया है। 28 सितंबर वाले आदेश पत्र की फोटोकॉपी पर 29 सितंबर की तारीख के साथ अगले दिन आदेश ज़ारी किया गया है। गौरतलब है कि 29 सितंबर को ही एबीवीपी के छात्र नेताओं ने लिखित शिक़ायत कुलपति को दिया है, ऐसा रजिस्ट्रार साहिबा का बयान है।

दलित प्रोफ़ेसर का शिकार करने वाले गणेश राय को एबीवीपी ने महानगर सहमंत्री बनाकर पुरस्कृत किया

महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ में अध्यापकों का शिकार करने वाले शिकारी गणेश राय के कारगुज़ारियों से खुश हो एबीवीपी ने उसका प्रमोशन कर दिया है। राजनीति विज्ञान के अतिथि अध्यापक डॉ मिथिलेश गौतम के शिकार के बाद एबीवीपी द्वारा उसे काशी महानगर सहमंत्री का पद देकर और शिकार करने के लिये प्रोत्साहन दिया गया है।

जैसा की सर्वविदित है एबीवीपी आरएसएस और भाजपा का अनुषांगिक संगठन है और गणेश राय काशी विद्यापीठ का एबीवीपी छात्रनेता है। बता दें कि गणेश राय ने ही 29 सितंबर 2022 को पत्र लिखकर विद्यापीठ प्रशासन से डॉ मिथिलेश के उक्त सोशल मीडिया पोस्ट की शिकायत की थी। सिर्फ़ इतना ही नहीं गणेश राव नाम के इस एबीवीपी छात्र नेता ने ‘दुर्गा ने महिषासुर का वध कैसे किया?’ शीर्षक वाले एक निबंध के पर्चे फर्जी तरीके से प्रोफेसर मिथिलेश के नाम से छपवाकर कैंपस के अंदर और कैंपस के बाहर बांटकर उनके खिलाफ़ माहौल बिगाड़ने का षड्यंत्र किया है।

एबीवीपी छात्रनेता गणेश राय की सत्ता है काशी विद्यापीठ में

गणेश राय एबीवीपी का दबंग छात्रनेता है। काशी विद्यापीठ में उसका आतंक है। वो अध्यापकों को मारता पीटता है और उन्हें डराकर रखता है। लेकिन उसके खिलाफ़ कभी कोई कार्रवाई नहीं होती। उसे ब्राह्मणवादी और दक्षिणपंथी अध्यापकों और अन्य स्टाफ के अलावा काशी विद्यापीठ के महत्वपूर्ण निर्णायक पदों पर बैठे लोगों का संरक्षण प्राप्त है। कैंपस के छात्रों ने बताया है कि एक प्रोफ़ेसर हैं कृपा शंकर जायसवाल उन्हें कैंपस में बहुत बुरी तरह से गणेश राय ने मारा पीटा था। उसका वीडियो भी वायरल हुआ था।

इसी तरह एक और दलित प्रोफेसर हैं सुशील गौतम उन्हें भी कैंपस में मारा पीटा गया था एबीवीपी के गुंडों द्वारा। एक तरह से कहें तो पूरी यूनिवर्सिटी इनकी बंधक है और यहां के दलित अध्यापक इनके निशाने पर हैं। ये चाहते हैं कि इसी तरह मार पीटकर डराकर या फिर उनकी किसी सोशल मीडिया बयान के आधार पर दलित अध्यापकों का शिकार किया जाये। ये एक नया और कारगर तरीका है यूनिवर्सिटी से दलित अध्यापकों को भगाने का।

अध्यापक या शिक्षक संगठन इसके खिलाफ़ कुछ करता क्यों नहीं है पूछने पर स्टाफ के लोग बताते हैं कि टीचर एसोसिएशन पस्त है। कई अध्यापकों और अन्य स्टाफ के लोगों ने उसके खिलाफ़ अपने पदों से इस्तीफ़ा दिया कि शायद इससे कोई कार्रवाई यूनिवर्सिटी प्रशासन करे पर यूनिवर्सिटी प्रशासन ने उनके इस्तीफे स्वीकार करके वहां दूसरे लोगों को बैठा दिया। अध्यापकों ने कई बार धरना प्रदर्शन किया है गणेश राय के लेकर लेकिन हर बार यूनिवर्सिटी प्रशासन ने उनकी अनदेखी करके अपने भगवा गुंडे को संरक्षण दिया है।   

(जनचौक के विशेष संवाददाता सुशील मानव की रिपोर्ट।)

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