Friday, April 19, 2024

खोरी गांव मामला फिर पहुंचा सुप्रीम कोर्ट

10 हजार परिवारों वाले खोरी गांव तोड़ने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर स्टे तो नहीं मिला किंतु मजदूर आवास संघर्ष समिति की ओर से दायर याचिका पर मिली पुनर्वास योजना में राहत मिली है। 

मजदूर आवाज संघर्ष समिति खोरी गांव द्वारा मजदूरों के आवास के मुद्दे पर पिछले कई वर्षों से ज़मीन से सुप्रीम कोर्ट एवं यूनाइटेड नेशन तक की लड़ाई लड़ी जा रही है। हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक की लड़ाई में खोरी गांव के मजदूर परिवारों ने नगर निगम कार्यालय, डीसी कार्यालय तो कभी जंतर मंतर पर जाकर अपना दुखड़ा सरकार को सुनाया किंतु सुप्रीम कोर्ट भी टस का मस न हुआ। 

मजदूरों के आवास के संघर्ष में एक बहुत बड़ा मोड़ 7 जुलाई 2021 को तब आया जब सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस खानविलकर ने खोरी गांव की बेदखली के आदेश जारी किए। उस आदेश के बाद नगर निगम ने लगभग 5000 से ज्यादा घरों को पिछले सप्ताह में धराशाई कर दिया। एक लाख की आबादी वाला क्षेत्र जहां पर 10000 से ज्यादा परिवार इन नन्हें-नन्हें आशियाने में सर ढके बैठे हैं आज खुले आसमान के नीचे, बारिश के बरसते हुए पानी और कड़कड़ाती धूप में इस वैश्विक महामारी के दौरान अपनी जिंदगी की जंग लड़ रहे हैं। 

मजदूर आवास संघर्ष समिति खोरी गांव के कई लोगों को इस संघर्ष के दौरान झूठे मुक़दमों में फंसाकर फरीदाबाद की पुलिस द्वारा जेल में धकेल दिया गया तो कभी पुलिस संरक्षण में दो-दो चार-चार दिन तक बिना परिवार को बताए जबरन रखा गया। एक तरफ टूटे घर दूसरी तरफ बिलखता हुआ परिवार और तीसरी तरफ पुलिस अत्याचार चौथी तरफ रोजगार खो जाने एवं कोरोना की महामारी से अपनी जान बचाने के साथ आज एक रोटी के टुकड़े के लिए तरसता हुआ परिवार पुनर्वास की मांग कर रहा है किंतु नगर निगम की ओर से जारी की गई पुनर्वास की नीति केवल एक ड्राफ्ट के रूप में फाइलों के फेर में दबी हुई है।

 पुनर्वास की नीति में 2021 तक मजदूरों के पास उनके पहचान पत्र वोटर आईडी कार्ड, परिवार पहचान पत्र, बिजली के बिल में से किसी एक दस्तावेज का होना आवश्यक बताया गया है। साथ ही ₹17000 की पहली किस्त मजदूर द्वारा जमा कराया जाना एवं प्रतिमाह ₹2500 की राशि नगर निगम फरीदाबाद को जमा करवाना आवश्यक रूप से निहित किया गया है। यही नहीं बल्कि बेदख़ल परिवार को अपना आवेदन प्रस्तुत करने के लिए नगर निगम के पास जाना पड़ेगा। पॉलिसी में कई प्रकार की कमियां निहित होने के कारण 8 दिन पूर्व मजदूर आवास संघर्ष समिति खोरी गांव के लोगों ने नगर निगम फरीदाबाद, प्रिंसिपल सेक्रेट्री हरियाणा सरकार एवं डिप्टी कमिश्नर फरीदाबाद को पत्र लिखकर पुनर्वास की नीति में संशोधन करने की गुहार भी लगाई थी किंतु प्रशासन एवं नगर निगम ने इस ओर कोई भी ध्यान नहीं दिया। 

कल 23 जुलाई 2021 को माननीय सुप्रीम कोर्ट में सरीना सरकार वर्सेस स्टेट ऑफ हरियाणा का मामला जो पहले से ही विचाराधीन है किंतु अशोक कुमार वर्सेस स्टेट ऑफ हरियाणा, विनोद कुमार वर्सेस स्टेट ऑफ हरियाणा, रेखा वर्सेस स्टेट ऑफ हरियाणा भी मामले के रूप में दाखिल किए गए जिसकी सुनवाई कल सुप्रीम कोर्ट में की गई पर कुछ बात न बनी। 

सरीना सरकार बनाम हरियाणा सरकार याचिका क्रम संख्या 301 के मामले में एवं अशोक कुमार वर्सेस स्टेट ऑफ हरियाणा के मामले में मजदूर आवास संघर्ष समिति के बाशिंदों की ओर से यह मांग की गई कि पुनर्वास की योजना जो नगर निगम एवं हरियाणा सरकार की ओर से ड्राफ्ट के रूप में तैयार की गई है उसमें कई सारी कमियां हैं जिसमें सरकार को संशोधन करने की आवश्यकता है साथ ही उस नीति को नोटिफाई करने की ज़रूरत है क्योंकि बिना नोटिफाई किए यह पुनर्वास की नीति मात्र कागज का एक टुकड़ा बन कर रह जाएगी और किसी को पुनर्वास नहीं मिलेगा। इस मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सीनियर एडवोकेट कॉलिन गोंजाल्विस ने तत्काल ही खोरी गांव के सभी मजदूर परिवारों को पुनर्वास देने एवं पुनर्वास की नीति में बदलाव करने की मांग की। 

माननीय सुप्रीम कोर्ट ने पुनर्वास के मुद्दे पर तत्काल ही याचिकाकर्ता सरीना सरकार को अपनी ओर से एक रिप्रेजेंटेशन हरियाणा सरकार एवं नगर निगम फरीदाबाद को देने के लिए कहा गया तथा नगर निगम फरीदाबाद को डायरेक्ट किया गया कि 1 सप्ताह के अंदर पुनर्वास की नीति में संशोधन कर उसे नोटिफाई किया जाए। जब सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बेदखल किए गए परिवारों को भोजन एवं आश्रय की तत्काल सुविधा प्रशासन की तरफ से दी जानी चाहिए। फिलहाल बेदखली पर स्टे संबंधित कोई आदेश नहीं आया है। सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट कॉलिन गोंजाल्विस ने कहा की गरीबों के घर टूटने पर कोर्ट कोई राहत नहीं दे रही फिर फार्म हाउस पर रोक कैसे है? किंतु सुप्रीम कोर्ट ने अरावली की जमीन पर बने हुए फार्महउस एवं किसी भी प्रकार के स्ट्रक्चर को न बख्श कर उसे तत्काल बेदखल करने के सख़्त आदेश दिए हैं। 

मजदूर आवास संघर्ष समिति खोरी गांव के सदस्य निर्मल गोराना ने कहा है कि हरियाणा सरकार तत्काल ही मजदूरों को चिन्हित कर डबुआ कॉलोनी में बने हुए फ्लैट देकर राहत प्रदान कर सकती है किंतु प्रशासन उन तमाम फ्लैट्स की मरम्मत तत्काल करवाए। मजदूर आवास संघर्ष समिति खोरी गांव की ओर से नगर निगम एवं हरियाणा सरकार को पुनर्वास की नीति में बदलाव हेतु एक और निवेदन प्रपत्र भेजा जाएगा और प्रयास रहेगा कि खोरी गांव के हर मजदूर परिवार को उचित सम्मानजनक पुनर्वास मिल सके। 

निर्मल गोराना ने यह भी बताया कि वर्षा ऋतु एवं करुणा की महामारी को ध्यान में रखते हुए नगर निगम को बेदखल परिवारों के प्रति संवेदनशीलता रखते हुए इन्हें ट्रांसिट कैंप तक पहुंचाने के लिए जन संगठनों का सहयोग लेने की आवश्यकता है। मजदूर आवास संघर्ष समिति खोरी गांव इस प्रकार के सहयोग के लिए तैयार है।  साथ ही निर्मल गोराना ने नगर निगम फरीदाबाद से निवेदन किया है कि बिना दस्तावेज के खोरी गांव में रहने वाले प्रत्येक मजदूर परिवार को भी घर आवंटित किए जाएं और इसमें किसी प्रकार का कोई भी दस्तावेज़ संबंधित कोई भी नियम व शर्तें न रखा जाए केवल वह परिवार या उसका मुखिया खोरी गांव में रह रहा हो उसी आधार पर बेदखल परिवारों को निशुल्क पुनर्वास प्रदान किया जाए।

(जनचौक के विशेष संवाददाता सुशील मानव की रिपोर्ट।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

जौनपुर में आचार संहिता का मजाक उड़ाता ‘महामानव’ का होर्डिंग

भारत में लोकसभा चुनाव के ऐलान के बाद विवाद उठ रहा है कि क्या देश में दोहरे मानदंड अपनाये जा रहे हैं, खासकर जौनपुर के एक होर्डिंग को लेकर, जिसमें पीएम मोदी की तस्वीर है। सोशल मीडिया और स्थानीय पत्रकारों ने इसे चुनाव आयोग और सरकार को चुनौती के रूप में उठाया है।

AIPF (रेडिकल) ने जारी किया एजेण्डा लोकसभा चुनाव 2024 घोषणा पत्र

लखनऊ में आइपीएफ द्वारा जारी घोषणा पत्र के अनुसार, भाजपा सरकार के राज में भारत की विविधता और लोकतांत्रिक मूल्यों पर हमला हुआ है और कोर्पोरेट घरानों का मुनाफा बढ़ा है। घोषणा पत्र में भाजपा के विकल्प के रूप में विभिन्न जन मुद्दों और सामाजिक, आर्थिक नीतियों पर बल दिया गया है और लोकसभा चुनाव में इसे पराजित करने पर जोर दिया गया है।

सुप्रीम कोर्ट ने 100% ईवीएम-वीवीपीएटी सत्यापन की याचिका पर फैसला सुरक्षित रखा

सुप्रीम कोर्ट ने EVM और VVPAT डेटा के 100% सत्यापन की मांग वाली याचिकाओं पर निर्णय सुरक्षित रखा। याचिका में सभी VVPAT पर्चियों के सत्यापन और मतदान की पवित्रता सुनिश्चित करने का आग्रह किया गया। मतदान की विश्वसनीयता और गोपनीयता पर भी चर्चा हुई।

Related Articles

जौनपुर में आचार संहिता का मजाक उड़ाता ‘महामानव’ का होर्डिंग

भारत में लोकसभा चुनाव के ऐलान के बाद विवाद उठ रहा है कि क्या देश में दोहरे मानदंड अपनाये जा रहे हैं, खासकर जौनपुर के एक होर्डिंग को लेकर, जिसमें पीएम मोदी की तस्वीर है। सोशल मीडिया और स्थानीय पत्रकारों ने इसे चुनाव आयोग और सरकार को चुनौती के रूप में उठाया है।

AIPF (रेडिकल) ने जारी किया एजेण्डा लोकसभा चुनाव 2024 घोषणा पत्र

लखनऊ में आइपीएफ द्वारा जारी घोषणा पत्र के अनुसार, भाजपा सरकार के राज में भारत की विविधता और लोकतांत्रिक मूल्यों पर हमला हुआ है और कोर्पोरेट घरानों का मुनाफा बढ़ा है। घोषणा पत्र में भाजपा के विकल्प के रूप में विभिन्न जन मुद्दों और सामाजिक, आर्थिक नीतियों पर बल दिया गया है और लोकसभा चुनाव में इसे पराजित करने पर जोर दिया गया है।

सुप्रीम कोर्ट ने 100% ईवीएम-वीवीपीएटी सत्यापन की याचिका पर फैसला सुरक्षित रखा

सुप्रीम कोर्ट ने EVM और VVPAT डेटा के 100% सत्यापन की मांग वाली याचिकाओं पर निर्णय सुरक्षित रखा। याचिका में सभी VVPAT पर्चियों के सत्यापन और मतदान की पवित्रता सुनिश्चित करने का आग्रह किया गया। मतदान की विश्वसनीयता और गोपनीयता पर भी चर्चा हुई।