19 फरवरी शनिवार को तड़के पश्चिम बंगाल में एक ऐसी घटना घटी है, जिसने एक बार फिर से बंगाल के युवाओं को अशांत कर दिया है। कोलकाता पश्चिम से लगभग 50 किमी की दूरी पर हावड़ा जिले के आमता में चार अज्ञात खाकी-वर्दीधारियों ने एक छात्र नेता की कथित तौर पर हत्या कर दी है। पीड़ित छात्र नेता का नाम अनीस खान है, जो आलिया विश्वविद्यालय के अपने पूर्व छात्र जीवन में एसएफआई (Students’ Federation of India) का कार्यकर्ता रहे हैं, और वर्तमान में इंडियन सेक्युलर फ्रंट के छात्र विंग का नेतृत्व कर रहे थे। 27 वर्षीय अनीस को उनके घर पर मृत पाया गया, जिनके माता-पिता का आरोप है कि चार वर्दीधारी उनके बेटे की तलाश में घर पर आये थे और उन्होंने उसे छत से नीचे फेंक दिया था।
इस खबर ने कोलकाता के पार्क सर्कस और आसपास के इलाकों में जबरदस्त गुस्से और विरोध प्रदर्शनों को जन्म दे दिया है, जहाँ पर प्रदर्शनकारियों की पुलिस से मुठभेड़ भी हुई है, लेकिन पुलिस द्वारा किसी भी पुलिस कर्मी को अनीश के घर पर भेजे जाने से इंकार किया जा रहा है। अनीस के पिता की शिकायत के आधार पर हत्या का मामला दर्ज कर लिया गया है। मृतक अनीस के पिता का आरोप है कि चार पुलिसकर्मी उनके घर पर शुक्रवार की रात आ धमके थे, और उन चार में एक पुलिस की वर्दी में था। वे मेरे बेटे की तलाश में थे और उन्होंने कहा कि उसके खिलाफ आमता पुलिस थाने में मामला दर्ज है।
“मैंने उनसे कहा कि वह इलाके में हो रहे एक जलसे में गया हुआ है, और इस समय घर पर नहीं है, लेकिन वे नहीं माने और उनमें से तीन दौड़ते हुए सीढ़ियों से उपर चले गए। जल्द ही मुझे नीचे आवाज सुनाई पड़ी और मेरा बेटा नीचे खून में लथपथ गिरा पड़ा था।”
बता दें कि आलिया विश्वविद्यालय के छात्रों की ओर से पिछले कई महीनों से विश्वविद्यालय के लंबित ग्रांट को जारी किये जाने को लेकर आंदोलन किया जा रहा है, जिसमें लगभग 130 करोड़ की अनुदान राशि लंबित है, लेकिन राज्य सरकार की ओर से मात्र 13 करोड़ रूपये ही जारी किये गये थे। यह बात विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र सुजॉय ने बताई, जिसके बाद जब जनचौक संवाददाता ने इस बारे में विभिन्न मीडिया रिपोर्टों की पड़ताल की तो पता चला कि यह शैक्षणिक संस्था तो देश की चुनिंदा सबसे पुरानी संस्थाओं में से एक है। ज्ञातव्य हो कि आलिया विश्वविद्यालय भारत के सबसे पुराने शैक्षिणक संस्थानों में से एक है। कलकत्ता मदरसा के तौर पर इसकी स्थापना ईस्ट इंडिया कंपनी के द्वारा सन 1780 में की गई थी। इतना पुराना तो देश में कोई भी आधुनिक विश्वविद्यालय नहीं है।
2007 में इसे पश्चिम बंगाल सरकार के द्वारा अपग्रेड कर आलिया यूनिवर्सिटी का दर्जा दिया गया, और कुछ वर्षों में ही इसे अच्छी खासी शोहरत मिल गई थी। लेकिन कोविड-19 के दौरान इस संस्थान को दिए जाने वाले अनुदान में भारी कमी आई है। वर्ष 2020-21 और 2021-22 के लिए जहाँ 112 और 115 करोड़ रूपये का अनुदान दिया जाना था, उसकी जगह पर 2020-21 में मात्र 30 करोड़ रूपये वेतन और 10 करोड़ रूपये अन्य सामान्य मद के लिए दिए गये और 2021-22 के लिए मात्र 3 करोड़ रूपये वेतन और अन्य सामान्य मद के लिए दिए गये हैं। इसकी वजह से पिछले कई महीनों से छात्रों की ओर से कैंपस के भीतर और सड़कों पर भी प्रदर्शन किये गए हैं।
इसके अलावा छात्रों की मांगों में 240 साल पुराने तालताला कैंपस के रखरखाव और विकास के लिए मांग की जा रही थी, और अन्य विश्वविद्यालयों की तरह इसे भी आवश्यक वित्तीय आवंटन और समुचित पुस्तकालय, कंप्यूटर लैब, और बेहतर शिक्षण प्रबंध की मांग लंबित है। पिछले कुछ महीने से कैंपस का एक हिस्सा जहाँ पर छात्र- छात्राओं के लिए हॉस्टल बनाया जाना प्रस्तावित था, उस जमीन को कलकत्ता नेशनल मेडिकल कॉलेज (सीएनएमसी) को दिए जाने संबंधी खबर थी। इस विषय में सीएनएमसी की ओर से अल्पसंख्यक मामलों एवं मदरसा शिक्षा विभाग (एमएएमई) के रजिस्ट्रार को पत्र तक लिखा गया था।
बताया जा रहा है कि अनीस सीएए-एनआरसी विरोधी आंदोलन में एक जाना पहचाना चेहरा था। आलिया विश्वविद्यालय का एमबीए का एक पूर्व छात्र होने के साथ-साथ वर्तमान में वह मॉस कम्युनिकेशन की पढ़ाई कर रहा था। कोलकाता में ही रहता था, लेकिन सप्ताहांत में अपने घर हावड़ा आता था। अपने क्षेत्र में एक धार्मिक कार्यक्रम के सिलसिले में वह शुक्रवार की शाम को ही पहुंचा था। हालाँकि वह वामपंथ समर्थक था, लेकिन आइएसऍफ़ की स्थापना के बाद से उसे जब आइएसऍफ़ की ओर से छात्र विंग की जिम्मेदारी सौंपी गई, तबसे वह आइएसऍफ़ के लिए काम कर रहा था। इस बात की पुष्टि अभी होनी बाकी है कि क्या उसकी मौत की जिम्मेदार पश्चिम बंगाल पुलिस है या खाकी वर्दी में उसकी हत्या के इरादे से आये अपराधी तत्व थे, जिन्हें कहीं न कहीं शासन का वरदहस्त प्राप्त था?
हावड़ा ग्रामीण जिले के वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के द्वारा मामले की जांच की जा रही है और उनका दावा है कि उन्होंने किसी भी टीम को अनीस के घर पर नहीं भेजा था। प्राथमिक पोस्टमार्टम रिपोर्ट से खुलासा हुआ है कि अनीस के सिर के पिछले हिस्से पर गंभीर घाव था और दायें पाँव पर चोट के निशान पाए गये थे। अधिकारियों का कहना था कि उन्हें अंतिम रिपोर्ट का इंतजार है।
तृणमूल कांग्रेस नेता और मंत्री फिरहद हाकिम ने कहा है कि इस मामले की गहन जांच की जाएगी कि कैसे चार व्यक्ति पुलिस बनकर एक घर में घुस गये। हाकिम ने कहा, “इस प्रकार की घटनाएं तो उत्तर प्रदेश में आम हैं, बंगाल में नहीं।”
हालाँकि इस मौत ने बंगाल में अब राजनीतिक तूल पकड़ लिया है, और एसएफआई ने इसे “हत्या” करार देते हुए अनीस के लिए न्याय की खातिर 20 फरवरी को पश्चिम बंगाल में राज्यव्यापी आंदोलन की घोषणा की है।
सीपीएम नेता मोहम्मद सलीम ने कहा है, “मुझे याद नहीं कि आजाद भारत में कभी भी इस प्रकार की जघन्य हत्या हुई हो। मैं विश्वास से नहीं कह सकता कि आजादी से पहले भी भारत में कभी ऐसा हुआ हो। अनीस खान पिछले 137 दिनों से आलिया विश्वविद्यालय में वाम मोर्चा शासन के दौरान विश्वविद्यालय को दी गई जमीन को ममता बनर्जी सरकार के द्वारा छीनने के प्रयास के खिलाफ चल रहे छात्रों के आंदोलन का नेतृत्व कर रहा था।”
अनीस खान के जानने वाले @TheNoorMahvish ने 19 फरवरी को ट्विटर पर अनीस की अंतिम फेसबुक स्टेटस को साझा किया है, जिसमें अनीस की तस्वीर के साथ पार्श्व में पीयूष मिश्रा के आरंभ लिरिक्स का यह गीत बजता है,
“जीत की हवस नहीं, किसी पे कोई वश नहीं, क्या जिन्दगी है ठोकरों पे मार दो।
मौत अंत है नहीं, तो मौत से भी क्यों डरें, ये जाके आसमां में दहाड़ दो ।।”
शायद अनीस ने अपनी शहादत के जरिये एक बार फिर से उस दहाड़ को दुहराने का काम किया है, जो कुछ साल पहले हैदराबाद विश्वविद्यालय में रोहित वेमुला के साथ शुरू हुई थी, लेकिन इधर के कुछ वर्षों में थम सी गई है। भाजपा-आरएसएस के प्रहार से बंगाल को बचाने के लिए वाम मोर्चे को छोड़ तमाम वामपंथियों, लोकतांत्रिक शक्तियों और सीपीआई(एमल) के द्वारा पिछले साल तृणमूल कांग्रेस को एक बार फिर से विजयी बनाने का कार्यभार लिया गया था, जिसका भारी असर पड़ा था।
सीपीआई(एमएल) के महासचिव, दीपांकर भट्टाचार्य ने छात्रों की मांग का समर्थन करते हए अपने ट्वीट में कहा है कि छात्रों की मांग है कि अनीस खान को न्याय दो, पश्चिम बंगाल के लोगों की मांग है, अनीस खान को न्याय दो, #JusticeForAnishKhan और अनीस खान की जघन्य हत्या करने वाले हत्यारों को सजा की मांग की है।
लेकिन ममता बनर्जी ने बंगाल में अपनी जीत को पूरी तरह से अपनी जीत समझने और देश में दूसरा निरंकुश शासक का स्वरुप जब-तब दिखाया है। वैसे भी ममता बनर्जी को प्रदेश में निवेश के लिए कई ऐसे कदम उठाने हैं, जिसमें हजारों किसानों और आदिवासियों की बेदखली, विस्थापन की कहानी की इबारत स्पष्ट नजर आ रही है। अडानी और ममता के बीच की वार्ताएं और हाल ही में अडानी के बेटे की बंगाल विजिट और अप्रैल में बंगाल के “बिजनेस कॉन्क्लेव” पर समूचा बंगाल दम साधे नजर बनाये हुए है। देखना होगा, आने वाले दिनों में भविष्य किस करवट लेता है।
(रविन्द्र पटवाल पत्रकार हैं और आजकल दिल्ली में रहते है)
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