Saturday, September 30, 2023

अवमानना मामले में कुणाल कामरा ने कहा- न माफी मांगूगा और न वकील करूंगा

सुप्रीम कोर्ट की कथित अवमानना को लेकर कॉमेडियन कुणाल कामरा ने माफी मांगने से इनकार कर दिया है। उन्होंने जजों और अटॉर्नी जनरल को लिखे एक खत में कहा है कि न ही मैं माफी मांगूंगा और न ही मैं वकील करूंगा।

कुणाल कामरा ने अपना यह पत्र ट्वीट भी किया है। इसमें उन्होंने लिखा है, “प्रिय जजों, श्री केके वेणुगोपाल जी, मैंने हाल ही में जो ट्वीट किए, उन्हें न्यायालय की अवमानना बताया गया है। मैंने जो भी ट्वीट किए वे सुप्रीम कोर्ट के एक प्राइम टाइम लाउडस्पीकर के पक्ष में दिए गए पक्षपाती फैसले के प्रति मेरा नजरिया था कि हाल ही में मैंने जो ट्वीट किए हैं उन्हें अदालत की अवमानना माना गया है। मेरा मानना है कि मुझे स्वीकार करना चाहिए कि मुझे अदालत लगाने में बड़ा मजा आता है और अच्छी ऑडियंस पसंद आती है। सुप्रीम कोर्ट जजों और देश के शीर्ष कानूनी अधिकारी जैसी ऑडियंस शायद सबसे वीआईपी हों, लेकिन मुझे समझ आता है कि मैं किसी भी जगह परफॉर्म करूं, सुप्रीम कोर्ट के सामने वक्त मिल पाना दुर्लभ होगा।”

उन्होंने आगे लिखा है, “मेरी राय नहीं बदली है, क्योंकि दूसरों की निजी स्वतंत्रता के मामलों पर सुप्रीम कोर्ट की चुप्पी बिना आलोचना के नहीं गुजर सकती। मैं अपने ट्वीट्स वापस लेने या उनके लिए माफी मांगने की मंशा नहीं रखता हूं। मुझे लगता है कि वे यह खुद बयान करते हैं। मैं अपनी अवमानना याचिका अन्य मामलों और व्यक्तियों, जो मेरी तरह किस्मत वाले नहीं हैं, की सुनवाई के लिए समय मिलने (कम से कम 20 घंटे अगर प्रशांत भूषण की सुनवाई को ध्यान में रखें तो) की उम्मीद रखता हूं। क्या मैं यह सुझा सकता हूं कि नोटबंदी से जुड़ी याचिका, जे एंड के के विशेष दर्जे को रद्द करने वाले फैसले के खिलाफ याचिका, इलेक्टोरल बॉन्ड्स  की कानूनी वैधता को चुनौती देने वाली याचिका और अन्य कई ऐसे मामलों में सुनवाई की ज्यादा जरूरत है। वरिष्ठ एडवोकेट हरीश साल्वे की बात को थोड़ा सा मरोड़ कर कहूं तो ‘अगर ज्यादा महत्वपूर्ण मामलों को मेरा वक्त मिलेगा तो क्या आसमान फट पड़ेगा?’”

कामरा ने पत्र के अंत में लिखा है, “सुप्रीम कोर्ट ने मेरे ट्वीट्स को अब तक कुछ भी घोषित नहीं किया है, लेकिन वे जब भी करें तो मैं उम्मीद करता हूं कि अदालत की अवमानना घोषित करने से पहले वे थोड़ा हंसेंगे। अपने एक ट्वीट में मैंने सुप्रीम कोर्ट में महात्मा गांधी की जगह हरीश साल्वे की फोटो लगाने को कहा था। मैं जोड़ना चाहूंगा कि पंडित नेहरू की फोटो हटाकर महेश जेठमलानी की फोटो लगा दी जाए।”

कुणाल कामरा ने रिपब्लिक टीवी के चीफ एडिटर और ऐंकर अर्णब गोस्वामी को सुप्रीम कोर्ट द्वारा दी गई जमानत के बाद सिलसिलेवार तरीके से ट्वीट कर सुप्रीम कोर्ट पर पक्षपाती होने का आरोप लगाया था। कामरा ने अर्णब गोस्वामी को अंतरिम जमानत मिलने के बाद पहला ट्वीट किया, जिस गति से सुप्रीम कोर्ट राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों को ऑपरेट करती है, उसको देख कर लगता है कि महात्मा गांधी की फोटो को हरीश साल्वे के फोटो से बदलने का वक्त आ गया है।

कुणाल ने दूसरे ट्वीट में लिखा, डीवाई चंद्रचूड़ एक फ्लाइट अटेंडेंट हैं, जो प्रथम श्रेणी के यात्रियों को शैंपेन ऑफर कर रहे हैं, क्योंकि वो फास्ट ट्रैक्ड हैं। जबकि सामान्य लोगों को यह भी नहीं पता कि वो कभी फ्लाइट चढ़ या बैठ भी सकेंगे, सर्व करने की तो बात ही नहीं है। कुणाल ने अपने एक अन्य ट्वीट में वकीलों से कहा कि जिनके पास रीढ़ की हड्डी है, उन्हें न्यायाधीशों को बुलाते समय ‘ऑनरेबल’ की उपाधि लगानी छोड़ देनी चाहिए।

इसके बाद कुछ वकीलों ने इस पर नाराजगी जताते हुए अटॉर्नी जनरल के पास अवमानना कार्रवाई के लिए पिटीशन भेजा था, जिसे अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने अपनी सहमति दे दी।

दरअसल उच्चतम न्यायालय के फैसलों की आलोचना करने का अधिकार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के संवैधानिक अधिकार में अंतर्निहित है, लेकिन किसी फैसले के लिए उसमें शामिल किसी वर्तमान जज की व्यक्तिगत आलोचना या अपमानजनक टिप्पणी करना न्यायालय अवमान अधिनियम के तहत अवमानना की श्रेणी में आता है। कुणाल का दूसरा ट्वीट जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ पर व्यक्तिगत हमला और निंदात्मक है, जिसमें कामरा ने लिखा है, डीवाई चंद्रचूड़ एक फ्लाइट अटेंडेंट हैं, जो प्रथम श्रेणी के यात्रियों को शैंपेन ऑफर कर रहे हैं, क्योंकि वो फास्ट ट्रैक्ड हैं। जबकि सामान्य लोगों को यह भी नहीं पता कि वो कभी फ्लाइट चढ़ या बैठ भी सकेंगे, सर्व करने की तो बात ही नहीं है।

हालांकि जस्टिस चंद्रचूड़ के फैसलों में पर्सनल लिबर्टी को लेकर की गई टिप्पणियों का एक दूसरा पहलू भी है। जस्टिस चंद्रचूड़ ने सुनवाई के दौरान महाराष्ट्र सरकार के वकील सिब्बल से कहा कि एक पल के लिए अर्णब गोस्वामी को भूल जाइए, लेकिन इन आरोपों को देखिए। श्री सिब्बल… हमें भीड़ द्वारा मामले मिलते हैं, जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, और तमिलनाडु के एक मामले का उल्लेख किया जहां एक बीएससी नर्सिंग छात्रा ने यह जानने के बाद आत्महत्या कर ली कि एक पुलिस कांस्टेबल, जिसके साथ वह रिश्ते में थी, पहले से ही शादीशुदा था।

जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि कांस्टेबल की अग्रिम जमानत याचिका निचली अदालतों और उच्च न्यायालय द्वारा खारिज कर दी गई थी, और वह तब सुप्रीम कोर्ट में आया था। “आप जानते हैं कि हमने क्या महसूस किया? वह एक अच्छा आदमी नहीं है, एक महिला के साथ संबंध बनाने और उसे बताने के लिए नहीं… लेकिन क्या यह वास्तव में आत्महत्या करने के लिए उकसाने का मामला है?”

जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि इस मामले के तथ्यों को देखें… और हम मामले के बाद मामले में देखते हैं… कि हाई कोर्ट अपने अधिकार क्षेत्र का उपयोग करने से इनकार कर रहे हैं। ये संवैधानिक न्यायालय हैं… यदि हम स्वतंत्रता की रक्षा नहीं करते हैं, तो लोग महीनों तक जेल में रहते हैं। किस लिए? कुछ ट्वीट के लिए?” जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा।

सिब्बल ने कहा कि 100 में से 99 मामलों में वह दूसरी तरफ हैं।

इस पर जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, जो कारण मैंने आपको बताया है कि वे उन 99 मामलों पर भी लागू होंगे।

अब देखने की बात है कि क्या केरल के पत्रकार जो यूपी की जेल में हिरासत में हैं, उनके मामले की सुप्रीम कोर्ट में 19 नवंबर को जब सुनवाई होती है तो अर्णब मामले में जस्टिस चंद्रचूड़ द्वरा प्रतिपादित पर्सनल लिबर्टी का सिद्धांत लागू होता है या नहीं?

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं। वह इलाहाबाद में रहते हैं।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of

guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

Related Articles