नव उदारवादी नीतियों की असफलता के कारण केवल तीसरी दुनिया में ही नहीं अमेरिका और यूरोप में भी आर्थिक संकट और बेरोज़गारी बहुत तेजी से बढ़ रही है,इसकी अभिव्यक्ति हमें अमेरिका में घोर दक्षिणपंथ के उभार के रूप में देखने में आ रही है। अमेरिका में अवैध प्रवासियों को निकालना भी इसी संकट की एक कड़ी है।
हालाँकि संकट इससे कम होने की अपेक्षा अधिक बढ़ गया है, क्योंकि ये प्रवासी मज़दूर बहुत ही कम मज़दूरी पर उन खतरनाक उद्योगों में काम कर रहे थे,जहाँ आमतौर पर अमेरिकी मज़दूर बहुत ज़्यादा वेतन पर भी काम करने से कतराते हैं। अमेरिका में मांस उद्योग इसका एक उदाहरण है,जहाँ पर अप्रवासी मज़दूर बहुत ही दुष्कर हालातों में काम करते हैं। एक ओर जहाँ ऐसे मज़दूरों को निकाला जा रहा है, वहीं दूसरी ओर अमेरिका-यूरोप में बड़ी-बड़ी हड़तालें आरम्भ हो गई हैं।
क्रिसमस से एक हफ़्ता पहले संयुक्त राज्य अमेरिका (आगे अमेरिका) की कंपनी एमाज़ॉन के मज़दूरों ने कंपनी के इतिहास की सबसे बड़ी हड़ताल की। अमेरिका में एमाज़ॉन के 9 बड़े स्टोरों में मज़दूरों ने हड़ताल करते हुए माँग की कि उनकी यूनियन को मानता दी जाए। यूनियन को मानता देने के साथ-साथ यूनियन द्वारा मज़दूरों के साथ नया इक़रारनामा करने की भी माँग की। आज से दो साल पहले, न्यूयॉर्क शहर में एमाज़ॉन के मज़दूरों ने अपनी पहली यूनियन बनाई थी, लेकिन उसे भी कंपनी ने मान्यता देने से इंकार कर दिया था।
अकेले अमेरिका में एमाज़ॉन कंपनी में 15 लाख से अधिक लोग काम करते हैं। हाल ही में हुई हड़ताल में करीब 7 से 10 हज़ार मज़दूर शामिल हुए थे। यह संख्या कंपनी के कुल मज़दूरों के मुक़ाबले काफ़ी कम थी और नतीजतन मज़दूर एमाज़ॉन कंपनी के मालिकों से अपनी माँगें मनवाने में नाकाम रहे। लेकिन यह हड़ताल एमाज़ॉन के मज़दूरों द्वारा संगठित होने और अपनी यूनियन को कंपनी से मान्यता दिलवाने का अगला क़दम था। दो साल पहले यूनियन बनाने की प्रक्रिया की शुरुआत में ही अगली कड़ी यह हड़ताल थी।
एमाज़ॉन के मज़दूरों की यह हड़ताल और संगठित होने की ओर बढ़ते क़दमों को अमेरिका में कोरोना काल से बाद मज़दूरों की बढ़ती हड़तालों और यूनियनों के रूझान के अंग के रूप में ही समझना चाहिए। 2020 से अमेरिका में मेहनतकश जनता और ख़ासकर मज़दूर वर्ग फिर से संघर्षों के मैदान की ओर बढ़ने लगा है।
एक अध्ययन के अनुसार, साल 2023 में करीब 4 लाख 85 हज़ार मज़दूरों ने अलग-अलग समय पर अमेरिका में हड़तालों में हिस्सा लिया और 317 अलग-अलग समय पर काम बंद किया। पिछले 20 सालों से अधिक अरसे में इससे ज़्यादा हड़तालें और कहीं नहीं हुई थीं। एक और अध्ययन के अनुसार, हड़ताली मज़दूरों की संख्या ऊपर दिए गए आँकड़ों से कहीं अधिक है और अकेले अक्टूबर 2023 में ही लगभग 3 लाख 10 हज़ार मज़दूरों ने हड़ताल की।
विश्व साम्राज्यवादी व्यवस्था के हालिया चौधरी अमेरिका में पिछले अरसे में मुख्य हड़तालों पर नज़र डालते हैं। दुनिया की सबसे बड़ी ‘यूनाइटेड पार्सल सर्विस’ के मज़दूरों ने अपनी यूनियन द्वारा ‘यूनाइटेड पार्सल सर्विस’ के मालिकों को अपने न्यूनतम वेतन बढ़ाने और मज़दूरी दर बढ़ाने की माँग की। माँगे ना माने जाने की हालत में यूनियन ने हड़ताल की धमकी दी।
‘यूनाइटेड पार्सल सर्विस’ के मज़दूरों ने आख़िरी बड़ी हड़ताल साल 1997 में की थी, जब केवल 15 दिन की हड़ताल के कारण मालिकों को 85 करोड़ अमेरिकी डॉलर का घाटा हुआ था और इस बार 10 दिन की हड़ताल का 1 बिलियन अमेरिकी डॉलर का घाटा होने का मालिकों को डर था। ‘यूनाइटेड पार्सल सर्विस’ के तीन लाख संगठित मज़दूरों का बड़ा हिस्सा हड़ताल के लिए तैयार था, जिससे ना केवल संबंधित कंपनी को बल्कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था को भी बड़ा झटका लग सकता था। इन हालातों को देखते हुए मालिकों को मज़दूरों के सामने झुकना पड़ा और हड़ताल से पहले ही उनकी माँगों का बड़ा हिस्सा मानना पड़ा।
पिछले समय में दूसरी बड़ी हड़ताल ‘काइसर परमानेंटे’ (जोकि अस्पतालों, स्वास्थ्य बीमा और अन्य स्वास्थ्य सुविधाओं की कंपनी है) के स्वास्थ्य कर्मचारियों द्वारा की गई। ‘काइसर परमानेंटे’ का कारोबार अमेरिका के आठ राज्यों (हवाई, वाशिंगटन, ओरेगॉन, कैलिफ़ोर्निया, कोलोराडो, मैरीलैंड, वर्जीनिया, जॉर्जिया और कोलंबिया) में फैला हुआ है। कंपनी 39 अस्पतालों से 700 से अधिक मेडीकल दफ़्तर चलाती है। कुल 3 लाख से अधिक मज़दूर इसमें काम करते हैं, जिसमें लगभग 24 हज़ार डॉक्टर, 68 हज़ार के लगभग नर्सें और बाक़ी स्टाफ़ शामिल है। अक्टूबर 2023 में लगभग 74 हज़ार कर्मचारियों ने (इनमें मुख्य तौर पर नर्सें, फ़ार्मासिस्ट और अन्य कर्मचारी स्टाफ़ शामिल थे) 3 दिनों की हड़ताल की गई।
यह मज़दूरों की भागीदारी के हिसाब से अमेरिकी इतिहास में स्वास्थ्य कर्मचारियों की सबसे बड़ी हड़ताल रही। मज़दूरों की मुख्य माँगों में मज़दूरी में बढ़ौतरी, मज़दूरी दरों में बढ़ौतरी और अन्य अधिक मज़दूरों को काम पर रखना था, ताकि ना केवल बढ़ती महँगाई से साथ इनके वेतन में बढ़ौतरी हो, बल्कि काम पर लगे मज़दूरों पर काम का बोझ भी हलका हो।
स्वास्थ्य कर्मचारियों की यूनियन के अनुसार, मौजूदा कर्मचारियों पर काम का ग़ैर-ज़रूरी बोझ डालकर ना केवल कंपनी के मालिक इन कर्मचारियों के ही मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य से खिलवाड़ कर रहे थे, बल्कि यह अस्पतालों में भर्ती हुए मरीज़ों के स्वास्थ्य (और ज़िंदगी) से भी खिलवाड़ कर रहे थे। ‘काइसर परमानेंटे’ को अपने नुक़सान को देखते हुए स्वास्थ्य कर्मचारियों की यूनियन के आगे झुकना पड़ा और तुरंत ये माँगें माननी पड़ीं कि अगले 5 सालों में उनके वेतन में 21 फ़ीसदी बढ़ौतरी की जाएगी और साथ ही अन्य अधिक लोगों को काम पर लगाया जाएगा, ताकि प्रति व्यक्ति काम का बोझ हलका किया जा सके।
कोरोना काल के बाद अमेरिका में ट्रेड यूनियनों की तीसरी बड़ी जीत 2023 में ‘यूनाइटेड ऑटो वर्कर्स’ के मज़दूरों की रही। 2022 में अमेरिका के तीन बड़े कार उत्पादकों (फ़ोर्ड, जनरल मोटर्स और स्टेलैंटिस) में एक स्टेलैंटिस ने अमेरिका के राज्य इलिनोइस में अपना एक पुराना प्लांट बंद करने का फ़ैसला किया था, जिससे 1200 मज़दूरों के बेरोज़गार होने का ख़तरा था। इसके अलावा फ़ोर्ड और जनरल मोटर्स में मज़दूरों के वेतन में लंबे समय से बढ़ौतरी नहीं हुई थी, जबकि महँगाई में तेज़ी से वृद्धि दर्ज हो रही थी।
यूनाइटेड ऑटो वर्कर्स अमेरिका के ऑटो वर्कर्स का सबसे बड़ा संगठन है, जिसके तीन बड़े कार उत्पादकों में करीब 1 लाख 45 हज़ार सदस्य हैं। इस ट्रेड यूनियन द्वारा तीनों कंपनियों ने पिछले साल लगभग 6 हफ़्ते लंबी हड़ताल की, जिसके दम पर ना केवल उनकी वेतन बढ़ौतरी हुई, बल्कि स्टेलैंटिस को अपना पुराना प्लांट बंद करने से भी रोका।
स्टेलैंटिस कंपनी को मज़दूरों ने अपनी यूनियन द्वारा ना केवल प्लांट चालू रखने के लिए मज़बूर किया (जिसके ज़रिए 1200 मज़दूरों का रोज़गार बचा) बल्कि उसी प्लांट में कंपनी ने 4.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर अधिक निवेश करने का वादा किया। फ़ोर्ड, जनरल मोटर्स और स्टेलैंटिस ने अपने मज़दूरों के वेतन में लगभग 25 फ़ीसदी बढ़ौतरी करने का भी वादा किया। यूनाइटेड ऑटो वर्कर्स के मज़दूरों की यह सफलता देखकर अमेरिका में अन्य कार उत्पादकों (जैसे टोएटा, टेस्ला, वॉक्सवैगन आदि) के मज़दूर भी अपनी यूनियन बनाने के लिए अब कोशिशें कर रहे हैं।
अमेज़न के मज़दूरों के संगठित होने के लिए बढ़ती कोशिशें और जनता के अन्य संघर्षों का आधार कोरोना काल के बाद फैली बेरोज़गारी, महँगाई और अस्थिर वेतन है। पूँजीवादी शासक अपने मुनाफ़े बढ़ाने के लिए अधिक से अधिक बोझ जनता पर डालने की घटिया कोशिशों के ज़रिए ना केवल लोगों पर बोझ बढ़ा रहे हैं, बल्कि उनके रोष में भी बढ़ौतरी कर रहे हैं। ऊपर दी गई ट्रेड यूनियन गतिविधियों के अलावा पिछले समय में अध्यापकों द्वारा (विशेष रूप से पोर्टलैंड में) भी अपनी माँगों के लिए संघर्ष किए गए।
‘एमाज़ॉन’ और ‘स्टारबक्स’ के मज़दूर 2021 से ही संगठित होने के लिए कोशिशें कर रहे हैं, जिसमें उन्हें कई जगहों पर सफलता मिली है और अन्य जगहों पर (मालिकों और सरकार की मिलीभगत के कारण) असफलता का सामना करना पड़ा है। मज़दूरों के इन संघर्षों में सबसे अधिक मज़दूरों के अपनी आर्थिक माँगों से जुड़े संघर्षों के साथ-साथ अमेरिका की जनता की राजनीतिक गतिविधियों में भी काफ़ी बढ़ौतरी पिछले दो सालों में हुई है।
‘ब्लैक्स लाइव्स मैटर’ (‘काले लोगों की ज़िंदगी मायने रखती है’) का आंदोलन,अमेरिकी जनता (ख़ासकर छात्रों) द्वारा फि़लिस्तीन के पक्ष में अमेरिकी साम्राज्यवादियों–इज़रायली शासकों के विरोध में किए गए रोष-प्रदर्शन जनता की बढ़ती राजनीतिक चेतना की अभिव्यक्ति है। इन संघर्षों में हार-जीत के सिलसिले के बावजूद जनता में बढ़ती वर्ग और राजनीतिक चेतना हुक्मरानों के लिए ख़तरे की घंटी है।
अमेरिका के जाने-माने अर्थशास्त्री और मंथली रिव्यू पत्रिका सम्पादक और माइकल डी एट्स अपनी पुस्तक ‘हाड़तोड़ मेहनत, मज़दूर अलगाव और संघर्ष’ में लिखते हैं, “2018 और 2019 में वामपंथी लेखक,संगठनकर्ता और पंडित यह कह रहे थे कि अमेरिकी मज़दूर आगे बढ़ रहे हैं,यहाँ तक कि उन ‘लाल’ राज्यों में भी हड़ताल कर रहे हैं, जिन्होंने डोनाल्ड ट्रम्प को वोट दिया था।
दावा किया गया था कि मुख्य रूप से बर्नी सैण्डर्स के पक्ष में राष्ट्रपति अभियान और डीएसए की तेजी से बढ़ोतरी, लम्बे समय से पीड़ित मज़दूरों के इस बढ़ते जुझारूपन के लिए जिन्होंने दशकों से अपनी आर्थिक परिस्थितियों को बिगड़ते देखा था,मुख्य रूप से जिम्मेदार हैं। वामपंथी पत्रकारों ने हड़ताली शिक्षकों और ऑटोमोबाइल कर्मचारियों का साक्षात्कार लिया, जो कि जुझारूपन की एक नयी मन:स्थिति का बयान कर रहे थे। बरसों की नींद के बाद शायद मज़दूर वर्ग जाग रहा है।”
(स्वदेश कुमार सिन्हा लेखक और टिप्पणीकार हैं)
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